सामाजिक पहचान

क्‍या कोविड-19 के बढ़ते प्रसार में सामाजिक और आर्थिक विविधता मायने रखती है?

  • Blog Post Date 18 मार्च, 2021
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कोविड-19 के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए समुदायों को सामूहिक रूप से कार्य करने की आवश्यकता है, जो अधिक विविधत जनसंख्‍या वाले क्षेत्रों में अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकती है। भारत से जिला-स्तरीय आंकड़ों का उपयोग करते हुए, यह लेख कोविड-19 के रिपोर्ट किए गए मामलों की वृद्धि दर पर जातिगत और धार्मिक विखंडन एवं आर्थिक असमानता के प्रभावों की जांच करता है। इस लेख से पता चलता है कि, देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान और खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में, कोविड-19 मामलों पर नियंत्रण पाने में जातिगत समरूपता का मजबूत सकारात्मक प्रभाव हुआ है।

 

कोविड-19 का टीका उपलब्ध होने के बावजूद, आज भी इसके संक्रमण को रोकने के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा अनुशंसित सामाजिक दूरी का पालन किया जाना अनिवार्य है। सामाजिक दूरी के मानदंडों और स्‍वच्‍छता को अपनाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता को देखते हुए, अलग-अलग समुदायों द्वारा इन्‍हें अपनाए जाने की सफलता भिन्न-भिन्न हो सकती है। जैसा कि सामूहिक समन्वय पर पूर्व अनुसंधान से ज्ञात होता है, असमान समुदायों का एक सामान्य मानदंड पर सहमत होना और सामाजिक तौर पर लाभकारी व्यवहार को लागू करना कठिन साबित हो सकता है(हैबयारिमाना एवं अन्‍य 2007)। मौजूदा साक्ष्य बताते हैं कि ऐसे व्‍यक्ति जो सामान्य समूहों से जुड़े हैं, वे बाहरी व्‍यक्तियों की तुलना में अपने समूह के सदस्यों के प्रति अधिक सहानुभूति रखते हैं और उनका ज्यादा ध्यान रखते हैं (विगडोर 2004, एलेसिना और फेरारा 2005)। इसके अलावा, समरूप समुदायों में अधिक संपर्क के चलते, उनकी सामाजिक क्षमता का स्‍तर ऊंचा होता है क्‍योंकि उनमें सही सामाजिक व्यवहार, विश्वास और सहयोग का स्तर अधिक होता है, जो सामुदायिक समन्वय को आसान बनाता है (मिगुएल और गुगर्टी 2005)। कोविड-19 की अत्यधिक संक्रामक प्रकृति को देखते हुए, सामाजिक दूरी संबंधी नियमों का उल्‍लंघन करने से पूरा समुदाय इसकी चपेट में आ सकता है, जो महामारी को रोकने में सरकार के प्रयासों को कमजोर कर सकता है। यह लेख हमारे उस अनुसन्धान पर आधारित है जो पूछता है कि क्या वह क्षेत्र (जिलों) जो धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक आधार पर सामान्य हैं, बाकी क्षेत्रों कि तुलना में, कोविड-19 संक्रमण से ज्यादा सुरक्षित हैं (राठौड़, दास और सरखेल 2020)।

कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक विविधता की भूमिका का आकलन करना

आज, भारत में कोविड-19 के मामलों की संख्‍या विश्व में दूसरे नम्बर पर हैं। साथ ही, भारतीय समाज, जाति तथा धर्म के आधार पर अनेक स्‍तरों में बंटा हुआ हैं एवं यहाँ आर्थिक असमानताएं भी बहुत अधिक हैं। इस संदर्भ में हम भारतीय ज़िलों में सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक विविधता तथा कोविड-19 के फैलाव के बीच के संबंध की जांच करते हैं। विशेष रूप से, हम देशव्यापी लॉकडाउन लागू किए जाने (25 मार्च, 2020) से लेकर इन प्रतिबंधों को हटाने (31 मई, 2020) के लगभग दो महीने बाद तक (26 जुलाई, 2020) रिपोर्ट किए गए संक्रमणों की संख्या में वृद्धि पर सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक विविधता का अध्ययन करते हैं।1

