धार्मिक अल्पसंख्यकों के कल्याण में सुधार के लिए भारत सरकार के कार्यक्रम के एक भाग के रूप में, वर्ष 2009 में वाणिज्यिक बैंकों को इन समूहों को दिए जाने वाले ऋण बढ़ाने के निर्देश दिए। यह लेख दर्शाता है कि इस नीति के कारण लक्षित क्षेत्रों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की बैंक ऋण तक पहुँच में वृद्धि हुई है। इससे अल्पसंख्यकों और ग़ैर-अल्पसंख्यकों के बीच उपभोग की खाई कम हुई है, जबकि ग़ैर-अल्पसंख्यकों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।
अधिकांश शोधों से पता चलता है कि ऋण तक पहुँच परिवार कल्याण को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है (काबोस्की और टाउनसेंड 2013, ऑगसबर्ग एवं अन्य 2015, ब्रेज़ा और किन्नन 2021)। फिर भी, भारत में परिवारों और व्यक्तियों के लिए ऋण तक पहुँच समान नहीं है। विशेष रूप से, कम प्रतिनिधित्व वाले अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ भेदभाव ऋण बाज़ारों तक उनकी पहुँच को सीमित करता है। सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) नीतियाँ अल्पसंख्यकों की सार्वजनिक संस्थानों तक पहुँच में परम्परागत असमानताओं को दूर करने का एक प्रमुख नीतिगत साधन बन गई हैं। कई मौजूदा शोध राजनीतिक प्रतिनिधित्व, उच्च शिक्षा और सार्वजनिक रोज़गार के क्षेत्रों में सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) के प्रभाव का अध्ययन करते रहे हैं (पांडे 2003, खन्ना 2020, अख्तरी एवं अन्य 2024)। इस पृष्ठभूमि में, हम भारत में एक निर्देशित ऋण कार्यक्रम के, जिसका उद्देश्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बैंक ऋण तक पहुँच का विस्तार करना है, कल्याणकारी प्रभावों को देखकर ऋण बाज़ारों में सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) की जाँच करते हैं (खान और रिताधी 2023)।
धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए निर्देशित ऋण नीति
हम अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री के नए 15-सूत्री कार्यक्रम पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। यह नीतिगत उद्देश्यों का एक समग्र सेट है जिसका उद्देश्य धार्मिक अल्पसंख्यकों अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख और बौद्ध समुदायों के कल्याण में सुधार लाना है (अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय, 2009)।1 इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और स्वच्छता तक बेहतर पहुँच के साथ-साथ लक्षित हिंसा और भेदभाव से सुरक्षा शामिल है। हम अल्पसंख्यकों की बैंक ऋण तक पहुँच को बेहतर बनाने के निर्देश का अध्ययन करते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा तैयार किए गए विशिष्ट दिशा-निर्देशों में वाणिज्यिक बैंकों को ‘अल्पसंख्यक-सघन’ क्षेत्रों में, यानी ऐसे जिले जहाँ धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी जनसंख्या के 25% से अधिक है, धार्मिक अल्पसंख्यकों को ऋण बढ़ाने का निर्देश दिया गया है (आरबीआई, 2007)।2
