उत्तर प्रदेश और बिहार के गाँवों में, निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों के मुकाबले नवजात शिशुओं की मृत्यु दर 60% ज़्यादा है, भले ही बेहतर सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले परिवार प्राइवेट सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं। क्या निजी सेवाएं बच्चों को नुकसान पहुँचाते हैं या वहाँ मुश्किल से बच्चे पैदा होने की उम्मीद वाले परिवार अधिक आते हैं? यह लेख दर्शाता है कि प्राइवेट केन्द्र ऐसे मरीज़ों के लिए और भी बुरे नतीजे वाले साबित होते हैं क्योंकि सेवा के एवज़ में मिलने वाले पैसे उन्हें ग़ैर-ज़रूरी, नुकसान पहुँचाने वाले इलाज करवाने के लिए प्रेरित करते हैं।
भारत में पिछले दो दशकों में स्वास्थ्य केन्द्रों में होने वाले बच्चों के जन्म का अनुपात तेज़ी से बढ़ा है। 2020 तक 90% से ज़्यादा बच्चे घर के बजाय अस्पताल या क्लिनिक में पैदा हुए। इस बदलाव का मकसद कुशल स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के ज़रिए माँ और नवजात बच्चों की मृत्यु को कम करना था। फिर भी, उत्तर प्रदेश (उप्र) और बिहार राज्यों के ग्रामीण इलाकों में, नवजात बच्चों की मृत्यु दर बहुत ज़्यादा बनी हुई है– वर्ष 2020 में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और नाइजीरिया को छोड़कर किसी भी अन्य देश से ज़्यादा।
इन दोनों राज्यों में सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों और निजी स्वास्थ्य सेवाओं में पैदा होने वाले बच्चों में नवजात शिशुओं की मृत्यु के खतरे को अलग-अलग देखना एक पहेली है (वर्मा और क्लेलैंड 2022)। प्राइवेट सेवाओं में, प्रति 1,000 जन्मों में 51 बच्चे जन्म के पहले महीने में ही मर जाते हैं। सरकारी केन्द्रों में, यह आँकड़ा 32 का है, जो निजी के मुकाबले लगभग 40% कम है। यह अंतर तब भी बना हुआ है, जब प्राइवेट सुविधाओं का इस्तेमाल करने वाले परिवार प्रसव के लिए औसतन 20,000 रुपये देते हैं, जबकि सरकारी केन्द्र में 1,000 रूपये देने पड़ते हैं। प्राइवेट सुविधाओं में बच्चे को जन्म देने वाली माताएं ज़्यादा अमीर, लम्बी, कम वज़न वाली, ज़्यादा पढ़ी-लिखी और विशेष जाति समूह से होती हैं। देखे गए प्रत्येक पैमाने के हिसाब से, निजी सुविधाओं में मरीज़ों के नतीजे बेहतर होने चाहिए। इसके बजाय, इन मरीज़ों के नतीजे बहुत खराब होते हैं।
वास्तव में, ऐसा हो सकता है कि निजी सुविधा में मुश्किल मामले आ रहे हैं, जिससे प्राइवेट सुविधाओं में होने वाली मौतें बढ़ रही हैं। मुश्किल से बच्चे पैदा होने की उम्मीद वाले परिवार प्राइवेट सुविधा में बेहतर देखभाल की आशा कर सकते हैं, या फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्र खराब आँकड़ों से बचने के लिए ऐसे मामलों को और कहीं रेफर कर सकते हैं। कॉफ़ी एवं अन्य (2025) में, मैंने अपने सह शोधकर्ता के साथ मिलकर यह जाँच की कि क्या मापे गए जोखिम के कारक इस अंतर को दर्शाते हैं? इसके लिए मैंने एक जैसे अनुमानित जोखिम वाले समूहों में मृत्यु दर की तुलना की और पैसे, जाति, शिक्षा और माँ की सेहत में अंतर को ध्यान में रखा। इस विचार के विपरीत कि ज़्यादा कमज़ोर मरीज़ प्राइवेट सुविधा को चुनते हैं, मरीज़ों में दिखने वाले ये अंतर इस अंतर की व्याख्या नहीं करते। असल में, उन्हें कंट्रोल करने से यह अंतर और बढ़ जाता है। लेकिन