राजनीति का अपराधीकरण समाज के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है। यद्यपि साहित्य में आपराधिक रूप से आरोपी नेताओं के आर्थिक परिणामों पर अध्ययन तो किया गया है, लेकिन उनके क्षेत्राधिकार में आपराधिक माहौल पर उनके प्रभाव के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। 2009-2018 के भारत के आंकड़ों का विश्लेषण कर इस लेख में यह दिखाया गया है कि कमजोर कानून-व्यवस्था वाले जिलों में एक अतिरिक्त आपराधिक रूप से आरोपी नेता 64 अतिरिक्त आपराधिक मामलों का कारण बन जाता है।
दुनिया के कई हिस्सों में राजनीति का अपराधीकरण समाज के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है (कोचानेक 2010, ब्राउन 2017, गोडसन 2017)। यह शब्द मोटे तौर पर अपराधियों और राजनेताओं के बीच संबंधों को दर्शाता है। हालांकि चुने हुए राजनेताओं में से भी अनेको पर हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और बलात्कार जैसे अपराधों का आरोप है। लेकिन यह मुद्दा कई देशों में है1, परंतु भारत में इसे विशेष रूप से बड़े पैमाने पर अनुभव किया जा रहा है। बिहार के 2020 विधानसभा चुनावों में 68% निर्वाचित उम्मीदवारों का आपराधिक इतिहास रहा है, जिनमें से अधिकांश पर गंभीर अपराधों का आरोप है।
आर्थिक परिणामों पर अपराध का प्रभाव अच्छी तरह से ज्ञात है (डेटोटो एवं ओट्रान्टो 2010, कुमार 2013), इसके साथ ही हाल ही में आर्थिक परिणामों पर आपराधिक रूप से आरोपी नेताओं के प्रभाव के संबंध में भी ध्यान दिया गया है (प्रकाश एवं अन्य 2019, चेमीन 2012)।2 तथापि अपराध जैसे त्वरित परिणामों पर आपराधिक रूप से आरोपित नेताओं के प्रभाव के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। हम साहित्य में उपलब्ध जानकारी की इस खाई को पाटने का प्रयास करते हैं और इसके लिए हम भारत में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनैतिक नेताओं, विशेष रूप से ऐसे नेता जो गंभीर अपराधों के आरोपी हैं, के क्षेत्राधिकार में अपराध पर प्रभाव का अध्ययन करते हैं।
आपराधिक नेता और अपराध का माहौल
आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता दो बिल्कुल अलग-अलग प्रकार से अपराध को प्रभावित कर सकते हैं। मौजूदा शोध अध्ययनों में से एक दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि माफियाओं को निर्वाचित, आपराधिक रूप से आरोपी नेताओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त होता है जो क्षेत्र में आपराधिक मामलों में वृद्धि का कारण बनता है (पाओली 2014)। यह साहित्य आगे यह भी दर्शाता है कि माफियाओं और राजनेताओं के बीच यह सांठगांठ कमजोर संस्थानों और न्यायिक क्षमता वाले राज्यों में आम है (विलियम्स 2009)। दूसरी ओर, शोध का एक अन्य दृष्टिकोण भी है जो ‘अज्ञानी मतदाता परिकल्पना’ को अस्वीकार करते हुए मतदाताओं के निर्णयों को स्पष्ट करता है। इसके अंतर्गत यह तर्क दिया जाता है कि मतदाता राज्य के कमजोर संस्थानों से किसी सहायता की उम्मीद नहीं करते हैं और इसलिए वे जानबूझकर ऐसे नेताओं को चुनते हैं जो आपराधिक रूप से आरोपी हैं क्योंकि वे इन नेताओं को अपने 'रॉबिनहुड' या 'गॉडफादर' के रूप में देखते हैं जो सामाजिक-आर्थिक संकट के दौरान स्थानीय समुदाय की सहायता कर सकते हैं। यह साहित्य इस बात पर प्रकाश डालता है कि जब न्यायिक रूप से अनधिकृत हिंसा के इतिहास वाले प्रभावशाली राजनेता (तथाकथित ‘गॉडफादर’) सत्ता में होते हैं, तो क्षेत्र के कुछ अपराधियों पर अंकुश लग जाता है जिससे आपराधिक मामलों की संख्या में कमी आ जाती है (वैष्णव 2017) । इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह अनुभव-सिद्ध है कि आपराधिकता अधिक अपराध का कारण बनती है, जहां आपराधिक रूप से आरोपी नेताओं के क्षेत्राधिकार में अपराध के माहौल पर उनका पड़ने वाला प्रभाव अनुभव के आधार पर अस्पष्ट है ।
