निर्वाचित नेता या नियुक्त नौकरशाह, किसके द्वारा शासित होना बेहतर है?

24 April 2025
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भारत में हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। 1993 में इसी दिन संविधान का 73वां संशोधन अधिनियम लागू हुआ था जो स्थानीय शासन को मज़बूत करता है और ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने में मदद करता है। इसी परिपेक्ष में प्रस्तुत है आज का यह लेख। राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच शासन संबंधी कार्यों और ज़िम्मेदारियों का आवंटन विभिन्न राजनीतिक सत्ताओं में अलग-अलग होता है। कर्नाटक में किए गए एक प्रयोग के आधार पर, इस लेख में एक निर्वाचित नेता बनाम एक नियुक्त नौकरशाह द्वारा शासित होने के प्रभाव की जांच की गई है। यह लेख दर्शाता है कि जहाँ एक ओर राजनेता व्यय को नागरिकों की प्राथमिकताओं के साथ बेहतर ढंग से जोड़ते हैं, और सामाजिक सहायता तेजी से प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर नौकरशाह अभिजात वर्ग के प्रभाव में कम आते हैं और विशेष कार्यों में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं।

शासन की ज़िम्मेदारियाँ अक्सर राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच विभाजित होती हैं और विभिन्न राजनीतिक सत्ताओं में यह विभाजन अलग-अलग होता है। निरंकुश शासन में नियुक्त नौकरशाह अधिकांश (लेकिन सभी नहीं) शासन कार्यों को सम्भालते हैं। दूसरी ओर, लोकतंत्र में, निर्वाचित नेता आमतौर पर व्यापक नीतिगत मापदंड निर्धारित करते हैं, जबकि नौकरशाह नीतियों को लागू करते हैं और तकनीकी भूमिकाएं निभाते हैं। फिर भी, महत्वपूर्ण भिन्नता बनी हुई है। राजनेताओं और नौकरशाहों को कौन से कार्य सौंपे जाएं, इस बारे में मार्गदर्शन प्रदान करने वाले अनुभवजन्य साक्ष्य सीमित भी हैं और आगे मिलना मुश्किल हैं, क्योंकि शासन की ज़िम्मेदारियों को पुनः आवंटित करने वाले संस्थागत परिवर्तन बड़े पैमाने पर सर्वव्यापी सुधार के रूप में होते हैं (बेस्ले एवं अन्य 2022)। उदाहरण के लिए, लोकतंत्रीकरण और विकेंद्रीकरण राष्ट्रव्यापी होते हैं और अक्सर राजनीति के आकार में परिवर्तन जैसी अन्य विशेषताओं के साथ जुड़े होते हैं।

सिद्धांत रूप में, स्थानीय रूप से निर्वाचित लोकतांत्रिक नेता अल्पावधि में भी विकास को बढ़ावा दे सकते हैं और नागरिक कल्याण में सुधार ला सकते हैं। निर्वाचित नेताओं को आम तौर पर इस बारे में बेहतर जानकारी होती है कि नागरिक किन बातों की सबसे ज़्यादा परवाह करते हैं (मार्टिनेज-ब्रावो एवं अन्य 2017, लियाकत 2020)। इसके अतिरिक्त, पुनः चुनाव का प्रोत्साहन निर्वाचित नेताओं को जवाबदेह बनाए रखने का काम करते हैं (फ़ेरेजॉन 1986, मायर्सन 1993, फ़िनान और माज़ोको 2021)। हालांकि, चुनावी प्रोत्साहन स्थानीय नेताओं (और सभी निर्वाचित नेताओं, अधिक व्यापक रूप से) को ग्राहकवाद के प्रति संवेदनशील बनाते हैं और व्यापक रूप से, लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं अभिजात वर्ग के प्रभाव के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं (एंडरसन एवं अन्य 2015, बर्धन और मुखर्जी 2000, बेस्ले एवं अन्य 2012)। इसके विपरीत, नौकरशाह उच्च प्रशासकों के प्रति जवाबदेह होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ‘क्रॉस-ज्यूरिसडिक्शन स्पिलओवर’ को प्राथमिकता दी जाती है (मायर्सन 2021)। अंत में, नौकरशाहों और राजनेताओं दोनों का विशिष्ट कौशल अलग-अलग होता है और वे अलग-अलग शासन कार्यों के लिए अलग-अलग रूप से उपयुक्त हो सकते हैं (बर्ट्रेंड एवं अन्य 2020)।