परिवार अभी भी उन कारकों के आधार पर स्वास्थ्य सेवा केन्द्रों को चुन रहे होंगे जो विश्लेषण या सर्वेक्षण में सामने नहीं आते जैसे कि प्रसव के मामले की अनुमानित जटिलताएं, पिछले प्रसव का अनुभव, स्वास्थ्य के संकेत जिन्हें सेवा प्रदाता और मरीज़ नोटिस करते हैं लेकिन सर्वे से छूट जाते हैं। अपने नए शोध (फ्रान्ज़ 2025) में मैंने जाँच की कि क्या निजी सुविधाओं से नए जन्मे बच्चों के नतीजे खराब होते हैं या फिर क्या उनका इस्तेमाल करने वाले परिवारों में बिना परखे गए अंतर से नतीजे में साफ अंतर पैदा होते हैं। मैंने दर्शाया कि प्राइवेट केन्द्रों में देखभाल सेवा के पैटर्न अलग-अलग होते हैं और ये सेवा सुविधाएं असल में, एक जैसे मरीज़ों के लिए ज़्यादा मृत्यु दर का जोखिम पैदा करती हैं।
कार्यप्रणाली और डेटा
यह पता लगाने के लिए कि क्या निजी स्वास्थ्य सुविधाएं मरीज़ों को अपनी और आकर्षित करने के बजाय, खराब नतीजे देती हैं, ऐसी तुलना की ज़रूरत है जिसमें स्वास्थ्य सेवा का चुनाव उन वजहों से अलग हो जिनका किसी मरीज़ के स्वास्थ्य या मामले में होने वाली जटिलता से कोई लेना-देना नहीं हो। मेरे अध्ययन में दो अनुपूरक तरीके या 'कॉम्प्लिमेंट्री अप्रोच' प्रयोग किए गए हैं।
पहला तरीका इस समस्या पर ध्यान केन्द्रित करता है कि जिन परिवारों को प्रसव में जटिताओं की उम्मीद है, वे निजी स्वास्थ्य सुविधाओं को चुन सकते हैं। यह तरीका अलग-अलग सार्वजनिक-निजी सुविधा के बर्थ मिक्स वाले गाँवों में मृत्यु दरों की तुलना करता है। अगर जटिलता वाले परिवार प्राइवेट सुविधाओं में जा रहे होते तो हम किसी भी गाँव में प्राइवेट सुविधा में होने वाले जन्मों में ज़्यादा मृत्यु देखते। लेकिन गाँव की कुल मृत्यु दर इस बात पर निर्भर नहीं करेगी कि हर सुविधा प्रकार में कितने बच्चे पैदा होते हैं– ऐसे में जोखिम औसत हो जाएंगे। लेकिन अगर एक प्रकार नुकसानदायक है, तो जिस गाँव में उस प्रकार की सुविधा में ज़्यादा बच्चे पैदा होंगे, वहाँ ज़्यादा मौतें होंगी।
दूसरा तरीका इस समस्या को भी हल करता है कि जिन जगहों पर सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँच कम है, वहाँ माओं की अंदरूनी सेहत खराब हो सकती है। यह जिले की सीमाओं के पास होने वाले जन्मों की जाँच करता है, जहाँ प्रशासनिक सीमाओं की वजह से एक जैसे परिवारों को सार्वजनिक या प्राइवेट सुविधा चुनने में फ़र्क पड़ता है। उदाहरण के लिए, बॉर्डर के एक तरफ का गाँव अपने जिले की स्वास्थ्य सुविधा से थोड़ी दूरी पर स्थित हो सकता है। जिले की सीमा के दूसरी तरफ का पड़ोसी गाँव अपने जिले की स्वास्थ्य सुविधा से बहुत दूर हो सकता है। यह रणनीति जिले की सीमा के दोनों तरफ के जन्मों के बीच होने वाली मृत्यु की तुलना करती है और सार्वजनिक-निजी मृत्यु के असर की पहचान करती है।
मैं 2015-2016 और 2019-2021 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों (एनएफएचएस) के डेटा का विश्लेषण करता हूँ, जिसमें ग्रामीण उप्र और बिहार के लगभग 77,000 फैसिलिटी बर्थ शामिल हैं (इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज, 2017 और 2021)। इस सर्वेक्षण में यह रिकॉर्ड किया जाता है कि हर जन्म कहाँ हुआ, बच्चा पहले महीने तक ज़िंदा रहा या नहीं और साथ ही, सम्बन्धित घर तथा माँ की विशेषताओं का ब्यौरा दिया जाता है।
परिणाम
