पश्चिम बंगाल राज्य में हुए हाल के विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस विजयी हुई है। इस लेख में घटक और मैत्रा ने 2016, 2019, तथा 2021 के चुनावी आंकड़ों का उपयोग करते हुए, चुनाव लड़ने वाले दलों के वोट शेयरों में बदलाव – सत्ता-समर्थक और सत्ता-विरोधी लहरों के सापेक्ष संतुलन, लैंगिक और धार्मिक ध्रुवीकरण के पहलुओं के साथ-साथ कोविड-19 के बढ़ने से हुए प्रभाव का विश्लेषण किया है।
पश्चिम बंगाल राज्य में 2021 के विधानसभा चुनावों के चुनावी नतीजें जैसे-जैसे साफ़ होने लगे, इसके प्रमुख पैटर्न का आधारो पर कुछ आम सहमति बनती दिखी, और कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के बारे में अधिक गहन विश्लेषण करने की आवश्यकता महसूस हुई।
सत्तारूढ़ टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) ने वोट शेयर 2016 में 45% से 2021 में 48% की वृद्धि के साथ-साथ सीटों की संख्या में भी 211 से 213 की वृद्धि दर्ज करते हुए सत्ता विरोधी लहर का भी बखूबी सामना किया। 2019 के राष्ट्रीय संसदीय (लोकसभा) चुनावों के परिणाम ने राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) को स्थापित किया था। भाजपा ने अपनी उस स्थिति को बरक़रार रखा है, जिसका वोट शेयर 2016 में 10.5% था, जो 2021 में बढ़कर 38% हो गया है, और प्राप्त सीटों की संख्या 3 से 77 हो गई है। वाम गठबंधन को अपने प्रमुख घटकों जिसमें सीपीआई(एम) (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)) और आईएनसी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) ने क्रमशः 4.7% और 2.9% वोट जीते, को मिलाकर कुल वोटों का 9% मिला है। । इसने केवल एक ही सीट जीती, जो नवगठित आइएसएफ (इंडियन सेक्युलर फ्रंट) को मिली।
इस चुनाव में सत्ता समर्थक और सत्ता विरोधी लहरें काम कर रही थीं। टीएमसी के पास 2016 में जो 209 (दो सीटों को छोड़कर - जहां चुनाव स्थगित कर दिया गया) सीटें थीं उन सीटों में से कुछ भाजपा (48) के पास चली गई। वहीं, कुछ वामपंथी और कांग्रेस की सीटें टीएमसी (क्रमशः 23 और 29) को मिलीं, जबकि बाकी भाजपा (क्रमशः 9 और 15) को मिलीं। तालिका 1 में, हम 2016 और 2021 के बीच सीटों के वितरण में बदलाव पर वोट शेयरों में बदलाव के निहितार्थ प्रस्तुत करते हैं। टीएमसी ने 2016 में जीती हुई अपनी 76.5% सीटों पर पुनः कब्जा कर लिया और उल्लेखनीय रूप में 2016 में दूसरों के लिए मतदान करने वालों की निष्ठा में बदलाव के चलते लाभ भी प्राप्त किया है: इसने 2016 में वाम मोर्चा द्वारा जीती गई सीटों में से 72% और 2016 में आईएनसी द्वारा जीती गई 66% सीटों पर कब्जा कर लिया। हमारे विश्लेषण से एक आश्चर्यजनक अवलोकन यह निकलता है कि किस हद तक भाजपा नहीं बल्कि टीएमसी लेफ़्ट मोर्चे और कांग्रेस के वोट शेयरों से लाभान्वित हुई है। यह उस प्रचलित टिप्पणी के विपरीत है कि पश्चिम बंगाल में एक राजनीतिक शक्ति के रूप में भाजपा का उदय वामपंथी मतदाताओं के उनकी ओर चले जाने से प्रेरित है, जो एक दशक तक उनके शासन में रहने के बाद सत्ताधारी शासन के प्रति उनके विरोधभाव के परिणामस्वरूप है।
तालिका 1. विजेता दल में परिवर्तन: वर्ष 2016 एवं 2021
वर्ष 2016 में कुल सीटें
लेफ़्ट
बीजेपी
टीएमसी
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
अन्य
निर्दलीय
लेफ़्ट
32
0
9
23
0
0
0
(0.00)
(28.12)
(71.88)
(0.00)
(0.00)
(0.00)
बीजेपी
3
0
2
1
0
0
0
(0.00)
(66.67)
(33.33)
(0.00)
(0.00)
(0.00)
टीएमसी
209
0
48
160
0
1
0
(0.00)
(22.97)
(76.56)
(0.00)
(0.48)
(0.00)
आईएनसी
44
0
15
29
0
0
0
(0.00)
(34.09)
(65.91)
(0.00)
(0.00)
(0.00)
अन्य
3
0
2
0
0
1
0
(0.00)
(66.67)
(0.00)
(0.00)
(33.33)
(0.00)
निर्दलीय
1
0
1
0
0
0
0
(0.00)
(100.00)
(0.00)
(0.00)
(0.00)
(0.00)
2021 में कुल सीटें
292
0
77
213
0
2
Source: Authors’ computation using data published by the Election Commission of India.
स्रोत: भारत निर्वाचन आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का उपयोग करते हुए लेखकों द्वारा गणना।
नोट: (i) नमूना 292 निर्वाचन क्षेत्रों (294 विधानसभा क्षेत्रों में से) से लिया गया है जहां 2021 में चुनाव हुए थे। (ii) कोष्ठकों में दिए गए आंकड़े 2016 के राज्य विधानसभा चुनावों में जीती गई सीटों की संख्या के प्रतिशत को दर्शाते हैं।

