भारत में अच्छी मॉनसून कृषि की उत्पादकता बड़ा देती है जिसके कारण रोजगार और वेतन भी बढ़ जाता है। क्या यह अतिरिक्त रोजगार गरीब बच्चों के मामले में उनकी स्कूली शिक्षा की कीमत पर होता है? इस लेख में पता चलता है कि बढ़ी हुई घरेलू आय से छोटे बच्चों को लाभ होता है क्योंकि उनकी मानव पूंजी पर अधिक निवेश किया जा सकता है। हालांकि वेतन बढ़ जाने के कारण बड़े बच्चों को स्कूल की पढ़ाई के बजाय घर का काम, खेत का काम, या दिहाड़ी मजदूरी का काम करना पड़ता है।
अधिक आय सामान्यतः बच्चों पर अधिक मानव पूंजी के निवेश से जुड़ी होती है (जेंसन 2000, जैकोबी एवं स्कौफियस 1997), और हम उच्च उत्पादकता और अधिक वेतन को विकासमूलक परिणामों के लिए बेहतर माना करते हैं। ग्रामीण भारत में मॉनसून से बढ़कर कृषि की उत्पादकता का कोई भविष्यवक्ता नहीं है – अच्छी बरसात तो रोजगार, आहार, और भरपूर उपज। बरसात की विफलता ज़मीन के मालिक और मज़दूरों के लिए विनाशकारी होसकती है। हालांकि, अच्छी मॉनसून का अर्थ अतिरिक्त आय ही नहीं, अतिरिक्त काम भी होता है – यहां तक कि बच्चों के लिए भी। परिवार के भूखंडों पर रोपनी, निराई-गुड़ाई, और कटाई करनी होती है, और बाजार में दिहाड़ी मजदूर का वेतन भी बढ़ जाता है। हमें जानने की उत्सुकता हुई – क्या अच्छी मॉनसून वाले वर्षों में अतिरिक्त काम गरीब बच्चों की शिक्षा की कीमत पर हो रहा है?
शैक्षिक परिणामों पर बरसात के झटकों का प्रभाव
हाल के शोध् में हमने ग्रामीण भारत में गर्भ में मौजूद बच्चों से लेकर 16 साल तक के बच्चों के शैक्षिक परिणामों पर बरसात के झटकों के प्रभाव की छानबीन की (शाह एवं स्टीनबर्ग 2017)। हमने गैर-सरकारी संगठन प्रथम द्वारा 2005 से 2009 के बीच ली गई 20 लाख से भी अधिक बच्चों की सरल साक्षरता और अंकगणित की जांच परीक्षा पर आधारित एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) से आंकड़े प्राप्त किए। इन् आंकड़ों में उन बच्चों के प्राप्तांक थे जिनका कभी भी विद्यालय में नामांकन नहीं हुआ था, जो अभी विद्यालय में भर्ती हैं, और जिन्होंने स्कूली शिक्षा छोड़ दी थी।
हमने असर के आंकड़ों का पूरे भारत के मौसम केंद्रों के वर्षापात के आंकड़ों के साथ मिलान किया। हमने वर्षापात को कृषि उत्पादकता के प्रतिनिधि के बतौर उपयोग किया है जिससे हम उत्पादकता के प्रभावों को विभिन्न स्थानों के बीच अन्य अंतरों के प्रभावों से अलग कर सकें। क्यूंकि हमारे पास हर जिले के लिए अनेक वर्षों के वर्षा के प्रेक्षण और जांच परीक्षा के प्राप्तांक के आंकड़े मौजूद हैं इसलिए हम जिले के अंदर अच्छे, खराब और सामान्य वर्षापात वाले वर्षों के बीच अंतरों को माप सकते हैं। जिला-विशिष्ट प्रभावों (कुछ स्थानों पर जांच परीक्षा के प्राप्तांक अन्य स्थानों से अधिक होते हैं) और वर्ष-विशिष्ट प्रभावों (समय के साथ जांच परीक्षा के प्राप्तांक अच्छे या खराब हो सकते हैं), दोनो का हिसाब करने के बाद हम पक्के तौर पर मानव पूंजी के निवेश पर वर्षापात के प्रभावों को अलग कर सकते हैं।
हमने पाया कि जिन बच्चों ने अपने जीवन के शुरुआती सालों में अकालों का सामना किया, जांच परीक्षा में उनके प्राप्तांक कम होते हैं और स्कूल में नामांकन की उनकी कम संभावना रहती है। यह पूर्व के साहित्य से भी मेल खाता है (मैक्किनी एवं यंग 2009, अलमंड एवं कर्री 2011)। इसके बाद के शोध् परिणाम ने हमें चकित कर दिया। वर्षापात और उसके चलते मिलने वाला वेतन अधिक होने पर थोड़ी बड़ी उम्र के बच्चों के जांच प्राप्तांक, विद्यालय में उपस्थिति और नामांकन में कमी आ जाती है। वर्षापात सकारात्मक रहने पर वेतन दो प्रतिशत बढ़ जाता है, और गणित के प्राप्तांक एक से छह प्रतिशत कम हो जाते हैं, उपस्थिति दो प्रतिशत अंक कम हो जाती है, और स्कूल में बच्चों के नामांकन की संभावना एक प्रतिशत अंक से कम हो जाती है। इसका अर्थ हुआ कि सकारात्मक वर्षापात से 5 से 16 वर्ष के बच्चों के लिए शहर और गांव के बीच नामांकन का फासला 15 प्रतिशत बढ़ जाता है।
