भारत के मानसिक स्वास्थ्य संकट को समझना

27 April 2021
2
min read

जब से कोविड-19 महामारी शुरू हुई है, तब से कई रिपोर्टों से यह संकेत मिला है कि अलग-अलग आयु वर्ग के व्यक्तियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति बिगड़ रही है। इस पोस्ट में, मिशेल मैरी बर्नडाइन ने भारत में मानसिक स्वास्थ्य की परिस्थितियों को दर्शाया है, जैसे अर्थव्यवस्था के लिए मानसिक स्वास्थ्य संकट की लागत कितनी है और इस संकट का समाधान करने के लिए कानून और राज्य की मौजूदा क्षमता किस हद तक समर्थ हैं।

भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 2017 में कहा था कि भारत "एक संभावित मानसिक स्वास्थ्य महामारी का सामना कर रहा है"। एक अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि इसी वर्ष में, भारत की 14% आबादी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से पीड़ित थी, जिसमें 45.7 मिलियन लोग अवसाद संबंधी विकारों से और 49 मिलियन लोग चिंता संबंधी विकारों से पीडि़त थे। कोविड-19 महामारी ने इस मानसिक स्वास्थ्य संकट को और बढ़ा दिया है, दुनिया-भर की रिपोर्टों से पता चलता है कि यह वायरस और इससे जुड़े हुए लॉकडाउन जनसंख्या पर एक बड़ा प्रभाव डाल रहे थे - विशेष रूप से युवा व्यक्तियों पर।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति

भारत राज्य-स्तरीय रोग बोझ पहल द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि मानसिक विकारों के कारण भारत में रोग का बोझ डैलि1 (DALYs) (विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष) के रूप में 1990 के 2.5% से बढ़कर 2017 में 4.7% हो गया है, और वाईएलडी (YLD) (विकलांगता के साथ बिताए गए वर्ष) में इसका योगदान अग्रणी अर्थात देश में सभी YLD का 14.5% था(भारत राज्य-स्तरीय रोग बोझ पहल, 2017)। अवसाद और चिंता संबंधी विकार तथा भोजन करने संबंधी विकार महिलाओं में काफी अधिक पाए गए। अवसाद और आत्महत्या करने के बीच संबंध भी महिलाओं में अधिक पाया गया।

भारत में, मानसिक स्वास्थ्य विकार होने को कथित तौर पर शंका की नजर से देखा जाता है और जो लोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों से पीडि़त हैं उनके साथ एक कलंक जुड़ा हुआ माना जाता है (द लिव लव लाफ फाउंडेशन, 2018)। यह भी माना जाता है कि आत्म-अनुशासन और इच्छाशक्ति की कमी के परिणामस्वरूप मानसिक विकार पैदा हुए हैं। मानसिक स्वास्थ्य के उपचार में इससे जुड़े कलंक के साथ-साथ पहुँच, आर्थिक सामर्थ्य, और जागरूकता की कमी बड़ी बाधा उत्‍पन्‍न करते हैं। राष्‍ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएचएमएस), 2015-16 में यह पाया गया कि मानसिक विकारों से पीड़ित लगभग 80% लोगों ने एक साल से अधिक समय तक इलाज नहीं कराया था। इस सर्वेक्षण ने यह भी बताया कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े उपचार अंतराल हैं, जिनकी सीमा अलग-अलग मानसिक विकारों में 28% से 83% तक थी (राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका-विज्ञान संस्थान (निमहांस), 2016)।

मानसिक विकारों का आर्थिक बोझ

मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों पर काफी आर्थिक बोझ पड़ता है - एनएमएचएस (2015-16) ने खुलासा किया कि परिवारों द्वारा उपचार और देखभाल तक पहुंचने हेतु की जाने वाली यात्रा पर रुपए 1,000-1,500 प्रति माह प्रत्‍यक्ष व्‍यय किया गया। उत्तरदाताओं के साथ चर्चा से यह भी पता चला है कि मानसिक विकारों के इलाज पर होने वाले खर्च अक्सर परिवारों को आर्थिक तंगी की ओर धकेल देते हैं। यह बोझ मध्यम आयु वर्ग के व्यक्तियों, जो मानसिक विकारों से सबसे अधिक प्रभावित भी थे, के मामले में अधिक स्‍पष्‍ट रूप से देखा जा सकता है क्योंकि यह उनकी उत्पादकता को प्रभावित करता है जिससे न केवल व्यक्ति, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी बोझ बढ़ जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने यह अनुमान लगाया है कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों के कारण भारत को 1.03 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान होगा। एनएचएमएस ने यह भी पाया कि मानसिक स्वास्थ्य विकार कम आय, कम शिक्षा, और कम रोजगार वाले परिवारों को ज्यादा प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं। इन कमजोर समूहों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के कारण वित्तीय सीमाओं का सामना करना पड़ता है, और उपचार के लिए संसाधनों की सीमित उपलब्धता इस स्थिति को और बदतर बना देती है। इनके इलाज में आनेवाला अधिकांश व्‍यय प्रत्‍यक्ष व्‍यय होता है और इस संबंध में राज्य सेवाओं और बीमा कवरेज में कमी पाई जाती है जिसके परिणामस्‍वरूप गरीबों और कमजोरों पर आर्थिक दबाव की स्थिति और अधिक बिगड़ जाती है।