उपरोक्त दोनों तरीकों से एक ही नतीजा निकलता है- प्राइवेट सुविधाओं में जन्म से नए जन्मे बच्चों की मृत्यु दर काफी बढ़ जाती है। इसका असर बहुत बड़ा है। प्रति 1,000 जन्मों पर 25 से ज़्यादा मौतें होती हैं। इसका अर्थ है कि ग्रामीण उप्र और बिहार में सरकारी सुविधाओं से प्रति वर्ष साल 1,10,000 से ज़्यादा जानें बचाई जा रही हैं। इस प्रभाव को एक वाक्य में कहा जाए तो अगर प्राइवेट सुविधाएं सरकारी सुविधाओं में इस्तेमाल होने वाले तरीकों को अपनाएं, तो हर साल 37,000 और नए जन्मे बच्चों की मृत्यु को रोका जा सकता है। मृत्यु दर की यह कमी 2020 में भारत को नए जन्मे बच्चों की मौत के लिए संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 3.2 को पूरा करने के लिए ज़रूरी प्रगति का लगभग 20% होगी।
पहले, मैं 'विलेज-कम्पोज़िशन' रणनीति के परिणामों की बात करता हूँ, जो नवजात शिशु मृत्यु और सार्वजनिक के बजाय निजी स्वास्थ्य सुविधा में होने वाले जन्मों के हिस्से के बीच के रिश्ते की जाँच करता है। यह रिश्ता पॉज़िटिव है और सांख्यिकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है- किसी गाँव के प्राइवेट सुविधा जन्म के अंशदान में प्रति 10 प्रतिशत बिन्दु की बढ़ोतरी के लिए, मृत्यु लगभग 3 प्रति 1,000 बढ़ जाती है। यह इस बात का सबूत है कि निजी सुविधा प्रकार में जन्म देने से ही जोखिम बढ़ जाता है। घर की सम्पत्ति, माँ की शिक्षा और स्वास्थ्य, जाति, धर्म, स्वच्छता तथा गाँव की दूसरी विशेषताओं को नियंत्रित करने के बाद इस सम्बन्ध की मज़बूती बढ़ जाती है। जिन गाँवों में प्राइवेट सुविधा में अधिक जन्म होते हैं, वे असल में ज़्यादा अमीर होते हैं और उनके स्वास्थ्य के संकेत बेहतर होते हैं। इसका अर्थ है कि यह तुलना प्राइवेट जन्म के नुकसानदायक असर को खोजने के विरुद्ध काम करती है।
दूसरा तरीका, 'डिस्ट्रिक्ट बॉर्डर एनालिसिस', अलग-अलग स्रोतों के उपयोग से अनुपूरक सबूत दिखता है। मैं उन सीमाओं पर फोकस करता हूँ जहाँ आस-पास के जिला सार्वजनिक सुविधा केन्द्रों के प्रयोग होने की भिन्न-भिन्न दरें होती हैं। जैसा कि आकृति-1 में दिखाया गया है कि ये दरें अगल-बगल के जिले के लिए भी बहुत भिन्न अलग हो सकती हैं। इन सीमाओं पर, कुछ किलोमीटर दूर रहने वाले परिवारों को सार्वजनिक सुविधा इस्तेमाल करने का अलग-अलग खर्च उठाना पड़ता है। जैसे कि, जिले की सबसे पास की सार्वजनिक सुविधा तक की दूरी बढ़ सकती है या फिर सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मी से मिलने वाला सहयोग कम हो सकता है।
आकृति-1. जिले के सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्र में पैदा हुए बच्चों के हिस्से में बदलाव


स्रोत : एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5
टिप्पणी : (i) यह आकृति अध्ययन किए जा रहे राज्यों, उत्तर प्रदेश और बिहार में जिलों की सीमाओं का मैप दर्शाता है। (ii) इलाके का रंग दर्शाता है कि किसी जिले में सार्वजनिक सुविधाओं में कितने बच्चे पैदा हुए (iii) बड़े हिस्से गहरे शेडों में दिखाए गए हैं (iv) सार्वजनिक सुविधाओं में पैदा हुए जिले का अंशदान सर्वे-वेटेड जन्मों पर आधारित है, जिनकी उम्र 1-59 महीने की थी और जो साक्षात्कार के समय उप्र और बिहार के ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सुविधाओं में वहाँ रहने वाली महिलाओं के पैदा हुए थे।
