क्या भारत में शहरी आवास आपूर्ति ने आवास की बढ़ती मांग के साथ तालमेल बिठाया है? यह लेख, वर्ष 2001 और 2011 के बीच के जनगणना संबंधी आंकड़ों का उपयोग करते हुए प्रवासन से प्रेरित आवास मांग की प्रतिक्रिया के रूप में आवास की बाजार आपूर्ति का अध्ययन करता है। यह दर्शाता है कि किसी राज्य में होने वाली राजमार्ग निवेश और सूखा जैसी बहिर्जात घटनाएं अंतर्राज्यीय प्रवासन में परिवर्तन के माध्यम से दूसरे राज्य में आवास की मांग को प्रभावित करती हैं। आवास आपूर्ति के बारे में इस लेख के निष्कर्ष 2000 के दशक के दौरान की भारत की शहरी सभ्यता और प्रत्याशित निर्माण के अस्तित्व के अनुरूप हैं।
शहरी भारत के आवास बाजार अंतर्विरोधों से भरे हुए हैं। एक तरफ,भारत के रियल एस्टेट बाजार दुनिया में सबसे महंगे में से एक हैं (चक्रवर्ती 2013, निजमान 2000)। दूसरी ओर, भारत की लगभग 15-17% शहरी आबादी अनौपचारिक घरों या झुग्गियों में रहती है। जनगणना के आंकड़े यह भी इंगित करते हैं कि शहरी भारत का लगभग 12% आवास स्टॉक 2011 में खाली था(जनगणना 2011,गांधी एवं अन्य 2021)। भारतीय शहरों में बढ़ती मांग के लिए आवास आपूर्ति की प्रतिक्रिया को समझे बिना इन तथ्यों को समेटना मुश्किल है।
लगभग 37 करोड़ 70 लाख की शहरी आबादी के साथ भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शहरी आबादी है, और इसकी शहरी आबादी 32% (जनगणना 2011) की दशकीय दर से बढ़ रही है। क्या शहरी भारत की आवास आपूर्ति ने इस बढ़ती मांग के साथ तालमेल बिठाया है? चित्र 1 में, हम भारतीय शहरों में वर्ष 2001 और 2011 के बीच हुई आवास स्टॉक में वृद्धि को दिखाने के लिए जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करते हैं। औपचारिक (टिकाऊ)आवास स्टॉक में 61% की वृद्धि हुई,जबकि अनौपचारिक(गैर-टिकाऊ)आवास स्टॉक में 9% की गति से मामूली वृद्धि हुई। इसी दौरान,शहरी भारत के खाली पड़े घरों के स्टॉक में भी करीब 80 फीसदी का इजाफा हुआ। क्या इन आंकड़ों का मतलब यह माना जाए कि भारत में आवास की कमी की समस्या का समाधान हो गया था,और शहरी बाजारों ने 2000 के दशक के दौरान अत्यधिक आपूर्ति शुरू कर दी थी?
