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गवर्नेंस मैट्रिक्स: बदलाव हेतु सिस्टम की तैयारी को समझना

  • Blog Post Date 25 जनवरी, 2023
  • दृष्टिकोण
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आदर्श परिणामों की अपेक्षा और किसी अपूर्ण प्रणाली की वास्तविकता के बीच के अंतर को स्पष्ट करने हेतु गौरव गोयल ने ‘गवर्नेंस मैट्रिक्स’ नामक एक ऐसा साधन प्रस्तुत किया है जिसका उपयोग सरकारी पहलों को सफलतापूर्वक लागू करने की दिशा में सरकारी तत्परता का आकलन करने के लिए किया जा सकता है। वे राजनीतिक प्रमुखता और प्रणाली की क्षमता नामक दो पहलुओं को स्पष्ट करते हैं - जिनके साथ राजनीतिक प्रणालियाँ आगे बढ़ सकती हैं। इसके आधार पर वे उन चार अवस्थाओं को स्थापित करते हैं जिसमें सरकारें मौजूद हो सकती हैं और वे प्रत्येक खंड में स्थायी परिवर्तन की संभावना की जांच करते हैं।

भारत सरकार की व्यवस्था एक पहेली है। दमनकारी औपनिवेशिक अतीत के आधार वाले एक दृढ़ लेकिन भरे-पूरे लोकतंत्र को चलाने हेतु बनाई गई यह एक ऐसी प्रणाली है जिसे किसी भी अन्य आधुनिक लोकतंत्र की तुलना में अधिक विविधता वाली और एक बड़ी आबादी के लिए काम करना है। यह कहना कि 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में रहनेवाले 139 करोड़ से अधिक लोगों के साथ भारत पर  करना जटिल है, कम बयानी होगी।

सामूहिक रूप से, एक स्थिर अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने, महत्वपूर्ण सेवाएं (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण) प्रदान करने और समावेशी विकास को सक्षम करने की जिम्मेदारी सभी स्तर (राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय) के सरकारों की है। इन जिम्मेदारियों को निभाने के लिए सरकारें विभिन्न कार्यक्रमों, योजनाओं और मिशनों के माध्यम से काम करती हैं – सरलता के लिए हम इन्हें ‘सरकारी पहल’ से संबोधित करेंगे। जहां कुछ सरकारी पहलें सफल साबित होती हैं क्योंकि वे अपने उन उद्देश्य को हासिल करने की दिशा  के करीब पहुँच जाती हैं जिसके लिए उन्हें डिजाइन किया गया था, वहीं कई पहलें अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाती हैं। उदाहरण के लिए, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम(जी)) को वर्ष 2014 में “2014 से 2019 तक की अवधि के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच को खत्म करने” के लिए एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में शुरू किया गया था। उस पांच साल की अवधि के दौरान, एसबीएम(जी) का लक्ष्य काफी हद तक हासिल कर लिया गया था, और ग्रामीण भारत को ‘खुले में शौच’ से मुक्त घोषित किया गया था। दूसरी ओर, वर्ष 2015 में लॉन्च किये गए ‘स्किल इंडिया मिशन’ का उद्देश्य वर्ष 2022 तक 40 करोड़ युवाओं को बाजार-संबंधित कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना था। दिसंबर 2021 तक, देश भर के लगभग 13 करोड़ 40 लाख युवाओं को ही इस योजना के तहत प्रशिक्षित किया गया था। ये दोनों केंद्र सरकार की पहलें हैं जो उनके सफल कार्यान्वयन हेतु राज्य और स्थानीय सरकारों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।

अलग-अलग सरकारी पहलों की सफलता और विफलता का गहराई से अध्ययन किया तो गया है, पर उनमें उन अंतर्निहित कारकों के विश्लेषण की कमी है जो इन परिणामों को निर्धारित करते हैं। उन कारकों का विश्लेषण करने से किसी भी व्यक्ति, गैर-सरकारी संगठन, या स्वयं सरकार को कोई भी पहल शुरू करने से पहले उससे संबंधित सिस्टम की तैयारी और इच्छित परिणामों को प्राप्त करने की क्षमता का पता लगाने में मदद मिल सकती है।

गवर्नेंस मैट्रिक्स क्या है?

