ग्रामीण भारत में अधिकांश महिलाएँ पारंपरिक ईंधन का उपयोग जारी रखती हैं, जिसके चलते घरेलू कामों में उनका अधिक समय व्यतीत होता है। फरज़ाना अफरीदी ने इस लेख में मध्य प्रदेश में हुए एक सर्वेक्षण के परिणामों पर चर्चा की है और यह दिखाया है कि स्वच्छ ईंधन का उपयोग शुरू करने से महिलाओं का औसतन प्रतिदिन लगभग 20 मिनट का समय बचता है, लेकिन महिलाओं की कार्यबल भागीदारी में समान वृद्धि नहीं होती है। उनका कहना है कि श्रम बाज़ार में महिलाओं के काम का मूल्य बढ़ाने से स्वच्छ ईंधन अपनाने को प्रोत्साहन मिल सकता है।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं न केवल खाना पकाने के लिए बायोमास और ठोस ईंधन जैसे लकड़ी और गोबर के उपलों का उपयोग करने, बल्कि उन्हें इकट्ठा करने का बड़ा बोझ उठाती हैं और इससे प्रदूषण फैलाने में हिस्सेदारी भी। उदाहरण के लिए, भारत, बांग्लादेश और नेपाल में महिलाएं अक्सर बायोमास ईंधन इकट्ठा करने में प्रति सप्ताह 20 या उससे अधिक घंटे बिताती हैं। भारत के वर्ष 2019 के टाइम यूज़ सर्वे (टीयूएस) के आँकड़ों से पता चलता है कि महिलाएँ खाना पकाने में भी बहुत समय बिताती हैं। इंदौर, मध्य प्रदेश के ग्रामीण भाग में वर्ष 2018 में लगभग 3,000 प्राथमिक रसोइयों का 24 घंटे का समय उपयोग सर्वेक्षण (अफरीदी, देबनाथ, डिंकलमैन और सरीन 2023) करने पर यही पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं प्रति सप्ताह अपने घरेलू काम पर 60 घंटे बिताती हैं, जिसमें से अधिकांश समय खाना पकाने और सफाई में व्यतीत होता है- यह समय औसतन प्रति दिन लगभग चार घंटे (आकृति-1) है, जो एक अंशकालिक यानी पार्टटाइम नौकरी के बराबर है। इनमें से लगभग 75% महिलाएँ खाना पकाने के लिए जलावन की लकड़ी और गोबर के उपलों का उपयोग करती हैं, जिससे न केवल खाना पकाने और सफाई में अधिक समय लगता है, बल्कि घर के अंदर धुएँ के कारण महिलाओं को हृदय और फेफड़ों की बीमारी का भी खतरा रहता है।
आकृति-1. महिलाओं द्वारा साप्ताहिक समय का उपयोग

नोट : (i) प्रति सप्ताह घरेलू काम में बिताया गया कुल समय 60.62 घंटे है। (ii) अध्ययन नमूने का आकार 2,942 है।
स्रोत : अफरीदी एवं अन्य (2023)

स्वच्छ ईंधन और महिलाओं द्वारा समय का उपयोग
क्या खाना पकाने के लिए तरलीकृत पेट्रोलियम गैस या एलपीजी जैसे स्वच्छ ईंधन का उपयोग करने से ग्रामीण महिलाओं की उत्पादकता बढ़ सकती है, उनके लिए समय की बचत हो सकती है और उनके स्वास्थ्य में भी सुधार हो सकता है?
वर्ष 2018 के उसी सर्वेक्षण में, घरों के मुख्य रसोइयों से यह पूछा गया कि उन्होंने हाल ही में खाना पकाने के लिए किस ईंधन का उपयोग किया, साथ ही परिवार के लिए पूरा भोजन पकाने में लगने वाले समय का अनुमान लगाया गया। आकृति-2 में उन घरों में प्राथमिक रसोइए द्वारा भोजन तैयार करने में लिए गए औसत समय की तुलना दर्शाई गई है, जिनके पास एलपीजी की सुविधा नहीं है (और इसलिए वे खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन या पारंपरिक चूल्हे- मिट्टी या ईंट के चूल्हे का उपयोग करते हैं) और उनकी तुलना में उन घरों में जिनके पास एलपीजी की सुविधा है। परिणामों से पता चलता है कि अगर महिला खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन की बजाय एलपीजी का उपयोग करती है तो भोजन तैयार करने में लगभग 30 मिनट का समय कम लगता है।
आकृति-2. खाना पकाने के ईंधन के प्रकार के अनुसार भोजन तैयार करने में लगने वाला समय

