समष्टि अर्थशास्त्र

कोविड-19 लॉकडाउन और प्रवासी श्रमिक: बिहार एवं झारखंड के व्यावसायिक प्रशिक्षुओं का सर्वेक्षण

  • Blog Post Date 04 जनवरी, 2021
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भारत में हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण विशेष रूप से प्रवासी मजदूर बुरी तरह प्रभावित हुए। जब यात्रा प्रतिबंध हटा दिए गए तब 1.1 करोड़ अंतरराज्यीय प्रवासी अपने घर लौट गए। इस आलेख में चक्रवर्ती एवं अन्‍य बिहार और झारखंड के युवाओं (‘दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना’ के पूर्व प्रशिक्षु) के साथ किए गए फोन सर्वेक्षण से प्राप्‍त प्रमुख निष्कर्षो को प्रस्‍तुत करते हैं। इस सर्वेक्षण के जरिए अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों पर लॉकडाउन के प्रभाव का आकलन करने और भविष्य में उनके द्वारा फिर से प्रवासन की उनकी इच्छा का अनुमान लगाया गया है।

 

भारत में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू किए जाने के कारण व्यवसायों, कारखानों और अन्य कार्यस्थलों के बंद होने की वजह से देश भर में लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित हुई। विशेष रूप से प्रवासी श्रमिक सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए क्योंकि उनमें से कईयों ने अपनी नौकरी ऐसी स्थिति में खो दी थी कि उन्‍हें बचाने हेतु कोई सामाजिक सुरक्षा जाल उपलब्ध नहीं था, और वे परिवार से भी बहुत कम संपर्क कर पा रहे थे। शुरू में अंतरराज्यीय यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया, और हताश प्रवासियों के सैकड़ों किलोमीटर तक घर वापस जाने के संबंध में मीडिया में रिपोर्टें आने लगीं। यात्रा प्रतिबंध हटा दिए जाने के बाद 1.1 करोड़ अंतरराज्यीय प्रवासी अपने घरों को लौट गए।

इस आलेख में हम जून और जुलाई 2020 में बिहार और झारखंड के 2,259 युवाओं के साथ किए गए फोन सर्वेक्षण के सात प्रमुख निष्कर्षों को प्रस्‍तुत करते हैं। सभी उत्तरदाता पहले 2019-2020 के दौरान डीडीयू-जीकेवाई (दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना) के तहत 3-6 महीने के आवासीय प्रशिक्षण के प्रशिक्षु थे। यह योजना एक कौशल-आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम है जो ग्रामीण वंचित युवाओं को विनिर्माण और सेवाओं में औपचारिक वेतनभोगी नौकरियों में स्‍थान देता है, जो अक्सर अन्य राज्यों में शहरी क्षेत्रों में स्थित होते हैं। सर्वेक्षण का उद्देश्‍य अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों पर हुए लॉकडाउन के प्रभाव का आकलन करना और भविष्य में उनके द्वारा फिर से प्रवासन की उनकी इच्छा का अनुमान लगाना था।

निष्‍कर्ष 1: सभी अंतरराज्यीय और राज्यान्तरिक प्रवासियों में से लगभग आधे अपने-अपने घर लौट आए

लॉकडाउन-पूर्व अवधि में अपने गृह-राज्य के बाहर रहने वाले उत्तरदाताओं (अंतरराज्यीय प्रवासियों) में से लगभग आधे (45%) अपने गृह-राज्‍य में वापस आ गए, जो देशव्यापी लॉकडाउन के कारण आरंभ हुए ‘वापसी प्रवासन’ का संकेत देता है। इसके अलावा जब कोविड-19 संकट आया तब अपने राज्‍य के भीतर ही रहने वाले प्रवासी श्रमिकों का सर्वेक्षण करने पर हमने पाया कि उनमें से 44% श्रमिक अपने घर लौट चुके थे। अधिकांश उत्तरदाता जो लॉकडाउन से पहले घर पर थे, जून और जुलाई 2020 में घर पर ही बने रहे।1

आकृति 1. लॉकडाउन के पहले और बाद का स्थान

नोट: 'वर्तमान अवधि' जून-जुलाई 2020 को संदर्भित करती है जब सर्वेक्षण किया गया था।

आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों का अर्थ:

At home – घर पर

Within state – राज्य के अंदर

Outside state – राज्य के बाहर

Location – स्थान

Period – अवधि

Pre-lockdown – लॉकडाउन-पूर्व

Current – वर्तमान

निष्‍कर्ष 2: वेतनभोगी नौकरियों में कार्यरत प्रवासियों में से एक तिहाई बेरोजगार हो गये, और जो लोग नौकरियों में बने रहे उनमें से लगभग एक तिहाई अवैतनिक अवकाश पर थे

