शहरीकरण

ठोस कचरा प्रबंधन संबंधी चुनौतियां: पटना शहर का मामला

  • Blog Post Date 25 मार्च, 2021
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Uma Sarmistha

University of Florida

uma.sarmistha@gmail.com

अपर्याप्त योजना के साथ तेजी से शहरीकरण ने भारत के कई शहरों में ठोस कचरा प्रबंधन की समस्याओं को जन्म दिया है। इस नोट में, उमा शरमिष्‍ठा बिहार राज्य के पटना शहर में एक क्षेत्र अध्ययन से प्रारंभिक निष्कर्षों पर चर्चा करती हैं, जिसमें कचरा प्रबंधन प्रक्रियाओं की वर्तमान स्थिति के साथ-साथ इस मुद्दे पर नागरिकों और अधिकारियों के दृष्टिकोण की भी जांच की गई है।

“परिवर्तन तो बहुत आया है। पहले लोग कचरा रोड पर फेंकते थे अब गाड़ी का इंतजार करते हैं कूड़ा फेंकने के लिए, इसलिए रोड पर कचरा थोड़ा कम हुआ है।” - पटना निवासी।

ठोस कचरा (या अपशिष्ट) प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) किसी भी शहर के लिए और विशेष रूप से कम आय वाले देश के एक ऐसे शहर में जहां बिना किसी नियोजन या थोड़े बहुत नियोजन के साथ बहुत तेजी से शहरीकरण हो रहा है, एक बहुत बड़ी चुनौती है। बिहार की राजधानी पटना, जनसंख्या घनत्व और शहरीकरण के मामले में सबसे तेजी से विकसित होने वाले भारतीय शहरों में से एक है। बिहार देश के सबसे कम शहरीकृत राज्यों में से एक है और पटना इसका सबसे बड़ा शहर है। पटना शहर की जनसंख्‍या 1971 में 4,73,000 थी जो 2011 में चार गुना बढ़ कर 16.8 लाख (अलक्षेंद्र 2019) हो गई है, बावजूद इसके इस शहर की वृद्धि ज्‍यादातर अनियोजित ही रही है। तेजी से विस्तार करने वाले शहर तेजी से कचरे के पहाड़ बनाने की ओर अग्रसर हैं। पांडे (2014) के अनुसार पटना शहर का दैनिक कचरा उत्पादन लगभग 1,200 टन है जिसमें जैविक और अजैविक दोनों तरह का कचरा शामिल है और 2036 तक इसके दोगुना होने की संभावना है। शहर द्वारा उत्पादित कुल कचरे का चालीस प्रतिशत हिस्‍सा घरेलू कचरे का है। इसके अलावा, पटना अपने अंतर्विरोधों के कारण ठोस कचरा प्रबंधन के लिए एक अनूठा केस स्‍टडी है। हालांकि यह शहर बिहार का सबसे बड़ा शहरी केंद्र है, लेकिन पटना का अधिकांश हिस्सा अभी भी पूर्णरूपेण शहरी नहीं है। पटना नगर निगम (पीएमसी) देश में सबसे पुराने नगर निकायों (मूल रूप से इसकी स्थापना 150 वर्ष पहले हुई थी) में से एक है, हालांकि इसके दिशा-निर्देशों में कचरा प्रबंधन को केवल दो साल पहले ही शामिल किया गया था।