मतदान : लैंगिक पैटर्न और धार्मिक ध्रुवीकरण
दल-विशिष्ट वोटों में इस बदलाव का कारण क्या है? एक प्रमुख परिकल्पना मतदान का लैंगिक पैटर्न है, जिसमें महिलाओं ने कन्याश्री जैसी गरीब समर्थक अंतरण योजनाओं के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक नेताओं में पुरुष नेता के साथ सामना करनेवाली वाली एक महिला नेता जिनके अभियान का स्वर पार्टी के विचारों से परे बंगाली मतदाताओं की लैंगिक-संवेदनशीलता से कभी-कभी प्रभावित रहा है, की धारणा के कारण टीएमसी के लिए मतदान किया है। लोकनीति-सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज) के चुनाव के बाद के सर्वेक्षण के परिणाम टीएमसी को 13 प्रतिशत अंक के लैंगिक लाभ का संकेत देते हैं, और यह विशेष रूप से गरीब महिलाओं के बीच स्पष्ट रूप से रहा है।
दूसरी परिकल्पना अल्पसंख्यक वोटों का एकीकरण है, जिन्होंने यह तय किया कि वाम गठबंधन की तुलना में भाजपा के खिलाफ टीएमसी सबसे अच्छा दांव था। इस चुनाव में भाजपा द्वारा आजमाई गई रणनीतियों के सेट में, धार्मिक ध्रुवीकरण बहुत अधिक मिश्रण में था और हाल के दिनों में हुए किसी भी अन्य चुनाव की तुलना में बहुत अधिक उत्साह के साथ आजमाया गया था। आकृति 1 में हम 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में मुसलमानों के प्रतिशत हिस्से और जिले में टीएमसी और भाजपा के औसत वोट शेयर के बीच संबंध प्रस्तुत करते हैं। स्पष्ट रूप से, जिले में मुसलमानों का हिस्सा टीएमसी के वोट शेयर के साथ सकारात्मक रूप से सह-संबद्ध है और भाजपा के वोट शेयर के साथ नकारात्मक रूप से सह-संबद्ध है। दिलचस्प बात यह है कि अन्य दलों का वोट शेयर (वाम गठबंधन, जिसमें आईएसएफ भी शामिल है) जिले में मुसलमानों की हिस्सेदारी से सह-संबद्ध नहीं है, और जो लगभग 18% पर स्थिर रहा है।
आकृति 1. जिले में मुसलमानों का अनुपात और भाजपा, टीएमसी और अन्य दलों के वोट शेयर

स्रोत: भारत निर्वाचन आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का उपयोग करते हुए लेखकों द्वारा गणना।
नोट: (i) नमूना 292 निर्वाचन क्षेत्रों (294 विधानसभा क्षेत्रों में से ) से लिया गया है जहां 2021 में चुनाव हुए थे। (ii) 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में मुसलमानों की आबादी का हिस्सा। (iii) 2011 तक जिले (iv) रेखाएं फिट किए गए मूल्यों को दर्शाती हैं|