प्राकृतिक प्रयोग

हम इन परिकल्पनाओं का परीक्षण कर्नाटक में किए गए एक 'प्राकृतिक प्रयोग' (अरोड़ा एवं अन्य 2024) का लाभ उठाकर करते हैं। हम स्थानीय शासन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जिसे एक निर्वाचित ग्राम पंचायत (जीपी) परिषद1 द्वारा औपचारिक रूप से अपनाया जाता है। ग्राम पंचायत नेता को शासन के कई कार्य सौंपे जाते हैं : स्थानीय सार्वजनिक वस्तुओं का प्रावधान, कल्याण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन और संसाधनों का आवंटन। कई विशिष्ट ऐतिहासिक कारणों से कर्नाटक की ग्राम पंचायतों का चुनावी चक्र देश के बाकी हिस्सों से भिन्न है। वर्ष 2020 से पहले, ये अंतर महत्वहीन थे- ग्राम पंचायत परिषद द्वारा अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लेते ही, तुरंत एक नई परिषद का चयन करने के लिए नए चुनाव आयोजित होते थे। वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण स्थानीय चुनाव स्थगित कर दिए गए थे। राज्य सरकार ने कर्नाटक कानून का पालन करते हुए, उन ग्राम पंचायतों को संचालित करने के लिए नौकरशाहों को नियुक्त किया, जिनकी निर्वाचित परिषद ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था। इन नौकरशाहों (जिन्हें जीपी प्रशासक कहा जाता है) ने जून 2020 में कार्यभार सम्भाला और चुनाव होने तक लगभग 9-10 महीने तक शासन किया और फिर नई परिषद ने मार्च-अप्रैल 2021 में कार्यभार सम्भाला। इस स्थिति के चलते जून 2020 से मार्च 2021 के बीच शासन व्यवस्था में भिन्नता पैदा हुई- ‘ऑफ-सायकल’ जीपी का शासन निर्वाचित राजनेताओं द्वारा किया गया जबकि ‘ऑन-सायकल’ जीपी का शासन नियुक्त नौकरशाहों द्वारा किया गया- जिससे हम एक आकर्षक ‘प्राकृतिक प्रयोग’ कर पाए। हमने 6,000 से अधिक ग्राम पंचायतों से प्राप्त डेटा का उपयोग करके स्थानीय लोकतंत्र और विकेंद्रीकरण के प्रभावों पर प्रकाश डालने के लिए कई महत्वपूर्ण आयामों पर राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों द्वारा संचालित गाँवों में शासन की गुणवत्ता की तुलना की।

परिणाम

राजनेताओं द्वारा नागरिकों की प्राथमिकताओं का बेहतर प्रतिनिधित्व किया जाता है : प्रतिनिधित्व को मापने के लिए हम नागरिकों की प्राथमिकताओं को समझते हैं कि जीपी को सार्वजनिक वस्तुओं की किस श्रेणी पर खर्च करना चाहिए और विस्तृत प्रशासनिक डेटा का उपयोग करके मापते हैं कि जीपी ने वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान किन नीतिगत प्राथमिकताओं के लिए वित्तपोषण किया। हम पाते हैं कि राजनीतिज्ञों द्वारा संचालित ग्राम पंचायतों में नागरिकों की प्राथमिकताओं के अनुरूप निधि आवंटित करने की अधिक सम्भावना होती है। इसके अलावा, हम पाते हैं कि निर्वाचित नेता नागरिकों के साथ अधिक जुड़ते हैं। राजनेताओं द्वारा संचालित ग्राम पंचायतों में नौकरशाहों द्वारा संचालित गाँवों की तुलना में अधिक सार्वजनिक बैठकें आयोजित की जाती हैं- यह बात निर्वाचित नेताओं को नागरिकों के साथ अधिक विचार-विमर्श करने के लिए प्रेरित करती है और इस प्रकार की बातचीत से उन्हें नागरिकों की प्राथमिकताओं के बारे में अधिक जानने में मदद मिल सकती है।