एक जारी अध्ययन में हम कचरा प्रबंधन प्रणाली में नागरिक (कचरा उत्‍पादक) की भूमिका को केंद्रीय भूमिका के रूप में चि‍न्हित करने की संभावना तलाशने का प्रयास करते हैं, जो अपने स्वयं के कचरे को पुनर्चक्रित करने के लिए एक एजेंसी है और आवश्‍यकतानुसार अन्य एजेंसियों (राज्य सहित) के समर्थन की तलाश करती है (भास्कर और शरमिष्‍ठा 2019)। हमने, नागरिकों को कचरा पुनर्चक्रण को अपनाने और इसके लिए भुगतान करने की इच्छा का पता लगाने, कचरा प्रबंधन प्रणालियों और प्रथाओं की उनकी समझ और उनके निहितार्थ का आकलन करने, तथा मौजूदा प्रक्रियाओं से उनकी संतुष्टि का स्तर/असंतोष को मापने के लिए दिसंबर, 2019-फरवरी, 2020 में पटना में 500 परिवारों1 का प्राथमिक सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण के साथ-साथ 20 केंद्रित समूह चर्चाएं आयोजित की गईं, हितधारकों (सरकारी अधिकारियों, एनजीओ कर्मियों, विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों सहित) के साथ 25 गहन साक्षात्‍कार किए गए एवं अपने जैविक कचरे को पुनर्चक्रित कर रहे परिवारों की कई केस स्‍टडी भी की गईं।

पटना में ठोस कचरा प्रबंधन: वर्तमान प्रक्रिया और मुद्दे

बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 और नगरीय ठोस कचरा (प्रबंधन एवं हैंडलिंग) नियम, 2000 के अनुसार, पीएमसी शहर में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए जिम्मेदार नगरीय निकाय है। 2018 तक पटना में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए घरेलू कचरे को गली के खुले गड्ढे में या सामुदायिक कूड़ा साइट2 में फेंकना एक प्रचलित प्रक्रिया यह थी। जैविक और अजैविक कचरे को अलग-अलग नहीं किया जाता था। 2016 तक शहर में 860 मध्‍यवर्ती और सामुदायिक डंपिंग स्‍थान थे (पांडे 2014)। इसके अलावा, इन 860 कूड़ा फेंकेने के स्‍थानों से, कचरे को नगरनिगम के खुले ट्रकों में भर कर मुख्य लैंडफिल तक ले जाया जाता था। कुछ समय पहले तक लैंडफिल स्‍थलों को शहर के विभिन्न स्थानों पर नागरिक विरोध और विद्रोह के कारण लगातार बदला जा रहा था।

2 अक्टूबर 2018 को, स्वच्छ भारत मिशन (स्वच्छ भारत के लिए केंद्र की अगुवाई वाली पहल) के तहत, पटना नगर निगम ने घर-घर जाकर अलग-अलग ठोस कचरा (जैविक और अजैविक) इकट्ठा करने का एक व्यापक अभियान शुरू किया। इस कदम को देश की सबसे अस्वच्छ राज्य राजधानी के लिए एक गेम-चेंजर और अति-आवश्यक नीतिगत परिवर्तन माना जाता है।

पटना के अतिरिक्त नगर निगम आयुक्त ने हमारे साक्षात्कार में बताया कि शहर भर में कुल 375 कचरा संग्रहण वाहन तैनात किए गए थे (जिसमें 182 ई-कार्ट, 120 छोटे ट्रैक्टर, कुछ टिपर्स और संकरी गलियों के लिए हाथ से खींचने वाली गाड़ियां शामिल थीं)। हालांकि, इस पहल के वित्तपोषण का विवरण देने वाले आधिकारिक आंकड़ों को प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है, राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ साक्षात्कार से पता चलता है कि इसके लिए पैसा तीन चैनलों से आया: (i) स्वच्छ भारत मिशन, (ii) स्वच्छता अनुदान (राज्य सरकार से अनुदान) और, (iii) कचरा संग्रहण सेवाओं के लिए प्रति माह प्रति परिवार से 30 रुपये का उपयोगकर्ता शुल्क।

चित्र 1. पटना नगर निगम का कचरा प्रबंधन पहल

घर-घर कचरा संग्रहण हर दिन सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक किया जाता है। कचरा संग्रहण वाहन आस-पड़ोस/ इलाके में घूमते हैं जिनमें एक आकर्षक गीत "गाड़ी वाला आया जरा घर का कचरा निकाल” बजता रहता है।