दिलचस्प बात यह है कि आरबीआई ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को आवंटित बैंक ऋण की मात्रा या हिस्सेदारी के बारे में कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं दिए हैं। बजाय इसके, आरबीआई ने नीति के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए बैंकों को कई नरम निर्देश जारी किए। इनमें प्रत्येक जिले में अग्रणी बैंकों को धार्मिक अल्पसंख्यकों की ऋण आवश्यकता को देखने के लिए एक अधिकारी नियुक्त करने, अल्पसंख्यक समुदायों की आवश्यकताओं के प्रति व्यक्तिगत बैंक अधिकारियों को संवेदनशील बनाने और बैंकों को इन समूहों को वितरित ऋण की वास्तविक मात्रा पर द्विवार्षिक रिपोर्ट दाखिल करने की आवश्यकता शामिल थी। केन्द्रीय बैंक (आरबीआई) ने बैंकों से बार-बार आग्रह किया कि वे अल्पसंख्यक पात्र उधारकर्ताओं तक पहुँचने के लिए स्थानीय स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) के साथ सहयोग करें। इसके साथ ही निर्देशित ऋण नीति के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु वे स्थानीय समुदायों के लिए सूचना सत्रों का भी आयोजन करें।
अनुभवजन्य रणनीति और डेटा
हम अल्पसंख्यक-सघनता और ग़ैर-अल्पसंख्यक-सघनता जिलों में परिवारों की ऋण पहुँच की तुलना करने के लिए 25% अल्पसंख्यक हिस्सेदारी सीमा का अध्ययन करते हैं। उदाहरण के लिए, हम अपने अनुभवजन्य विश्लेषण में अल्पसंख्यक परिवारों की 23% आबादी वाले जिले में परिवारों के ऋण पहुँच की तुलना एक ऐसे जिले के साथ करते हैं, जहाँ अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 27% था। यदि इन दोनों जिलों के परिवार एक दूसरे से अत्यधिक तुलनीय होते, तो जिस जिले में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी 23% थी, वहाँ के अल्पसंख्यक परिवार उस जिले के अल्पसंख्यक परिवारों के लिए वैध प्रतितथ्यात्मक के रूप में कार्य करते, जहाँ धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी 27% थी। इसमें अंतर्निहित धारणा यह है कि 25% सीमा से ऊपर और नीचे के एक संकीर्ण पड़ोस के भीतर के जिले अत्यधिक तुलनीय होंगे- इसका महत्वपूर्ण अपवाद यह होगा कि 25% सीमा से अधिक अल्पसंख्यक आबादी वाले जिले धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बैंक ऋण में विस्तार के लिए पात्र थे।
हम प्रमुख विशेषताओं के आधार पर इन जिलों में रहने वाले परिवारों की तुलना की पुष्टि करते हैं और 25% से 31% के बीच अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों में स्थित अल्पसंख्यक परिवारों की बैंक ऋण पहुँच की तुलना, 19% से 25% के बीच अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों में रहने वाले अल्पसंख्यक परिवारों से करते हैं। चूंकि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों में 80% मुस्लिम हैं, इसलिए हमारा प्राथमिक विश्लेषण मुस्लिम परिवारों तक ही सीमित है।3
हम राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा किए गए राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि घरेलू सर्वेक्षण, अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण (एआईडीआईएस) से घरेलू सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करके धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए निर्देशित ऋण नीति के प्रभाव का अध्ययन करते हैं। सर्वेक्षण में घरेलू परिसंपत्तियों और देनदारियों के बारे में जानकारी दी गई है, जिसमें बैंक और ग़ैर-बैंक वित्तीय संस्थानों से लिए गए ऋण भी शामिल हैं। हम 2019 एआईडीआईएस का उपयोग करते हैं, जिससे हम लम्बी अवधि में निर्देशित ऋण नीति के प्रभाव का संतुलन में मूल्याँकन कर पाते हैं।
महत्वपूर्ण परिणाम