गवर्नेंस मैट्रिक्स1 एक ऐसा साधन है जिसका उपयोग राजनीतिक प्रमुखता (किसी एजेंडे पर राजनीतिक इच्छाशक्ति) और प्रणाली की क्षमता (लोग, प्रक्रियाएं और बुनियादी ढांचे) के स्तर के कार्य के रूप में परिणामों को संचालित करने हेतु सरकारी प्रणाली (राष्ट्रीय, राज्य या स्थानीय) की तत्परता का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। चित्र 1 में, प्रणाली या तो राजनीतिक प्रमुखता (political salience) में बदलाव (वकालत के माध्यम से या राजनीतिक वातावरण में बदलाव के माध्यम से) या प्रणाली की क्षमता (system capacity) में (लोगों, प्रक्रियाओं और बुनियादी ढांचे में निवेश के माध्यम से) एक खंड से दूसरे में जा सकती है।

आकृति 1. गवर्नेंस मैट्रिक्स

आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों का हिन्दी अनुवाद: political salience (राजनीतिक प्रमुखता), system capacity (प्रणाली की क्षमता), comatose (स्थिर; पूरे आलेख में कोमाटोज़ का प्रयोग किया गया है), sleeping giant (निद्रिस्त विशाल; पूरे आलेख में स्लीपिंग जायंट का प्रयोग किया गया है), shooting star (टूटता तारा; पर आलेख में शूटिंग स्टार का प्रयोग किया गया है), battle ready (संघर्ष-तैयार), low (कम), high (उच्च)

गवर्नेंस मैट्रिक्स को समझना

गवर्नेंस मैट्रिक्स के दो पहलु हैं: पहला, राजनीतिक प्रमुखता - जो किसी नई पहल को शुरू करके इच्छित परिणाम प्राप्त होने तक एक लंबी अवधि के लिए उसे जारी रखने हेतु सरकारी प्रणाली के राजनीतिक नेतृत्व की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति है तो परिणाम प्राप्त करने की संभावना को बढ़ाने के लिए नेताओं द्वारा सक्षम स्थितियां बनाई जाएंगी। इसमें, ऐसे मामलों को देखने हेतु कुछ हद तक स्थिर कार्यकाल देते हुए एक उपयुक्त नौकरशाह की तैनाती करना और समय के साथ उस नौकरशाह का स्थानांतरण हो तो उसके बदले किसी अन्य सक्षम अधिकारी को तैनात करना; पहल के लिए आवश्यक संसाधनों, विशेष रूप से, बजट और टीम की उपलब्धता सुनिश्चित करना, तथा भाषणों, कार्यक्रमों, मीडिया, विज्ञापनों आदि के माध्यम से इस पहल के लिए जनता का समर्थन जुटाना शामिल है।

गवर्नेंस मैट्रिक्स का दूसरा पहलु उसकी प्रणाली की क्षमता है, जो किसी पहल को सफलतापूर्वक चलाने के लिए आवश्यक लोगों, प्रक्रियाओं और बुनियादी ढांचे (भौतिक और प्रौद्योगिकी दोनों) को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (लोगों) में डॉक्टरों की रिक्तियां अत्यधिक हों तो आवश्यक स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं। यदि कक्षा में शिक्षक की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की जाती है तो शैक्षिक परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं, और यह कुल मिलाकर शिक्षकों पर पडने वाले प्रशासनिक कार्यभार (प्रक्रिया) पर निर्भर करता है। सुसज्जित प्रशिक्षण केंद्रों (भौतिक बुनियादी ढांचे) का नेटवर्क नहीं होने पर देश के युवाओं को प्रभावी ढंग से कुशल नहीं बनाया जा सकता है। और उपयुक्त भुगतान प्रणाली और सत्यापित बैंक खातों (प्रौद्योगिकी अवसंरचना) के साथ सभी पात्र लाभार्थियों के अद्यतन डेटाबेस के अभाव में किसानों को सफलतापूर्वक प्रत्यक्ष लाभ का अंतरण करना लगभग असंभव होगा।