प्रारंभिक विश्लेषण से पता चलता है कि यहां तक ​​कि उन मामलों में भी जहां अध्ययन प्रतिभागी अपने घर के अधिकांश कचरे को स्रोत पर ही अलग करके अपनी भूमिका निभा रहे हैं, सभी कचरे को मध्‍यवर्ती डंपिंग स्‍थान पर एक साथ फेंक दिया जाता है और एक बड़े ट्रक में मुख्य लैंडफिल में ले जाया जाता है। ऐसा ज्यादातर संग्रह के बिंदुओं पर प्रबंधन, जागरूकता और दिशानिर्देशों की कमी के कारण होता है, और इसके कारण इस व्‍यापक पहल का पूरा उद्देश्य ही समाप्‍त हो जाता है।

जब हमने एक वार्ड स्वच्छता निरीक्षक से पूछा कि इस तरह की एक संगठित व्यवस्था के बावजूद सड़क पर इतना कचरा क्यों है, तो उन्होंने कहा: “कचरा संग्रहण वाहन सुबह एक बार और दोपहर में एक बार कॉलोनियों में आता है। हालांकि, कुछ परिवारों के लिए, पिकअप वाहन बहुत जल्दी आते हैं, और कुछ परिवारों में यह प्रथा है कि स्नान के बाद कचरे को नहीं छूना है, इसलिए वे अपनी सुविधा के अनुसार कचरे को सड़क पर फेंक देते हैं”। उन्होंने इस परिणाम के लिए घरेलू नौकरों को भी दोषी ठहराया जो अधिकांश धनी परिवारों में काम करते हैं और मुख्य रूप से घरेलू कचरे को निपटाने के लिए जिम्मेदार हैं। एक घरेलू नौकर आमतौर पर 3-4 घरों में अंशकालिक रूप से काम करता है और इस प्रकार, केवल एक घर के कूड़े का ही उचित निपटान कर पाता है।

जब जैविक कचरे के पुनर्चक्रण की बात आती है, तो अतीत में, विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों द्वारा सामुदायिक स्तर पर प्रयास किए गए हैं ताकि घरों को जैविक कचरे के पुनर्चक्रण के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।3 हालाँकि, ये प्रयास कई कारणों से जारी नहीं रह पाए। मूल कारण सरकार के सहयोग की कमी और आम जनता में कचरा प्रबंधन प्रक्रियाओं और जागरूकता की कमी होना था। एक गैर सरकारी संगठन के कर्मचारी के अनुसार, "घरेलू स्तर पर कचरे के पुनर्चक्रण और प्रबंधन के तरीकों के महत्व को स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाना चाहिए, तभी सभी लोग लैंडफिलों के लिए कम से कम कचरा उत्‍पन्‍न होने का महत्‍व समझ सकेंगे।“ सरकार की ओर से कई हितधारकों (नीति निर्माताओं और उच्च पदों पर कार्यरत अधिकारियों) ने नागरिकों में अपनी जिम्‍मेदारी के बोध की कमी की शिकायत की। यहां तक ​​कि घर-घर कचरा संग्रह सेवा जारी होने के बावजूद, नीति निर्माताओं में प्राथमिक धारणा यह थी कि जब तक लोगों के स्वच्छता बोध में व्‍यवहारात्‍मक परिवर्तन नहीं आएगा तब तक स्थिति में सुधार नहीं होगा। नागरिकों ने यह शिकायत की कि अलग-अलग कचरा संग्रह आरंभ करने से पहले पर्याप्‍त जागरूकता कार्यक्रम आयोजित नहीं किए गए। अंत में, घरेलू सर्वेक्षण से प्रारंभिक निष्कर्षों से पता चला कि लगभग 50% परिवार कचरा प्रबंधन तकनीकों में बदलाव को अपनाने के लिए तैयार हैं, और लगभग 30% समुदाय-व्यापी कचरा प्रबंधन पहल में योगदान करने के लिए तैयार हैं।

