गरीबी तथा असमानता

कोविड-19: भारत की झुग्‍गी-बस्तियों में स्वास्थ्य तथा आर्थिक प्रभाव

  • Blog Post Date 16 जून, 2021
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प्रारंभिक अनुमानों में यह कहा गया था कि कोविड-19 से झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोग सबसे बुरी तरह प्रभावित होंगे क्‍योंकि वे अत्‍यधिक घनी बसी आबादी में रहते हैं, वहां साझा नल होते हैं और वहां सामाजिक दूरी का पालन करना असंभव होता है। इस लेख में, डाउन्स-टेपर, कृष्णा और रेन्‍स, इन कमजोर समुदायों पर महामारी के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों का पता लगाने, और इससे निपटने के लिए निवासियों द्वारा समय के साथ अपनाई गई रणनीतियों को समझने के लिए, बेंगलुरु और पटना में 40 झुग्गी-बस्तियों में सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हैं।

 

विशेषज्ञों द्वारा प्रारंभिक अनुमानों में यह कहा गया था कि कोविड-19 से झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोग सबसे बुरी तरह प्रभावित होंगे क्‍योंकि वे अत्‍यधिक घनी बसी आबादी में, जहाँ साझा नल होते हैं, रहते हैं, और वहां सामाजिक दूरी का पालन करना असंभव होता है। इसके अलावा, पिछले एक दशक में झुग्गी-बस्तियों पर किए गए हमारे स्वयं के शोध, इस बात को रेखांकित करते हैं कि यह आबादी आर्थिक रूप से कितनी कमजोर है, और इन झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले कई लोगों को केवल एक बीमारी उन्‍हें दीर्घकालिक गरीबी में धकेल सकती है (कृष्णा 2017, रेन्‍स और कृष्णा 2020)।

नए आईजीसी शोध के अंतर्गत, हम भारत में झुग्गी-बस्तियों में महामारी के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों दोनों का पता लगाना चाहते हैं तथा इन बस्तियों में रहने वाले लोगों द्वारा समय के साथ इन प्रभावों से निपटने के लिए तैयार की गई रणनीति को समझना चाहते हैं (डाउन-टेपर, कृष्णा और रेन्‍स 2021)। हमने जुलाई-नवंबर 2020 के दौरान बेंगलुरु और पटना शहरों में 37 से 3,000 परिवारों वाली 40 झुग्गी-बस्तियों में 120 प्रमुख सूचना प्रदाताओं1 के साथ बार-बार फोन साक्षात्कार किए। हमने इन दोनों शहरों में से प्रत्‍येक में 20 झुग्गी-बस्तियां चुनीं जहां रहने की परिस्थितियां अलग-अलग थीं, और जहां हम पूर्व में प्रतिनिधि घरेलू सर्वेक्षण कर चुके थे। प्रमुख सूचना प्रदाताओं के साथ लगभग हर दो सप्ताह में फोन साक्षात्कार के माध्यम से, हमने इन झुग्गी-बस्तियों में वायरस के फैलाव और इससे संबंधित लॉकडाउन की लगभग वास्तविक समय की धारणाओं का रिकॉर्ड एकत्र किया। आधारभूत विशेषताओं की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ आस-पास में महामारी की पहली बड़ी लहर के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों का पता लगाने के लिए हमने महामारी से पहले एकत्र किए गए व्यापक घरेलू सर्वेक्षण डेटा और प्रमुख सूचना प्रदाताओं द्वारा बार-बार दी गई सूचनाओं को एकत्रित किया।

झुग्गी-बस्तियां महामारी आने से पहले ही कमजोर थीं

हम जिन झुग्गी-बस्तियों के निवासियों का अध्ययन करते हैं, उनमें से कई लोग गरीबी की गहरी दलदल में हैं। महामारी से पूर्व के हमारे सर्वेक्षणों से पता चलता है कि उनमें से अधिकांश लोगों का जन्म और पालन-पोषण उसी शहर में हुआ था, जिसमें वे अभी रहते हैं। वे नौकरानियों, ऑटो-रिक्शा चालकों, नलसाज, इलेक्ट्रीशियन, मोबाइल फोन की मरम्मत करने वाले, सब्जी बेचने वाले आदि के रूप में काम करते हैं। हमने जिन 40 झुग्‍गी-बस्तियों का सर्वेक्षण किया, उनमें 80% से अधिक उत्तरदाताओं ने बताया कि वे तीन या उससे भी अधिक पीढि़यों से वहां रह रहे हैं, और वे थोड़ा-बहुत ऊपर उठे हैं। आधे से अधिक लोग वही काम करते हैं जो उनके माता-पिता करते थे।

