ई-संगोष्ठी का परिचय: नए कृषि कानून को समझना

21 October 2020
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क्या कृषि कानून किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेंगे? क्या किसानों को बाजारों तक विस्तारित पहुंच से लाभ मिल सकता है? क्या वे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कानून के कारण शहरी फर्मों के साथ अनुबंध स्थापित करने के लिए अधिक इच्छुक होंगे? क्या आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवर्तन से जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं की मजबूरन बिक्री में कमी लाने में मदद मिलेगी? या सुधार का परिणाम केवल तब मिलेगा जब कुछ आवश्यक बुनियादी ढांचों का निर्माण हो जाएगा? क्या ये विधेयक कृषि में विविधता लाने में मदद करेंगे?

आइडियास फॉर इंडिया के हिन्दी अनुभाग पर अगली छह पोस्टों में चलने वाली इस संगोष्ठी में छह विशेषज्ञ (भरत रामास्वामी, सुखपाल सिंह, संजय कौल, सिराज हुसैन, मेखला कृष्णमूर्ति तथा शोमित्रो चटर्जी) इन मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करेंगे।

तीन कृषि विधयकों को संसद में लाए जाने और दोनों सदनों में इनके शीघ्र पारित हो जाने के बाद देश में काफी अशांति उत्‍पन्‍न हुई है। खासकर, पंजाब और हरियाणा में किसानों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। कई लोग इस बात से आश्वस्त दिख रहे थे कि यह कदम वर्तमान एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) व्‍यवस्‍था का अंत कर देगा। हालांकि किसी भी विधेयक में एमएसपी का कोई उल्लेख नहीं है। जैसे-जैसे यह डर महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों में फैलता गया, उन राज्यों के किसान भी सड़कों पर उतर आए। इन प्रदर्शनों को यह कहते हुए खारिज करना उचित नहीं है कि किसान केवल गुमराह होकर ये प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों को अपने हितों का ज्ञान होना चाहिए।

कृषि से दो हाथ दूर रहने वाले हम में से अधिकांश लोग इन प्रदर्शनों से काफी परेशान हुए हैं। क्या एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) मंडियों की उस प‍कड़ के बारे में किसानों को कोई शिकायत नहीं है जो उन्हें बेहतर दाम मिलने से रोक रही है? वे क्यों परेशान हैं?

मुझे याद है कि मैंने कई साल पहले एक पश्चिमी महाराष्ट्रीयन किसान से बातचीत की थी जो एपीएमसी के तहत कृषि उपज के लिए विनियमित बाजारों के बारे में कड़ी शिकायत कर रहा था। मैंने उससे पूछा, "लेकिन क्‍या एपीएमसी को किसानों को एकाधिकार रखने वाले या बेपरवाह व्यापारियों से बचाने के लिए नहीं बनाया गया था?”। उसका जवाब था, “हाँ, किन्तु उस समय जब हमारे पास सिंचाई के साधन कम थे और इस क्षेत्र के अधिकांश किसानों की पैदावार कम थी। मुट्ठी भर व्यापारियों ने पूरे जिले को आपस में बांट लिया था। मैने सदैव केवल एक ही व्यापारी से सौदा किया था। वो मुझे जिस कीमत की पेशकश करता मैं उसे उसी कीमत पर बेचने के लिए मजबूर था। इन विनियमित बाजारों ने तब हमारी बहुत मदद की थी। लेकिन अब स्थितियां अलग हैं। अधिक सिंचाई और बेहतर बीजों के कारण उत्पादन बढ़ा है। अब यहाँ काफी व्यापारी आते हैं। अगर मुझे एक व्‍यक्ति की शर्तें पसंद नहीं हो तो मैं दूसरे के पास जा सकता हूँ। लेकिन एपीएमसी विनियमन के साथ यह मुश्किल हो जाता है। अगर मैं इन व्यापारियों से सीधे बातचीत कर सकूं तो मुझे बेहतर कीमत मिलेगी।” हाँ, समय के साथ चीजें बदल गई हैं। लेकिन फिर किसान नियंत्रण मुक्‍त व्यापार का विकल्प पेश करने वाले इन प्रस्तावित बदलावों से क्यों परेशान हैं?