धार्मिक ध्रुवीकरण के प्रभाव का पता तब चलता है जब हम 2016 और 2021 के बीच विभिन्न दलों के वोट शेयर में बदलाव और जिले में मुसलमानों की हिस्सेदारी के बीच संबंध की जांच करते हैं। जिले में मुसलमानों की हिस्सेदारी में वृद्धि सकारात्मक रूप से टीएमसी के वोट शेयर में बदलाव के साथ सहसंबद्ध है, लेकिन भाजपा और अन्य दलों के वोट शेयर में बदलाव के साथ नकारात्मक रूप से सहसंबद्ध है। विशेष रूप से, कम मुस्लिम आबादी वाले जिलों में, टीएमसी के वोट शेयर में वास्तव में कमी आई है और बीजेपी के वोट शेयर में काफी वृद्धि हुई है। यह संभावना है कि अल्पसंख्यक आबादी टीएमसी को एक सुरक्षित विकल्प के रूप में देखती है जो उन्हें भाजपा और उसकी बहुसंख्यक नीतियों के खिलाफ समर्थन देगी। मुसलमानों की अधिक हिस्सेदारी वाले जिलों में यह अधिक प्रमुख था। यह लोकनीति-सीएसडीएस के चुनाव के बाद के सर्वेक्षण के परिणामों के अनुरूप है जो यह दर्शाता है कि टीएमसी के लिए मुसलमानों का वोट 51% से बढ़कर 75% हो गया– और यह एक बड़ा बदलाव है ।
आकृति 2. जिले में मुसलमानों का अनुपात और भाजपा, टीएमसी और अन्य दलों के वोट शेयरों में बदलाव

स्रोत: भारत निर्वाचन आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का उपयोग करते हुए लेखकों द्वारा गणना।
नोट: (i) नमूना 292 निर्वाचन क्षेत्रों (294 विधानसभा क्षेत्रों में से ) से लिया गया है जहां 2021 में चुनाव हुए थे। (ii) 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में मुसलमानों की आबादी का हिस्सा। (iii) 2011 तक जिले। (iv) रेखाएं फिट किए गए मूल्यों को दर्शाती हैं।

कोविड-19 का प्रभाव?
अब हम एक ऐसे पहलू की ओर मुड़ते हैं जिस पर ज्यादा चर्चा नहीं की गई है। 2021 के चुनाव एक महीने के अन्दर विभिन्न आठ चरणों में हुए थे। महत्वपूर्ण रूप से, हालांकि चुनाव पश्चिम बंगाल में कोविड-19 मामलों में वृद्धि की छाया में हुए थे: इस अवधि के दौरान, पश्चिम बंगाल में कोविड-19 मामलों और मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। स्थानीय भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई बड़ी चुनावी रैलियों की आलोचना भी की गई, जहां मास्क पहनना अनिवार्य नहीं रखा गया था। क्या बढ़ते संक्रमण का असर वोटिंग पैटर्न और चुनाव नतीजों पर पड़ा है?
आकृति 3 विभिन्न चरणों में टीएमसी और भाजपा के वोट शेयरों को प्रस्तुत करता है, और आकृति 4 विभिन्न चरणों1 में टीएमसी और भाजपा की जीत की संभावना को दर्शाता है। आंकड़े प्रासंगिक अवधि में रिपोर्ट किये गए दैनिक मामलों की संख्या को भी दर्शाते हैं। इस अवधि के दौरान, पश्चिम बंगाल में एक दिन में दर्ज किये जा रहे मामलों की संख्या लगभग 100 प्रति दिन (मार्च के मध्य) से बढ़कर एक दिन (मई की शुरुआत में) में 15,000 से अधिक हो गई। बाद के चरणों में, बीजेपी का वोट शेयर और जीतने की संभावना कम होती गई है, जबकि वोट शेयर और टीएमसी के जीतने की संभावना बढ़ गई है।
आंकड़ों से पता चलता है कि टीएमसी के लिए वोट शेयर और सीटों के जीतने की संभावना दोनों, बाद के चरणों में बढ़ी है, जबकि बीजेपी के लिए, वोट शेयर और जीतने की संभावना दोनों, इसी चरणों में कम होती गईं।
आकृति 3. चरणबद्ध तरीके से, कोविड-19 का प्रभाव और भाजपा और टीएमसी के वोट शेयर

स्रोत: भारत के चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का उपयोग करते हुए लेखकों द्वारा गणना, और रिपोर्ट किये गए कोविड-19 के मामलों की संख्या (https://api.covid19india.org/documentation/csv/.