जिलों की सीमाएं सुविधाओं के इस्तेमाल में लगातार बदलाव लाती हैं : कम प्राइवेट सुविधा उपयोग वाले जिले से ज़्यादा प्राइवेट इस्तेमाल वाले जिले में जाने पर, जन्म लगभग 8 प्रतिशत बिन्दु से निजी सुविधा की ओर सरक जाते हैं। आकृति-2 दिखाती है कि इन्हीं सीमाओं पर, नवजात मृत्यु दर प्रति 1,000 पर 11 बढ़ जाती है। अगर हम कुल मृत्यु में बदलाव का कारण प्राइवेट सुविधा में जन्म को मानते हैं, तो इसका अर्थ है कि निजी सुविधा में जन्म से नवजात मृत्यु दर प्रति 1,000 जन्म पर लगभग 120 तक बढ़ जाती है। यह अनुमान पक्का नहीं है, जिसका ‘कॉन्फ़िडेंस इंटरवल’ प्रति 1,000 पर 5 से 240 तक है, लेकिन दिशा साफ है और गाँव-कंपोज़िशन विश्लेषण के अनुरूप ही है।
आकृति-2. कम प्राइवेट सुविधाओं वाले जिले से ज़्यादा प्राइवेट सुविधाओं वाले जिले में जाने पर, मृत्यु दर ज़्यादा हो जाती है।


स्रोत : एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5
टिप्पणियाँ : यह आँकड़ा अनुमानित 'मीन-स्क्वेयर्ड-एरर-मिनिमाइजिंग बैंडविड्थ' का प्रयोग करके रैखिक प्रतिगमन के नतीजे दिखाता है। यह नवजात शिशु मृत्यु को सीमा से दूरी के एक फंक्शन के तौर पर दर्शाता है। आस-पास के जिलों के हर जोड़े के लिए, निजी सुविधा में पैदा हुए कम बच्चों वाले जिले के अवलोकन बिन्दु बाईं ओर दर्ज हैं, नेगेटिव दूरी के साथ ; प्राइवेट में पैदा हुए ज़्यादा बच्चों वाले जिले दाईं ओर हैं, पॉज़िटिव दूरी के साथ। प्लॉट किए गए बिन्दुओं के हर तरफ दसमकों के वेटेड बिनस्कैटर हैं। अवलोकन 1-59 महीने की उम्र के जन्म हैं जिन्हें सर्वे साक्षात्कार के समय उप्र और बिहार के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं ने वहाँ की स्वास्थ्य सुविधाओं में जन्म दिया था, जिसमें निजी सेंटर में ग्रामीण जन्मों के हिस्से में शीर्ष तृतीयक (9.5 प्रतिशत बिन्दु) का क्रॉस-बॉर्डर अंतर था। प्रतिगम सर्वे-वेटेड होते हैं और स्टैंडर्ड एरर गाँव स्तर पर क्लस्टर किए जाते हैं।
पद्धति : नुकसानदायक देखभाल का ज़्यादा इंतज़ाम
मैं साक्ष्य प्रस्तुत करता हूँ कि प्राइवेट सुविधा में जन्म ज़्यादा खतरनाक होता है क्योंकि प्राइवेट सेवा प्रदाता ज़्यादातर नुकसानदायक हस्तक्षेप करते हैं (कुमार एवं अन्य, 2025)। मरीज़ों को नहीं पता है कि कौन सी स्वास्थ्य सेवा सबसे अच्छी है, इसलिए वे सेवा प्रदाता की सलाह पर भरोसा करते हैं (मैकगायर, 2000)। निजी प्रदाता हर सेवा के लिए फीस लेते हैं और इसलिए उनके पास वास्तविक मेडिकल ज़रूरत की परवाह किए बिना हस्तक्षेप की सलाह देने और करवाने का प्रोत्साहन होता है (श्रीवास्तव एवं अन्य, 2023)। कई स्थितियों और मामलों में, सेवा प्रदाता की ऐसी माँग बेकार हो सकती है लेकिन ग्रामीण भारत में नए जन्मे बच्चों के लिए ये हस्तक्षेप खतरनाक हैं।
इस स्थिति में, नुकसानदायक तरीकों में जन्म के तुरंत बाद बच्चों को नहलाना (वर्मा, खान और हाज़रा 2010), ऐसे बिजली चालित ऊष्मा यन्त्रों का इस्तेमाल करना जिनमें पावर की कमी हो सकती है या फिर जिन्हें ठीक से 'कैलिब्रेट' या उपयोग नहीं किया गया हो (दत्ता एवं अन्य, 2017), प्लास्टिक ट्यूब से सांस की नली को खींचना (कुमार, कुमार और बसु, 2019), स्तनपान से पहले बच्चों को दूध पिलाना (मारिया एवं अन्य, 2022) और ग़ैर-ज़रूरी एंटीबायोटिक दवाएं देना (अग्रवाल एवं अन्य, 2021) शामिल हैं। इनमें से हर एक से बच्चे के शरीर का तापमान कम होने, सूक्ष्मजीवियों के सम्पर्क में आने या अंग प्रणाली को हानि पहुँचने से मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। हर जन्म के समय कौन से ख़ास हस्तक्षेप होते हैं, इस बारे में कोई डेटा मौजूद नहीं है, लेकिन मैं इनमें से किसी भी हस्तक्षेप के पहले चरण को देखता हूं जो कि माँ और बच्चे को अलग करना है।