चित्र 1. निर्माण के प्रकार के अनुसार शहरी भारत में आवास इकाइयाँ

टिप्पणियाँ:(i) टिकाऊ इकाइयों की छतें और दीवारें जस्ती लोहा,धातु,एस्बेस्टस शीट,पक्की ईंटों, पत्थर और कंक्रीट से बनी होती हैं। गैर-टिकाऊ इकाइयों की छतें या दीवारें घास, छप्पर,बांस,प्लास्टिक,पॉलिथीन,मिट्टी,कच्ची ईंट और लकड़ी से बनी होती हैं।(ii) सभी खाली घर टिकाऊ इकाइयाँ हैं। (iii) सभी पट्टियों (बार) को दर्शाए जा रहे संगत मानों द्वारा लेबलित किया गया है।

हाल के एक अध्ययन(दत्ता और अन्य 2021)में, हम i) कंक्रीट,ईंटों और धातु से बने टिकाऊ या औपचारिक घर;ii) छप्पर, मिट्टी, प्लास्टिक आदि से बने गैर-टिकाऊ या अनौपचारिक घर- जो आमतौर पर मलिन बस्तियों में पाए जाते हैं; और iii) 2000 के दशक के दौरान खाली मकान के संबंध में आवास आपूर्ति लोच1 का अनुमान लगाने के लिए कई स्रोतों (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय(एनएसएसओ), 2008, जनगणना 2001, 2011, गनी एवं अन्य 2016, भारत मौसम विज्ञान विभाग, 2017) से डेटा का उपयोग करते हैं।
आपूर्ति लोच अनुमानन समस्या
आपूर्ति लोच का अनुमान लगाना कठिन है क्योंकि हम कभी भी सीधे आपूर्ति वक्रों का अवलोकन नहीं करते हैं। हम केवल आपूर्ति और मांग की गतिशीलता के संयोजन को दर्शाने वाली कीमतों और मात्रा को देखते हैं। इस समस्या को हल करने के लिए, हमें आपूर्ति वक्र का पता लगाने हेतु मांग में बदलाव की घटनाओं की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में, हमें एक ऐसे ‘साधन चर’2 की आवश्यकता है जो आवास की मांग को बदल दे,लेकिन उन अनदेखी विशेषताओं को नहीं- जो संभावित रूप से आवास आपूर्ति को प्रभावित करती हैं।
एक स्थानिक संतुलन फ्रेमवर्क3 में,हम विचार करते हैं कि एक स्थान पर होने वाले नकारात्मक वर्षा झटके और राजमार्ग उन्नयन कार्यक्रम जैसी प्रवासन-प्रेरित बहिर्जात घटनाएं,दूसरे स्थान में आवास की मांग को प्रभावित कर सकती हैं, जिसमें प्रभाव का चैनल प्रवासन है।
दो राज्यों पर विचार करते हैं: महाराष्ट्र और बिहार, जहां हम महाराष्ट्र को एक स्थानीय राज्य के रूप में मानते हैं, और बिहार को एक दूरस्थ राज्य मानते हैं। मान लीजिए कि बिहार में औसत से कम वर्षा- यानी सूखा होता है। सूखे का असर बिहार में मजदूरी और किराए पर पड़ेगा,जबकि महाराष्ट्र पर इसका कोई असर नहीं होगा। यह दोनों राज्यों के बीच एक स्थानिक असमानता पैदा करेगा,जिससे लोग बिहार से महाराष्ट्र की ओर पलायन करेंगे। उच्चतर प्रवासन महाराष्ट्र में जनसंख्या वृद्धि को बदल देगा,और इसलिए,यह इसके मांग वक्र को स्थानांतरित करने का कारण बनेगा। इससे महाराष्ट्र के आपूर्ति वक्र का पता लगेगा। इसी प्रकार का तर्क राजमार्ग उन्नयन निवेश के परिणामों के संदर्भ में दिया जा सकता है। हम चित्र 2 में इन तंत्रों का एक दृश्य प्रदर्शन प्रदान करते हैं।
चित्र 2. आघात से प्रेरित प्रवासन का आवास की मांग पर प्रभाव

टिप्पणियाँ: (i) नक्शा भारत के मध्य भाग का एक स्नैपशॉट प्रस्तुत करता है जिसमें के 'स्थानीय राज्य' महाराष्ट्र और 'दूरस्थ राज्य' बिहार पर प्रकाश डाला गया है। (ii) बिहार में नकारात्मक वर्षा के झटके और राजमार्ग उन्नयन होता है। इससे होने वाला अंतर-राज्य प्रवासन महाराष्ट्र की शहरी जनसंख्या वृद्धि में परिवर्तन के माध्यम से महाराष्ट्र में आवास की मांग को प्रभावित करता है।

