किसान क्रेडिट कार्ड कार्यक्रम – भारत में कृषि उधार में एक महत्वपूर्ण सुधार – का आरम्भ हुए लगभग 20 वर्ष हो गए हैं। हालांकि, लक्षित लाभार्थियों पर इसके प्रभाव का थोड़ा अनुभवजन्य साक्ष्य है। इस लेख में पाया गया है कि इस कार्यक्रम का कृषि उत्पादन और प्रौद्योगिकी अपनाने पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसका संभावित कारण यह है कि कृषि ऋण की पहुँच के विस्तार के बजाय पहले से ही कृषि ऋण तक पहुँच वालों की उधार लेने की क्षमता बढ़ गई है।
भारत में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) कार्यक्रम का आरंभ 1998 में हुआ था और तबसे आज तक यह काफी अच्छे ढंग से चल रहा है। लगता है कि गत डेढ़ दशक से नीति निर्माताओं ने इसे पदंदीदा कार्यक्रम के रूप में लिया है और देश में कृषि ऋण में सुधार के बतौर इसे व्यापक स्वीकृति प्राप्त है। हालांकि कार्यक्रम की सफलता और इच्छुक लाभार्थियों अर्थात किसानों और ग्रामीण परिवारों के उपर इसके प्रभाव को लेकर बहुत कम अनुभव-सिद्ध साक्ष्य मौजूद हैं। मेरे हाल के अध्ययन में इस नीति पर शोध् में इस कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है।
पृष्ठभूमि
कार्यक्रम की घोषणा सबसे पहले 1998 में भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री के बजट भाषण में की गई थी और सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) तथा नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक) के संयुक्त प्रयासों के फलस्वरूप यह चलन में आया। आरंभ के एक वर्ष के अंदर ही लगभग 40 लाख किसान कार्ड जारी किए गए। कार्यक्रम शुरू होने के कुछ सालों के अंदर कुल कृषि ऋण में इसका हिस्सा लगभग 71 प्रतिशत हो गया और लगभग 5,000 करोड़ रु. का ऋण वितरण किया गया। (भारतीय योजना आयोग, 2002)
आरंभ में किसान क्रेडिट कार्ड बैंक से ऋण प्राप्त करने की सुविधा मात्र था जिसमें किसानों को नकद निकालने के लिए किसी बैंक की शाखा में जाना पड़ता था और उसका अपने विवेक से उपयोग करना होता था। अतः ‘क्रेडिट कार्ड’ एक हद तक अपने नाम को चरितार्थ नही करता था। हाल के वर्षों में यह पूर्ण रूप से क्रेडिट कार्ड में बदल गया है जिसमें एटीएम से निकासी और किसी विक्रय बिंदु (पॉस) पर स्वाइप करने की क्षमता भी जुड़ गई है। इसके पीछे यह विचार था किसानों को पात्राता संबंधी सरल मानकों और मॉनीटंरिग संबंधी अपेक्षाकृत लचीले मापदंडों के जरिए पूरे देश में इस कार्ड का उपयोग करके ऋण प्राप्त हो, और कम ब्याज दर वाला सस्ता ऋण प्राप्त हो। स्पष्ट है कि नीति का लक्ष्य गरीब किसानों के लिए ऋण संबंधी अवरोधें को दूर करना और पहले से अवरोध्रहित ऋण संबंधी विकल्पों का विस्तार करना था।
नाबार्ड की एक रिपोर्ट में समांतरा (2010) ने बताया है कि कैसे किसान क्रेडिट कार्ड के पहले कृषि में ऋण लेने और देने के मामले में बहु-स्तरीय प्रक्रिया के चलते किसान नौकरशाही के चंगुल में फंस जाते थे। मेरी जानकारी में किसान क्रेडिट कार्ड के एकमात्र अन्य मूल्यांकन में अपने 2012 के इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर (आइजीसी) के कार्यपत्रक (वर्किंग पेपर) में अरींदम चंदा ने 1998 के बाद के आंकड़ों का विश्लेषण किया है, उन्हें राज्य या जिला स्तर की कृषि उत्पादकता पर इस नीति के किसी प्रभाव का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