जिन उत्‍तरदाताओं को लॉकडाउन से पहले की अवधि में वेतनभोगी नौकरी मिली थी उनमें से लगभग एक तिहाई उत्तरदाताओं (32%) की नौकरी जा चुकी थी। साथ ही, अनियत कार्य करने वाले उत्तरदाताओं का अनुपात 9% से बढ़कर 16% हो गया। अपनी नौकरी खो चुके उत्तरदाताओं (संख्या में 296) में से लगभग आधे (47%) ने कहा कि उन्होंने अपनी नौकरी स्वेच्छा से छोड़ दी थी, 23% ने कहा कि उनकी नौकरी इसलिए चली गई क्योंकि लॉकडाउन के कारण उनके कार्यालय बंद हो गए थे और 9% लोग ऐसे थे जो लॉकडाउन से पहले होली की छुट्टी के दौरान अपने घर आए थे लेकिन अंतरराज्यीय यात्रा पर रोक लगने के कारण काम पर वापस नहीं जा सके। वेतनभोगी रोजगार (संख्या में 634) में बने रहने वालों में से 37% अवकाश पर थे (इनमें से 12% को नियोक्ताओं द्वारा नहीं आने के लिए कहा गया था, 62% लोगों के कार्यालय लॉकडाउन के कारण बंद थे और बाकी ने स्वेच्छा से छुट्टी पर जाने का फैसला किया था) और उनमें से अधिकांश को वेतन का भुगतान नहीं किया गया था। यह एक उच्च स्तर की अनिश्चितता को इंगित करता है, यहां तक ​​कि उन लोगों के बीच भी जो अभी भी औपचारिक रोजगार में हैं।

आकृति 2. लॉकडाउन से पहले और बाद में रोजगार की स्थिति

नोट: 'वर्तमान अवधि' जून-जुलाई 2020 को संदर्भित करती है जब सर्वेक्षण किया गया था।

आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों का अर्थ:

Employment – नौकरी प्रकार

Salaried job – वेतनभोगी नौकरी

Casual work – आकस्मिक नौकरी

Not earning - कुछ कमाई नहीं

निष्‍कर्ष 3: नौकरी में बने रहने वाले प्रवासियों में से एक तिहाई से कम को अपने नियोक्ताओं से सहायता मिली और कुछ प्रवासी अपने पीएफ खाते से पैसे भी निकाल सके

ऐसे प्रवासी जो जून और जुलाई 2020 में भी नौकरी में बने रहे (संख्या में 459), उनमें से केवल 31% को अपने नियोक्ताओं से मुख्य रूप से खाद्य सामग्री के रूप में सहायता प्राप्त हई थी। केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए राहत उपायों में से एक उपाय भविष्‍य निधि (पीएफ) की निकासी से संबंधित नियमों में छूट दिया जाना था जिससे लोग अब अपनी भविष्‍य निधि का 75% या तीन महीने की मूल मजदूरी (जो भी कम हो) निकाल सकते थे। लॉकडाउन से पहले औपचारिक रोजगार-प्राप्‍त उत्तरदाताओं (संख्या में 931) में से केवल 4% ने वास्तव में अपने पीएफ खातों से पैसा निकाला था। अधिकांश उत्तरदाताओं को अपनी नौकरी से जुड़े पीएफ के लाभ के बारे में जानकारी ही नहीं थी, और इस बात की बिल्कुल ही नहीं थी कि वे अपने पीएफ खातों से पैसे निकाल भी सकते हैं।

निष्‍कर्ष 4: अंतरराज्यीय प्रवासियों में से आधे को सरकार से सहायता मिली

सभी अंतरराज्यीय प्रवासियों में से लगभग आधे (51%) को मुख्य रूप से वित्तीय सहायता और खाद्य सामग्री के रूप में सरकारी सहायता प्राप्त हुई। अपने घर नहीं लौटने वाले अंतरराज्यीय प्रवासियों (संख्या में 395) में से केवल 27% को अपने परिवार के सदस्यों से सहायता प्राप्त हुई। यह सहायता मुख्‍य रूप से वित्‍तीय सहायता और ब्‍याज-सहित या ब्‍याज-रहित ऋण के रूप में थी। ‘आपदा’ कार्यक्रम, एक ऐप-आधारित सामाजिक सहायता कार्यक्रम है जिसके माध्यम से अन्य राज्यों में रहने वाले बिहार के प्रवासी स्व-पंजीकरण कर सकते थे और अपने निजी खातों में रु. 1,000 नकद हस्तांतरण प्राप्‍त कर सकते थे। इस ऐप के माध्‍यम से लगभग 61% बिहारी अंतरराज्यीय प्रवासियों को लाभ मिला जो अपने घर नहीं लौट सके थे। यह संख्या प्रवासियों की मदद करने के लिए किए गए महत्वपूर्ण नीतिगत प्रयासों और सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने के संदर्भ में उनकी सीमाओं को दर्शाती है।

निष्‍कर्ष 5: लगभग एक तिहाई प्रवासियों को किसी भी स्रोत से कोई सहायता नहीं मिली और उन्हें दैनिक भोजन की मात्रा भी कम मिली