हमारे अनुभवजन्य विश्लेषण से संकेत मिलता है कि नकारात्मक वर्षा के झटके और राजमार्ग उन्नयन के कार्यक्रम ने वर्ष 2001-2011 के दौरान भारत में अंतर-राज्य प्रवासन को बढ़ा दिया। एक ओर, सीमित वर्षा का एक और महीना, जिसे हम एक दशक के दौरान लंबी अवधि के सामान्य वर्षा से 80% से कम वर्षा के रूप में परिभाषित करते हैं,ने प्रभावित क्षेत्रों से दशकीय आउट-माइग्रेशन में 1.1% की वृद्धि की। दूसरी ओर,स्वर्णिम चतुर्भुज(जीक्यू) राजमार्ग उन्नयन कार्यक्रम में एक दूरस्थ राज्य के शामिल होने से ऐसे राज्यों4 से प्रवासन में वृद्धि हुई। इस अंतर-राज्य गतिशीलता में वृद्धि से स्थानीय राज्य की शहरी जनसंख्या में वृद्धि हुई, जिसके चलते स्थानीय शहरी आवास बाजारों में आवास की मांग में वृद्धि हुई। हम दर्शाते हैं कि नकारात्मक बारिश के झटके और जीक्यू राजमार्ग उन्नयन कार्यक्रम स्थानीय शहरी बाजारों में टिकाऊ, गैर-टिकाऊ और खाली घरों की संख्या के लिए मजबूत ‘साधन’ हैं।
साधन चर की वैधता
वैध अनुमान प्रदान करने के लिए, हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले मांग शिफ्टर्स (नकारात्मक वर्षा झटके और जीक्यू कार्यक्रम) द्वारा आवास आपूर्ति को प्रभावित किए बिना आवास की मांग को प्रभावित करने की आवश्यकता है। हम साधनों के साथ दो संभावित समस्याओं का समाधान करते हुए,हमारे द्वारा नियोजित साधनों की वैधता को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं।
सबसे पहला, स्थानिक संतुलन फ्रेमवर्क में, एक राज्य में होने वाले झटके पड़ोसी राज्यों में आवास आपूर्ति को प्रभावित कर सकते हैं (भवानी और लसीना 2017)। उदाहरण के लिए, यदि बिहार को सकारात्मक (या कम नकारात्मक) बारिश के झटके मिलते हैं जो बाढ़ का कारण बनते हैं,तो पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में आवास स्टॉक का एक हिस्सा नष्ट हो सकता है क्योंकि कई प्रमुख नदियाँ बिहार से नीचे के क्षेत्रों में अतिरिक्त पानी के साथ बहती हैं, और यह पश्चिम बंगाल में भी बाढ़ का कारण बनेगा। हम विश्लेषण करके इस समस्या का समाधान करते हैं, जहां हम केवल गैर-पड़ोसी राज्यों में होने वाले झटके को शामिल करने के लिए साधनों को फिर से परिभाषित करते हैं। हम पाते हैं कि हमारे अनुभवजन्य अनुमान एक-समान हैं।
दूसरी समस्या तब उत्पन्न होती है जब दूरस्थ राज्यों में होने वाली बहिर्जात घटनाओं की प्रतिक्रिया में प्रवासन करने वाले प्रवासी ‘आवास निर्माण’ में काम करते हैं,जिससे उनके गंतव्य स्थानों में आवास की आपूर्ति प्रभावित होती है। इसका मतलब है कि प्रवासी अपने गंतव्य पर आवास की आपूर्ति और मांग दोनों को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, भारत में अपने गंतव्य स्थानों के निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश अंतर्राज्यीय प्रवासी मौसमी आधार पर प्रवासन करते हैं- यानी, वे अपने घरों में लौटने से पहले एक से छह महीने की अवधि के लिए प्रवास करते हैं (एनएसएसओ, 2008)। हमारे पृष्टता (ठोस) विश्लेषण में, हम अनुमान लगाते हैं कि दूरस्थ राज्य के झटके दीर्घकालिक प्रवासन को भी प्रभावित करते हैं,यानी ऐसे व्यक्ति जो कम से कम एक वर्ष के लिए अपने गंतव्य स्थानों पर जाते हैं और वहां ठहरते हैं। लंबी अवधि के प्रवासन से आवास की आपूर्ति काफी हद तक प्रभावित नहीं होगी क्योंकि लंबी अवधि के लिए प्रवासन करने वाले प्रवासियों में से बहुत कम प्रवासी अपने गंतव्य स्थानों पर ‘आवास निर्माण’ के क्षेत्र में काम करते हैं (एनएसएसओ,2008)।
