यह ध्यान में रखते हुए कि 79% ग्रामीण भारतीय घरों में महिलाओं को घर के अंदर स्वास्थ्य के लिए खतरा है क्योंकि वे अभी भी खाना पकाने के लिए परंपरागत प्रदूषण फैलाने वाले ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर हैं, प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना एक अति आवश्यक और उद्देश्यपूर्ण योजना है। इस पोस्ट में, राहुल रंजन ने कहा है कि जब तक ऊर्जा नीति गैर-कृषि क्षेत्र में वैकल्पिक ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित नहीं करती है, तब तक बड़े पैमाने पर घरों के भीतर परंपरागत ईंधन के प्रतिस्थापन होने की संभावना नहीं है।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित एवं पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा मई 2016 में आरंभ की गई एक ऐसी योजना है जिसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे के घरों में तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) कनेक्शन प्रदान करना था। योजना के संशोधित दिशानिर्देशों में यह उल्लेख किया गया था कि यह योजना 2016-17 से लेकर 2019-20 तक पूरे देश में लागू की जाएगी। इस प्रकार इस योजना को आरंभ हुए तीन साल पूरे हो चुके हैं। ग्रामीण भारत में खाना पकाने हेतु परंपरागत ईंधन के बड़े पैमाने पर उपयोग के कारण घरों में महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी खतरों की स्थिति को देखते हुए, यह निश्चित रूप से एक अत्यंत आवश्यक और उद्देश्यपूर्ण योजना है। इसके लाभों को अधिकतम रूप से प्राप्त करने के लिए, इस योजना का गंभीर मूल्यांकन करना और इसमें यदि कोई संशोधन आवश्यक हों तो उनकी पहचान करना जरूरी है ताकि इस चार वर्ष की समयावधि के पूरा होने के बाद इसके कार्यान्वयन के दूसरे चरण के दौरान इन पर विचार किया जा सके।
घरेलू खाना पकाने के लिए उपयोग की ऊर्जा के खपत का पैटर्न
इस समय, देश भर में घर में खाना पकाने के लिए होने वाले ऊर्जा खपत के पैटर्न पर नज़र एकत्रित करना महत्वपूर्ण है। सारणी 1 में घरों में खाना पकाने के प्राथमिक स्रोत को दिखाया गया है। इसके अनुसार 79% ग्रामीण परिवार अभी भी खाना पकाने के लिए परंपरागत प्रदूषण फैलाने वाले ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर हैं। समय के साथ-साथ रसोई गैस पर निर्भरता बढ़ती जा रही है लेकिन ग्रामीण परिवारों तक इसकी पहुंच अभी भी 15% तक ही सीमित है। खपत क्विंटाइलों में ईंधन के उपयोग का विवरण भी यह कहानी बयां करता है कि शीर्ष-क्विंटाइल में 50% से अधिक घरों में अभी भी खाना पकाने के प्राथमिक स्रोत के रूप में परंपरागत ईंधन का उपयोग किया जाता है। जैसे-जैसे हम नीचे के क्विंटाइलों का अध्ययन करते हैं तो ज्ञात होता है कि परंपरागत ईंधन का उपयोग करने वाले परिवारों की संख्या बढ़ती जाती है। 2011-12 के राउंड के शीर्ष और चौथे क्विंटाइल हेतु खाना पकाने के लिए प्राथमिक स्रोत के रूप में रसोई गैस का उपयोग करने वाले परिवारों के प्रतिशत के बीच का अंतर भी 18% है। आधुनिक ईंधनों की अपर्याप्त सप्लाई, उसे खरीदने में सक्षम न हो पाना तथा परंपरागत ईंधन की आसान उपलब्धता, ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर प्रदूषण फैलाने वाले ऊर्जा के उपयोग का कारण हो सकते हैं 1। यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि एलपीजी को अपनाने की गति में और तेज होनी चाहिए तथा सभी आय वर्ग के लोगों द्वारा इसे अपनाया जाना चाहिए।
सारणी 1. प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीसीई) क्विंटाइलों में परिवारों द्वारा प्रति माह खाना पकाने के लिए ईंधन के प्राथमिक स्रोत का प्रतिशत
ग्रामीण भारत
ऊर्जा स्रोत
आरक्यू 1
आरक्यू 2
आरक्यू 3
आरक्यू 4
आरक्यू 5
कुल
1987-88
परंपरागत र्इंधन
97.22
97.03
96.77
95.25
86.84
94.63
एलपीजी
0.06
0.10
0.18
0.69
3.12
0.83
किरोसीन
0.11
0.28
0.65
1.29
5.28
1.52
1999-00
परंपरागत र्इंधन
94.52
93.87
92.72
87.98
69.41
87.71
एलपीजी
0.24
0.85
1.85
5.42
18.72
5.40
किरोसीन
0.43
1.10
1.64
3.05
7.36
2.71
2011-12
परंपरागत र्इंधन
90.58
88.51
82.27
74.48
54.92
78.16
एलपीजी
1.36
4.89
10.69
20.18
38.13
15.05
किरोसीन
0.40
0.52
0.79
1.02
1.28
0.80