गवर्नेंस मैट्रिक्स के चार खंड उन चार अवस्थाओं की व्याख्या करते हैं जिनमें एक सरकारी प्रणाली हो सकती है, जैसा कि राजनीतिक प्रमुखता और प्रणाली की क्षमता के दो पहलुओं में दर्शाया गया है:

1. किसी स्थिर (कोमाटोज़) प्रणाली में राजनीतिक प्रमुखता और प्रणाली की क्षमता - दोनों कम होता हैं। ऐसे में सिस्टम की पूरी एनर्जी यथास्थिति बनाए रखने में खर्च हो जाती है। पहल करने का न तो झुकाव है और न ही क्षमता। व्यवस्था को क्रियान्वित करने के लिए राजनीतिक प्रमुखता और/या प्रणाली की क्षमता में बदलाव की आवश्यकता होगी।

उदाहरण के लिए, महिला सुरक्षा एक महत्वपूर्ण सुधार-क्षेत्र है। हालाँकि सुधारों की तत्काल आवश्यकता के बावजूद, यह एक ऐसा मुद्दा है जिसने ऐतिहासिक रूप से कभी भी पर्याप्त राजनीतिक प्रमुखता प्राप्त नहीं किया है। राज्यों में महिलाओं के खिलाफ अपराध को रोकने की प्रणाली की क्षमता भी कम रही है। वर्ष 2012 में निर्भया कांड के बाद ऐसा लग रहा था कि इस मुद्दे को अधिक राजनीतिक प्रमुखता मिलेगा। “महिलाओं की सुरक्षा और सुरक्षा में सुधार हेतु विशेष रूप से डिजाइन की गई परियोजनाओं के लिए” महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के माध्यम से निर्भया फंड की स्थापना के साथ प्रणाली की क्षमता को मजबूत करने का भी प्रयास किया गया था। परंतु इस मुद्दे का राजनीतिक प्रमुखता जल्द ही समाप्त हो गया और प्रणाली की क्षमता कम बनी हुई है, भले निर्भया फंड का उपयोग लगातार कम हीं हुआ है। राजनीतिक प्रमुखता और प्रणाली की क्षमता में कमी के चलते, राज्यों द्वारा महिला सुरक्षा पर ठोस सुधार करने की संभावना नहीं है।

2. किसी ‘निद्रिस्त विशाल’ (स्लीपिंग जायंट) प्रणाली में राजनीतिक प्रमुखता कम होता है और प्रणाली की क्षमता अधिक होती है। ऐसी स्थिति में, जबकि सतत वृद्धिशील परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में मूलभूत स्थायी अंतर लानेवाले जटिल स्थायी परिणाम राजनीतिक प्रमुखता का निर्माण केवल लक्ष्य के इर्दगिर्द करके ही प्राप्त किया जा सकते हैं। यह या तो इसकी हिमायत के माध्यम से या राजनीतिक नेतृत्व में बदलाव या सुधारों की मांग करने वाले जमीनी नागरिक आंदोलनों के माध्यम से हो सकता है। संक्षेप में, प्रणाली की वास्तविक क्षमता को किसी एजेंडे के रूप में राजनीतिक प्रमुखता के माध्यम से अनलॉक किया जा सकता है।