दशकीय आपूर्ति लोच अनुमान
हमारे निष्कर्ष त्रि-स्तरीय हैं। सबसे पहले,हम अनुमान लगाते हैं कि शहरी भारत में औपचारिक आवास की दशकीय आपूर्ति लोच 1.62 थी। संस्थानों और प्रसंगों में अंतर के बावजूद, भारत की औपचारिक आवास आपूर्ति लोच सैज़ (2010) द्वारा अनुमानित संयुक्त राज्य अमेरिका की 1.75 की लोच के समान है। दूसरा,हम पाते हैं कि अनौपचारिक आवास की आपूर्ति लोच -0.49 थी। अनौपचारिक घरों के लिए नकारात्मक आपूर्ति लोच मूल्य भारत में झुग्गी-झोपड़ियों के तोड़ने और उनके उन्नयन के माध्यम से शहरी सभ्यता के अस्तित्व के अनुरूप है (वर्षा और कृष्णा 2020)। अंत में, हम अनुमान लगाते हैं कि खाली औपचारिक आवासीय आवास इकाइयों की आपूर्ति की लोच 2.62 होगी। हम मानते हैं कि अपेक्षाकृत अधिक खाली आवास आपूर्ति लोच 2000 के दशक के दौरान भारतीय शहरों में डेवलपर्स द्वारा प्रत्याशित निर्माण को दर्शाती है।5
हम भारत के 12 सबसे बड़े राज्यों के राज्य-स्तरीय औपचारिक आवास आपूर्ति लोच का अनुमान लगाते हैं। हम इन लोच के आंकड़ों को तालिका 1 में प्रस्तुत करते हैं और उनकी तुलना सैज़ (2010) पर आधारित समकक्ष अमेरिकी महानगरीय सांख्यिकीय क्षेत्रों (एमएसए) से करते हैं। भारत में आवास आपूर्ति लोच के बारे में पूर्व में साहित्य उपलब्ध न होने की वजह से, अमेरिकी लोच अनुमान हमें यह समझने के लिए एक बेंचमार्क प्रदान करते हैं कि कीमतों में परिवर्तन होने पर भारत के शहरी बाजार आवास की कितनी अच्छी आपूर्ति करते हैं। अमेरिका में ऑस्टिन के समान, महाराष्ट्र में 3.06 के मान के साथ भारत में सबसे अधिक टिकाऊ आवास आपूर्ति लोच है। बिहार और पश्चिम बंगाल में क्रमशः 0.49 और 0.38 के मानों के साथ सबसे कम लोच है। ये लंबे समय तक चलने वाले लोच मान अमेरिका के कम से कम आपूर्ति लोच एमएसए: मियामी और लॉस एंजिल्स-लॉन्ग बीच से कम हैं। मियामी और लॉस एंजिल्स दोनों प्राकृतिक बाधाओं से घिरे हुए हैं,और इसलिए वहां विशेष रूप से कम आपूर्ति लोच हैं। उल्लेखनीय है कि यह बिहार और पश्चिम बंगाल के सन्दर्भ में और भी कम लोच दर्शाता है।
तालिका 1. आवास आपूर्ति की राज्य स्तरीय लोच
राज्य
शहरी आबादी
(लाख)
टिकाऊ लोच
तुलनीय यूएस एमएसए (सैज़ 2010)
महाराष्ट्र
51
3.06
ऑस्टिन,टीएक्स
उड़ीसा
7
2.05
मोबाइल,एएल
तमिलनाडु
35
1.92
फ्रेस्नो,सीए
आंध्र प्रदेश
28
1.63
फीनिक्स,एजेड
गुजरात
26
1.31
लास वेगास,एनवी
मध्य प्रदेश
20
1.25
डेट्रॉइट,एमआई
उत्तर प्रदेश
44
1.17
नेवार्क,एनजे
राजस्थान
17
1.06
जैक्सनविले,एफएल
कर्नाटक
24
0.75
न्यूयॉर्क,एनवाई
हरियाणा
9
0.54
मियामी,एफएल
बिहार
12
0.49
पश्चिम बंगाल
29
0.38
नोट: (i) राज्यों को लोच मानों के घटते क्रम में दर्शाया गया है। (ii) सैज़ (2010) के अनुमानों के आधार पर अंतिम कॉलम में अमेरिका में तुलनीय आवास आपूर्ति लोच के साथ एमएसए दर्शाया है। (iii) अमेरिका में बिहार और पश्चिम बंगाल के लोच के आंकड़ों की तुलना में कोई महानगरीय क्षेत्र नहीं हैं। मियामी अमेरिका में सबसे कम आपूर्ति लोच- एमएसए है, जिसका लोच मान 0.6 है। (iv) अमेरिकी राज्यों के लिए संक्षिप्ताक्षरों की सूची यहां पाई जा सकती है।