राजनेताओं द्वारा संचालित ग्राम पंचायतें अधिक तेज़ी से सामाजिक सहायता प्रदान करती हैं : वर्ष 2020 की दूसरी छमाही में भारत एक गंभीर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से उभरा, जिसके चलते शहरी क्षेत्रों में नौकरियाँ कम हो गईं, लोगों का शहरों से गाँवों की ओर पलायन शुरू हो गया और ग्रामीण सामाजिक सुरक्षा की माँग बढ़ गई। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) इन महीनों के दौरान राहत प्रदान करने में सहायक रहा (अफरीदी एवं अन्य 2022)2। स्थानीय सरकारें लाभार्थियों को पंजीकृत करके और सार्वजनिक कार्य परियोजनाओं को शुरू करके मनरेगा का लाभ प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हम दर्शाते हैं कि राजनेताओं द्वारा संचालित ग्राम पंचायतों ने जून और दिसंबर 2020 के बीच मनरेगा के तहत अधिक सामाजिक सहायता प्रदान की। निर्वाचित-शासित ग्राम पंचायतों ने 83 दिन व्यक्ति-दिवस का अधिक काम उपलब्ध कराया और प्रत्येक महीने 1.77 अधिक नए लाभार्थियों को पंजीकृत किया। इसके विपरीत, हम पूर्व के वर्षों में मनरेगा के तहत कार्य वितरण में कोई अंतर नहीं देखते हैं, जबकि शासन व्यवस्था में कोई अंतर नहीं था।

राजनेताओं द्वारा संचालित ग्राम पंचायतें सामाजिक सहायता को अधिक तेज़ी से कैसे उपलब्ध कराती हैं? हम बस यह मापते हैं कि ग्राम पंचायत कर्मचारी अपने कार्यालय में आते हैं या नहीं। हम 2019-2021 के दौरान 108-सप्ताह की अवधि में 1,70,683 स्थानीय नौकरशाहों की उपस्थिति संबंधी विस्तृत डेटा एकत्र करते हैं। जब राजनेता ग्राम पंचायतों को नियंत्रित करते हैं तो अधिकारियों की उपस्थिति 12% अधिक होती है। इस प्रकार, राजनेता फ्रंटलाइन सरकारी कर्मचारियों को अधिक प्रयास करने के लिए प्रेरित करते हैं, जिसके कारण स्थानीय सरकार नागरिकों की ज़रूरतों पर तेज़ी से प्रतिक्रिया दे पाती है।

राजनेता नौकरशाहों की तुलना में अभिजात वर्ग के प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं : हम अभिजात वर्ग के प्रभाव के सन्दर्भ में एक प्रॉक्सी के रूप में यह मापते हैं कि क्या ग्राम पंचायत का खर्च अभिजात वर्ग की प्राथमिकताओं की ओर झुका हुआ है। हम पाते हैं कि सार्वजनिक व्यय वंचित समूहों (महिलाएं, अनुसूचित जातियाँ, ग्राम पंचायत में आनेवाले गाँवों के परिवार) की तुलना में पारम्परिक रूप से शक्तिशाली समूहों (पुरुष, उच्च जातियाँ, ग्राम पंचायत के मुख्य गाँव के परिवार) की प्राथमिकताओं के साथ अधिक ठोस रूप से जुड़ा हुआ है।