अपराध का प्रकार मायने रखता है
भारतीय राजनीति विरोध की राजनीति से जुड़ी हुई है। इतिहास गवाह है कि शांतिपूर्वक आरंभ किए गए कई विरोधों ने हिंसक रूप लिए हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई राजनेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने खिलाफ सार्वजनिक शांति-भंग के आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा। सार्वजनिक शांति-भंग करने के इस प्रकार के मामले, जो भारतीय राजनीति में अभिव्यक्ति का एक नियमित माध्यम हैं, हत्या, बलात्कार और शारीरिक हमले जैसे गंभीर आरोपों से गुणात्मक रूप से बहुत भिन्न हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के खिलाफ संसद में प्रस्तावित विधेयक के समर्थन में 2012 में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान गैरकानूनी जमावड़े का आरोप लगाया गया था। दो साल बाद, पप्पू यादव जो कि बिहार राज्य के एक राजनेता हैं और उन पर हत्या के गंभीर आरोपों सहित आपराधिक मामले दर्ज है, वर्षों जेल में रहने के बाद संसद के लिए पुन: निर्वाचित हुए। चूंकि दोनों नेता तकनीकी रूप से आपराधिक आरोपी हैं, इसलिए आरोपों के प्रकार के आधार पर अंतर करना महत्वपूर्ण है। हमारी परिकल्पना यह है कि यदि उपर्युक्त दोनों उदाहरणों को देखा जाए तो पहले वाले राजनेता की तुलना में दूसरे राजनेता जिस पर गंभीर अपराधों का आरोप है वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने में अधिक सक्षम हो सकता है और अपराध के माहौल पर प्रतिकूल रूप से परिणामकारी हो सकता है, या वह 'गॉडफादर' की भूमिका अधिक प्रभावी ढंग से निभा सकता है जिससे जिले में अपराधों को कम किया जा सकता है।
कानून का कमजोर शासन उत्प्रेरक के रूप में
आपराधिक राजनेताओं का अपराध पर संभावित प्रभाव, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, सामान्यतया कानून के कमजोर शासन पर आधारित होता है। एक संभावना यह है कि आपराधिक रूप से आरोपी नेताओं, विशेष रूप से गंभीर अपराधों के आरोपियों की उपस्थिति कानून और व्यवस्था की स्थिति को और खराब करती है। इस परिदृश्य को आम भाषा में माफिया राज या जंगल राज3 के रूप में जाना जाता है। इन राज्यों में आरोपी नेता या तो ऐसे माफिया हैं जिनका नेटवर्क बहुत अच्छा है या वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से माफियाओं से जुड़े हुए हैं, और इस प्रकार वे कानून के कमजोर शासन का लाभ उठाते हैं और अपराध के लिए अनुकूल माहौल बनाते हैं। मिसाल के तौर पर, बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासन को अक्सर एक ऐसे जंगल राज के रूप में जाना जाता था, जहां नालंदा, नवादा और पटना जिलों में काम करने वाले उनके लोग नियमित रूप से राजधानी पटना में बड़ी संख्या में निरंतर अपहरण के मामलों के लिए अखबार की सुर्खियां बनते थे।
दूसरी संभावना यह है कि आपराधिक रूप से आरोपी नेता कमजोर राज्यों में मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए अपने आरोपों का जोर शोर से प्रचार करते हैं। इस मामले में, एक उम्मीदवार की आपराधिक प्रतिष्ठा उनके समुदाय के हितों की रक्षा के लिए नियमों को मोड़ने की उसकी इच्छा और क्षमता का संकेत है। वे समाज के उस वर्ग के लिए 'रॉबिन हुड' या 'गॉडफादर' के रूप में कार्य करते हैं जो उनकी पृष्ठभूमि को जानते हुए भी उन्हें वोट देते हैं। समाज का यह वर्ग, आमतौर पर कमजोर राज्यों में गरीब मतदाता वर्ग है, जो इन नेताओं को कमजोर संस्थानों का विकल्प मानता है और सामाजिक आर्थिक संकट के समय में उनकी सहायता की अपेक्षा करता है।