मुख्य गौरतलब बात यह है कि क्रेडिट कार्ड के ऋण की जैसी प्रकृति है उस लिहाज से किसान क्रेडिट कार्ड औपचारिक बैंक ऋण हैं। बैंक किसान क्रेडिट कार्ड की विभिन्न सुविधाओं में से तुलनात्मक रूप से चयन कर सकते हैं। कार्ड सामान्यतः तीन साल के लिए वैध् होते हैं जिसमें ऋणों की सफल अदायगी पर नवीकरण की संभावना भी शामिल होती है। अदायगी का चक्र सामान्यतः फसल चक्र के अनुरूप होता है (अधिकांश फसलों के लिए एक वर्ष ईख के लिए 18 महीने)। मूल रूप से एक क्रेडिट कार्ड होने के नाते किसानों के लिए फसल ऋण के इस नए स्वरूप की निगरानी के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं है और जब तक अदायगी में कोई चूक नहीं हो, तब तक बैंक इन कार्डो का नवीकरण आसानी से करते रहते हैं। अतः, जहां इन कार्डों का मकसद संभवतः गरीब किसानों को आवश्यक निवेश करके कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए सक्षम बनाने हेतु ऋण पाने में अवरोधों को दूर करना था, व्यव्हार में वे अपने खपत सम्बन्धी खर्चों को ही बदल सके हैं। इन आंशकाओं के चलते हाल की मीडिया की रिपोर्टों में किसान क्रेडिट कार्ड के मामले में चूक करने वालों पर अधिक ब्याज दर लगाने का सुझाव दिया गया है और तथ्य यह है कि ये बैंकों के लिए गैर-निष्पादक सम्पत्तियों (एनपीए) के बड़े स्रोत बनते जा रहे हैं।
कृषि में उत्पादन और प्रौद्योगिकी अपनाने पर प्रभाव
वर्ष 1986 से 2011 तक के जिला-स्तरीय आंकड़ों का उपयोग करके मैंने पाया कि कम एक्सपोजर वाले जिलों की अपेक्षा अधिक एक्सपोजर वाले जिलों में चावल का उत्पादन लगभग 88,000 टन (अर्थव्यवस्था में औसत उत्पादन का लगभग 33 प्रतिशत) बढ़ा है। संभव है कि किसान क्रेडिट कार्ड के पहले ऋण सम्बन्धी बाधओं के चलते उत्पादन बढ़ाने वाली कुछ लागत सामग्रियों का उपयोग नहीं किया जा रहा हो। समर्थक साक्ष्य के बतौर मैने पाया कि उच्च उपज दर वाली किस्मों के बीजों के उपयोग वाली खेती का क्षेत्रफल कार्यक्रम के एक्सपोजर वाले जिलों में काफी बढ़ा।
ऋण ग्रहण पैटर्न पर प्रभाव
मैंने उक्त बातों के पूरक के बतौर भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (आइएचडीएस) (2004-2005) के आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि ऋण लेने की पसंद, ऋण की कुल रकम, या ऋणदाता (बैंक/ अन्य) के चयन के मामले में अधिक एक्सपोजर वाले क्षेत्र कम एक्सपोजर वाले क्षेत्रों से भिन्न नहीं हैं। यह बताता है कि किसान क्रेडिट कार्डों के कारण ऋण के मामले में संभवतः नई पहुंच नहीं बनी। किसान क्रेडिट कार्ड रखने वाले परिवारों को कम संख्या में लेकिन अधिक रकम वाले ऋण मिले। अतः, इसकी संभावना नहीं है कि ऋण सम्बन्धी बाधाओं में कमी आई लेकिन यह संभव है कि पहले से ही ऋण के मामले में बाधारहित परिवारों ने ऋण के अन्य स्रोतों की जगह इस सस्ते विकल्प का उपयोग किया। उन लोगों ने बड़ी मात्रा में ऋण लेना शुरू किया जिसके कारण ऋणों की संख्या घट गई लेकिन उनकी रकम बढ़ गई। इसी की दिशा में मैंने यह भी पाया कि बैंकों से पहले से ही ऋण पाने वाले परिवारों के लिए उक्त प्रभाव काफी बढ़ गए हैं जो ऋण के ‘विस्तार’ के पक्ष में और ऋण तक ‘पहुंच’ के विरोध् में एक और साक्ष्य देते हैं।
निष्कर्षमूलक विचार
इस नीति के कल्याण सम्बन्धी निहितार्थ संदिग्ध् बने हुए हैं और इस पर निर्भर हैं कि ऋण के ‘विस्तार’ की तुलना में ऋण तक ‘पहुंच’ को प्राथमिकता दी जानी चाहिए या नहीं। किसी भी चैनल से क्यों नहीं हो, लेकिन इस कार्यक्रम के कारण कृषि उत्पादन बढ़ा इसलिए क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में समग्रतः सुधार हुआ। इसके कारण हम एक अन्य संभावित चैनल – किसानों की जोखिम लेने की क्षमता में वृद्धि – के बारे में अनुमान लगाते हैं: अगर किसान क्रेडिट कार्डों को किसान आय सम्बन्धी झटकों के मामले में बीमा के रूप में देखते हैं, तो वे निवेश बढ़ा सकते हैं और फलतः अधिक उत्पादन हो सकता है हालांकि इस निवेश में वृद्धि से ऋण लेने की संभवना बढ़ती नहीं दिखती है। किसानों के लिए झटकों से बचने के लिए बचत करने की बाध्यता घटी है क्योंकि जरूरत पड़ी तो किसान क्रेडिट कार्ड खपत को सुगम बनाने में भी मदद कर सकते हैं।
लेखक परिचय: सोमदीप चैटर्जी इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट (आईआईऍम) लखनऊ में असिस्टैंट प्रोफेसर हैं।