उदाहरण के लिए, नौकरशाहों द्वारा संचालित ग्राम पंचायतों में, खर्च महिलाओं की प्राथमिकताओं की तुलना में पुरुषों की प्राथमिकताओं के साथ 62% अधिक मज़बूती से सहसंबद्ध है। हालांकि, जब राजनेता व्यय आवंटित करते हैं तो ये प्रतिनिधित्व अंतर और बढ़ जाता है।3 यह व्यय अभिजात वर्ग के समूहों की प्राथमिकताओं के साथ और भी अधिक मज़बूती से सहसंबद्ध हो जाता है, जबकि वंचित समूहों को सीमित लाभ प्राप्त होता है। नौकरशाहों द्वारा संचालित ग्राम पंचायतों में लैंगिक प्रतिनिधित्व (पुरुष-महिलाएं) अंतर 62% से बढ़कर राजनेताओं द्वारा संचालित ग्राम पंचायतों में 71% हो जाता है, और हमें जाति के सन्दर्भ में भी इसी तरह के पैटर्न नजर आते हैं (जैसा कि आकृति-1 में दर्शाया गया है)। यहाँ तक कि शक्तिशाली समूहों के बीच भी, राजनीतिज्ञों द्वारा संचालित ग्राम पंचायतों में किया जाने वाला व्यय केवल ग्राम पंचायत के मुख्य गाँव में रहने वाले नागरिकों की प्राथमिकताओं के साथ अधिक सहसंबद्ध हो जाता है। इस प्रकार, निर्वाचित नेता औसतन नागरिकों की प्राथमिकताओं का बेहतर प्रतिनिधित्व करते हैं (और राजनेताओं द्वारा किसी भी समूह का खराब प्रतिनिधित्व नहीं किया जाता है), जबकि प्रतिनिधित्व लाभ मुख्य रूप से ग्राम पंचायत के मुख्य गाँव में सामाजिक रूप से लाभान्वित नागरिकों को प्राप्त होता है।

आकृति-1. शक्तिशाली समूहों की प्राथमिकताओं के आधार पर ग्राम पंचायत-व्यय में प्रतिशत अंतर

नौकरशाह अपनी विशिष्ट विशेषज्ञता के अनुरूप शासन कार्यों में राजनेताओं से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं : यह समझने के लिए कि नौकरशाहों के कौशल शासन की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं, हम (i) प्रत्येक ग्राम पंचायत प्रशासक की विशेषज्ञता और (ii) प्रत्येक ग्राम पंचायत में चल रही विकास परियोजनाओं के लिए आवश्यक कौशल की पहचान करते हैं। हम ग्राम पंचायत प्रशासक बनने से पहले नौकरशाह की नौकरी के आधार पर उसकी विशेषज्ञता को परिभाषित करते हैं। प्रशासकों की विशेषज्ञता अलग-अलग होती है क्योंकि वे ग्रामीण विकास, शिक्षा, जलापूर्ति, मत्स्य पालन, आदि जैसे कई विभागों से आते हैं। हम कर्नाटक में प्रत्येक ग्राम पंचायत द्वारा शुरू की गई सभी 14 लाख विकास परियोजनाओं के विस्तृत डेटा का उपयोग करके परियोजना के प्रकार की पहचान करते हैं और परियोजना की महत्वपूर्ण उपलब्धियों की तारीखों का उपयोग करके परियोजना कार्यान्वयन की गति को मापते हैं। हम पाते हैं कि, औसतन, राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा प्रबंधित परियोजनाएं समान गति से आगे बढ़ती हैं। हालांकि, अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में परियोजनाओं को लागू करते समय, नौकरशाह काफी बेहतर प्रदर्शन करते हैं- राजनेताओं द्वारा प्रबंधित समान परियोजनाओं की तुलना में परियोजनाओं में छह महीने की अवधि के दौरान प्रगति दर्शाने की सम्भावना 57% अधिक होती है।

राजनेता और नौकरशाह क्रॉस-ज्यूरिसडिक्शन स्पिलओवर को आंतरिक बनाने के मामले में समान रूप से कार्य करते हैं : कई परिस्थितियों में, राजनेता अपने राज्य-क्षेत्र के भीतर छोटे-छोटे क्षेत्रों से चुने जाते हैं और वे सार्वजनिक वस्तुओं की कीमत पर अपने मतदाताओं को सीमित रूप से लक्षित लाभ प्रदान करने वाली परियोजनाओं को महत्व देते हैं। हम परियोजना विवरणों में प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण तकनीकों को लागू करके मापते हैं कि प्रत्येक विकास परियोजना कितनी लक्षित है। हम अनुमान लगाते हैं कि प्रत्येक परियोजना के सम्भावित लाभार्थी प्रत्येक ग्राम पंचायत में विशेष परिवार, पड़ोस या कई इलाके हैं। इसके आधार पर, हमें कोई सबूत नहीं मिला कि राजनेताओं द्वारा संचालित ग्राम पंचायत उन परियोजनाओं पर धीमी प्रगति करती हैं जो ग्राम पंचायत के बड़े वर्ग को व्यापक लाभ प्रदान करती हैं।