तीन पैटर्न हमें यह दर्शाते हैं कि माँ से शिशु के अलगाव के चलते प्राइवेट सुविधा में जन्म, सार्वजनिक सुविधा में जन्म से ज़्यादा खतरनाक क्यों है। पहला- अगर हस्तक्षेप असर को समझाते हैं, तो प्राइवेट सुविधा में माँ और शिशु का अलग होना ज़्यादा और सार्वजनिक सुविधा में कम होना चाहिए। ज़रा प्रतिगमन 'डिसकंटीन्यूटी' सबूत पर वापस आते हैं। जिले की सीमाओं पर जहाँ प्राइवेट सुविधा का इस्तेमाल बढ़ता है, वहाँ अलगाव की दर 25% से बढ़कर 35% हो जाती है। दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक सुविधा में हेल्थ वर्कर के बच्चे को उसकी माँ से दूर रखने की संभावना कम होती है, जबकि प्राइवेट सुविधा में हेल्थ वर्कर के जन्म के तुरंत बाद माँ-बच्चे के सम्पर्क में रुकावट डालने की संभावना ज़्यादा होती है। अलगाव में यह अंतर एक संभावित कारण है।
दूसरा- अगर हस्तक्षेप असर को समझाते हैं, तो जिन जगहों पर सार्वजनिक और प्राइवेट सुविधा एक जैसी रेट पर अलग होती हैं, वहाँ मृत्यु दर भी एक जैसी होनी चाहिए। पब्लिक-प्राइवेट मृत्यु के अंतर को पब्लिक-प्राइवेट सेपरेशन गैप पर गाँव स्तर पर प्रतिगमन के ज़रिए जाँच करने पर मुझे लगता है कि ऐसा ही है। जिन गाँवों में सार्वजनिक और निजी सुविधा अक्सर माँ और बच्चों को एक जैसे अलग करती हैं, वहाँ मृत्यु का अंतर समाप्त हो जाता है। सार्वजनिक का लाभ तभी दिखता है जब सार्वजनिक सुविधाएं माँ और बच्चों को प्राइवेट से कम अलग करती हैं।
तीसरा- अगर हस्तक्षेप से असर साफ नहीं होता, तो मृत्यु का पैटर्न इस बात पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि बच्चे को माँ से अलग किया गया था या नहीं। उन जन्मों के लिए मृत्यु के परिणामों को अलग-अलग देखें जो माँ से अलग हुए थे और जो नहीं हुए थे, तो हर समूह में मृत्यु का सम्बन्ध उल्टा हो जाता है। जिन जन्मों को अलग नहीं किया गया, उनमें ज़्यादा प्राइवेट सुविधाओं वाले गाँवों में मृत्यु का अनुपात थोड़ा कम है, जैसा कि उनकी अमीर आबादी को देखते हुए उम्मीद थी। जिन जन्मों को अलग किया गया, उनमें भी यही पैटर्न है। कुल मिलाकर मृत्यु का अंतर सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि प्राइवेट सुविधाएँ ज़्यादा बार नवजात शिशु को अलग करती हैं और अलगाव से मृत्यु का खतरा काफ़ी अधिक होता है।
नीतिगत निहितार्थ
यह शोध यह बताता है कि प्राइवेट सुविधाओं में जन्म से मृत्यु की दर ज़्यादा होती है और नवजात को अलग करने वाले हस्तक्षेपों को इसका तरीका माना गया है। लेकिन यह नीति के स्तर पर कई ज़रूरी प्रश्न खड़े करता है। क्या निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को ग़ैर-ज़रूरी हस्तक्षेप के खतरों के बारे में ट्रेनिंग देने से नवजात को अलग करने की दरें कम होंगी? जानकारी न होना शायद मूल समस्या न हो। नवजात का माँ से अलग होना और उससे जुड़े हस्तक्षेप इसलिए बने रह सकते हैं क्योंकि उनसे कमाई होती है और मरीज़ों को वे