इसकी छानबीन करने के लिए कि अपने समय का बच्चे कैसे उपयोग कर रहे हैं, हम भारत के एक अन्य बड़े सर्वेक्षण भारतीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (एनएसएस) का उपयोग करते हैं। इस सर्वेक्षण के आंकड़ों का वर्षापात के आंकड़ों के साथ मिलान करने से हमें अपनी परिकल्पना की पुष्टि करने में मदद मिलती है। हम देखते हैं कि जब वर्षा अच्छी होती है, तो बच्चों के द्वारा स्कूल को अपनी मुख्य गतिविधि बताने की संभावना कम होती है जबकि अकाल के दौरान इसकी अधिक संभावना रहती है। जब प्रचुर बारिश होती है तो उनके द्वारा दिहाड़ी मजदूर, घर पर काम (खेतों में या अन्य कार्यों में) और घरेलू काम को मुख्य काम बताने की अधिक संभावना रहती है। ऐसा लगता है जब वेतन अधिक होता है परिवार या तो बच्चों को खुद खेती के काम में लगा देते हैं या खुद काम करते समय बच्चों को अपनी जगह घर के काम में लगा देते हैं। शिक्षा की बढ़ी हुई अवसरजनित कीमत शिक्षा में निवेश करने के परिवार के फैसले को प्रभावित करता है।
दोनो को साथ मिलाकर देखने पर आरंभिक जीवन और थोड़े बड़े बच्चों से सम्बंधित परिणामों का मतलब सामने आता है। अच्छी फसल से होने वाली आमदनी और आहार की प्राप्ति उन गर्भस्थ शिशुओं, शिशुओं तथा छोटे बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होती है जिनका दिमाग अभी विकसित ही हो रहा होता है। शिशु खेतों में या घर पर मदद करने के लिहाज से बहुत छोटे होते हैं इसलिए प्रतिस्थानी प्रभाव उनके लिए प्रासंगिक नहीं है। अतः आय सम्बन्धी प्रभाव हावी होता है। बच्चे की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है, संज्ञानात्मक क्षमता के लिए तुलनात्मक पोषणजनित लाभ घटते जाते हैं, जबकि स्कूल जाना और समय लेने वाली पढ़ने जैसी अन्य गतिविधियाँ समग्र जांच प्राप्तांकों के लिहाज से महत्वपूर्ण हो जाती हैं। इसके अलावा, वे अब खेती और घर के लिए भी उपयोगी हो सकते हैं। अतः मजदूरी और मज़दूरों की मांग बढ़ने से गरीब परिवारों के लिए पढ़ाई, खेती और/ या घर के काम से पिछड़ जाती है।
नीति के लिए निहितार्थ
यह जानकारी पाकर क्या किया जा सकता है? नीति निर्माता मॉनसून पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा यह भी स्पष्ट नहीं है कि काम वेतन से जुड़े संभावित शिक्षाजनित लाभ वेतन के नुक्सान से अधिक हो जाएंगे। हालांकि वे यह तो तय कर ही सकते हैं कि आय का गरीबों के बीच पुनर्वितरण कैसे किया जाये। यह दर्शाया गया है कि भारत में मनरेगा (महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) जैसे कुछ कार्यक्रमों से गरीबों के लिए वेतन बड़ा है। घरेलू आय पर इसका वांछित प्रभाव हुआ है लेकिन इससे स्कूली शिक्षा जैसे समय लेने वाले निवेशों की अवसरजनित कीमत भी बदल सकती है। एक अलग शोध में हम ने दर्शाया है कि जिले में मनरेगा का काम शुरू होने पर 13 से 16 वर्ष के किशोर-किशोरियों के स्कूल छोड़ने की आशंका अधिक होती है और प्राप्ताँक कम होने की संभावना ज़्यादा होती है (शाह एवं स्टीनबर्ग 2015)। हालांकि कार्यक्रम चलने के समय जो बच्चे बहुत कम उम्र के थे उनके मानव पूंजी सम्बन्धी परिणामों पर कार्यक्रम का सकारात्मक प्रभाव हुआ है। जरूरी नहीं है कि ये किशोर-किशोरियां मनरेगा के तहत ही काम कर रही हों। अधिक आशंका इसकी है कि वे घर या खेती में काम के लिए वयस्कों की जगह ले रहे हों क्योंकि वयस्कों के लिए मनरेगा के तहत काम करने की संभावना बढ़ गई है। अगर गरीब किशोर-किशोरियों को स्कूल में रखना है, तो सरकारों के लिए सरल नकद अनुदानों या सशर्त कैश ट्रांसफर के जरिए उनकी आय बढ़ाने की कोशिश करना बेहतर होगा।
लेखक परिचय : मनीषा शाह यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, लॉस एंजेलेस में एसोसिएट प्रोफेससर हैं। ब्राइस मिल्लेट स्टीनबर्ग वाटसन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनैशनल स्टडीज, ब्राउन यूनिवर्सिटी में पोस्टडॉक्टोरल फैलो हैं।


































































































