‘न्याय' विचार-गोष्ठी: नकद अंतरण नीतियों से संबंधित चार चिंताएं

08 May 2019
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भरत रामास्वामी (अशोका विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर) ने अतिरिक्त नकद अंतरण (ऍड-ऑन कैश ट्रांसफर) के बतौर ‘न्याय' के क्रियान्वयन में चार प्रकार की आपत्तियों पर चर्चा की है। उनका तर्क है कि पुनर्वितरण के दीर्घस्थायी साधन के रूप में नकद अंतरण का उभरना इस बात पर निर्भर करता है कि वर्तमान सब्सिडियों के साथ वे कैसे फिट होते हैं और वे स्वास्थ्य और शिक्षा के सार्वजनिक बजट को समाप्त तो नहीं कर देते हैं।

भारत में नकद अंतरण पर पहली बार गंभीर बहस तब हुई थी जब भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (नैशनल फ़ूड सिक्योरिटी एक्ट (एनएफएसए)) लाया जा रहा था। संदर्भ यह था कि खाद्य सब्सिडी नकद अंतरण के रूप में दी जा सकती है या नहीं। इससे संबंधित एक प्रश्न पर भी बहस हुई थी: सब्सिडियों को (समावेश संबंधी त्रुटियों में कमी के लिए) सख्ती से लक्षित होना चाहिए या उन्हें (बहिष्करण संबंधी त्रुटियों में कमी के लिए) लगभग सबके लिए (यूनिवर्सल) होना चाहिए।

नकद अंतरण के पक्ष में सबसे सशक्त तर्क यह था कि इससे प्रोत्साहनों में वह धोखाधड़ी दूर हो गई जिसके कारण सब्सिडी वाले अनाज अवैध ढंग से खुले बाजार में बेच दिए जाते थे। वहीं (क) व्यवहार्यता और आखिरी मील तक संपर्क, तथा (ख) अंतरण के मुद्रास्फीति के साथ इंडेक्सिंग के लिए विश्वसनीय साधनों की अनुपस्थिति नकद अंतरण के विरुद्ध सबसे सशक्त तर्क थे।

इसके बाद ऐसा हुआ कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सामग्री अंतरण का विकल्प चुना गया, कवरेज का विस्तार हुआ, और नकद अंतरणों के लिए गुंजाइश छोड़ दी गई। उसके बाद के वर्षों में जन वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम) के लाभार्थियों के डेटाबेस को कंप्यूटरीकृत किया गया है और आधार-आधारित पहचान को ‘छद्म’ लाभार्थियों तथा भ्रष्टाचार को कम करने का प्रमुख साधन बताया गया है। अनुभव मिलाजुला रहा है। कुछ राज्यों (जैसे आंध्र प्रदेश) ने अन्य राज्यों (जैसे झारखंड) से बहुत अच्छा काम किया है। नकद अंतरण के लिए यह बात प्रासंगिक है क्योंकि आधार के जरिए प्रमाणीकरण बैंकिंग प्रणाली में पहुंच के लिए भी प्रधान साधन है।

अब वर्ष 2019 की बात करें। कृषि उत्पादों की कीमतों में गिरावट के कारण कृषि की वित्तीय स्थिति खतरनाक हाल में पहुंच गई है। चुनाव के वर्ष में किसानों की दुर्दशा की खबरें इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के पन्नों से चलकर मुख्यधारा मीडिया तक पहुंच गई है। तेलंगाना के प्रति हेक्टेयर 10,000 रु. भुगतान वाली रैयुतु बंधु योजना की प्रकट राजनीतिक सफलता ने नकद अंतरण को पुनः अहम् स्थान में ला खड़ा किया है। इसी साल की शुरुआत में केंद्र सरकार ने प्रधान मंत्री किसान कार्यक्रम की घोषणा की जिसके अंतर्गत 2 हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसान परिवारों को 6,000 रु. दिए जाएंगे। वहीं, कांग्रेस पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में आबादी के सबसे निचले 20 प्रतिशत हिस्से के लिए 6,000 रु. मासिक नकद अंतरण करने की घोषणा शामिल है।

इन सारी चीजों में एक अंतर्निहित स्वीकृति स्पष्ट है कि हमारे पास किसानों की दुर्दशा के निवारण या अच्छी नौकरियों की कमी को दूर करने के लिए कोई विकासमूलक रणनीति नहीं है। इस लिहाज से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के कुछ प्रतिशत अंकों को नकद अंतरण आधारित सुरक्षा संजालों (सेफ्टी नेट्स) के लिए समर्पित कर देना इस असफलता की कीमत चुकाना है। इस तर्क के मामले में बहुत कुछ कहा जाना है, खास कर तब जब सकल घरेलू उत्पाद के विकास की दर 7 प्रतिशत या उससे भी अधिक है लेकिन सबसे निचले 50 प्रतिशत की आय मुश्किल से बढ़ती है।

कुछ खतरे तो इन अंतरणों के वित्तपोषण के बारे में हैं, खास कर तब जब अर्थव्यवस्था में मंदी आ जाती है। इस विश्लेषण में मेरा फोकस आपत्तियों के अलग समूह के बारे में है।

सर्वप्रथम पूर्व के संदर्भ के विपरीत, जब नकद अंतरणों को सामग्री अंतरणों की जगह पर प्रस्तावित किया गया था, वर्तमान नीतियों में उन्हें अतिरिक्त रकम के बतौर पेश किया जा रहा है। एकमुश्त सब्सिडियों से जिन कुशलताजनित लाभों का सपना अर्थशास्त्री देख रहे हैं वे सपने ही बने हुए हैं। दूसरी ओर, विकृत करने वाली सब्सिडियों का दुःस्वप्न भी दूर नहीं हो रहा है।