एक्टिव, कीमती सेवा लगते हैं (दास एवं अन्य, 2016, सिद्दीकी, नायर और कॉफ़ी, 2023)। क्या परिवारों को मृत्यु के खतरों के बारे में बताने से उन जगहों से माँग कम हो सकती है जो नवजात को अलग करती हैं? शायद ये परिवार प्राइवेट सुविधाओं की दूसरी खूबियों को महत्व देते हैं– प्रतीक्षा का कम समय, ज़्यादा ध्यान देने वाली और सम्मानजनक सेवा, ज़्यादा साफ़-सुथरी जगहें, या उन्हें बस यह विश्वास नहीं है कि सरकारी सुविधाएं बेहतर देखभाल प्रदान कर सकती हैं।
सबसे प्रत्यक्ष नीति हस्तक्षेप निजी स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता पर कड़ी निगरानी होगा। हालांकि, उप्र और बिहार में मौजूदा नियम कमज़ोर रूप से लागू किए जाते हैं और देखभाल का प्रत्यक्ष अवलोकन किए बिना अलग-अलग प्रथाओं की निगरानी करना मुश्किल है। भारत के निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सेवा-आधारित भुगतान संरचनाएँ गहराई से स्थापित हैं और बंडल भुगतान या वेतन आधारित मुआवज़े की ओर बढ़ने के लिए (अन्य जगहों पर स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में अधिक उपयोग को कम करने का एक सामान्य उपाय) बुनियादी पुनर्गठन की आवश्यकता होगी। यहाँ साक्ष्य समस्या और उसके तंत्र को स्पष्ट करता है, लेकिन प्रभावी नीति समाधान खोजने का काम एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है।
यह समझने के लिए कि परिवार खराब परिणामों के बावजूद निजी सुविधाओं को क्यों चुनते रहते हैं, आपूर्ति और माँग दोनों की जाँच करने की आवश्यकता है। यह सम्भव है कि कुछ निजी बनाम सरकारी सुविधाओं की विशेषताओं, जैसे भीड़भाड़ को रोगी और परिवार के लिए होनी वाली आसानी से समझा जा सके, लेकिन बच्चे की मृत्यु का अपेक्षाकृत दुर्लभ परिणाम इस तरह की तुलना से नहीं परखा जा सकता। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए स्वास्थ्य के निर्धारकों की बेहतर समझ आवश्यक है, जो वर्तमान डेटा स्रोत प्रदान नहीं कर सकते। विशेष रूप से ऐसा डेटा जो सुविधा ऑडिट को मिलाकर दस्तावेज़ बनाए कि नवजात के अलगाव के दौरान कौन-कौन से विशेष हस्तक्षेप होते हैं, यह समझने के घरेलू सर्वेक्षण कि परिवार सुविधाओं की गुणवत्ता का मूल्यांकन कैसे करते हैं और यह मापने के चयन प्रयोग कि परिवार विभिन्न स्वास्थ्य सुविधा गुणों को कितना महत्व देते हैं। इस तरह के प्रमाण मरीज़ों पर लक्षित हस्तक्षेपों को सूचित कर सकते हैं ताकि इन दो राज्यों में हर साल निजी सुविधाओं में घटने वाली 37,000 टाली जा सकने वाली नवजात मृत्यु को कम किया जा सके।
टिप्पणी :
- इस मॉडल का उपयोग औसत में सीमाँत परिवर्तनों का उपयोग करके अंतर्निहित छंटाई को पार करने और सीमाँत प्रभावों की पहचान करने में किया गया है, जो कि गर्युसो और लेयटन, 2020 द्वारा प्रस्तुत मॉडल के समान है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय :
नेथन फ्रान्ज़ टेक्सास विश्वविद्यालय, ऑस्टिन के पॉपुलेशन रिसर्च सेंटर और रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कंपैशनट इकॉनोमिक्स में अर्थशास्त्र शोधकर्ता हैं। उन्होंने टेक्सास विश्वविद्यालय, ऑस्टिन से अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। उनका शोध स्वास्थ्य, जनसंख्या, विकास और वैश्विक प्राथमिकताओं पर केंद्रित है।
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