भारतीय रेलवे ‘स्लीपिंग जायंट’ का एक अच्छा उदाहरण है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में रेलवे के संबंध में जमीनी स्तर पर बदलाव के लिए कोई राजनीतिक वादा नहीं किया गया है (कम राजनीतिक प्रमुखता), जबकि कठिन प्रक्रियाओं (जैसे प्रभावी बुकिंग और शिकायत निवारण तंत्र) के साथ अधिकारियों के एक मजबूत कैडर और अच्छे बुनियादी ढांचे की प्रणाली की समग्र क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है। रेल मंत्रालय निरंतर आधार पर वृद्धिशील परिवर्तनों को शुरू करने में काफी सुसंगत रहा है, लेकिन परिवर्तन की गति और पैमाना दोनों ही सीमित हैं। वित्त में सुधार, प्रौद्योगिकी की शुरूआत और नागरिक अनुभव में सुधार के संबंध में कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली है। रेलवे के भीतर अधिक महत्वाकांक्षी परिवर्तन तभी संभव है जब इसे देश के लिए अत्याधुनिक परिवहन प्रणाली बनाने हेतु उच्च राजनीतिक प्रमुखता का बनाया जा सके।

3. ‘शूटिंग स्टार’ व्यवस्था में राजनीतिक प्रमुखता अधिक है, लेकिन प्रणाली की क्षमता कम होती है। ऐसी स्थिति में लक्षित अल्पकालिक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। हालाँकि यह भी आदर्श नहीं है क्योंकि कम प्रणालीगत क्षमता के साथ गहन प्रणालीगत सुधार नहीं किए जा सकते हैं। केवल मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के जरिये व्यवस्था की कमजोरी को दूर नहीं किया जा सकता है। इसलिए इस स्थिति में कार्यबल को बढ़ाकर, प्रक्रियाओं को ठीक करके और बुनियादी ढांचे को मजबूत करके प्रणाली की क्षमता को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि परिणामों की व्यापकता, गहनता और स्थिरता को बढ़ाया जा सके।

शूटिंग स्टार का एक उदाहरण भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली है। देश भर में, विभिन्न प्रशासनिक स्तरों पर क्षमता में कमी के कारण स्वास्थ्य प्रणाली के अभिलक्षित होने के लिए बहुत कुछ रह जाता है। हालांकि जब देश भर में युद्धस्तर पर कोविड टीकाकरण दिया जाना था, तो वही प्रणाली परिणाम देने में सक्षम थी, इसके ‘मिशन’ की स्थिति में होने पर भारत अपनी 89% वयस्क आबादी का पूरी तरह से टीकाकरण कर चुका था। यह लक्षित अल्पकालिक परिणाम का एक उदाहरण था जो उच्च राजनीतिक प्रमुखता के आधार पर प्राप्त किया जा रहा था। तथापि, यह किसी भी तरह से देश की स्वास्थ्य प्रणाली की मजबूती का संकेतक नहीं है, जो डॉक्टरों की कमी, रोगियों द्वारा प्राप्त किये गए उपचार की गुणवत्ता की जांच करने के लिए सीमित या अनुपस्थित प्रक्रियाओं और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में खराब बुनियादी ढांचे से ग्रस्त है। इसलिए, यदि कोई नई महामारी देश में आ धमकती है, तो उन गहरे सुधारों के अभाव में स्वास्थ्य प्रणाली के पतन का खतरा बना रहता है जो प्रणाली की क्षमता में सुधार कर सकते हैं।

4. ‘संघर्ष-तैयार’ प्रणाली में राजनीतिक प्रमुखता और प्रणाली की क्षमता दोनों अधिक होती हैं। इस स्थिति में यह प्रणाली जटिल स्थायी परिणाम प्राप्त कर सकती है। इस तरह के परिणाम नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में मूलभूत स्थायी अंतर ला सकते हैं। जब कोई पहल प्रणाली के संघर्ष-तैयार खंड में शुरू की जाती है, तब उसके सफल होने की संभावना सबसे अधिक होती है।