वर्तमान राज्य-संचालित ठोस कचरा प्रबंधन प्रणाली के तहत, कचरा संग्रह तंत्र जटिल और राजनीतिक है। पीएमसी के अनुसार, पूरी व्‍यवस्‍था का विकेंद्रीकरण किया गया है और वार्ड कार्यालयों को ड्यूटी सौंपी गई है जो अंततः पूरे कार्य का प्रबंधन करते हैं। प्रत्येक वार्ड कार्यालय में एक वार्ड पार्षद, एक स्वच्छता निरीक्षक और पांच पर्यवेक्षक शामिल होते हैं, जो सभी निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं। हालांकि, वार्ड अधिकारियों की शिकायत है कि यह व्‍यवस्‍था बहुत अधिक केंद्रीकृत है और पीएमसी इस कार्य के हर पहलू को नियंत्रित करता है, चाहे वह कर्मचारियों से संबंधित हो या धन प्रदान करने से संबंधित हो। पटना नगर निगम और वार्ड कार्यालयों के बीच विवाद का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि मैनुअल कचरा संग्राहक पटना नगर निगम द्वारा काम पर रखे गए दिहाड़ी मजदूर हैं और श्रमिक स्थानीय वार्ड कार्यालयों को रिपोर्ट नहीं करते हैं। पटना शहर छह कार्यकारी मंडलों के नियंत्रण में 75 वार्डों में विभाजित है।4 इसके अलावा, संबंधित सरकारी एजेंसियों के बीच भी बहुत कम समन्वय है। शहरी विकास और आवास विभाग और पटना नगर निगम के बीच संचार की कमी अक्सर अक्षमता और अंततः कम अनुपालन का कारण बनती है।

वर्तमान लैंडफिल स्‍थल रामचकबैरिया गाँव (शहर से लगभग 14 किलोमीटर दूर) में स्थित है। टेलीग्राफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2008 से, लगभग 1,200 मेट्रिक टन कचरे को दैनिक आधार पर रामचकबैरिया गाँव में डंप किया जाता है। लैंडफिल ने कई लोगों को नौकरियां दीं, लेकिन गांव को कई बीमारियां भी दीं। रामचकबैरिया गाँव के निवासी से बात करने के दौरान उन्होंने कहा, "गरीब की जिंदगी मक्‍खी की तरह है!"। पीएमसी लैंडफिल स्‍थल पर एक 'कचरे-से-ऊर्जा' उद्योग स्थापित करने की संभावनाएं तलाश कर रहा है। (बिहार सरकार, 2018)

आगे की राह: अवसर और चुनौतियां

भले ही पटना सबसे पुराने भारतीय शहरों में से एक है, लेकिन यहां के अधिकांश निवासियों की पृष्‍ठभूमि ग्रामीण है। देश के अधिकांश राज्यों की राजधानियों के लिए ऐसा नहीं नहीं है। ग्रामीण पृष्‍ठभूमि से जुड़ी जनसंख्या कई अवसर प्रदान करती है, लेकिन पटना देश में घनी आबादी वाले शहरों में से एक है, और जब ठोस कचरा प्रबंधन की बात आती है तो यहां की स्थिति अत्‍यंत चुनौतीपूर्ण है।