आकृति 4. चरणबद्ध तरीके से, भाजपा और टीएमसी द्वारा जीती गई सीटों के अनुपात पर कोविड-19 का प्रभाव

स्रोत: भारत के चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित डेटा का उपयोग करते हुए लेखकों द्वारा गणना, और रिपोर्ट किये गए कोविड-19 (https://api.covid19india.org/documentation/csv/) के मामलों की संख्या।

चुनाव परिणामों पर कोविड-19 में वृद्धि के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने के लिए हम दो सेट में तुलना कर सकते हैं। हम उन निर्वाचन क्षेत्रों को उछाल वाले निर्वाचन क्षेत्रों के रूप में परिभाषित करते हैं जहां चरण 6, 7, और 8 में चुनाव संपन्न कराए गए थे। सबसे पहले, हम 2016 और 2021 के विधानसभा चुनावों के परिणामों की तुलना उछाल वाले निर्वाचन क्षेत्रों और गैर-वृद्धि वाले क्षेत्रों में करते हैं। दूसरा, हम वैसे ही तुलना करते हैं लेकिन इसके स्थान पर हम 2019 के संसदीय चुनाव के विधानसभा घटकों को लेते हैं2। हम तुलना के दो सेट करते हैं, क्योंकि 2016 में, भाजपा ने केवल तीन सीटें जीती थीं और लगभग 10.5% वोट और इसलिए 2019 के आंकड़ें अधिक सूचनाप्रद हैं।
हम पाते हैं कि 2016 की तुलना में, 2021 में उछाल ने भाजपा और अन्य दलों (आईएसएफ गठबंधन सहित) के वोट शेयर को क्रमशः 7.24 और 4 प्रतिशत अंक कम कर दिया, और टीएमसी के वोट शेयर में 11.05 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। 2019 की तुलना में, 2021 में उछाल का भाजपा के वोट शेयर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, और भाजपा के लिए जीत की संभावना को लगभग 12 प्रतिशत अंक से कम कर देता है। दूसरी ओर, इस उछाल से टीएमसी के वोट शेयर में लगभग 8 प्रतिशत अंक की वृद्धि और टीएमसी के जीतने की संभावना 20 प्रतिशत अंक से बढ़ जाती है। टीएमसी के वोट शेयर में वृद्धि अन्य पार्टियों के वोट शेयर में इसी तरह की गिरावट से मेल खाती है। हम परिणामों की व्याख्या इस प्रकार करते हैं - उछाल ने वोट शेयरों और भाजपा के लिए जीत की संभावना को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर चुनाव परिणामों को इतना प्रभावित नहीं किया, बल्कि अन्य दलों के वोट शेयर (और अंततः जीत की संभावना) की लागत पर टीएमसी के लिए चुनावी परिणामों (वोट शेयरों और जीत की संभावना) को ज्यादा सकारात्मक रूप से प्रभावित किया। यह हमारे पहले के अवलोकन को पुष्ट करता है - टीएमसी को वाम गठंधन और कांग्रेस के वोट शेयर के पतन से फायदा हुआ, और ऐसा लगता है कि बाद के चरणों में कोविड-19 मामलों में वृद्धि के साथ विशेष रूप से स्पष्ट हुआ है।
लोकनीति-सीएसडीएस चुनाव के बाद का विश्लेषण इसी के अनुरूप है। उन्होंने पाया कि 24% मतदाताओं ने मतदान के अंतिम समय या मतदान के एक या दो दिन पहले फैसला किया कि वे किसे वोट देने जा रहे हैं, और ऐसे मतदाताओं में, यह टीएमसी थी जिसने भाजपा से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया। इतना ही नहीं, भाजपा के विपरीत टीएमसी के लिए देर से निर्णय लेने वाले मतदाताओं का यह अंतर - सभी चरणों में मौजूद रहते हुए - चुनाव के चरण 5 के बाद (यानी उछाल की अवधि के दौरान) उल्लेखनीय रूप से बढ़ गया। जबकि पहले पांच चरणों में 47% मतदाताओं ने अंतिम समय में और चुनाव प्रचार के समय अपना निर्णय लिया, अंतिम तीन चरणों में यह अनुपात 52% रहा।
समापन टिप्पणी
