गरीबी तथा असमानता

ड्यूएट: छोटे शहरों के सार्वजनिक कार्यों में रोजगार कार्यक्रम

  • Blog Post Date 24 सितंबर, 2020
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Pranab Bardhan

University of California, Berkeley

bardhan@econ.berkeley.edu

भारत के शहरों में, विशेषकर देश में युवाओं की बढ़ती हुई आबादी के बीच, बेरोजगारी एवं कम नियुक्तियों को देखते हुए प्रणब बर्धन शहरों के सार्वजनिक कार्यों में रोजगार कार्यक्रम की आवश्यकता पर बल देते हैं। उनके अनुसार वह कार्यक्रम समावेशी, स्थानीय सरकार के नियंत्रण वाला, तथा छोटे नगरों में पर्यावरण एवं स्वास्थ्य लक्ष्यों की पूर्ति करने वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता देने वाला होना चाहिए। 

कई वर्षों से मैं भारत के शहरों में, विशेषकर देश में युवाओं की बढ़ती हुई आबादी के बीच, बेरोजगारी एवं कम नियुक्तियों की गंभीर समस्या के बारे में बहुत चिंतित रहा हूँ। भारत के कई शहरी इलाकों में अपराध, हफ्ता-वसूली और मॉब लिंचिंग की घटनाओं की बारंबारता इसकी विस्फोटक क्षमता को झलकाते हैं। 2017 से मैंने इस विषय पर कुछ संपादक-सम्मुख लेख लिखे हैं जिनमें नीतिगत उपाय सुझाए हैं जैसे (ए) शहरों की सार्वजनिक कार्यों में रोजगार कार्यक्रम तथा (बी) औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में वेतन में सब्सिडी। महामारी जनित इस कड़े लॉकडाउन ने इन समस्याओं और नीति की तत्काल जरूरतों की तस्‍वीर को बेशक, और भी गहरा बना दिया है। सरकार ने कुछ छुटपुट राहत उपाय किए हैं, परंतु वह भी शहरी इलाकों की अपेक्षा ग्रामीणों के लिए अधिक हैं। तुरंत उभरी हुई समस्याओं के अलावा भी ऐसी कई आम समस्याएं हैं जो हमारे साथ वर्षो तक रहेंगी। अतः मैं, सामान्य रूप से और उत्साहपूर्वक ‘ज्यां के ड्यूएट प्रस्ताव’ का समर्थन करता हूँ।

ज्यां द्रेज के प्रस्ताव में संभावित संशोधन या विस्तार के लिए मेरे कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:- 