नोट : (i) वर्टिकल एरर बार 95% विश्वास अंतराल (कॉन्फ़िडेंस इंटरवल) को दर्शाते हैं। 95% विश्वास अंतराल यह दर्शाता है कि, यदि प्रयोग को नए नमूनों के साथ बार-बार दोहराया जाता है, तो 95% बार गणना किए गए विश्वास अंतराल में सही प्रभाव होगा। (ii) अध्ययन नमूने का आकार 2,942 है।
स्रोत : अफरीदी एवं अन्य (2023)

इसके बाद, जब घरों को एलपीजी तक पहुँच को छोड़कर समान विशेषताओं पर मिलान किया जाता है, तो समय उपयोग के आँकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण इंदौर के जिन घरों में एलपीजी नहीं है, उनकी तुलना में एलपीजी पहुँच वाले घरों में महिलाएं ईंधन संग्रह और ईंधन बनाने में कम समय व्यतीत करती हैं (तालिका-1)। गोबर इकट्ठा करने में लगने वाले समय में संभावित रूप से बड़ी कमी आएगी, जो कि प्रति सप्ताह लगभग 70 मिनट है, हालांकि जलावन इकट्ठा करने में समय की बचत बहुत कम है। इसलिए, स्वच्छ, कम प्रदूषणकारी ईंधन के उपयोग को अपनाने से वास्तव में महिलाओं को घरेलू कामों में लगने वाले समय की बचत हो सकती है।
तालिका-1. ईंधन संग्रह और बनाने पर खर्च किया गया समय
मिनट |
‘उपचारित’ परिवारों पर औसत उपचार प्रभाव (एलपीजी बनाम गैर-एलपीजी परिवार) |
जलावन इकट्ठा करने में बिताया गया समय (प्रति सप्ताह) |
-7.26 |
गोबर इकट्ठा करने/बनाने में बिताया गया समय (प्रति सप्ताह) |
-69.91*** |
घरेलू काम पर बिताया गया समय (प्रति दिन) |
-19.86** |
आय सृजन पर बिताया गया समय (प्रति दिन) |
-5.58 |
फुर्सत में बिताया गया समय (प्रति दिन) |
20.72*** |
नोट : (i) *10%, **5% और ***1% पर महत्वपूर्ण। (ii) अध्ययन नमूने का आकार 2,650 है।
स्रोत : अफरीदी एवं अन्य (2023)।