जन धन योजना (जेडीवाई) एक ऐसा पहल है जिसे तब शुरू किया गया था जब बैंकिंग प्रणाली संघर्ष-तैयार (संघर्ष के लिए तैयार) थी। यह योजना ‘प्रत्येक परिवार के लिए कम से कम एक बुनियादी बैंकिंग खाते के साथ बैंकिंग सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुंच, वित्तीय साक्षरता, ऋण तक पहुंच, बीमा और पेंशन सुविधा’ प्रदान करने के लिए डिज़ाइन की गई थी।’ 28 अगस्त 2014 को जब जेडीवाई को लॉन्च किया गया था, तब से 30 जून 2015 तक की केवल 10 महीने की अवधि में 16 करोड़ 50 लाख बैंक खाते खोले गए थे। जन धन योजना में उच्च राजनीतिक तत्परता थी, प्रधान मंत्री ने इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता घोषित किया था। वर्षों से, ग्रामीण और खराब सेवा वाले क्षेत्रों में प्राथमिकता क्षेत्र ऋण जैसे जनादेश के साथ शाखाएँ खोलने की दिशा में मजबूत प्रोत्साहन ने यह सुनिश्चित किया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने लोगों, प्रक्रियाओं और बुनियादी ढांचे के साथ पहले से ही टियर-2 और टियर-3 शहरों से गहरा और मजबूत नेटवर्क स्थापित किया है। इसलिए, जब इस उच्च-क्षमता वाली प्रणाली को अत्यधिक राजनीतिक प्रमुखता (तत्परता) के साथ कार्रवाई के लिए प्रेरित किया गया, तो एक परिवर्तनकारी पहल करना संभव था।

निष्कर्ष

गवर्नेंस मैट्रिक्स यह नहीं प्रस्तुत करता है कि ये चार खंड किसी भी प्रणाली के लिए अंतिम अवस्था हैं। यह वास्तव में – राजनीतिक प्रमुखता और प्रणाली की क्षमता – लीवर को प्रकाश में लाता है जिसका उपयोग किसी प्रणाली को एक खंड से दूसरे में स्थानांतरित करने के लिए किया जा सकता है। यह, यह भी दर्शाता है कि ये दोनों लीवर विकासात्मक परिणामों को प्राप्त करने के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। जब राजनीतिक प्रमुखता और प्रणाली की क्षमता दोनों कम हों, तो कोई परिवर्तन संभव नहीं है, और यथास्थिति बनी रहती है। कम राजनीतिक प्रमुखता के साथ प्रणाली की उच्च क्षमता का अर्थ है कि परिवर्तन का पैमाना और गति सीमित रहती है। प्रणाली की क्षमता के बगैर, उच्च राजनीतिक प्रमुखता परिणामों की व्यापकता, गहनता और स्थिरता को सीमित करता है। जब दोनों उच्च होते हैं, तो इच्छित परिणाम प्राप्त करने की संभावना सबसे अधिक होती है।

कई बार, अच्छी नीयत से काम करने वाले और सरकार के साथ या सरकार में शामिल होने वाले शोधकर्ताओं को यह उम्मीद होती है कि एक अपूर्ण प्रणाली शुद्ध रूप से इरादे और इनपुट के आधार पर सही परिणाम देगी। गवर्नेंस मैट्रिक्स इस अपेक्षा और वास्तविकता के बीच के अंतर को समझाने में मदद कर सकता है।

टिप्पणी:

  1. गवर्नेंस मैट्रिक्स एक मिशन-संचालित गवर्नेंस कंसल्टिंग फर्म ‘समग्र’ द्वारा प्राप्त सीख पर आधारित है, जो केंद्र, राज्यों और जिलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कौशल और कृषि जैसे विभिन्न डोमेन पर सरकारों के साथ काम करने के एक दशक के अनुभव से प्राप्त हुई है। इसका उपयोग किसी भी सरकारी पहल से संबंधित परिणामों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य या स्थानीय सरकार प्रणाली की तत्परता का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। 

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लेखक परिचय: गौरव गोयल समग्र नामक एक संस्थान के संस्थापक और सीईओ हैं।

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