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, ठोस कचरा प्रबंधन में सबसे बड़ी चुनौती स्‍थान की कमी होना है। शहरी निवासी अत्‍यंत सघन स्‍थानों में रहते हैं जहां वे अपने द्वारा उत्‍पादित घरेलू कचरे के बारे में सोचने और जिम्‍मेदारी से कार्य करने के लिए बहुत कम प्रेरित और जागरूक होते हैं कि यह कचरा कहां जा रहा है और कैसे संसाधित किया जा रहा है। नागरिकों के बीच आम धारणा यह है कि सरकार की कचरा संग्रहण पहल उत्‍कृष्‍ट है और इसके कारण शहर में बदलाव आ रहा है। दूसरी ओर, पटना की आबादी का एक वर्ग अभी भी अपने ग्रामीण सांस्कृतिक मूल्यों और जुड़ाव के साथ रह रहा है, जिसे कचरा प्रबंधन, विशेष रूप से जैविक कचरा पुनर्चक्रण पद्धतियों का पर्याप्त ज्ञान है। एक निवासी के अनुसार, “हम अभी भी ऐसे ही रहते हैं जैसे हम अपने मूल ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे और अन्य शहरी निवासियों की तुलना में बहुत कम कचरा उत्पन्न करते हैं। हमारे घर का अधिकांश जैविक कचरा पशु आहार या खाद के रूप में पुनर्नवीनीकृत किया जाता है”। हालांकि, शहर में स्‍थान, पौधों और मवेशियों की कमी के कारण, यह मुश्किल हो जाता है।

ठोस कचरा प्रबंधन में एक अन्य चुनौती नागरिकों में पुनर्चक्रण करने हेतु प्रोत्साहन की कमी है। हमने कई मामलों का अध्ययन किया कि कैसे अलग-अलग परिवार पहले से ही छोटे स्तर पर जैविक कचरा पुनर्चक्रण का कार्य कर रहे हैं जैसे- रसोई के कचरे से खाद बनाना और रसोई के बगीचों में इसका उपयोग करना। यह प्रथा जितना दिखाई देती है उससे कहीं अधिक आम है। यह भी आश्‍चर्यजनक है कि भीड़भाड़ वाले स्थानों पर भी घरों में कैसे जैविक खाद बनाई जा रही है। हालांकि, केवल उन्‍हीं परिवारों को पुनर्चक्रण करने के लिए प्रोत्‍साहन मिलता है जो जैविक खाद का उपयोग करते हैं। पुनर्चक्रण को सर्वव्यापी बनाने के लिए, इसमें अधिक से अधिक परिवारों को शामिल करना परम आवश्‍यक है। उत्तरी अमेरिका में, स्थानीय सरकारें घरों के पास सड़क के किनारों पर ही खाद बनाने वाली इकाइयां स्थापित करती हैं, जहाँ परिवार अपने जैविक कचरे का निपटान कर सकते हैं। स्मार्ट एसेट पर प्रकाशित एक नोट के अनुसार, स्थानीय सरकारें दो प्रकार के प्रोत्साहन प्रदान करती हैं - मुफ्त खाद और जो परिवार खाद के पूर्व निर्धारित स्तर को प्राप्त कर लेते हैं उनके लिए पड़ोस में एक थोड़ी सस्ती कचरा पिकअप सेवा प्रदान करना। इस प्रकार, यह प्रोत्साहन पिक अप और कचरा निपटान पर पैसा बचाते हुए अंतत: पटना नगर निगम को काफी मदद पहुंचाएगा। इस प्रकार से की गई बचत परिवारों को दी जा सकती है। यह शहर के लिए भी एक अच्छा मॉडल हो सकता है।

हमारी राय में, यदि परिवारों को इस विषय पर शिक्षित किया जाए, तो वे खाद बनाने के विकल्‍प को अपना सकते हैं। यदि प्रभावी जागरूकता अभियानों और नगर निकाय के कार्यों के माध्यम से परिवारों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए तथा कर क्रेडिट जैसा प्रोत्साहन-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाए, दोनों प्रकार के कचरों के लिए अलग-अलग डिब्‍बों का मुफ्त वितरण किया जाए, और मुफ्त सफाई सेवा प्रदान की जाए तो ठोस कचरा प्रबंधन पहल सफल हो सकती है। निर्वाचित वार्ड अधिकारी कार्यों और जागरूकता अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संपूर्ण कॉलोनी/वार्ड के लिए एक सामान्य खाद इकाई के रूप में प्रारंभिक अवसंरचना की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है। अंत में, प्रदर्शन प्रभाव महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। पीएमसी पटना के सभी छह मंडलों में एक-एक वार्ड को चुन कर जागरूकता अभियान शुरू कर सकता है और इन्हें ‘मॉडल वार्डों’ में बदला जा सकता है। यह अन्य वार्डों को ठोस कचरा प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। साथ ही, एक सफल ठोस कचरा प्रबंधन के लिए अंतिम चुनौती समन्वय और संचार है।