हम एक अनूठे जिला-स्तरीय डेटासेट का उपयोग करते हैं जिसमें 719 जिलों के लिए दैनिक कोविड-19 संक्रमण और मृत्यु दर के आंकड़ों को रिकॉर्ड किया गया है। इसका स्रोत डेवलपमेंट डेटा लैब का कोविड-19 इंडिया डेटाबेस (अशेर एवं अन्‍य 2020) है। इस आंकड़े के 719 जिलों में से 661 के लिए हमने जाति समूह, धार्मिक और आर्थिक विविधता के जिला-स्तरीय संकेतकों को मिलाया है जोकि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (2018) द्वारा प्रदान किये गए हैं। इसके अलावा, हमने पूर्व आवा-जाही और घरों के आवासीय जानकारी को भी अपने अनुसंधान में शामिल किया है (एनएसएस, 2018)। जिला स्तर पर एकत्रित घरेलू स्तर जानकारी के अलावा हमने मानव स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं पर आंकड़ों (जनगणना, 2011) के साथ-साथ जिले में पुरानी बीमारियों से ग्रस्‍त लोगों की जानकारी को भी शामिल किया है (एनएसएस 2018)। हमारी जानकारी के अनुसार, यह डेटासेट कोविड-19 के संदर्भ में सबसे पहले डेटासेटों में से एक है, जो भारत में जिला स्तर पर इस तरह की सूचना को एकत्रित करते है एवं इसका आंकलन करता है।

जिला-स्तरीय सामाजिक और धार्मिक समरूपता की गणना करने के लिए, हमने हरफिंडाल हर्शमैन सूचकांक (HHI/एचएचआई)2 (रोडेस 1993) का उपयोग किया है। जिला-स्तर की आर्थिक असमानता को मापने के लिए, हमने गिन्नी सूचकांक (GI/जीआई)3 की गणना की है। जातिगत विविधता के लिए हम जाति समूहों का उपयोग करते हैं जिसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जैसे ऐतिहासिक रूप से पिछड़े समूह के साथ-साथ ‘अन्‍य/जनरल’4 जातियां भी शामिल हैं। धर्म के लिए, आठ प्रमुख धार्मिक समूहों को शामिल किया गया है।5 एचएचआई 0 से 1 की रेंज में है, जिसमें उच्च मान उच्‍च समरूपता को प्रदर्शित करता है। जीआई मासिक घरेलू उपभोग व्यय पर आधारित है, जिसकी गणना भी 0 से 1 के पैमाने पर की जाती है, और जिसमें उच्‍च मान का अर्थ अधिक असमानता है।6

हमारा शोध हमें लॉकडाउन के साथ-साथ लॉकडाउन खोलने के चरण में कोविड-19 मामलों की संख्या में वृद्धि और जिला-स्तरीय आर्थिक असमानता7,जाति समूह, और धार्मिक समरूपता के बीच के संबंध का आंकलन करने में सक्षम बनाता है। यहां एकरूपता के प्रभाव को मापते समय उन संभावनाओं को अलग करने की आवश्यकता है जो कि हमें भ्रमित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, भारत में महामारी के पहले कुछ महीनों में, कोविड-19 संक्रमण में अंतरराष्ट्रीय यात्रियों कि महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, जिनके माध्यम से यह महामारी महानगरों में ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा तीव्र गति से फ़ैली। प्राकृतिक रूप से, शुरुआती हॉटस्पॉट में वह महानगर शामिल थे जिनमें अंतरराष्ट्रीय हवाई कनेक्टिविटी बेहतर थी। साथ ही, यह भी संभावना है कि ये शहर नौकरी के अवसरों के लिए भी प्रमुख केंद्र हों, जो देश के विभिन्न भागों से लोगों को आकर्षित करते हैं। इस कारण, हो सकता हैं कि जाति, धार्मिक और आर्थिक विविधता इसी आकर्षण का प्रतिविम्ब हो और इसका कोविड-19 मामलों से कुछ लेना देना न हों। ऐसे भेदों को स्पष्ट करने के लिए, एवं विविधता और कोविद -19 मामलों के बीच के सच्चे संबंधों को अलग करने के लिए हम विभिन्न सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग करते हैं (राठौड़, दास और सरखेल 2020)।

जातिगत समरूपता के सकारात्मक प्रभाव

हमारे निष्कर्ष आकृति 1 में प्रस्तुत किए गए हैं, जहां बाएं से दाएं की ओर प्रदर्शित अनुमानित आंकड़े अध्ययन के आठ चरणों में कोविड-19 मामलों की वृद्धि (इनमें से पहले चार अध्‍ययन लॉकडाउन के दौरान किए गए थे, तथा लॉकडाउन के अंत को ऊर्ध्वाधर लाल रेखा द्वारा इंगित किया गया है) पर जाति-समूह समरूपता (पैनल a), धार्मिक समरूपता (पैनल b), और आर्थिक असमानता (पैनल c) के एक इकाई वृद्धि के प्रभाव को दर्शाते हैं।8 पैनल (a) में हमारे निष्कर्ष यह दर्शाते करते हैं कि भारत के संदर्भ में, और ख़ास तौर से लॉकडाउन के दौरान, जातिगत समरूपता का कोविड-19 मामलों में वृद्धि को नियंत्रित करने में एक महत्वपूर्ण योगदान था। अनलॉकिंग प्रक्रिया के आरंभ होने के बाद इस चैनल से सीमांत लाभ धीरे-धीरे कम होते दिख रहे हैं, जिसका कारण अनलॉकिंग के बाद हुई ज्यादा आवाजाही हो सकता हैं।