पिछले 34 से अधिक वर्षों तक, पश्चिम बंगाल वामपंथियों का गढ़ था, और राज्य के राजनीतिक परिदृश्य की एक स्थायी विशेषता के रूप में प्रकट हुआ था। यह 2011 में बदल गया जब टीएमसी सत्ता-विरोधी लहर में सत्ता में आई और 2016 में आराम से फिर से चुनी गई। हालांकि, इस चुनाव में वह भ्रष्टाचार, कुशासन और पक्षपात के साथ राजनीतिक दमन के व्यापक आरोपों के साथ सत्ता विरोधी लहरों से जूझ रही थी। 2019 के संसदीय चुनावों में अपने सफल प्रदर्शन से भाजपा को लगा की अब सत्ता में आने के लिए उसे सुनहरा अवसर मिला है। एक त्रिकोणीय चुनावी मुकाबला कई अनिश्चितताओं को जन्म देता है और अंतिम परिणाम के सबसे आश्चर्यजनक पहलुओं में से एक वाम गठबंधन से वोटों का सत्तारूढ़ टीएमसी में चले जाना था। न केवल 2016 की वाम गठबंधन की अधिकांश सीटें 2021 में टीएमसी के खाते में चली गईं, कोविड-19 में वृद्धि अवधि के दौरान टीएमसी को वोटों में लाभ वाम गठबंधन के वोटों की कीमत पर आया, न कि भाजपा के वोटों की कीमत पर - जैसा कि अपेक्षित था।
यद्यपि भाजपा की बाजीगरी के सामने खड़े होने की टीएमसी की क्षमता के बारे में बहुत कुछ कहा गया है, यह तथ्य कि चुनावी सफलता का एक बड़ा हिस्सा वाम गठबंधन की कीमत पर आया है, वस्तुतः उस पर किसी का ध्यान नहीं गया है। हमारा विश्लेषण पश्चिम बंगाल में मतदान और चुनावी प्रतिस्पर्धा की गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने में सक्षम बनाता है। जैसा कि जॉन एफ केनेडी ने कहा था कि "जीत के हजार पिता होते हैं, लेकिन हार अनाथ होती है"। इस चुनाव में टीएमसी स्पष्ट रूप से विजयी हुई है; लेकिन भाजपा हारी नहीं है – आखिरकार 2016 में उसके पास केवल तीन सीटें थीं और अब उसके पास 77 हैं और उसने मुख्य विपक्षी दल के रूप में अपनी स्थिति को व्यापक रूप से मजबूत कर लिया है। हालांकि, अगर कोई उस उम्मीद और चर्चा का उपयोग करता है जो अभियान के दौरान एक बेंचमार्क के रूप में उत्पन्न हुई थी, जो आंशिक रूप से जनमत सर्वेक्षणों में परिलक्षित होती है, तो उस परिप्रेक्ष्य में वह स्पष्ट रूप से हार गई है। यदि कोई एक प्रति-तथ्यात्मक अभ्यास करता है और एक चीज के बारे में सोचता है जिसे वे आसानी से बदल सकते हैं, तो भाजपा स्पष्ट रूप से इतनी लंबी अवधि के लिए चुनाव न खींचती, जैसा कि तमिलनाडु के राज्यों में किया गया था (एक चरण, एक बहुत बड़ा क्षेत्र होने के बावजूद) और असम (तीन चरण) जिनमें भी 2021 में लगभग इसी समय में राज्य विधानसभा के चुनाव हुए थे। इससे न केवल कोविड-19 मामलों में वृद्धि पर अंकुश लगाने में मदद मिलती, सबूत बताते हैं कि ऐसा होता तो भाजपा को अधिक वोट दिलाने में मदद मिलती। व्यापार में और राजनीति में, कभी-कभी अधिक संकीर्ण स्वार्थ की दृष्टि को छोड़ सही काम करना भी फायदेमंद होता है।
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टिप्पणियाँ:
- चूंकि चरणों के लिए सीटों का आवंटन व्यवस्थित नहीं था, हम उचित विश्वास के साथ यह दावा कर सकते हैं कि यह दृष्टिकोण हमें इस कारक का निष्पक्ष अनुमान देता है।
- संसदीय चुनावों के विधानसभा घटक उन विधानसभा क्षेत्रों को संदर्भित करते हैं जो संसदीय निर्वाचन क्षेत्र बनाते हैं। उदाहरण के लिए, कोलकाता दक्षिण संसदीय क्षेत्र में निम्नलिखित विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं: कोलकाता पोर्ट, भवानीपुर, राशबिहारी और बालीगंज। चुनाव आयोग प्रत्येक संसदीय क्षेत्र से जुड़े प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए पार्टीवार वोटों के वितरण पर डेटा प्रकाशित करता है।
लेखक परिचय: मैत्रीश घटक लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। पुष्कर मैत्रा मोनैश यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं |




















































