कृषि के क्षेत्र में बड़ी मात्रा में नकारात्मक बाहरीता (नेगेटिव एक्सटर्नालिटी)1 का प्रवाह विद्युत सब्सिडी से (अनुमान है कि 90,000 करोड़ रु.) होता है। भारतीय कृषि में बिजली की खपत किसी भी समकक्ष बड़े देश से काफी अधिक है। फलस्वरूप, भारत में जमीन के अंदर से जितना पानी निकाला जाता है उतना चीन और अमेरिका मिलकर भी नहीं निकालते हैं। (कृषि फीडर को अलग करने और मीटर आधारित सप्लाई जैसी अन्य नीतियों के साथ) प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, डीबीटी) यहां तात्कालिक नीतिगत अनिवार्यता है।

दूसरी चिंता यह है कि क्या ये नीतियां उत्पादक निवेशों को कम कर देंगी – खास कर गरीबों की उत्पादकता बढ़ाने वाली मानव पूंजी में निवेशों को। अकेले कृषि सब्सिडी ही स्वास्थ्य पर केंद्र और राज्यों के सभी सार्वजनिक व्यय से अधिक है। स्वास्थ्य देखरेख और शिक्षा की सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाएं हमारी विकासमूलक रणनीतियों की विपत्ति रही हैं। लेकिन क्या हम उन्हें छोड़ सकते हैं? इन सेवाओं के लिए बाजार अच्छी तरह काम नहीं करते हैं और नियामक नीतियों द्वारा उसको कैसे दुरुस्त किया जा सकता है यह दिखना मुश्किल है।

तीसरी तरह की चिंताएं नकद अंतरण की नीतियों के क्रियान्वयन के बारे में हैं। बैंक खाते अब काफी लोगों के पास हो गए हैं लेकिन आधार-आधारित प्रमाणन के जरिए उन तक पहुंचना एक बड़ी बाधा हो सकता है। समाचार-पत्रों की खबरों के अनुसार एक पायलट परियोजना के दौरान खराब कनेक्टिविटी या खुद प्रौद्योगिकी संबंधी समस्याओं के कारण आधार-आधारित प्रमाणन में कमियां पाई जाने के बाद उर्वरक सब्सिडी के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के क्रियान्वयन को रोक दिया गया था। आधार-आधारित प्रमाणन को कमियों से रहित बनाने को शीर्ष प्राथमिकता देनी होगी।

एक और समस्या लाभार्थियों के पहचान की है। किसानों को नकद अंतरण देने के लिए किसानों की भूमि-स्वामित्व पर आधारित परिभाषा की जरूरत पड़ती है। लेकिन ऐसे देश में, जहां जमीन का मालिकाना बहुत कम निश्चयात्मक है, त्रुटियां और विवाद ही परिणाम होंगे। यहां तक कि जमीन का मालिकाना निश्चयात्मक होने पर भी स्वामित्व के अनुपात में सब्सिडी (जैसा कि तेलंगाना के रैयुतु बंधु कार्यक्रम में है) अन्यंत प्रतिगामी है। इसके अलावा, यह भूमि किरायेदारों को छोड़ देता है (डेटा में इसे संभावित रूप से कम दर्ज किया जाता है)। उत्तम (परफेक्ट) बाजारों के किताबी मॉडल में नकद अंतरण सब्सिडियों के लाभ स्थिर कारक (फिक्स्ड फैक्टर) के मालिकों को मिलेंगे जो इस मामले में जमीन है – इसके बावजूद कि ये सब्सिडियां जमीन मालिक के बजाय खेती करने वाले को दी जाती हैं। लेकिन नीति इस पूर्वधारणा पर नहीं चल सकती है। उससे भी बुनियादी बात यह है कि जमीन आधारित नकद अंतरण से आय संबंधी पिरामिड के सबसे नीचे स्थित राजनीतिक रूप से मित्रविहीन भूमिहीन मजदूरों को कुछ नहीं मिलता है।

कांग्रेस की प्रस्तावित नकद अंतरण योजना लाभों को किसानों तक ही सीमित नहीं रखती। यह सभी गरीबों के लिए लक्षित है। इसके कारण यह भूस्वामित्व आधारित नकद अंतरणों के सर्वाधिक प्रतिगामी पक्षों से रहित है। हालांकि इससे एक दूसरी समस्या आ खड़ी उठती है – वह है सबसे निचले 20 प्रतिशत लोगों के पहचान की। जन वितरण प्रणाली के लाभार्थियों के डेटाबेस को आधार बनाना कहीं अधिक व्यवहार्य विकल्प होता जो आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है। तब अंतरण की राशि कम हो जाती – लगभग 2,000 रु. प्रति माह।

निष्कर्ष रूप में, नकद अंतरण योजनाओं के क्रियान्वयन से संबंधित चिंताएं उनको मिले तत्काल रिस्पांस पर भारी पड़ गई हैं। इस बात की जांच भी जरूरी है कि नकद अंतरण पुनर्वितरण के दीर्घस्थायी साधन के बतौर उभर सकते हैं या नहीं। यह इस पर निर्भर करता है कि वर्तमान सब्सिडियों के साथ ये कैसे जगह बनाएंगे और ये स्वास्थ्य और शिक्षा के सार्वजनिक बजट को बाहर का रास्ता तो नहीं दिखा देंगे।

नोट्स:

  1. नकारात्मक बाहरीता वो लागत है जिसे एक आर्थिक लेनदेन के परिणामस्वरूप तीसरे पक्ष द्वारा भुगतना पड़ता है।

लोक वित्त, राजकोषीय नीति, लोक सेवा प्रदान

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