इसके अलावा, हम देखते हैं कि लॉकडाउन के शुरूआती चरण में, आर्थिक रूप से अधिक असमान जिलों में कोविड-19 मामलों में, अन्य जिलों के मुकाबले, ज्यादा वृद्धि हुई हैं। हालांकि यह संबंध लॉकडाउन के तीसरे चरण के अंत तक ही मजबूत रहते हैं और लॉकडाउन के चौथे चरण के अंत तक पूरी तरह से समाप्‍त हो जाते हैं। अनलॉकिंग अवधि (चरण 5 से 8) के बाद से अधिक आर्थिक समानता के सीमांत लाभ सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन हो जाते हैं।

आकृति 1. (पैनल a, b और c) भारत में लॉकडाउन और अनलॉकिंग की विभिन्न अवधियों में कोविड-19 मामलों की वृद्धि पर जाति-समूह समरूपता, धार्मिक समरूपता और आर्थिक असमानता का प्रभाव

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यांशों का हिंदी अर्थ

Period-wise coefficients for HHI Caste Group – एचएचआई जाति समूह के लिए अवधि वार गुणांक

Period-wise coefficients for HHI region – एचएचआई धर्म के लिए अवधि वार गुणांक

Period-wise coefficients for Ginni Index (consumption expenditure) – गिन्‍नी सूचकांक (उपभोक्‍ता व्‍यय) के लिए अवधि वार गुणांक

टिप्‍पणियां : (i) सीमांत प्रभाव10 95% विश्वास अंतराल के साथ प्रस्तुत किए गए हैं। (ii) ऊर्ध्‍वाधर रेखा पर x = 4 राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के अंत (31 मई 2020) का संकेत देती है। (iii) एचएचआई का अर्थ है हरफिंडाल हर्शमैन इंडेक्स (अर्थ नीचे टिप्पणी में दिया गया है)।

यह जांचने के लिए कि सामाजिक सामंजस्य चैनल पर अनलॉकिंग का क्या प्रभाव था, हम कुल परिवारों में शहरी परिवारों के अनुपात के आधार पर जिलों को वर्गीकृत करते हैं। यह करने के लिए प्रेरणा तथ्य यह है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक समन्वय का स्तर अक्सर अधिक पाया जाता है। हम पाते हैं कि अनलॉकिंग चरण के दौरान भी अधिक ग्रामीण जिलों में कोविड-19 मामलों की वृद्धि पर जाति-समूह समरूपता का अनुकूल प्रभाव महत्वपूर्ण बना रहता है, जबकि धर्म और आर्थिक असमानता के लिए ऐसा कोई प्रभाव नहीं देखा गया।

नीति निहितार्थ: सामाजिक रूप से विविध क्षेत्रों को प्राथमिकता देना और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देना

हमारे अध्ययन के आधार पर, हम दो महत्वपूर्ण नीतिगत निष्‍कर्षों पर पहुँचे। पहला यह कि जब तक एक व्‍यापक आपूर्ति-पक्ष की प्रतिक्रिया को मजबूत नहीं किया जा सकता, तब तक सरकार को ऐसे क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए जो जाति-समूह संरचना में अधिक विविध हैं क्‍योंकि इन् क्षेत्रों में संक्रमण की वृद्धि से निपटने के लिए कम सामाजिक क्षमता है। कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान, हमारा अध्ययन देशव्यापी लॉकडाउन की जगह स्थानीय क्षेत्रों को सामाजिक समरूपता के आधार पर ब्लॉकों में चिन्हित करने और उन्‍हें ज़ोनों में बांटने के लिए एक प्रस्ताव प्रदान करता है।

उपर्युक्त निष्कर्षों में, सामाजिक संबंधों के चैनल को लॉकडाउन के खुलने के साथ कमजोर होता पाया गया है। इसलिए हमारा दूसरा निष्कर्ष यह है कि सामुदायिक नेटवर्क को मजबूत करने के लिए रणनीतियां बनाई जानी चाहियें। इसका एक संभव तरीका यह है कि स्वास्थ्य योजनाओं को सामुदायिक चैनलों के माध्यम से विकेन्द्रीकृत कर दिया जाए क्योंकि इनमें अधिक सामुदायिक भागीदारी शामिल रहती है। चूंकि अब टीके उपलब्ध हो रहे हैं इसलिए वितरण तंत्र का महत्‍व बढ़ जाएगा और इसमें नीतिगत चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, इस संदर्भ में हमारे परिणाम टीकाकरण के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने हेतु सामाजिक सामंजस्य को एक आधार के रूप में प्रस्‍तुत करते हैं। मुख्य रूप से, हमारा अध्ययन विभाजनकारी राजनीतिक एजेंडा के विपरीत सामाजिक सामंजस्य और सामुदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित करता है।