चूंकि उज्जवला योजना बीपीएल घरों को लक्षित करती है, इसलिए इस योजना की पहुंच सीमित है, जबकि परंपरागत ईंधन का उपयोग कहीं अधिक गहन और व्यापक है। इस स्थिति में यह तथ्य और जुड़ जाता है कि खाना पकाने के ईंधन का उपयोग करने के लिए घरों की प्राथमिकताएं काफी मायने रखती हैं। एनएसएसओ उपभोग-व्यय सर्वेक्षण (सीईएस) के 68वें राउंड (2011-12) के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि 60% से अधिक ग्रामीण एवं गरीब घरों में ईंधन के रूप में लकड़ी मुफ्त में उपलब्ध होते हैं और 70% प्रतिशत से अधिक ग्रामीण एवं गरीब लोग, जो कृषि गतिविधियों में शामिल हैं, के पास ईंधन के रूप में लकड़ी मुफ्त में उपलब्ध है (सारणी 1)। लगभग 80% ग्रामीण परिवार खाना पकाने के लिए मुख्य रूप से परंपरागत ईंधनों पर निर्भर हैं, जिसमें जलाऊ लकड़ी प्रमुख है। इस संबंध में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि परिवारों की कुल जलाऊ लकड़ी की खपत का लगभग 60% हिस्सा मुफ्त या घर में उगने वाली लकड़ी का होता है। परिवारों के लिए ये सभी स्रोत या तो मुफ्त में या आधुनिक ईंधन की तुलना में बहुत कम कीमत पर उपलब्ध हैं। चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी मुफ्त में उपलब्ध है, इसलिए परिवारों के सामने दुविधा यह है कि क्या वे परंपरागत ईंधन के स्थान पर आधुनिक ईंधन का उपयोग करने का प्रयास करें, या परंपरागत ईंधन को अधिक दक्षता और कम खतरनाक तरीके से उपयोग करने की कोशिश करें।
सारणी 2. मुफ्त में उपलब्ध या घर में उगने वाली लकड़ी
परिवार का प्रकार
परिवार द्वारा खपत की जाने वाली कुल जलाऊ लकड़ी में घर में उगने वाली या मुफ्त में उपलब्ध लकड़ी का प्रतिशत
मुफ्त में जलाऊ लकड़ी की उपलब्धता वाले परिवारों का प्रतिशत
ग्रामीण गरीब परिवार
गैर-कृषि क्षेत्र में स्व-रोजगार प्राप्त
39.57
46.39
कृषि मजदूर
56.18
63.53
अन्य मजदूर
52.06
58.38
कृषि क्षेत्र में स्व-रोजगार प्राप्त
61.41
69.35
अन्य
35.36
51.60
समग्र
53.95
61.84
ग्रामीण गैर-गरीब परिवार
गैर-कृषि क्षेत्र में स्व-रोजगार प्राप्त
36.36
48.08
कृषि मजदूर
56.02
62.50
अन्य मजदूर
43.77
56.84
कृषि क्षेत्र में स्व-रोजगार प्राप्त
64.93
73.33
अन्य
34.94
54.23
समग्र
51.74
62.70

क्या उज्ज्वला योजना ने वास्तव में एलपीजी की खपत बढ़ाई है?
उज्ज्वला योजना घरों की भोजन-ईंधन की आवश्यकता को कुछ हद तक पूरा तो करती है परंतु घरों में एलपीजी कनेक्शन में वृद्धि के बावजूद परंपरागत खाना पकाने के ईंधन का उपयोग अभी भी काफी मात्रा में होता है। योजना के लागू होने के बाद, ग्रामीण क्षेत्रों (पीपीएसी, 2018) में एलपीजी कनेक्शन तेजी से बढ़े हैं, हालांकि अभी यह देखा जाना बाकी है कि कितने परिवार उन एलपीजी कनेक्शनों को प्राप्त करने के बाद रिफिलिंग कराना जारी रखेंगे। कनेक्शनों में वृद्धि एलपीजी की बिक्री में वृद्धि, यानि एलपीजी की खपत के साथ होनी चाहिए। क्या पीएमयूवाई के कार्यान्वयन के बाद ऐसा वास्तव में हुआ है, और यदि हुआ है तो किस हद हुआ है, इसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इसलिए, पीएमयूवाई के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए, एलपीजी कनेक्शनों की वृद्धि की जांच करने के साथ-साथ इसकी अंतर संबद्धता के साथ बिक्री, और सक्रिय एवं निष्क्रिय घरेलू एलपीजी कनेक्शनों की संख्या की जांच करना भी महत्वपूर्ण है।
2017-18 से 2018-19 तक एलपीजी की खपत 6.80% बढ़ी है जबकि इसी अवधि के दौरान एलपीजी कनेक्शनों की संख्या में लगभग 60% की वृद्धि हुई है (आकृति 1)। बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अधिक संख्या में एलपीजी कनेक्शन दिए गए (आकृति 1)। पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल (पीपीएसी) के आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल 2016 में देश में 35.5 मिलियन निष्क्रिय एलपीजी कनेक्शन थे, जो अप्रैल 2017 तक बढ़कर 35.8 मिलियन और जनवरी 2018 तक बढ़कर 38.2 मिलियन हो गए। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, और तमिलनाडु में निष्क्रिय घरेलू एलपीजी कनेक्शनों की संख्या सबसे अधिक है (आकृति 2)। इससे यह इंगित होता है कि पीएमयूवाई ने एलपीजी कनेक्शन तो बढ़ाए हैं लेकिन यह लाभार्थियों के बीच इसकी खपत मांग में तेजी लाने में विफल रही है।
आकृति 1. 2017-18 से 2018-19तक एलपीजी उपभोक्ताओं एवं इसकी बिक्री की वृद्धि दर