राज्य स्तरीय आवास आपूर्ति और भूमि उपयोग नियमों के लिए निहितार्थ
तालिका 1 में प्रस्तुत किये गए कुछ राज्य-स्तरीय लोच अनुमान आवश्यक रूप से भारतीय राज्यों में मौजूदा भूमि-उपयोग नियमों के अनुरूप नहीं हैं। बिल्डिंग की ऊंचाई संबंधी प्रतिबंधों के निर्माण के मामले पर विचार करें जो भारत में देशव्यापी हैं (बर्टाउड और ब्रुकनर 2005)। नियामक स्वीकार्य फ्लोर-एरिया रेशियो(एफएआर)6 या जमीन के प्लॉट पर बिल्डर्स और डेवलपर्स द्वारा बनाए जा सकने वाले फ्लोर स्पेस की मात्रा को सीमित करके बिल्डिंग की ऊंचाई पर प्रतिबंध लगाते हैं। महाराष्ट्र में 1.3 के औसत के साथ भारत का सबसे कम अनुमेय फर्श क्षेत्र अनुपात (एफएआर) है, फिर भी इसमें उच्चतम आवास आपूर्ति लोच है। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल में औसत एफएआर 3 है, फिर भी इसकी आपूर्ति लोच सबसे कम है। इस विसंगति के पीछे एक संभावित कारण यह है कि महाराष्ट्र के शहर डेवलपर्स को हस्तांतरणीय विकास अधिकार(टीडीआर)7 के माध्यम से अतिरिक्त एफएआर खरीदने की अनुमति देते हैं,यही वजह है कि मुंबई (महाराष्ट्र की राजधानी) जैसे शहरों में मुक्त रूप से उपलब्ध एफएआर से प्रभावी एफएआर अधिक है। पश्चिम बंगाल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
कम-एफएआर वाले तमिलनाडु राज्य की तुलना में, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे उच्च-एफएआर राज्यों में अपेक्षाकृत कम लोच के आंकड़े आवास आपूर्ति को प्रभावित करने वाले अन्य भूमि-उपयोग नियमों के प्रभाव8 का अध्ययन करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। ऐसे नियमों के उदाहरणों में 1976 का शहरी भूमि (सीलिंग एंड रेगुलेशन)अधिनियम शामिल है,जो व्यक्तियों और व्यवसायों को एक निश्चित मात्रा से अधिक खाली शहरी भूमि रखने से प्रतिबंधित करता है और यह वर्ष 2008 तक आंध्र प्रदेश में लागू था; और 1964 का कर्नाटक भूमि राजस्व अधिनियम, जिसने हाल ही में गैर-निवासियों को कृषि भूमि का उपयोग गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए करने से प्रतिबंधित कर दिया था,जिससे रियल एस्टेट डेवलपर्स की क्षमता सीमित हो गई थी जिनके पास निर्माण परियोजनाओं को शुरू करने के लिए बेंगलुरु जैसे शहरों के उपनगरीय इलाकों में कृषि भूमि नहीं थी।
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टिप्पणियाँ:
- यहां आपूर्ति लोच के आंकड़े आवास की आपूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन के साथ इसके बाजार मूल्य में प्रतिशत परिवर्तन को संदर्भित करते हैं।
- साधन चर का उपयोग अनुभवजन्य विश्लेषण में अंतर्जात चिंताओं को दूर करने के लिए किया जाता है। साधन एक ऐसा अतिरिक्त कारक है जिससे हम व्याख्यात्मक कारक और ब्याज के परिणाम के बीच के सही कारण-संबंध जान पाते हैं। यह व्याख्यात्मक कारक के साथ सहसंबद्ध है लेकिन ब्याज के परिणाम को सीधे प्रभावित नहीं करता है।