हमें अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बैंक ऋण पहुँच में 11 प्रतिशत अंकों की वृद्धि देखने को मिली है। जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि हमारे नमूने में औसत अल्पसंख्यक-सघनता वाले जिले में 16 लाख मुस्लिम परिवार थे, तो परिणाम यह दर्शाते हैं कि नीति के कारण अतिरिक्त 1 लाख 80 हज़ार मुस्लिम परिवारों की बैंक ऋण तक पहुँच बढ़ी है।4 बैंक ऋण राशि के सन्दर्भ में, अल्पसंख्यक बहुल जिलों में अल्पसंख्यक परिवारों को बैंक ऋण के रूप में 17,000 रुपए का अतिरिक्त ऋण प्राप्त हुआ है। यह वार्षिक घरेलू व्यय का लगभग 10% के बराबर है, जो अल्पसंख्यकों की बैंक ऋण तक पहुँच पर निर्देशित ऋण नीति के काफी बड़े प्रभाव की ओर इशारा करता है। बैंक ऋण में वृद्धि में कृषि ऋण का हिस्सा लगभग 40% था, शेष में घरेलू व्यय ऋण शामिल थे। कृषि ऋणों में वृद्धि के अनुरूप, हमने पाया कि अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में अल्पसंख्यक परिवारों के पास सिंचित कृषि भूमि और कृषि मशीनरी का स्वामित्व अधिक है।
आकृति-1. अल्पसंख्यकों के बीच बैंक ऋण पहुँच पर निर्देशित ऋण नीति का प्रभाव
नोट : (i) बायाँ पैनल इस बात पर नीति के प्रभाव को दर्शाता है कि क्या अल्पसंख्यक परिवार के पास कोई बैंक ऋण बकाया है और दायाँ पैनल अल्पसंख्यक परिवार द्वारा प्राप्त बैंक ऋण की राशि पर प्रभाव को दर्शाता है। (ii) ऊर्ध्वाधर रेखा के दाईं ओर के अवलोकन नीति के लिए पात्र जिलों (अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 25-31%) से मेल खाते हैं ; ऊर्ध्वाधर रेखा के बाईं ओर के अवलोकन नीति के लिए अयोग्य जिले हैं (अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 19-25%)।
सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) नीतियों की एक प्रमुख आलोचना यह है कि उनमें या तो पात्र ग़ैर-अल्पसंख्यक लाभार्थियों को लाभ नहीं मिल पाता है, या अल्पसंख्यक वरीयताओं के संबंध में अपर्याप्त जानकारी के कारण उनमें गुणवत्ता-अनुकूलता सम्बन्धी अभाव नज़र आता है।5 हम अल्पसंख्यक और ग़ैर-अल्पसंख्यक सघनता वाले क्षेत्रों में धार्मिक ग़ैर-अल्पसंख्यक परिवारों के लिए बैंक ऋण पहुँच की तुलना करके पहले प्रश्न का समाधान करते हैं। आश्वस्त करने वाली बात यह है कि बैंक ऋण तक समग्र पहुँच, और ग़ैर-अल्पसंख्यक परिवारों द्वारा प्राप्त बैंक ऋण की मात्रा इन जिलों में तुलनीय बनी रही। इससे यह चिंता दूर हो जाती है कि अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को बैंक ऋण देने में वृद्धि, इन जिलों में रहने वाले ग़ैर-अल्पसंख्यकों की कीमत पर हुई है।
दूसरी चिंता के समाधान के लिए, हम अल्पसंख्यक-बहुल और ग़ैर-अल्पसंख्यक-बहुल क्षेत्रों में अल्पसंख्यक परिवारों के लिए चूक (ऋण की चुकौती न करना) की तुलनीय दरों को दर्ज करते हैं। यदि अल्पसंख्यक उधारकर्ता स्वाभाविक रूप से जोखिमपूर्ण होते, या ऋणदाताओं के पास उधारकर्ताओं के इस समूह के बारे में सीमित जानकारी होती, तो हम इस नीति के परिणामस्वरूप बैंक ऋण चूक में वृद्धि की उम्मीद करते। हालांकि, हमें ऐसा नहीं लगता।
हमने पाया कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को बैंक ऋण देने में विस्तार दो प्रमुख चैनलों के माध्यम से किया गया- पहला, केन्द्रीय बैंक के निर्देशों के अनुरूप, वाणिज्यिक बैंकों ने बैंक से जुड़े एसएचजी का लाभ उठाया। जबकि वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अल्पसंख्यकों को दिए जाने वाले प्रत्यक्ष ऋण में भी वृद्धि हुई, बैंक से जुड़े स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जारी किए गए ऋणों ने अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में अल्पसंख्यक बैंक ऋणों की संख्या में लगभग 60% की वृद्धि की।6 चूंकि माना जाता है कि स्वयं सहायता समूहों के पास बेहतर सूचना और निगरानी क्षमताएं होती हैं, इसलिए बैंक से जुड़े स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ऋण देने में वृद्धि भी सम्भवतः अल्पसंख्यक उधारकर्ताओं द्वारा बैंक ऋण पर सीमित चूक (ऋण की चुकौती न करना) के कारण हुई हो।