हालांकि यह ध्यान देने लायक है कि एलपीजी पहुँच वाले परिवारों में इन महिलाओं द्वारा आय-उत्पादक कार्यों (वेतन के लिए काम, घरेलू उद्यम में सहायक के रूप में, या स्वरोज़गार) पर खर्च किए गए समय में कोई वृद्धि नहीं हुई है। फिर भी बचाए गए दैनिक समय (लगभग 20 मिनट प्रतिदिन) का लगभग पूरा हिस्सा फुर्सत में बिताया जाता है।
स्वच्छ ईंधन और महिलाओं की कार्य भागीदारी
जब एलपीजी वास्तव में महिलाओं के कल्याण में सुधार कर सकता है, तो फिर भी हमें उनकी श्रम शक्ति भागीदारी में वृद्धि क्यों नहीं दिखाई देती है? इसका उत्तर कुछ हद तक घरेलू आय में अंतर के कारण हो सकता है- जो परिवार एलपीजी का उपयोग करते हैं, वे आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में हो सकते हैं। हालांकि उपरोक्त तुलना के लिए, आय में अंतर को ध्यान में रखते हुए परिवारों को उनकी संपत्ति और भूमि जोत के साथ-साथ जाति के आधार पर भी मिलान किया गया था। तो फिर, काम से बचे हुए समय का उपयोग न किए जाने का क्या कारण है?
सबसे पहले यह ध्यान देने योग्य है कि ईंधन इकट्ठा करना एक ऐसी गतिविधि है जो अधिकांश ग्रामीण परिवारों द्वारा सप्ताह में एक बार या महीने में लगभग चार बार की जाती है। इसलिए, एलपीजी को अपनाने से दैनिक समय की बचत नहीं होती है। दूसरा, खाना पकाने से प्रतिदिन बचा हुआ 20-30 मिनट का समय महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलने और पूर्णकालिक नौकरी के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए, आश्चर्य नहीं है कि हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि बचा हुआ समय फुर्सत में बिताया जाता है।
इस बात पर विचार करना महत्वपूर्ण है कि हम महिलाओं द्वारा बचाए उन प्रतिदिन के लगभग 30 मिनटों को कैसे महत्व देते हैं? ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध काम मुख्य रूप से मैनुअल और कम वेतन वाले कम कुशल काम हैं। लगभग 30 मिनट की संभावित समय बचत, ग्रामीण मासिक घरेलू आय का केवल 5% है, जिसे अकुशल, शारीरिक श्रम के लिए ग्रामीण दैनिक मज़दूरी को देखते आंका गया है (इन महिलाओं की शिक्षा के स्तर और व्यावसायिक या तकनीकी कौशल की कमी के अनुरूप)। विनिर्माण या सेवा क्षेत्र की नौकरियों तक पहुँच, जिनमें उच्च आय होती है और महिलाओं के घरेलू काम की अवसर लागत में वृद्धि होती है, अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग नहीं के बराबर है। न केवल महिलाओं के समय का मूल्य अपेक्षाकृत कम है, बल्कि महिलाओं के लिए लचीले काम के अवसर भी बहुत कम हैं। औसत महिला रोज़गार दर केवल 15% है और मुख्य रूप से कृषि स्वरोज़गार में है। इसलिए, इन परिवारों को एलपीजी के नियमित उपयोग को अपनाकर खाना पकाने और ईंधन इकट्ठा करने में महिलाओं के लगने वाले समय को बचाने के लिए कोई पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिलता है।
स्वच्छ ईंधन की उपलब्धता के बावजूद इसका उपयोग कम है
परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन हो सकता है, लेकिन ग्रामीण भारत में एलपीजी का उपयोग बहुत कम है। ग्रामीण परिवारों को स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई योजना- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) कार्यक्रम को निस्संदेह एक बड़ी सफलता मिली है और आज अधिकांश ग्रामीण परिवारों के पास एलपीजी है। हालांकि ये परिवार कभी-कभी एलपीजी का उपयोग करते हैं, लेकिन अधिकांश समय वे ठोस ईंधन का उपयोग कर रहे हैं। इस प्रकार, वे मिश्रित ईंधन के उपयोग में लगे हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप एलपीजी सिलेंडर रिफिल का उपयोग बहुत कम होता है। यदि परिवार द्वारा उपयोग किया जाने वाला एकमात्र ईंधन एलपीजी हो, तो चार सदस्यों वाले परिवार द्वारा अधिकतम उपयोग लगभग 12 सिलेंडर होगा, लेकिन आँकड़ों से पता चलता है कि औसत वार्षिक उपयोग केवल तीन सिलेंडर का है।
स्वच्छ खाना पकाने की तकनीक, चाहे एलपीजी हो या इंडक्शन, एक बार में समय की बड़ी मात्रा को बचाने में सक्षम नहीं होगी, जिससे महिलाएं पूर्णकालिक काम कर पाएं और घर में पर्याप्त मात्रा में आय ला पाएं। स्वच्छ प्रौद्योगिकी अपनाने के प्रति हतोत्साहन इस तथ्य से और भी बढ़ जाता है कि आमतौर पर पुरुष ही एलपीजी रिफिल खरीदने का निर्णय लेते हैं। इस प्रकार, इन महिलाओं की परिवार में कम बातचीत की शक्ति उन्हें अन्य ईंधन का उपयोग करने के लिए बाध्य करती है।
महिलाओं के समय का मूल्य बढ़ाना, उनके श्रम के बदले में उन्हें उच्च वेतन और अच्छी नौकरियों के माध्यम से लाभ पहुँचाना, न केवल श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए बल्कि भारत में स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने के लिए भी आवश्यक है। बाजारों तक पहुँच में सुधार लाने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म माइक्रो-क्रेडिट ऋण के साथ मिलकर ग्रामीण महिलाओं के लिए अच्छे काम के अवसर लाने का एक संभावित समाधान है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय :
फरज़ाना अफरीदी भारतीय सांख्यिकी संस्थान के दिल्ली केन्द्र में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं और टोरंटो विश्वविद्यालय में मंक स्कूल ऑफ ग्लोबल अफेयर्स एंड पब्लिक पॉलिसी में विज़िटिंग प्रोफेसर हैं। उनकी प्राथमिक शोध रुचि शिक्षा, लिंग और तत्कालीन राजनीतिक अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में है। विकासशील देशों में सार्वजनिक कार्यक्रमों के प्रति व्यक्तियों और परिवारों की प्रतिक्रिया को समझने में उनकी गहरी रुचि है। उन्होंने मिशिगन विश्वविद्यालय, एन आर्बर से अर्थशास्त्र में पीएचडी और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में एमए किया है।
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