- स्थानिक संतुलन का तात्पर्य है कि वातावरण-आधारित सुविधाओं जैसे जलवायु, वायु गुणवत्ता, भाषाई निकटता,स्थान-आधारित नीतियों आदि के लिए समायोजन के पश्चात मजदूरी और भूमि के किराए (रेंट) में किसी भी प्रकार के अंतर-क्षेत्रीय अंतर,अंतर-क्षेत्रीय प्रवासन के माध्यम से समाप्त हो जाते हैं(रोबैक 1982, रोसेन 1979) है। इस संतुलन पर,व्यक्ति जिस क्षेत्र में रहते हैं उसके प्रति निरपेक्ष (उदासीन) होते हैं, इसलिए गतिशीलता का कोई लाभ नहीं होता है। इसलिए,वातावरण-आधारित सुविधाओं के लिए समायोजन के पश्चात स्थानिक संतुलन फ्रेमवर्क में शुद्ध अंतरक्षेत्रीय प्रवासन शून्य है। तकनीकी झटके या सूखा जैसी बहिर्जात घटनाएं,व्यक्तियों की उदासीनता को बढ़ा सकती हैं, और इसलिए प्रवासन को प्रेरित कर सकती हैं (बोस्टन 2010)।
- स्वर्णिम चतुर्भुज (जीक्यू) या राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना चरण (एनएचडीपी I) को वर्ष 2000 में भारत की केंद्र सरकार द्वारा राजमार्ग उन्नयन कार्यक्रम के रूप में पेश किया गया था, और यह वर्ष 2001 में लागू हुआ। इसका प्राथमिक लक्ष्य भारत के चार सबसे बड़े महानगरीय क्षेत्रों- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई को जोड़ने वाले मौजूदा राजमार्ग का दो लेन से चार लेन तक उन्नयन करना था। जीक्यू कार्यक्रम के आर्थिक प्रभावों के विवरण हेतु, गनी एवं अन्य (2016) और अबेबेरेस और चेन (2021) देखें।
- गांधी एवं अन्य (2020) 2001-2011 के दौरान भारत में खाली घरों में वृद्धि के पीछे विभिन्न कारणों की विस्तृत चर्चा प्रदान करते हैं,जिसमें कठोर किराया नियंत्रण कानून और डेवलपर्स द्वारा बड़ी उंचाई की आवासीय इकाइयों का प्रत्याशित निर्माण शामिल है।
- एक इमारत का एफएआर उसके कुल फर्श क्षेत्र के बराबर होता है जो उस भूमि के क्षेत्रफल से विभाजित होता है जिस पर इसे बनाया गया है। कम एफएआर मानों से इमारत की ऊंचाई कम होती है और इसका मतलब है कि सख्त निर्माण नियम हैं।
- टीडीआर वे प्रमाणपत्र हैं जिन्हें संबंधित अधिकारियों द्वारा भूमि के किसी भूखंड के मालिक को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए सरकार को भूमि के सकल क्षेत्र का अभ्यर्पण करने के लिए जारी किया जाता है। टीडीआर अतिरिक्त एफएआर क्रेडिट प्रदान करते हैं जिसे मौजूदा बाजार मूल्य (गुप्ता 2020) पर बेचा जा सकता है। डेवलपर्स टीडीआर खरीद सकते हैं और बिल्डिंग नियमों द्वारा निर्धारित अधिकतम अनुमेय सीमा से ऊपर अतिरिक्त फ्लोर स्पेस का निर्माण करने के अधिकार प्राप्त कर सकते हैं।
- 2000 के दशक के अंत में, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में औसत एफएआर क्रमशः 2.3, 2.4 और 1.8 था (श्रीधर 2010)|
लेखक परिचय: अर्नब दत्ता प्राइस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी, यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट में एक पीएच.डी. उम्मीदवार हैं। साहिल गांधी स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट, एजुकेशन एंड डेवलपमेंट, यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर में लेक्चरर हैं। रिचर्ड के ग्रीन यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया सोल प्राइस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी और मार्शल स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं।
