कानून और राज्य क्षमता का निर्माण करना

मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के लिए कई प्रावधान करता है। यह अधिनियम मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 को रद्द करता है, जिसकी इस कारण से आलोचना की गई थी कि यह मानसिक बीमारी से पीडि़त लोगों के अधिकारों और अभिकर्तृत्व को पहचानने में विफल रहा था (मिश्रा और गल्होत्रा ​​2018)। इसमें मानसिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को ‘अधिकार’ के रूप में; और केंद्रीय और राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों (एसएमएचए) को स्थापित किया गया है, जो मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सकों के पंजीकरण और सेवा-वितरण मानदंडों को लागू करने सहित मजबूत बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेगा, शामिल है। यद्यपि अधिनियम में यह अपेक्षित था कि अधिनियम के पारित होने के नौ महीनों में एसएमएचए स्थापित होना चाहिए, परंतु 2019 तक, 28 में से केवल 19 राज्यों ने एसएमएचए का गठन किया था।

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी)2 को आरंभ किया गया था, ताकि सामान्य स्वास्थ्य प्रणाली के अंतर्गत मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें। यद्यपि यह कार्यक्रम सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पहुंच में सुधार करने में सफल रहा है लेकिन संसाधनों की कमी और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे ने इसके प्रभाव को सीमित कर दिया है (गुप्ता और सागर 2018)।

वर्ष 2021 तक, केवल कुछ राज्यों ने अपने बजट में मानसिक स्वास्‍थ्‍य बुनियादी ढांचे के लिए एक अलग मद को शामिल किया था।3 एनएमएचपी के लिए 2017-18 का बजट अनुमान 35 लाख रुपये था जिसे वर्ष 2017 में अधिनियम पारित होने के बाद, 2018-19 में बढ़ा कर 50 लाख रुपए किया गया। हालांकि, यह आंकड़ा 2019-20 में घटकर रुपए 40 लाख रह गया और बाद के वर्षों में यहां तक ​​कि 2021-22 में भी इसका यही स्‍तर बना रहा जबकि कई रिपोर्टों ने कोविड-19 महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बिगड़ने का संकेत दिए हैं।

भारतीय मनोरोग चिकित्‍सा सोसायटी के एक सर्वेक्षण ने संकेत दिया कि कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से 20% अधिक लोग खराब मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित थे। साक्ष्‍यों से यह भी उभर कर सामने आ रहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान शहरी गरीब लोगों के बीच महिलाओं के मनोवैज्ञानिक तनाव का स्तर अपेक्षाकृत अधिक है (अफरीदी एवं अन्‍य 2020) तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लॉकडाउन प्रतिबंधों से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले परिवारों में बिना प्रवासी श्रमिकों वाले परिवारों की तुलना में प्रवासी श्रमिकों वाले परिवारों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की अधिक घटनाएं देखी गईं (सरीन एवं अन्‍य 2021)। लॉकडाउन ने छात्रों को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया था क्योंकि इस दौरान शिक्षण के नए माध्यम और परिवेश से तालमेल स्‍थापित करने के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं के बारे में उनकी चिंता बढ़ गई थी। महामारी के दौरान छात्रों को मनोसामाजिक सहायता प्रदान करने के लिए, सरकार ने ‘मनोदर्पण’ नामक एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म शुरू किया जिसमें एक चर्चात्‍मक ऑनलाइन चैट विकल्प, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की एक निर्देशिका और एक हेल्पलाइन नंबर शामिल है।