इसके अलावा, यहां के निवासियों की कमजोरी पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण और बढ़ जाती है, जिसमें भीड़भाड़ है तथा पानी व स्वच्छता तक उनकी पहुंच अपर्याप्त है। यहां के निवासियों को आधिकारिक सार्वजनिक सहायता और बुनियादी ढांचे तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। हमारे सर्वेक्षणों से पता चलता है कि अत्‍यधिक आवश्यकता के बावजूद, 40% झुग्‍गी निवासियों के पास इस महामारी से पहले राशन कार्ड नहीं थे, और केवल 34% के पास पीने के पानी के कनेक्शन थे। केवल एक तिहाई से थोड़े अधिक लोगों ने प्राथमिक विद्यालय तक पढ़ाई की थी, और केवल 6% के पास लिखित अनुबंध और वैधानिक लाभों के साथ नौकरी थी। यह अनिश्चितता भारत में महामारी आने से पहले की थी।

झुग्‍गी बस्‍ती समुदाय (आरंभ में) सबसे खराब स्थिति वाले संक्रमण के डर से बच गए

महामारी की पहली बड़ी लहर में नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों के साथ आशा की एक किरण भी नजर आई। प्रारंभ में, विशेषज्ञों ने विकासशील देशों में खराब स्वास्थ्य प्रणालियों और जनसंख्या जोखिम के कारण उच्च प्रत्याशित मृत्यु दर के साथ एक भयानक तस्वीर की भविष्यवाणी की थी। इन आशंकाओं के विपरीत, हमारे अध्ययन में ज्ञात हुआ कि पटना में जांच की गई झुग्गी-बस्तियों में लगभग कोई मौत नहीं हुई, और बेंगलुरु में केवल छह झुग्गी-बस्तियों में कुछ मौतें हुई हैं (आकृति 1)। इसी प्रकार अस्पताल में भर्ती होने वाले गंभीर संक्रमण के उदाहरण भी बहुत कम थे। हमारे निष्कर्ष भारत की उस सार्वजनिक रिपोर्टिंग के अनुरूप हैं जिसमें यह बताया गया कि पहली लहर के दौरान अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में गंभीर संक्रमण की दर कम थी, भले ही वायरस व्यापक रूप से फैल गया प्रतीत हुआ (मोहनन एवं अन्‍य 2021)। रोग के प्रसार के बारे में कई संभावित स्पष्टीकरण शहर के भीतर और बाहर इन अंतरों की व्याख्या करने में विफल रहे। जबकि कुछ ने अनुमान लगाया है कि जनसंख्या की आयु, या जलवायु में अंतर रोग की घटनाओं में अंतर को समझा सकता है परंतु शहरों में न तो निवासियों की आयु और न ही मौसम में कोई बड़ा अंतर है (नॉर्डलिंग 2020, मेकेनास एवं अन्‍य 2020)। हमें इन कोविड-19 समूहों और कुछ कारको जैसे शौचालय या पानी के पंप जैसी साझा सुविधाओं का उपयोग, झुग्गी में परिवारों की संख्या, शहर के केंद्र या एक दूसरे से निकटता, या निवासी जनसांख्यिकी के बीच भी कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं मिला।

आकृति 1. प्रमुख सूचना प्रदाताओं द्वारा रिपोर्ट की गई मौतें (कोविड-19 के कारण कुल और प्रतिशत), शहर के अनुसार (औसत प्रति झुग्‍गी बस्‍ती)

आकृति में आए शब्दों/वाक्यांशों का हिंदी अनुवाद :

Bengaluru : बेंगलुरु

Patna : पटना

महामारी से संबंधित लॉकडाउन ने दोनों शहरों में कमजोर समुदायों को तबाह कर दिया

हालांकि, पहली लहर के दौरान स्वास्थ्य के मामले में जो अच्छी स्थिति थी वह आर्थिक क्षेत्र के मामले में नहीं है। दोनों शहरों में उत्तरदाताओं ने बताया कि आर्थिक लॉकडाउन के परिणामस्वरूप उनकी आजीविका पर गंभीर और लगातार झटका लगा है। आजीविका का झटका अचानक था: कोविड-19 लॉकडाउन शुरू होने के पहले महीने में, हमारे प्रमुख सूचना प्रदाताओं के अनुमान के अनुसार बेंगलुरु में लगभग आधे और पटना में 80% से अधिक परिवारों के मुखियाओं ने अपनी आय का प्राथमिक स्रोत खो दिया। यह झटका लंबे समय तक भी चलने वाला था: नवंबर तक, बेंगलुरु में महामारी से पहले की आय की एक-चौथाई और पटना में एक-तिहाई आय अभी तक वापस अर्जित नहीं की जा सकी थी (आकृति 2)। उत्तरदाताओं ने महामारी से पहले की तुलना में कम कार्य दिवस और प्रति दिन कम मजदूरी दरों की सूचना दी।

आकृति 2. शहर के अनुसार, महामारी से पूर्व की आय का अनुमानित प्रतिशत जिसे वापस अर्जित नहीं किया जा सका

आकृति में आए शब्दों/वाक्यांशों का हिंदी अनुवाद :