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टिप्पणियाँ:

  1. पटना में पांच प्रतिनिधि वार्डों (जनगणना 2011 के आंकड़ों और पटना नगर निगम की सिफारिशों के आधार पर पहचाना गए) से परिवारों को यादृच्छिक रूप से चुना गया।
  2. सामुदायिक डंपिंग स्‍थानों की पहचान एवं निर्माण ज्यादातर समुदाय/पड़ोस द्वारा की गई थी। पटना नगर निगम द्वारा 2018 में ठोस कचरा प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के बाद मध्‍यवर्ती बिंदुओं की पहचान की गई और उन्‍हें बनाया गया। कई मामलों में, मध्‍यवर्ती बिंदु और सामुदायिक डंपिंग स्‍थल समान हैं।
  3. पटना में इस तरह की पहल से जुड़े प्रमुख गैर सरकारी संगठन निदान और सुनाय कंसल्टेंसी थे।
  4. पटना नगर निगम के तहत सभी 75 वार्डों को छह कार्यकारी मंडल के तहत नियंत्रित किया जाता है और एक ’नगर प्रबंधक’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है जो राज्य सरकार द्वारा प्रतिनियुक्त होता है।

लेखक परिचय : उमा सरमिष्ठा यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा और दलहौजी यूनिवर्सिटी में ऐजंगक्ट फैकल्टी हैं।

1 Comment:

By: Ajay pal singh

विकासशील देशों में कचरा प्रबंधन की वर्तमान व्यवस्था से केवल डंपिंग जोन ही विकसित हैं, जहां पशु-पक्षियों के भोज आयोजन लगातार जारी हैं। विकसित देश इसी व्यवस्था से अपने भूगोल को तो सुरक्षित कर लेते हैं, लेकिन कचरों की मात्राओं को विकासशील देशों में निर्यात कर देतें हैं। ऐसी स्थिति में कचरा प्रबंधन की वर्तमान व्यवस्था केवल विकासशील भौगोलिक क्षेत्रों का दमन है। जैविक कचरों के प्रबंधन की व्यक्तिगत पर्यावरण जिम्मेदारी तय कराऐ जाने पर निवासियों को घरेलू बागवानी में कुछ सब्जियां और छोटे पौधों के फल प्राप्त होना निश्चित है। संगठनात्मक, सार्वजनिक तौर पर जैविक कचरों का प्रबंधन निवासियों को व्यक्तिगत लाभों से वंचित करना है। व्यक्तिगत एकल उपयोग बैंक जैसी बाध्यताओं से प्रकियाओं, इकाईयों और व्यवस्था की क्षमताऐं जोड़े जाने पर सार्वजनिकता, पर्यावरण में एकल उपयोग कचरों की सम्मिलिती नियंत्रण में अवश्य है। इस कार्यपद्धति से पुनः उपयोगों में एकल उपयोग कचरों की बेहतर गुणवत्ता और पानी, ऊर्जा जैसी बुनियादी जरूरतों की न्यूनतम आवश्यकता तय अवश्य होती है। लेकिन इस कार्यपद्धति को अपनाने, ऐसे नियमों प्रावधानों और बाध्यताओं से सरकारों की जागरूकता के नाम पर करोड़ों रुपयों की राजस्व निकासी पर संकट अवश्य है। साथ ही प्रति जिले डस्टबीनों की राजस्व निकासी में भी ऐतिहासिक कमी निश्चित है।

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