अंतरराज्यीय प्रवासियों में से लगभग एक तिहाई (31%) को किसी भी स्रोत (अर्थात सरकार, नियोक्ता, या सामुदायिक संगठनों) से कोई सहायता नहीं मिली। नतीजतन 31% प्रवासियों ने बताया कि उन्हें दैनिक भोजन सामान्य से कम हो गया जिससे प्रवासी आबादी के लिए खाद्य असुरक्षा के बढ़ने का संकेत मिलता है।

निष्‍कर्ष 6: उत्तरदाताओं ने लॉकडाअन के पहले की तुलना में अत्यधिक चिंता और जीवन में अल्प-समाधान के बारे में बताया

हमने उत्तरदाताओं को 0 से 100 के पैमाने पर उनके जीवन में समाधान और चिंता की स्थिति के बारे में बताने के लिए कहा। ये प्रश्न अप्रैल 2020 (मई 2019-मार्च 2020) से पहले पिछले सर्वेक्षण दौर में भी शामिल थे। उत्‍तरदाताओं का लॉकडाउन-पूर्व सर्वेक्षण की तुलना में लॉकडाउन के बाद में रिपोर्ट किए गए औसत चिंता का स्‍तर (37 बनाम 44) अधिक था। उत्तरदाताओं के बीच जीवन स्तर का औसत स्तर लॉकडाउन-पूर्व की तुलना में लॉकडाउन के बाद की अवधि में कम था (73 बनाम 65)।

निष्‍कर्ष 7: घर लौटे प्रवासियों में से महिलाओं में अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में फिर से प्रवासन की इच्छा काफी कम है

हमने उत्तरदाताओं से पूछा था कि वे भविष्य में अपने गृह-राज्य से बाहर रहने के लिए कितने इच्छुक हैं। लॉकडाउन से पहले अपने गृह-राज्य के बाहर रह रहे और सर्वेक्षण के समय बाहर रहना जारी रखने वाले प्रवासियों में से 65% कहा कि वे भविष्य में अपने गृह-राज्य के बाहर रहना जारी रखना पसंद करते हैं। जो लोग घर लौट आए थे, उनमें से 54% अपने गृह-राज्य से पुन: प्रवास करना चाहते थे। अपने पुरुष समकक्षों (68%) की तुलना में महिला पूर्व प्रवासियों (37%) की फिर से प्रवासन की इच्छा काफी कम थी जिससे पता चलता है कि महिला प्रवासी श्रमिकों को श्रम बाजार में वापस जोड़ना अधिक कठिन हो सकता है।

आकृति 3. लॉकडाउन से पहले और बाद में प्रवासन की पसंद

नीतिगत निहितार्थ

ये सात निष्कर्ष कोविड-19 संकट के कारण नौकरियां जाने और ‘विपरीत पलायन’ संबंधी व्यापक प्रेक्षणों के अनुरूप हैं और दो दिशाओं में तत्काल नीतिगत कार्रवाई किए जाने का सुझाव देते हैं। सबसे पहले प्रवासियों को सुरक्षा जाल द्वारा वहां सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए जहां वे रहते हैं और काम करते हैं, न कि वहाँ, जहां उनके परिवार हैं। इस सुरक्षा को केवल कानून द्वारा नहीं दिया जा सकता बल्कि प्रभावी होने के लिए। इसे वास्तव में प्रवासियों को सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल करने के प्रयासों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। दूसरा, प्रवासी श्रमिकों और विशेष रूप से महिलाओं को श्रम बाजार में पुन: जोड़ने के लिए संरचनात्‍मक सहायता की आवश्यकता होगी।

लेखक बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति (BRLPS) के संजय कुमार और झारखंड राज्य ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति (JSLPS) के अभिनव बख्शी के निरंतर सहयोग के लिए उनके आभारी हैं।

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टिप्‍पणियां:

  1. इस सर्वेक्षण के उत्तरदाता हमारे पिछले अध्ययन में नामांकित प्रतिदर्श का एक हिस्सा हैं, जिसमें एक यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण शामिल है जो डीडीयू-जीकेवाई प्रतिभागियों में नौकरी बनाए रखने के संबंध में नौकरी संभावना की जानकारी के प्रभाव की जांच करता है (चक्रवर्ती एवं अन्‍य 2020)।

लेखक परिचय: क्लेमों इम्बर्ट युनिवेर्सिटी ऑफ वारविक में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रफ़ेसर हैं। साथी हीं वे सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी रिसर्च (सीईपीआर), जमील पॉवर्टी एक्शन लैब (जे-पाल) और ब्यूरो फ़ोर रीसर्च एंड इकनॉमिक अनालिसिस ओफ़ डेवलपमेंट (ब्रेड) के साथ शोध सहयोगी भी हैं। भास्कर चक्रवर्ती यूनिवर्सिटी ऑफ़ वारविक इंस्टीट्यूट ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट रिसर्च में पीएचडी के छात्र और चांसलर इंटरनेशनल स्कॉलर हैं। मैक्सिमिलियन लोह्नर्ट जे-पाल साउथ एशिया में रिसर्च मैनेजर हैं। पूनम पांडा जे-पाल साउथ एशिया में रिसर्च असोसिएट हैं।

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