शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं: भारत में पुरुषों का शौचालय स्वामित्व और उनकी शादी की संभावनाएं

30 November 2021
2
min read

निरंतर किये जा रहे अनुसंधान से पता चलता है कि परिवारों के लिए स्वच्छता निवेश में लागत एक प्रमुख बाधा रही है। मध्य-प्रदेश और तमिलनाडु में किये गए एक सर्वेक्षण के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि वित्तीय और स्वास्थ्य-संबंधी विचारों के अलावा, घर में शौचालयों का निर्माण करने के बारे में परिवारों का निर्णय इस विश्वास से प्रभावित होता है कि खुद का शौचालय होने से उनके लड़कों के लिए अच्छे जीवन-साथी खोजने की संभावनाओं में सुधार होता है।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सतत विकास के नए एजेंडे में सभी के लिए स्वच्छ पानी और स्वच्छता की पहुंच और उसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना छठे लक्ष्य के रूप में चिह्नित किया गया है। इस लक्ष्य में, केवल सामुदायिक स्वास्थ्य पर इसके अपेक्षित व्यापक प्रभाव के लिए ही नहीं, बल्कि कमजोर परिस्थितियों में महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा और उनके कल्याण पर पड़ रहे इसके संभावित प्रभाव के चलते खुले में शौच को समाप्त करना एक महत्वपूर्ण लक्ष्य निहित है।

भारत में, खुले में शौच करना आज की सबसे बड़ी स्वच्छता चुनौतियों में से एक है। हालाँकि इसमें 'सीमित' प्रगति हुई है, आंकड़े बताते हैं कि पिछले 20 वर्षों में गरीबों द्वारा खुले में शौच करने में बहुत मामूली कमी आई है। यह मानते हुए कि वर्तमान में शौचालयों का निर्माण करने वाले विशिष्ट प्रोफ़ाइल के परिवारों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, मोटे तौर पर की गई गणना से पता चलता है कि भारत सरकार को 2025 तक खुले में शौच को समाप्त करने के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 1 जनवरी 2015 से प्रति मिनट 41 शौचालय का निर्माण करना होगा।

इस कार्य की व्यापकता को देखते हुए हमारा पहला सवाल है कि स्वच्छता में सुधार के लिए क्या किया जाता है; और दूसरा, इस प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए नीतियों को कैसे तैयार किया जाए (ऑग्सबर्ग और रोड्रिग्ज-लेसमेस 2015)?

भारत के सन्दर्भ में एक लेख में, गिटेरस, लेविनसोन और मोबारक ने बांग्लादेश में किये गए एक क्षेत्र-प्रयोग के परिणामों पर चर्चा की है जिसमें स्वच्छता विपणन संबंधी नीतियों की एक श्रृंखला की जांच की गई है। वे पाते हैं कि दूसरों के लिए, निवेश की प्राथमिक बाधा शौचालयों के निर्माण में आनेवाली लागत है।

इस लेख में, हम भारत में शौचालयों के निर्माण में बढ़ोत्तरी और उनके निर्धारकों पर चल रहे अध्ययन के सारांश परिणामों के साथ पूर्व के निष्कर्षों को मिलाते हैं और उनको आगे बढ़ाते हैं। यह अध्ययन मध्य भारत के मध्य-प्रदेश राज्य में ग्वालियर शहर की शहरी झुग्गी आबादी, इस शहर के आसपास के गांवों और दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के तिरुवरूर जिले के एक ग्रामीण गांव की आबादी पर आधारित है। दो अलग-अलग अंतरालों (2009 और 2014) पर एकत्र किए गए डेटा का उपयोग करते हुए, परिवारों की विशेषताओं का उपयोग यह समझने के लिए किया गया है कि समय के साथ निजी शौचालयों के निर्माण में बढ़ोत्तरी और इसमें निवेश संबंधी निर्णयों में कौन से कारक संकेत देते हैं।

वित्तीय बाधाएं मायने रखती हैं

हमारे निष्कर्षों से प्राप्त, शौचालयों के स्वामित्व और उनके अर्जन के निर्धारक अधिकांश भाग के संदर्भ में हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप हैं। उदाहरण के लिए हम पाते हैं कि अमीर परिवारों, उच्च शिक्षा वाले परिवारों और उच्च जातियों के परिवारों के पास शौचालय होने की अधिक संभावना है। इसी प्रकार से, बचत रखने वाले और ऋण तक अच्छी पहुंच वाले परिवारों द्वारा भी स्वच्छता हेतु निवेश करने की अधिक संभावना है। तथापि इसमें दिलचस्प बात यह है कि आगे के निष्कर्ष यह भी दर्शाते हैं कि समय के साथ इन अंतरों में अधिक समावेशन की ओर एक बदलाव नजर आता है।