  1. अनुमोदित सार्वजनिक संस्थानों एवं अनुमोदित परियोजनाओं (समयबद्ध अनुमोदन प्रक्रिया सहित) को जॉब स्टैम्पों का वितरण राज्य सरकार की बजाय संभवत: हर इलाके की स्थानीय सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। स्‍थानीय सरकारों के पास अधिक जानकारी (संस्थानों और उनकी परियोजनाओं के बारे में) के साथ उनकी अधिक जवाबदेही भी होगी – कम से कम स्‍थानीय लोगों को यह तो पता रहेगा कि धोखा-धड़ी के मामले में किसके खिलाफ और कहाँ शिकायत करनी है अर्थात, यदि जरूरत पड़ी, तो वे स्‍थानीय निर्वाचित उम्‍मीदवारों के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं। संस्‍थानों एवं परियोजनाओं की मंजूरी हेतु स्‍थानीय सरकार, वॉर्ड समितियों और स्‍थानीय एनजीओ (गैर सरकारी संगठनों) को शामिल कर सकती है, या उनसे परामर्श ले सकती है।
  2. पूर्ण हुई परियोजनाओं की यादृच्छिक रूप से सार्वजनिक जांच होनी चाहिए तथा परिणामों को तुरंत एवं व्‍यापक रूप से प्रसारित किया जाना चाहिए, जिसमें जानबूझकर ढिलाई या रिश्‍वतखोरी के लिए दंड का प्रावधान हो।
  3. ज्यां का प्रस्‍ताव भारत के समस्‍त शहरी इलाकों के लिए है। मेरा सुझाव है कि शुरूआत में महानगरीय शहरों को छोड़कर (जहां पर भीड़-भाड़ बढ़ने का कोई भी संभावित प्रभाव अधिक गंभीर होगा) कार्यक्रम को बहुत से छोटे नगरों तक सीमित रखा जाए (जहां पर सार्वजनिक अवसंरचनाएं महानगरों से भी बद्तर हैं)।
  4. परियोजनाओं पर निर्णय लेने के लिए हमें इन चीजों को प्राथमिकता देनी चाहिए - (i) विशेषकर श्रम-प्रखर परियोजनाएं, तथा ऐसी परियोजनाएं जो (ii) पर्यावरण एवं (iii) स्‍वास्‍थ्‍य लक्ष्‍यों की पूर्ति करती हों। उदाहरणार्थ (क) सड़क निर्माण तथा मरम्मत, सार्वजनिक आवास का निर्माण, इत्यादि जैसी निर्माण परियोजनाएं, (ख) कचरा छांटना तथा उसे रीसाइकल करना, आस-पास के सार्वजनिक स्‍थानों एवं उद्यानों की मरम्‍मत, सामूहिक यातायात का निर्माण, सोलर सेल की फिटिंग, जलाशयों का पुन: निर्माण एवं सफाई, वर्षा जल संचयन, इत्‍यादि (ग) मच्‍छर मारने की दवा का छिड़काव, गटर के नालों को ढकना, सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण (विशेषकर झुग्‍गी-झोपडि़यों में), प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों हेतु स्टाफ़, अधिक संख्‍या में आशा कार्यकर्ताओं (अधिकृत सामाजिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता) को मजदूरी पर रखना।
  5. श्रमिकों का पंजीकरण करने तथा उन्‍हें जॉब कार्ड देने के लिए किसी व्‍यक्ति को समवेशी होना होगा, न कि बहिष्कार करने वाला। शहरी निवास के किसी भी सबूत, मुख्य तौर पर प्रवासियों के मामले में सुवाह्य राशन कार्ड को स्‍वीकार किया जाना चाहिए। अगर कोई मनरेगा (महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार आश्‍वासन अधिनियम) और ड्यूएट, दोनों ही योजनाओं के तहत लाभ उठाने (रोजगार प्राप्त) की कोशिश करेगा, तो मैं इस बात से ज्यादा चिंतित नहीं होने वाला। मजदूरों की जाली सूची ज्‍यादा बड़ी समस्या है, परंतु वहीं दंड के प्रावधान सहित यादृच्छिक जॉंच की प्रक्रिया बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। मेरा मानना है कि ऐसे ‘स्‍मार्ट’ जॉब कार्ड की व्‍यवस्‍था करना बहुत कठिन कार्य नहीं होगा जिसमें भुगतान की सारी जानकारी पंजीकृत होगी, बेशक उसमें वार्षिक सीमा होगी।
  6. मुझे लगता है कि हमें ड्यूएट के दो प्रकार के कार्यों में अंतर रखना चाहिए - मुख्‍य रूप से शारीरिक श्रम से किए जाने वाले अकुशल कार्य, तथा निम्‍न-कुशल या अर्धकुशल कार्य। उदाहरणार्थ, उपर्युक्‍त उद्धृत परियोजनाएं, जैसे स्‍वास्‍थ्‍य कार्य या सोलर सेल की फिटिंग या निर्माण संबंधी कुछ चिनाई के कार्यों में कुछ कौशल की आवश्‍यकता होगी। मेरा सुझाव है कि मुख्‍य रूप से शारीरिक श्रम वाले कार्यों के लिए प्रचलित न्‍यूनतम वेतन दरों के हिसाब से भुगतान किया जा सकता है, और निम्‍न-कुशल कार्यों के लिए न्‍यूनतम वेतन से थोड़ा अधिक भुगतान किया जा सकता है (यदि उस कौशल हेतु कोई प्रचलित न्‍यूनतम वेतन दर उपलब्‍ध नहीं है तो) जिसका प्रतिशत पहले ही निर्धारित किया जाए, परंतु वह न्‍यूनतम वेतन दर से बहुत अधिक नहीं होना चाहिए। आपको पहले से ही नौकरी पेशा व्‍यक्तियों के आहरण की आवश्‍यकता नहीं है।
  7. यदि सांठ-गांठ की संभावना को कम करना हमारा उद्देश्‍य है, तो ‘नियोक्‍ता एजेंसी’ स्‍वतंत्र होनी चाहिए और स्‍वतंत्र दिखनी भी चाहिए। (यदि यह पूर्णत: प्रशासनिक निकाय नहीं है, तो संभवत: स्‍थानीय सरकार में सत्‍ता पक्ष और विपक्ष, दोनों पक्षों द्वारा नामित व्‍यक्तियों को एजेंसी में शामिल किया जा सकता है।) 
  8. फिलहाल के लिए, इसकी निधि मुख्‍यत: केंद्र सरकार से (संभवत: वित्‍त आयोग के माध्‍यम से) जारी की जानी चाहिए और यह सीधी स्‍थानीय सरकार को सौंपी जानी चाहिए। अंतत: स्‍थानीय संपत्ति कर प्रणाली (जो वर्तमान में अल्‍प-आंकलन एवं भ्रष्‍टाचार की मार झेल चुकी है) की लंबे समय से बकाया, संपूर्ण जांच होनी चाहिए, और इसके दायित्‍व को बढ़ाने हेतु, ड्यूएट को, स्‍थानीय संपत्ति कर में से वित्‍त-पोषित किया जाना चाहिए (स्‍थानीय संपत्ति के मूल्‍य ड्यूएट के अंतर्गत सफल सार्वजनिक कार्यों की बदौलत बढ़ेंगे)। यदि स्‍थानीय लोगों की कर-राशि का गबन किया गया या गलत इस्‍तेमाल किया गया तो वे संभवत: आवाज़ उठाएंगे, और यह स्‍थानीय राजनेताओं के भावी चुनाव पर भी असर डाल सकता है। 
  9. शहरी रोजगार आश्‍वासन की घोषणा करने में कई व्‍यावहारिक-राजनीतिज्ञ समस्‍याएं हैं। मैं ड्यूएट के लिए उनको शामिल नहीं करना चाहूँगा, कम से कम आगामी कुछ समय तक तो नहीं। मुझे लगता है कि एक बार जब ड्यूएट अपने पाँव जमा लेगा, तब श्रमिकों की उम्‍मीदें भी बदल जाएंगी, और यह राज‍नीतिज्ञों पर काफी हद तक दबाव डालेगा भले ही आश्‍वासन की घोषणा न भी की जाए, तो भी। 

लेखक परिचय: प्रणब बर्धन बर्कले स्थित कैलिफोर्निया यूनिवरसिटि के अर्थशास्त्र विभाग में ग्रेजुएट स्कूल के प्रोफेसर हैं।

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