कृषि उद्योगों के साथ किसानों को जोड़ने के लिए कृषि मंत्रालय ने मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट का प्रारूप जारी किया है, जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एक विनियामक और नीति ढांचा तैयार करना चाहता है। इस लेख में, स्मृति शर्मा तर्क प्रस्तुत करती हैं कि इस कानून का उद्देश्य किसानों की रक्षा करना और ख़रीददारों को एक-दूसरे के साथ स्वतंत्र रूप से अनुबंध करने के लिए प्रोत्साहित करना होना चाहिए। नौकरशाही बाधाओं को बनाने के बजाय, सरकार को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए सक्षम वातावरण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को उनके उत्पादों की बेहतर कीमत मिले और फसल कटने के बाद होने वाले नुकसानों में कमी हो, सरकार किसानों को कृषि उद्योगों से जोड़ने का प्रयास करती रही है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (संविदा कृषि) इसी दिशा में एक रामवाण के रूप में सामने आती दिखी है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का आशय किसानों तथा प्रसंस्करण और/ या मार्केटिंग कंपनियों के बीच फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट के तहत, प्रायः पहले से तय कीमतों पर कृषि उत्पादों के उत्पादन और सप्लाई के लिए होने वाले समझौते से है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों को कीमत संबंधी जोखिम और अनिश्चितता से बचा देती है, नए कौशल विकसित करने में उनकी मदद करती है तथा उनके लिए नए बाजार उपलब्ध कराती है। इसके बावजूद कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का बाजार विफलताओं का शिकार होता है:
मोनॉपसोनी : आम तौर पर कॉन्ट्रैक्ट करने वाली कंपनियां किसानों के साथ ख़ास फसलें उपजाने के लिए करार करती हैं। यह खरीददार को उस उत्पाद के एकमात्र खरीददार में और किसानों को कीमत ग्रहणकर्ता में बदल देती है। कंपनियां कम कीमत देने की पेशकश करके अपने हित में इस स्थिति का लाभ उठा सकती हैं।
सूचना संबंधी असंतुलन: कॉन्ट्रैक्ट करने वाली कंपनियों के पास किसानों की उत्पादकता और जमीन की गुणवत्ता के बारे में पूरी जानकारी नहीं रहती है। इसके कारण ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जहाँ किसान कम गुणवत्ता वाली फसलें उपजाएं। दूसरी ओर, किसान कभी-कभी गुणवत्ता और मात्रा, या कीमत में बदलाव का प्रभाव जैसी कॉन्ट्रैक्ट में लिखी बातों को नहीं समझ पाते हैं।
इन बाज़ार की विफलताओं के कारण कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का परिणाम श्रेष्ठ से कमतर होता है। खरीददार किसानों को कम कीमत देकर दंडित कर सकते हैं। इसी प्रकार, किसान दूसरों को भी उत्पाद बेच सकते हैं या कॉन्ट्रैक्ट वाली कंपनी द्वारा दी गई प्रौद्योगिकी दूसरों को दे सकते हैं। अतः सवाल यह उठता है कि: क्या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बाजार में हस्तक्षेप करने के मामले में सरकार की भी कोई भूमिका है, और बाजार की विफलताओं से निपटने के लिए वह क्या कर सकती है?
भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विनियमन इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 के तहत होता है। इस एक्ट के अनेक सामान्य प्रावधान हैं जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए प्रासंगिक हैं। इनमें कॉन्ट्रैक्ट निर्माण, पक्षों के दायित्व और कॉन्ट्रैक्ट भंग की स्थिति में होने वाले परिणाम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, मॉडल एपीएमसी (एग्रीकल्चरल प्रोडूस मार्केट कमिटी) एक्ट, 2003 में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के प्रायोजकों का अनिवार्य पंजीकरण, और विवादों का निपटारा जैसे विशेष प्रावधान भी किए गए हैं।
हाल ही में कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग द्वारा मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2018 का एक प्रारूप सामने लाया गया है। इसमें किसानों और ख़रीददारों, दोनो के लिए लाभप्रद ढांचा स्थापित करने का प्रयास किया गया है। इसके बावजूद इसकी कुछ धाराएं वस्तुतः इसके विपरीत काम करती हैं।
मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (डेवलपमेंट एंड प्रमोशन) अथॉरिटी नामक राज्य-स्तरीय संस्था की स्थापना प्रस्तावित है जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को एपीएमसी के दायरे से बाहर कर देती है। मॉडल एक्ट में पंजीयन एवं समझौता प्रलेखन समिति द्वारा कॉन्ट्रैक्ट को निबंधित कराना खरीदार और किसान, दोनो के लिए जरूरी बना दिया गया है। पंजीयन दोनो पक्षों के लिए अतिरिक्त प्रक्रिया और खर्च बढ़ा देता है और खास तौर पर छोटे एवं मध्यम किसान इसका खर्च आसानी से वहन नहीं कर सकते हैं। एक्ट में पूर्व-स्वीकृत मूल्य तय करके किसानों को कीमत संबंधी संरक्षण देने का प्रस्ताव भी रखा गया है। यह नुकसानदेह होगा। अगर सरकार किसानों को अच्छा प्रदर्शन नहीं करने के लिए विकृत प्रोत्साहन देगी तो ख़रीददार किसानों को किस तरह से अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करेंगे? मॉडल कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की पूरी कोशिश ऐसी कानूनी अधिसंरचना निर्मित करने की ओर लक्षित दिखती है जो नजर रखे कि दोनो पक्ष कॉन्ट्रैक्ट का सम्मान करें। यह दृष्टिकोण दोषपूर्ण है। दोनो पक्षों को ‘असुविधाजनक विवाह’ की स्थिति में रखने के बजाय सरकार को वे समस्याएं दूर करनी चाहिए जिनके कारण संविदा असफल होती है। सुझावों में निम्नलिखित चीजें शामिल हो सकती हैं:
अधिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा: सरकार के लिए आवश्यक है कि वह किसानों और ख़रीददारों, दोनो को बाजार आधारित प्रोत्साहन दे। सरकार को पूरे देश में स्थानीय बाजारों और मंडियों के साथ किसानों के जुड़ाव में सुधार लाना चाहिए। ई-नैम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) इस दिशा में की गई शानदार पहल है। इससे संविदा के लिए इच्छुक ख़रीददार अपेक्षाकृत ऊंची बोली लगाने के लिए प्रोत्साहित होंगे और अपनी इनपुट सप्लाई हासिल करने के लिहाज़ से किसानों के नामांकन करने के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगे। आपस में प्रतिस्पर्धा होने से ख़रीददार किसानों को बेहतर शर्तों और सेवाओं का प्रस्ताव देने के लिए भी प्रेरित होंगे।
सार्वजनिक वस्तुएं उपलब्ध कराना: सरकार को चाहिए कि वह किसानों और कॉन्ट्रैक्ट करने वाली कंपनियों, दोनो का सूचना कोष बनाकर रखे। इस सूचना कोष से जमीन की उपलब्धता, डिफॉल्ट दर, और प्रदर्शन संबंधी मानकों के लिहाज से अलग-अलग किसानों और कृषक उत्पादक संघों (फार्मर प्रोडूसर ऑर्गनाइज़ेशन्स) के बारे में जानकारी मिल सकती है। इसी प्रकार, ख़रीददारों के विवरण वाले संग्रह से दी जाने वाली सेवाओं, फसलों की जरूरत, और डिफॉल्ट दरों के बारे में जानकारी मिल सकती है। इससे किसानों और ख़रीददारों, दोनो को कॉन्ट्रैक्ट में जुड़ने के पहले एक-दूसरे का मूल्यांकन करने में मदद मिलेगी। साथ ही, सरकार फसलों के लिए मानक स्थापित और लागू करने में मदद कर सकती है। इससे किसानों और ख़रीददारों के बीच कॉन्ट्रैक्ट वाली फसल के बारे में आम समझ बनेगी और स्पष्ट उम्मीदें रहेंगी।
कॉन्ट्रैक्ट के अमल के लिए अपेक्षाकृत आसान साधनों को प्रोत्साहन: कॉन्ट्रेक्टों में जोखिम में हिस्सेदारी की व्यवस्था, प्रोत्साहन संबंधी योजनाओं, बार-बार कॉन्ट्रैक्ट और मोल भाव करने के विकल्पों, तथा संविदा की सरल और पारदर्शी शर्तों को शामिल करने से कॉन्ट्रैक्ट को बेहतर ढंग से अमल में लाने में मदद मिल सकती है। दूसरों को की जाने वाली बिक्री (साइड-सेलिंग) को रोकने के साधन के रूप में सामाजिक बंदिशों से फायदा उठाना भी एक सफल व्यवस्था हो सकती है। सरकार किसानों को शिक्षित कर सकती है और उन्हें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग तथा आदर्श कॉन्ट्रैक्ट के प्रति अधिक जागरूक बना सकती है। इसे डीडी किसान, रेडियो कार्यक्रमों जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों और कृषि विश्वविद्यालयों के जरिए हासिल किया जा सकता है।
निष्कर्षतः, यह कहा जा सकता है कि मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2018 कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने की दिशा में उठाया गया अच्छा कदम है। हालांकि किसानों और ख़रीददारों के बीच कॉन्ट्रैक्ट के अमल की निगरानी के लिए नए रेग्यूलेटर के रूप में लाया गया प्रशासनिक अवरोध नुकसानदेह है। प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और किसानों तथा ख़रीददारों के बीच सूचना संबंधी असंतुलनों को दूर करने के जरिए सरकार को सक्षमकारी वातावरण उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जब तक ऐसा माहौल नहीं उपलब्ध कराया जाता है तब तक इस पर विश्वास करना फिजूल है कि नया मॉडल एक्ट कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दे सकता है।
लेखक परिचय: स्मृति शर्मा एक पब्लिक पॉलिसी प्रोफेशनल हैं, जो कृषि, स्वास्थ्य, उपभोक्ता संरक्षण, और वित्तीय समावेशन सहित विभिन्न आर्थिक विकास के मुद्दों पर लिखती हैं।






















