टिप्पणियाँ:

  1. भारत में लॉकडाउन दो महीनों के दौरान चार चरणों में लागू किया गया था – पहला चरण: 25 मार्च से 14 अप्रैल, दूसरा चरण: 15 अप्रैल से 3 मई, तीसरा चरण: 4 मई से 17 मई, और चौथा चरण: 18 मई से 31 तक। इसके अलावा, हम 31 मई 2020 को लॉकडाउन हटाए जाने के बाद चार चरणों पर भी अनुसंधान करते हैं, जिनमें से प्रत्येक चरण में लगभग 14 दिन हैं जिनकी कुल अवधि लगभग दो महीने हैं। इनमें शामिल है पांचवा चरण: 1 जून से 14 जून, छठा चरण: 15 जून से 28 जून, सातवाँ चरण: 29 जून से 12 जुलाई, आठवाँ चरण: 13 जुलाई से 26 जुलाई, जो अनलॉकिंग प्रक्रियाओं के आरंभ से मेल खाते हैं।
  2. एचएचआई सूचकांक समरूपता/एकाग्रता का एक सामान्यीकृत माप है जिसमें अधिक मान का अर्थ उच्च समरूपता है। हमारे निष्कर्षों की वैधता की जांच के लिए, हम शैनन के सूचकांक की विविधता का भी उपयोग करते हैं और हमें सांख्यिकीय रूप से समान निष्कर्ष प्राप्त होते हैं।
  3. गिन्नी सूचकांक समाज के भीतर व्यक्तियों या परिवारों के बीच आय के वितरण (या, कुछ मामलों में उपभोग व्यय) एवं पूर्णत: समान वितरण के बीच विचलन को मापता है।
  4. भारतीय जाति व्यवस्था में सामाजिक नेटवर्क विभिन्न उप-जातियों या जातियों में बिखरे हुए हैं। हम खुद को व्यापक जाति समूहों तक सीमित रखते हैं क्योंकि जिला-स्तरीय प्रतिनिधि डेटा केवल इस स्तर के लिए ही उपलब्ध है।
  5. इनमें हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और अन्य शामिल हैं। हम मानते हैं कि परिवार के बाहर की तुलना में परिवार के अंदर समन्वय और सहयोग हासिल करना अपेक्षाकृत आसान है।
  6. हम घरेलू स्तर पर डेटा का उपयोग करके रूचि के संकेतको (एचएचआई और जीआई) की गणना करते हैं, जिसे फिर मानों का उपयोग करके जिला स्तर पर एकत्र किया जाता हैं। हालाँकि हम व्यक्तिगत स्तर के संकेतको का उपयोग करके अपने निष्कर्षों की मजबूती की जाँच करते हैं जो गुणात्मक रूप से समान हैं।
  7. मानक विचलन वह माप हैं जिसका उपयोग मानों के किसी एक सेट से उसके औसत की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
  8. हम प्रत्येक गुणांक के लिए विश्वास बैंड भी प्रस्तुत करते हैं, जो क्षैतिज लाल रेखा को स्‍पर्श करने पर सांख्यिकीय महत्वहीनता को दर्शाता है।
  9. इसके अतिरिक्त, किसी भी दैनिक रिपोर्टिंग की गलतियों को गणना में शामिल करने के लिए, हम दैनिक मामलों को तीन और सात दिनों के रोलिंग औसत के तौर पर भी विश्लेषण में शामिल करते हैं और हमारे निष्कर्ष सांख्यिकीय रूप से मजबूत हैं।
  10. 95% विश्वास अंतराल अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने का एक तरीका है। विशेष रूप से, इसका अर्थ यह हैं कि यदि आप प्रयोग को बार-बार नए नमूनों के साथ दोहराएं, तो अनुमानित प्रभाव 100 में से 95 बार इस विश्वास अंतराल सीमा के भीतर होंगे।

लेखक परिचय: प्रसनजित सरखेल यूनिवर्सिटी ऑफ कल्याणी में अर्थशास्त्र के असोसिएट प्रोफेसर हैं। उपासक दास यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के ग्लोबल डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट में इकोनॉमिक्स ऑफ पॉवर्टी रिडक्शन के प्रेसिडेंशियल फेलो हैं। उदयन राठौड़ ऑक्सफोर्ड पॉलिसी मैनेजमेंट (इंडिया) में असिस्टेंट कनसलटेंट के पद पर कार्यरत हैं।

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