चित्र 1, उदाहरण के लिए, आय चतुर्थक द्वारा दो सर्वेक्षण दौरों में शौचालय रखने वाले परिवारों का प्रतिशत दर्शाता है। जबकि डेटा संग्रह के पहले दौर (हल्के भूरे रंग के बार) में हम आय में वृद्धि के साथ शौचालय स्वामित्व में बहुत स्पष्ट वृद्धि देखते हैं, दूसरे दौर में समय के साथ बदलाव हो रहा है, जिसमें गरीब परिवारों के पास शौचालय (गहरे भूरे रंग के बार) होने की सापेक्ष संभावना बढ़ रही है।

चित्र 1- शौचालय का स्वामित्व और आय

नोट: राउंड 1 में 3,196 परिवार और राउंड 2 में 3580 परिवार शामिल किये गए हैं।

कम साधनों वाले परिवारों की पहुंच का बढ़ना कम से कम आंशिक रूप से, उनकी बेहतर क्रेडिट पहुंच के कारण होने की संभावना है। हालांकि, हमारे अध्ययन डिजाइन में बाधाओं की वजह से हम इसकी एक स्पष्ट लिंक स्थापित नहीं कर पाते हैं। हमारा डेटा दर्शाता है कि- हालांकि अधिकांश शौचालयों का व्यय परिवारों द्वारा की गई बचत के माध्यम से पूरा किया जाता है– परिवारों की क्रेडिट तक पहुंच स्वच्छता में निवेश निर्णयों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

खुद का शौचालय होने से लड़कों की शादी की संभावनाएं बेहतर होती हैं

हालांकि महत्वपूर्ण, लेकिन शौचालय के स्वामित्व में वित्तीय बाधाएं केवल एकमात्र बाधा नहीं हैं। कई अध्ययन इस निष्कर्ष का समर्थन करते हैं जिनमें शामिल हैं: गिटेरस एवं अन्य द्वारा किये गए उपर्युक्त अध्ययन के अनुसार परिवारों द्वारा कम वाउचर का लिया जाना (2015), सरकारी सब्सिडी की कम उपलब्धियां, और स्वच्छता ऋण कार्यक्रमों के प्रारंभिक परिणाम (ऑग्सबर्ग और रोड्रिग्ज-लेस्मेस 2015बी)।

स्वास्थ्य संदेश के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने और मांग सृजन का पारंपरिक दृष्टिकोण परिवारों और समुदायों को खुले में शौच की प्रथा को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रेरित करने के लिए पर्याप्त नहीं लगता है। इसके बजाय हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि स्थिति और सामाजिक गतिशीलता से जुड़े संदेश दिए जाने से इनका भारत में गरीब आबादी के बीच बेहतर असर हो सकता है।

इस सन्दर्भ में और पता करने के लिए, हरियाणा सरकार द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किया गया 'शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं' जैसा अभियान एक सार्थक नीति है। इस अभियान के विश्लेषण से पता चलता है कि शौचालयों में अधिक पुरुष निवेश मजबूत स्वच्छता प्राथमिकताओं वाली महिलाओं की अधिक संख्या का परिणाम हो सकता है। इसी के अनुरूप, हमारा अध्ययन इस बात का प्रमाण प्रदान करता है कि प्रत्याशित विवाह और दुल्हनों का अपने पति के परिवार के घर में रहने के लिए जाना शौचालयों के अर्जन के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण प्रेरक कारक हैं। हम दर्शाते हैं कि ऐसे परिवार जिनमें विवाह बाजार में प्रवेश करने की करीब उम्र वाले पुरुष हैं, उनके शौचालय अर्जित करने की अधिक संभावना है।

चित्र 2 में, समय के साथ शौचालय अपनाने की दर और शौचालय अपनाने के महत्वपूर्ण निर्धारकों के रूप में हमारे द्वारा दिखाई गई अन्य पारिवारिक विशेषताओं जैसे कि बचत, आय और जाति को दर्शाया गया है। हम केवल उन परिवारों को देखते हैं जिनमें 12-24 वर्ष की आयु के लड़के हैं। चित्र 2 का बायां पैनल इस आयु वर्ग में लड़कों वाले परिवारों की शौचालय अपनाने की दर और दायाँ पैनल लड़कियों वाले परिवारों की शौचालय अपनाने की दर को दर्शाता है। जबकि विवाह-योग्य आयु की लड़कियों वाले परिवारों के शौचालय अपनाने की दर अपेक्षाकृत स्थिर है, हम विवाह-योग्य आयु के लड़कों वाले परिवारों में इसमें उल्लेखनीय वृद्धि देखते हैं।