राजनेता और नौकरशाह संकट प्रबंधन पर समान रूप से कार्य करते हैं : चूँकि हमारा प्राकृतिक प्रयोग महामारी के दौरान हुआ था, इसलिए हम कोविड-19 प्रबंधन पर प्रदर्शन की तुलना करते हैं। हमने पाया कि राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों द्वारा संचालित ग्राम पंचायतों में अध्ययन अवधि के दौरान महामारी से संबंधित परिणाम समान रहे: परिवारों में कोविड-19 मृत्यु दर, रुग्णता और स्व-रिपोर्ट की गई आर्थिक खुशहाली के स्तर समान रहे, तथा नागरिकों ने अपने ग्राम पंचायत की कोविड-19 प्रबंधन की गुणवत्ता का समान मूल्यांकन किया।

राजनेता और नौकरशाह समान स्थानीय आर्थिक विकास प्रदान करते हैं : हम इन दोनों परिणामों के लिए उपग्रह-आधारित मापों- विकास को दर्शाने के लिए रात की रोशनी (नाइट लाइट) और कृषि उत्पादकता को दर्शाने के लिए 'सामान्यीकृत अंतर-वनस्पति सूचकांक' (एनडीवीआई) का उपयोग करते हैं। हमें दोनों शासनों के बीच रात की रोशनी (नाइट लाइट) और कृषि उत्पादन में वृद्धि में कोई अंतर नहीं मिला। जबकि इससे पता चलता है कि राजनेता और नौकरशाह समान स्थानीय आर्थिक विकास प्रदान करते हैं, लेकिन यह बहुत सम्भव है कि हमारा प्राकृतिक प्रयोग समग्र परिणामों में परिवर्तन को मापने की दृष्टि से बहुत कम अवधि (केवल 9-10 महीने) का है।

निष्कर्ष : कार्य-स्तरीय विकेंद्रीकरण

ये परिणाम दर्शाते हैं कि नागरिक प्रतिनिधित्व और जवाबदेही के मामले में राजनेता नौकरशाहों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। दूसरी ओर, नौकरशाह अभिजात वर्ग के प्रभाव में कम आते हैं और अपनी विशेषज्ञता से जुड़े विशेष कार्यों में राजनेताओं से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। नौकरशाह और राजनेता बाहरी प्रभावों को आंतरिक बनाने, संकट प्रबंधन और स्थानीय आर्थिक विकास लाने में समान रूप से कार्य करते हैं।

हमारे निष्कर्ष मोटे तौर पर सरकार के स्थानीय स्तरों पर राजनीतिक शक्ति को विकेंद्रीकृत करने के प्रयासों के अनुरूप हैं। लेकिन, वे राजनीतिक और प्रशासनिक विकेंद्रीकरण के बीच अंतर को सामने लाते हैं। विकेंद्रीकरण को 'हाँ या नहीं' के द्विआधारी विकल्प के रूप में देखने के बजाय, नीति निर्माता कार्य-स्तर के विकेंद्रीकरण पर विचार कर सकते हैं। राजनेता ऐसे कार्यों का प्रबंधन कर सकते हैं जहाँ स्थानीय जानकारी या प्रयास की कमी है, जबकि टेक्नोक्रेट ऐसे कार्यों को सम्भाल सकते हैं जिनके लिए डोमेन विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। संस्थाओं को इस प्रकार से डिज़ाइन करना कि राजनेता और टेक्नोक्रेट उन कार्यों का प्रबंधन कर सकें जिनमें उन्हें तुलनात्मक लाभ हो, शासन में सुधार ला सकता है और नागरिकों में विश्वास बहाल कर सकता है। हालांकि व्यवहार में, सरकार के भीतर कार्यों का आवंटन अक्सर गलत होता है, क्योंकि राजनेता चुनावी लाभ के लिए विशेष कार्यों (उदाहरण के लिए, मौद्रिक नीति) को नियंत्रित करना चुनते हैं, जबकि राजनेताओं के प्रति केंद्रीकृत नौकरशाहों का संदेह उन्हें स्थानीय निर्वाचित नेताओं को अधिकार हस्तांतरित करने का विरोध करने के लिए प्रेरित करता है।