दूसरा, हमें इस बात के प्रमाण मिले हैं कि बैंक अल्पसंख्यक उधारकर्ताओं को दिए गए ऋण के लिए संपार्श्विक (ज़मानत सम्बन्धी) आवश्यकताओं को कम कर रहे हैं। चूंकि सूचना सम्बन्धी विषमताओं या निगरानी की उच्च लागत की स्थिति में ऋण प्राप्त करने के लिए प्रायः संपार्श्विक का उपयोग किया जाता है, इसलिए संपार्श्विक (ज़मानत सम्बन्धी) आवश्यकताओं में छूट से यह संकेत मिलता है कि बैंकों ने अल्पसंख्यक उधारकर्ताओं के बारे में सूचना प्राप्त करने के अधिक प्रयास किए हैं। हालांकि, हमें अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में अल्पसंख्यक उधारकर्ताओं के लिए बैंक ऋण दरों में छूट का कोई साक्ष्य नहीं मिला। इससे यह बात खारिज हो जाती है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बैंक ऋण में वृद्धि ग़ैर-अल्पसंख्यक उधारकर्ताओं को क्रॉस-सब्सिडी देने के कारण हुई।
हम अपने अनुभवजन्य विश्लेषण का समापन यह मूल्याँकन करके करते हैं कि निर्देशित ऋण नीति ने समग्र अल्पसंख्यक कल्याण को किस प्रकार से प्रभावित किया। हम परिवारों के प्रति व्यक्ति मासिक खपत का उपयोग पारिवारिक कल्याण के समग्र उपाय के रूप में करते हैं। हमने पाया कि अल्पसंख्यक बहुल जिलों में अल्पसंख्यक परिवारों ने प्रति व्यक्ति अतिरिक्त 441 रुपये खर्च किए हैं, जो कि ग़ैर-अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू व्यय से 16% अधिक है। ग़ैर-अल्पसंख्यक परिवारों पर कोई समान प्रभाव नहीं पड़ा, जिससे यह चिंता दूर हो गई कि निर्देशित ऋण नीति ने ग़ैर-अल्पसंख्यकों के कल्याण परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया होगा। चूंकि धार्मिक अल्पसंख्यकों और ग़ैर-अल्पसंख्यकों के बीच उपभोग का अंतर 25% था, धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग में 16% की वृद्धि से पता चलता है कि निर्देशित ऋण नीति ने अल्पसंख्यकों और ग़ैर-अल्पसंख्यकों के बीच उपभोग के अंतर को लगभग 60% तक कम कर दिया।
आकृति-2. अल्पसंख्यकों और ग़ैर-अल्पसंख्यकों के सन्दर्भ में उपभोग पर निर्देशित ऋण नीति का प्रभाव
नोट : ऊर्ध्वाधर रेखा के दाईं ओर के अवलोकन नीति के लिए पात्र जिलों (अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 25-31%) से मेल खाते हैं ; ऊर्ध्वाधर रेखा के बाईं ओर के अवलोकन नीति के लिए अयोग्य जिले हैं (अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 19-25%)।
निष्कर्ष
हमने अपने शोध में उस नीति के प्रभाव की जांच की है, जिसने बैंकों को अल्पसंख्यक बहुल जिलों में ऋण देने के लिए प्रेरित किया, जहाँ धार्मिक अल्पसंख्यकों की संख्या जिले की कुल आबादी का 25% से अधिक थी। हमने मुस्लिम परिवारों के सन्दर्भ में बैंक ऋण तक पहुँच पर बड़े सकारात्मक प्रभावों को दर्ज किया है, जिसके परिणामस्वरूप कृषि मशीनरी के स्वामित्व में वृद्धि हुई है। साथ ही साथ घरेलू खपत का स्तर भी बढ़ा है। दरअसल, अल्पसंख्यक बहुल जिलों में मुस्लिम और ग़ैर-अल्पसंख्यक परिवारों के बीच उपभोग का अंतर 60% कम हुआ है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि ऋणों तक बेहतर पहुँच के कारण बैंकों के ऋण भुगतान में चूक की घटनाएं नहीं बढ़ीं, जिससे यह चिंता दूर हो गई कि नीति के कारण बैंक कम-इष्टतम उधारकर्ताओं को ऋण देने के लिए बाध्य हुए। इस बात के भी सीमित साक्ष्य हैं कि इस नीति के परिणामस्वरूप इन जिलों में ग़ैर-अल्पसंख्यकों को बैंक ऋण प्राप्त करने में कठिनाई हुई। 