हमारे विश्लेषण से यह पता चलता है कि विवाह-योग्य उम्र के लड़कों वाले परिवारों में, विवाह-योग्य उम्र की लड़कियों वाले परिवारों की तुलना में शौचालय में निवेश करने की औसतन 10 प्रतिशत अधिक संभावना है– इसे एक स्पष्ट संकेत के रूप में माना जा सकता है कि शौचालय में निवेश करने से विवाह बाजार के परिणामों में सुधार होता है।

चित्र 2. बच्चे की आयु और घरेलू स्वच्छता को अपनाना

नोट: (i) 11 से 24 वर्ष के बच्चों वाले परिवारों के सन्दर्भ में 90% विश्वास अंतराल के साथ स्थानीय औसत। (ii) पुरुषों के सन्दर्भ में 1,110 अवलोकन और महिलाओं के सन्दर्भ में 734 अवलोकन |

अतिरिक्त प्रमाण परिवार द्वारा स्वच्छता को अपनाने में एक प्रेरक कारक के रूप में विवाह बाजार के महत्व की ओर इशारा करते हैं। डेटा से पता चलता है कि हमारे विभिन्न अध्ययन सेटिंग्स में 80% शौचालय मालिक बताते हैं कि घर में शौचालय का निर्माण करने के बाद से समुदाय में उनकी स्थिति अच्छी हुई है। और, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं ने बताया कि स्वच्छता ने वास्तव में उनके शादी के फैसले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है- इससे हमारे इस दावे को बल मिलता है कि शौचालय में निवेश करने से लड़कों की शादी की संभावनाओं में सुधार हो सकता है।

अस्वाभाविक स्थिति का प्रतीक: सामाजिक स्थिति में होने वाले लाभ पर जोर देने से शौचालय अर्जन को बढ़ावा मिल सकता है।

कुल मिलाकर, हमारे निष्कर्ष इस विषय में निरंतर किये जा रहे अनुसंधान के अनुरूप हैं, जो यह दर्शाते हैं कि निजी शौचालयों के सन्दर्भ में तरलता की कमी बाध्यकारी और ठोस है। अतः, परिवारों में स्वच्छता कवरेज को बढ़ाने के उद्देश्य से किये जा रहे किसी भी हस्तक्षेप को चाहिए कि वह वित्तीय बाधाओं का समाधान करें।

हालाँकि, वित्तीय बाधाओं को दूर किये जाने के बाद भी परिवारों को निवेश की प्रतिस्पर्धात्मक संभावनाओं का सामना करना पड़ता है और उन्हें एक निवेश के लाभों की तुलना दूसरे प्रकार के निवेश के साथ करने की आवश्यकता होती है। हमारे प्रमाण बताते हैं कि भारतीय संदर्भ में स्वच्छता अपनाने के फैसले न केवल स्वास्थ्य संबंधी विचारों- अर्थात स्वच्छता प्रोत्साहन कार्यक्रमों के लिए विशिष्ट प्रस्थान बिंदु से प्रेरित होते हैं- बल्कि संभावित आर्थिक लाभों से भी प्रेरित होते हैं। इनमें स्व-रिपोर्ट की गई सामाजिक स्थिति, आवास मूल्य में वृद्धि शामिल है, और जैसा कि हमने इस लेख में विस्तार से चर्चा की है, उनके बेटों के लिए बेहतर विवाह मैच की संभावनाएं भी शामिल हैं।

ऐसे समाजों में जहां बड़े वित्तीय निवेश के फैसले आम तौर पर पुरुषों द्वारा किए जाते हैं, खुले में शौच को खत्म करने के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पुरुषों को स्वच्छता के लाभों के बारे में समझाना एक सार्थक नीति हो सकती है।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

लेखक परिचय: ब्रिटा ऑग्सबर्ग इंस्टीट्यूट फॉर फिस्कल स्टडीज की एसोसिएट डायरेक्टर हैं। पॉल रोड्रिग्ज लेस्म्स यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अर्थशास्त्र विभाग में एक पीएच.डी. छात्र है।

पानी और सफ़ाई व्यवस्था

Subscribe Now

Sign up to our newsletter to receive new blogs in your inbox
Thank you! Your submission has been received!
Oops! Something went wrong while submitting the form.

Related

Sign up to our newsletter to receive new blogs in your inbox

Thank you! Your submission has been received!
Your email ID is safe with us. We do not spam.