Mid to late July : मध्य जुलाई से जुलाई के अंत तक

Early to mid-August: अगस्त की शुरुआत से अगस्त के मध्य तक

Mid to late August : मध्य अगस्त से अगस्त के अंत तक

Early to mid-September : सितंबर की शुरुआत से सितंबर के मध्य तक

कुछ मामलों में जिस समय परिवारों की आय में गिरावट आई उसी समय उनके व्यय में वृद्धि हुई। सरकारी अस्पतालों को कोविड-19 उपचार वार्ड में बदलने का अर्थ यह था कि निवासियों की गैर-कोविड चिकित्सा जरूरतों को पूरा करने के लिए केवल महंगे निजी अस्पताल ही उपलब्ध थे। कोविड-19 के कुछ संदिग्ध मामलों में, परीक्षण की आवश्यकता थी, जिसके कारण बिल बढ़ गए, एक उदाहरण में जब क्‍वारंटाइन की जरूरत थी तो यह बिल दो महीने के वेतन के बराबर पहुंच गया था। सार्वजनिक परिवहन के बंद हो जाने के कारण लोगों पर एक बड़ा आर्थिक बोझ आ गया जिसमें वे या तो निजी परिवहन की व्‍यवस्‍था करें या नौकरी छोड़ दें। इसका सामना करने के लिए, निवासियों ने भोजन में कटौती की, क़ीमती सामान बेचा, और पैसे उधार लिए (आकृति 3, पटना पर केंद्रित)। वास्तव में, हमने पाया कि सबसे अधिक कमजोर क्षेत्रों में पहले से ही पड़ रहे गंभीर प्रभाव और भी बदतर हो गए थे। उदाहरण के लिए, उन क्षेत्रों में जहां निवासियों के पास महामारी से पहले बचत का स्‍तर बहुत कम था, परिवारों ने उन पड़ोसियों जिनके पास महामारी से पहले बचत का स्‍तर ऊंचा था, की तुलना में भोजन पर अधिक कटौती की।

आकृति 3. समय के अनुसार पटना में सामना करने का व्यवहार और सहायता

टिप्‍पणी : आकृति पटना के आस-पास के प्रतिशत को दर्शाता है जिसमें कम से कम 10% निवासियों ने भोजन, उधार आदि में कटौती की सूचना दी है।

आकृति में आए शब्दों/वाक्यांशों का हिंदी अनुवाद :

Cut back on food - भोजन में कटौती

Borrow - उधार

Liquidating - तरलीकरण/विक्रय करना

Received assistance - सहायता मिली

Accessed Ration - राशन प्राप्त किया

भारत की झुग्‍गी-बस्तियों के लिए नीतिगत समर्थन का महत्व

हाँलांकि महामारी ने मौजूदा भेद्यता को बढ़ा दिया है, झुग्गियों की कमजोरी कोविड-19 से काफी पहले की है। विशेष रूप से हाल ही में आई नई बड़ी लहर की प्रतिक्रिया में, होनेवाली परेशानी को कम करने के लिए तुरंत और सतत नीतिगत हस्तक्षेप आने चाहिए। हाल में, झुग्गी-बस्तियों के निवासियों, जिन्होंने अपनी छोटी बचत को खर्च किया, थोड़ी बहुत परिसंपत्ति को नकदी में बदल लिया, या उधार लिया है उन्‍हें तत्काल और नियमित सहायता की आवश्यकता है ताकि वे ऋण चुकाने के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के गहरे दलदल में न फंसें ।

लंबी अवधि में, इसी तरह के भविष्य के संकटों को रोकने के लिए उसी संस्थागत समर्थन की आवश्यकता है, जिसे हम लोगों को जोखिमों से बचाने के लिए की जाने वाली मदद के रूप में जानते हैं। इनमें कार्यस्थल सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा और वृद्धावस्था सहायता शामिल हैं। सामाजिक सहायता के इन रूपों के अलावा, शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और उद्यमिता के माध्यम से लोगों की मदद करने के लिए निवेश किया जाना चाहिए। कोविड-19 और इससे जुड़े लॉकडाउन एक संकट थे, और हैं लेकिन वे मौजूदा कमजोरी को भी दर्शाते हैं जिसे नीति द्वारा हल किया जाना चाहिए।

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टिप्‍पणी:

  1. प्रमुख सूचना प्रदाता वे हैं जिन्हें महामारी से पहले के हमारे सर्वेक्षणों के दौरान उनके पड़ोसियों द्वारा क्षेत्र के नेताओं और/या उनके समुदायों के बारे में विशेष रूप से जानकार के रूप में नामित किया गया था।

लेखक परिचय: हार्लन डाउन्स-टेपर ड्यूक यूनिवर्सिटी में एक पीएच.डी. छात्र है | अनिरुद्ध कृष्णा ड्यूक यूनिवर्सिटी में सार्वजनिक नीति और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं । एमिली रेन्स अगस्त 2021 में लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य करना शुरू करेंगी।

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