ध्यान दें कि चतुर किसान हमें एक महत्वपूर्ण परिचयात्मक स्नातक अर्थशास्त्र पाठ्यक्रम परिणाम तक लाता है: यदि कोई विक्रेता प्रतिस्पर्धी बाजार में बेच रहा है, तो यह उसके लिए अच्छा है। लेकिन अगर वह जिस खरीदार का सामना करता है वह एकाधिकार रखने वाला है तो फिर यह उसके लिए अच्‍छा नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि इन कृषि कानून के कई आलोचकों को डर है कि व्यक्तिगत किसानों को बड़े कॉर्पोरेट खरीदारों का सामना करना पड़ेगा जिनके विरुद्ध उनके पास सौदेबाजी की कोई ताकत नहीं होगी। क्या यह डर जायज है? कॉर्पोरेट द्वारा कृषि व्यापार का अधिग्रहण करने की कितनी संभावना है?

इसमें कई गुत्थियों भरे प्रश्न हैं।

स्पष्ट रूप से, कृषि सुधारों का मुख्य लक्ष्य किसानों की आय में सुधार करना है। भारतीय कृषि क्षेत्र में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या काफी ज्यादा है। क्या कृषि कानून उनकी आय बढ़ाने में मदद करेंगे? कैसे? क्या वे बाजारों तक विस्तारित पहुंच से लाभ उठा सकते हैं? कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर कृषि विधयकों के कारण क्या वे शहरी फर्मों के साथ अनुबंध करने के लिए तैयार होंगे? क्या आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवर्तन से जल्‍दी खराब होने वाली वस्तुओं की मजबूरन बिक्री में कमी लाने में मदद मिलेगी? या सुधार का परिणाम केवल तभी मिलेगा जब कुछ आवश्यक बुनियादी ढांचे (उदाहरण के लिए कोल्‍ड स्‍टोरेज) का निर्माण हो जाएगा? कृषि में विविधता लाने से किसानों को अपनी आय में सुधार करने में मदद मिलेगी। क्या ये कृषि कानून भारतीय कृषि में विविधता लाने में मदद करेंगे?

इन प्रश्नों का उत्तर केवल वे लोग दे सकते हैं जिनके पास कृषि बाजारों और कृषि विपणन के जमीनी स्तर पर काम करने की तकनीक के बारे में गहरी जानकारी है। हम भाग्यशाली हैं कि हमें इन सभी प्रश्नों पर अपने दृष्टिकोण प्रस्‍तुत करने के लिए छह प्रख्यात विशेषज्ञों की सहमति प्राप्‍त हुई है, जो हम सभी के लिए पहेली हैं। अगली पाँच पोस्टों में I4I के हिन्दी अनुभाग पर कृषि कानून पर संगोष्ठी जारी रहेगी। इसकी शुरुआत भरत रामास्वामी (अशोका विश्वविद्यालय) द्वारा की जाएगी और उसके बाद क्रमश: सुखपाल सिंह (भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद), संजय कौल (भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी) और सिराज हुसैन (आईसीआरआईईआर) द्वारा अपने विचार रखे जाएंगे। संगोष्‍ठी के समापन में मेखला कृष्णमूर्ति (अशोका विश्वविद्यालय; नीति अनुसंधान केंद्र) और शोमित्रो चटर्जी (पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी) द्वारा लेखों का सारांश प्रस्‍तुत किया जाएगा, साथ ही वे इन विषयों पर अपने दृ‍ष्टिकोण भी प्रस्तुत करेंगे।

कृषि कानून हेतु एक बहुत ही उपयोगी संदर्भ पीआरएस विधायी अनुसंधान है, जिन्होंने विधेयकों की विषय-वस्‍तु का पूर्णत: और सटीक विवरण अंग्रेज़ी में दिया है – इस लिंक पर पढ़ें। यदि आप विधेयकों को बिना किसी की राय लिए उसे उसके मूल रूप में देखना चाहते हैं, तो आरंभ करने के लिए यह एक अच्‍छा स्‍थान होगा।

लेखक परिचय: अशोक कोटवाल आइडियास फॉर इंडिया के प्रधान संपादक और यूनिवरसिटि ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर एमेरिटस हैं।

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कृषि कानून: प्रथम सिद्धांत और कृषि बाजार विनियमन की राजनीतिक अर्थव्यवस्था - मेखला कृष्णमूर्ति (अशोका यूनिवर्सिटी) एवं शौमित्रो चटर्जी (पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी)

कृषि कानून: सकारात्मक परिणामों के लिए क्षमतावान - सिराज हुसैन (इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस)

कृषि कानून: कायापलट करने वाले बदलाव लाने की संभावना कम है - संजय कौल (सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी)

कृषि कानून: वांछनीय होने के लिए डिजाइन में बहुत कुछ छूट गया है सुखपाल सिंह (भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद)

कृषि कानून: कृषि विपणन का उदारीकरण आवश्यक है - भरत रामास्वामी (अशोका यूनिवर्सिटी)

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राजनीतिक अर्थव्यवस्था, कृषि

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