स्रोत: पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल (पीपीएसी).

आकृति 2. 2017-18 से 2018-19 तक एलपीजी के उपभोक्ताओं एवं इसकी बिक्री का वृद्धि दर

स्रोत: पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल (पीपीएसी)।

हालांकि पीएमयूवाई के अंतर्गत प्रत्येक पात्र परिवार को रसोई गैस कनेक्शन के लिए 1,600 रुपये का वित्तीय सहयोग प्रदान किया जाता है, लेकिन उन्हें 14.2 किलोग्राम एलपीजी कनेक्शन के लिए अंतत: सरकार से ऋण लेने हेतु कम से कम 1,400 रुपये की व्यवस्था करनी होगी। इस स्थिति में उन्हें छठी रिफिलिंग के बाद सब्सिडी वाला एलपीजी सिलिंडर तब तक नहीं मिलेगा जब तक उनसे ऋण की राशि वसूल नहीं हो जाती। इसका अर्थ यह हुआ कि सातवें एवं आठवें एलपीजी रिफिलिंग बाजार मूल्य पर करनी होगी, जिससे उन गरीब परिवारों पर आर्थिक रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस पूरी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, पीएमयूवाई के तहत एलपीजी कनेक्शन जारी करने से सरकार के लिए गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) बनने की भी संभावना है जो उस पर अतिरिक्त बोझ डालती है और इसे कल्याणकारी नुकसान माना जा सकता है। इसके अलावा, कुछ हद तक यह, एलपीजी के दुरुपयोग की वजह भी बन सकती है, क्योंकि गरीब परिवार ऋण लेने या नियमित आधार पर रिफिलिंग कराने का बोझ उठाने में सक्षम नहीं हैं।
निष्कर्ष
एलपीजी परंपरागत ईंधन का आंशिक प्रतिस्थापन है और यह टिकाऊ प्रतीत नहीं होता। मेरे विश्लेषण से यह प्रदर्शित होता है कि ऊर्जा नीति को ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़े श्रम-बाजार की गतिशीलता से जोड़ा जाना चाहिए। यदि गरीब परिवार अपनी कमाई के लिए सीमांत भूमि जोत और अनिश्चित रोजगार की स्थिति पर निर्भर रहेंगे, तो परंपरागत ऊर्जा के स्थान पर आधुनिक ऊर्जा का उपयोग सीमित हीं रहेगा। घरेलू ऊर्जा प्रतिस्थापन रिक्त स्थान में संभव नहीं है। जब तक ऊर्जा नीति के द्वारा गैर-कृषि क्षेत्र में वैकल्पिक ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है और जब तक परंपरागत ईंधन हेतु बाजार के अवसर पैदा उपलब्ध रहेंगे तब तक बड़े पैमाने पर घरों के भीतर उनके प्रतिस्थापन होने की संभावना नहीं है।
नोट्स:
- बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि उत्पादों की मांग भी बढ़ गई है। परंपरागत ईंधन स्रोत कृषि उत्पादन के उप-उत्पाद हैं - वनों को साफ करके कृषि भूमि से जलाऊ लकड़ी प्राप्त होती है, डेयरी के लिए पशुपालन और कृषि कार्य से गोबर के उपले मिलते हैं, और फसलें खरपतवार छोड़ देती हैं - इसलिए ये स्रोत पर्याप्त रूप से उपलब्ध हैं।
लेखक परिचय: राहुल रंजन, नई दिल्ली स्थित, मानव विकास संस्थान में एक वरिष्ठ शोध सहयोगी हैं।




















































