टिप्पणियाँ :

  1. भारत में स्थानीय स्वशासन की एक समृद्ध परंपरा है और कर्नाटक 1980 के दशक में इन स्थानीय निकायों के अधिदेश को औपचारिक रूप देने वाले पहले राज्यों में से एक है। यहाँ, हम ग्राम सरकारों (ग्राम पंचायत) पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जो भारतीय संविधान में 73वें संशोधन के अधिनियमन द्वारा बनाई गई पंचायत राज संस्थाओं (पीआरआई) के तहत सबसे निचले स्तर की शासन-व्यवस्था है।
  2. हम पाते हैं कि 2020 में मनरेगा के तहत कार्य की माँग पिछले वर्षों के समान कैलेंडर महीनों की तुलना में दोगुनी थी।
  3. हम सार्वजनिक वस्तुओं की एक श्रेणी पर ग्राम पंचायत-व्यय में प्रतिशत अंतर की गणना करके प्रतिनिधित्व अंतर का निर्माण करते हैं जब पारम्परिक रूप से शक्तिशाली समूह किसी वंचित समूह की तुलना में इसे पसंद करता है। उदाहरण के लिए, यदि सभी पुरुष किसी विशेष श्रेणी पर व्यय को महत्व देते हैं, तो नौकरशाह द्वारा संचालित ग्राम पंचायत उस पर 5.4% अधिक व्यय करती है। इसके विपरीत, यदि सभी महिलाएं किसी श्रेणी को महत्वपूर्ण मानती हैं, तो ग्राम पंचायत व्यय केवल 2.1% अधिक होता है, जिसका अर्थ है कि पुरुषों की प्राथमिकताओं को महिलाओं की प्राथमिकताओं की तुलना में 62% अधिक महत्व दिया जाता है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : अभिषेक अरोड़ा हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में पीएचडी शोधार्थी हैं। इससे उन्होंने पहले हार्वर्ड में प्रो. मेलिसा डेल के साथ प्री-डॉक्टरल फेलो के रूप में उन परियोजनाओं पर काम किया है जिनमें नए डेटासेट का विश्लेषण करने के लिए अत्याधुनिक प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण और विज़न तकनीकों का उपयोग होता है। सिद्धार्थ जॉर्ज नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर में सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की है। उनके शोध का प्राथमिक क्षेत्र विकास अर्थशास्त्र है और द्वितीयक क्षेत्र राजनीतिक अर्थव्यवस्था और श्रम अर्थशास्त्र हैं। निवेदिता मंथा वर्तमान में विकास अर्थशास्त्र और राजनीतिक अर्थव्यवस्था परियोजनाओं पर विश्व बैंक के साथ एक शोध सलाहकार के रूप में काम करती हैं। उन्होंने विकास अर्थशास्त्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट जिनेवा से अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की है। विजयेंद्र (बीजू) राव विश्व बैंक के विकास अनुसंधान समूह में एक प्रमुख अर्थशास्त्री के रूप में काम करते हैं। वे विकासशील देशों में अत्यधिक गरीबी के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संदर्भ का अध्ययन करने के लिए नृविज्ञान, समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के सिद्धांतों और विधियों के साथ अर्थशास्त्र में अपने प्रशिक्षण को एकीकृत करते हैं। वह सोशल ऑब्ज़र्वेटरी का नेतृत्व करते हैं, जो नागरिकों और सरकारों के बीच संवाद को बेहतर बनाने के लिए एक अंतःविषय प्रयोगशाला है। एम आर शरण मैरीलैंड विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने हार्वर्ड केनेडी स्कूल से सार्वजनिक नीति में अपना पीएचडी किया है। उनकी रुचि के मुख्य क्षेत्र विकास अर्थशास्त्र और राजनीतिक अर्थव्यवस्था हैं। वह भारत में शोध परियोजनाओं की एक श्रृंखला का हिस्सा हैं और उनका काम राज्य-नीति, राजनीति, नागरिकों और सरकार के बीच संबंधों को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास करता है।

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