विकसित देश अपने वार्षिक स्वास्थ्य बजट का 5-18% भाग मानसिक स्वास्थ्य पर आवंटित करते हैं, जबकि भारत लगभग 0.05% आवंटित करता है (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, 2014)। 2018 और 2019 में, वार्षिक बजट में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान पर खर्च को भी शामिल किया गया था। इस संस्थान को मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में मानव संसाधनों और अनुसंधान के संदर्भ में क्षमता-निर्माण के उद्देश्य से वर्ष 2018 में मंजूरी दी गई थी। इसके अतिरिक्त, सरकार स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई क्षेत्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य संस्‍थान तथा निमहांस को प्रतिवर्ष धन आवंटित करती है। हालाँकि निमहांस सभी जरूरतमंद लोगों को सस्ती और सुलभ मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की शपथ लेता है, ये प्रयास क्षेत्रीय रूप से अलग-थलग हैं क्योंकि निमहांस एक ही शहर (बेंगलुरु) से ही संचालित होता है। निमहांस सेंटर फॉर वेल बीइंग जैसी पहल, जो प्रशिक्षित पेशेवरों से किफायती परामर्श सत्र प्रदान करते हैं, यदि देश भर में अधिक क्षेत्रों में विस्तारित हो जाएं तो एक बड़ा वरदान सिद्ध होगा, लेकिन फिलहाल इसका प्रभाव एक मेट्रो शहर तक ही सीमित है।

समापन टिप्पणी

अधिनियम के लागू होने के बाद भारत के आर्थिक सर्वेक्षण द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे को अभी भी काफी हद तक हल किया जाना बाकी है जबकि इस अवधि में मानसिक स्वास्थ्य का एकमात्र उल्लेख कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल में सूचना विषमता और चिकित्‍सा संबंधी दृष्टिकोण में परिवर्तन के संदर्भ में सतही तौर पर किया गया है (आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21)। राष्ट्रपति द्वारा 2017 में की गई घोषणा के विपरीत, सरकार भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकारों की भयावहता को स्वीकार नहीं करती जोकि लगभग एक "महामारी" का रूप ले रही है। जहां तक विशेष जनसांख्यिकीय समूहों (उदाहरण के लिए, बुजुर्गों) के लिए मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के प्रयासों के बारे में संसद में पूछे गए प्रश्‍नों का सवाल है तो इस संबंध में एक ही मानक उत्‍तर प्राप्‍त होता है जिसमें सामान्य मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए निमहांस द्वारा की गई पहलें और एनएमएचपी / डीएमएचपी का उल्‍लेख किया जाता है जबकि इस दिशा में किसी लक्षित कार्यक्रम अथवा योजना का कोई उल्‍लेख नहीं है।

इस मुद्दे की गंभीरता को स्वीकार करना देश में मानसिक स्वास्थ्य संकट को दूर करने की दिशा में पहला कदम होगा। संकट से सर्वाधिक प्रभावित सामाजिक आर्थिक समूहों को देखते हुए अगले और सबसे महत्वपूर्ण कदम यह होंगे कि कमजोर समूहों के लिए लक्षित योजनाओं के साथ, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को और अधिक सुलभ बनाने की दिशा में पहल की जाए।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

टिप्पणियाँ:

  1. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन किसी रोग या स्वास्थ्य की स्थिति के लिए DALYs को "समय से पहले मृत्यु के कारण जीवन के खोए हुए वर्षों और एक आबादी में बीमारी या स्वास्थ्य की स्थिति के कारण विकलांगता (YLDs) के साथ बिताए गए वर्षों के योग” के रूप में परिभाषित करता है।
  2. एक संबद्ध जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (डीएमएचपी) का उद्देश्य सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य विकारों के बारे में जागरूकता और उपचार (उच्च संस्थानों के परामर्श से अंतत: प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों को सौंपना) को बढ़ाना है, और यह छात्रों में जागरूकता बढ़ाने के लिए लक्षित योजनाएं भी चलाता है। हालांकि, डॉक्टरों के प्रशिक्षण और हस्तांतरण के चरण में कई बाधाओं की पहचान की गई है, जो कार्यक्रम की पहुंच को सीमित करतीं है।
  3. एनएमएचएस के अनुसार, केवल दो राज्यों - गुजरात और केरल ने मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे के उद्देश्य से धनराशि निर्धारित की है। 2021 तक, राज्य-वार बजट दस्तावेजों से संकेत मिलता है कि केवल नौ राज्यों ने मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों या इससे जुड़े हुए बुनियादी ढांचे पर स्पष्ट रूप से व्यय किया है। हालाँकि, यह निश्चित नहीं है क्योंकि प्रत्येक राज्य के विस्तृत बजट दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं।

लेखक परिचय: मिशेल मैरी बर्नडाइन आइडियास फॉर इंडिया के संपादकीय टीम में कॉपी एडिटर हैं।

स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक स्वास्थ्य

Subscribe Now

Sign up to our newsletter to receive new blogs in your inbox
Thank you! Your submission has been received!
Oops! Something went wrong while submitting the form.

Related

Sign up to our newsletter to receive new blogs in your inbox

Thank you! Your submission has been received!
Your email ID is safe with us. We do not spam.