2001 की जनगणना के जनसंख्या अनुमानों के आधार पर, 121 जिलों में रहने वाले भारत के एक तिहाई धार्मिक अल्पसंख्यकों को इस नीति से लाभ प्राप्त हुआ। हालांकि, 2001 में अतिरिक्त 24% धार्मिक अल्पसंख्यक 240 जिलों में रहते थे, जिनकी अल्पसंख्यक आबादी का हिस्सा 15% से 25% तक था। नीति के मज़बूत सकारात्मक प्रभावों और सीमित नकारात्मक कमियों के मद्देनज़र, इन जिलों में नीति को विस्तारित करने की ठोस स्थिति बनती है, जिससे नीति की समग्र पात्रता देश की अल्पसंख्यक आबादी के 60% तक विस्तारित हो जाएगी।
टिप्पणियाँ :
- इन समूहों को 2001 की जनगणना के अनुसार धार्मिक अल्पसंख्यकों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इसके बाद, जैन समुदाय को भी इस सूची में शामिल किया गया।
- 2001 की जनगणना के आधार पर जिलों में अल्पसंख्यक आबादी के हिस्से की गणना की गई। 25% अल्पसंख्यक आबादी हिस्सेदारी की सीमा का उपयोग करते हुए, कुल 103 जिलों को 'अल्पसंख्यक-सघनता' वाले जिलों के रूप में वर्गीकृत किया गया। सरकार ने बाद में इस सूची में 18 और जिले जोड़े। इन जिलों के साथ-साथ हमने पंजाब, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर में स्थित जिलों को भी इसमें शामिल नहीं किया। यह नीति इन राज्यों पर लागू नहीं होती क्योंकि धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी में बहुसंख्यक हैं। केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप को भी इसी कारण से बाहर रखा गया है।
- हमारे अनुभवजन्य परिणाम अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को शामिल करने के पक्ष में हैं।
- सभी अनुभवजन्य परिणाम एक नमूने पर आधारित हैं जिसमें 25% से 31% के बीच अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों की तुलना 19% से 25% के बीच अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों से की गई है।
- उदाहरण के लिए, यह सम्भव है कि बैंकों को अल्पसंख्यक उधारकर्ताओं की गुणवत्ता के बारे में निजी जानकारी थी और वे पहले उन्हें ऋण देने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि ऐसे उधारकर्ताओं की पुनर्भुगतान क्षमता सीमित थी। ऐसी स्थिति में, नीति-निर्माताओं द्वारा डिज़ाइन किया गया एक निर्देशित ऋण कार्यक्रम उप-इष्टतम होगा, और सबसे पहले अल्पसंख्यक उधारकर्ताओं के आय प्रवाह को बढ़ाने के लिए परिसंपत्ति हस्तांतरण कार्यक्रम की पेशकश करना सार्थक हो सकता है।
- बैंक-लिंक्ड एसएचजी कार्यक्रम में वाणिज्यिक बैंक सीधे खाता रखने वाले एसएचजी को उधार देते हैं। एसएचजी बाद में पात्र सदस्यों को समूह के भीतर ऋण वितरित करते हैं।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : एस के रिताधी अशोका विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। उनकी शोध रुचि विकास अर्थशास्त्र और राजनीतिक अर्थव्यवस्था में है और वर्तमान शोध विकास व वित्त के प्रतिच्छेदन पर केन्द्रित है। मुहम्मद यासिर खान पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं और इसके गवर्नेंस और मार्केट्स केन्द्र और लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज़ के महबूब उल हक रिसर्च सेंटर में एक फेलो हैं।
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