मौजूदा साक्ष्य बताते हैं कि उपरोक्त दोनों परिदृश्य बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा और उत्तर प्रदेश (बीमारू) जैसे कमजोर संस्थानों वाले राज्यों में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, वैष्णव (2017) पटना के मोकामा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार के विधायक (विधान सभा सदस्य) अनंत सिंह के बारे में चर्चा करते हैं, जो एक दर्जन से अधिक गंभीर आपराधिक मामलों में शामिल थे, और ‘बुरा करके अच्छा करने’ के लिए प्रसिद्ध थे। वह विधायक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान लगातार आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे, लेकिन साथ ही, मोकामा में मतदाता उन्हें आर्थिक और सामाजिक कठिनाइयों के दौरान गरीब मतदाताओं की सहायता करने के कारण "छोटे सरकार"4 कह कर बुलाते थे। दूसरी ओर, विभिन्न अध्ययन जैसे कि फिस्मान एवं अन्य (2014) और प्रकाश एवं अन्य (2019) यह पाते हैं कि बीमारू राज्यों में भ्रष्ट और अपराधी राजनेताओं के हानिकारक प्रभाव को बढ़ाया जाता है।
हमारा अध्ययन
हालिया शोध में, 2009-2018 की अवधि के आंकड़ों का उपयोग करते हुए हम जांच करते हैं कि विधायकों की आपराधिकता उनके निर्वाचन क्षेत्रों में अपराध के परिणामों को कैसे प्रभावित करती है (प्रकाश एवं अन्य 2021) । विधायकों के आपराधिक मामलों के संबंध में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स से प्राप्त जानकारी का उपयोग करते हुए, हम भारतीय दंड संहिता के मद्देनजर प्रत्येक आरोप को गंभीर या गैर-गंभीर मामले में वर्गीकृत करते हैं। फिर हम इस जानकारी को भारत के चुनाव आयोग के चुनाव परिणामों के अतिरिक्त आंकड़ों और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो से जिला स्तर के अपराध मामलो के साथ मिलाते हैं। हम जिलों में अपराध के मामलो पर आपराधिक रूप से आरोपी विधायकों के प्रभाव का आंकलन करने के लिए करीबी चुनावी परिणामों से उत्पन्न नेताओं की आपराधिकता में लगभग यादृच्छिक भिन्नता का प्रयोग करते हैं।5 हम गंभीर अपराधों के आरोपी राजनेताओं और किसी भी अपराध के आरोपी राजनेताओं को अलग-अलग करते हैं और बीमारू (कमजोर) एवं गैर-बीमारू राज्यों के लिए प्रभाव का विश्लेषण करते हैं।
किसी भी अपराध के आरोपी नेताओं के लिए, हम पाते हैं कि बीमारू राज्यों के लिए अनुमान की मात्रा 635.8 है। इसका अर्थ यह है कि, एक ऐसा जिला जिसमें कोई भी नेता आपराधिक रूप से आरोपी नहीं है, की तुलना यदि ऐसे जिले से की जाए जिसमें सभी नेता किसी अपराध के आरोपी हैं, तो अपराधों की कुल संख्या लगभग 636 मामले प्रति वर्ष बढ़ जाती है, जो कि जिले के औसत आपराधिक मामलों का 15% है। बीमारू राज्यों में, प्रत्येक जिले में औसतन 10 राजनीतिक नेता हैं। इसलिए, आपराधिक रूप से आरोपी एक अतिरिक्त नेता 64 अतिरिक्त आपराधिक मामलों का कारण बनता है।
गंभीर अपराध के आरोपी नेताओं के लिए, हम पाते हैं कि बीमारू राज्यों के लिए अनुमान की मात्रा 1,055.3 है, जो पिछले अनुमान की तुलना में बहुत बड़ी है। एक ऐसा जिला जिसमें कोई भी नेता गंभीर अपराध के लिए आरोपी नहीं है, की तुलना यदि ऐसे जिले से की जाए जिसमें सभी नेता गंभीर अपराध के आरोपी हैं, तो अपराधों की कुल संख्या लगभग 1,055 मामले प्रति वर्ष बढ़ जाती है, जो कि जिले के औसत आपराधिक मामलों का 25% है। इसलिए, बीमारू राज्यों के लिए, आपराधिक रूप से आरोपी एक अतिरिक्त नेता 106 अतिरिक्त आपराधिक मामलों का कारण बनता है।
इन परिणामों से संकेत मिलता है कि, किसी अपराध के आरोपी नेता की तुलना में गंभीर अपराधों के आरोपी नेता का चुनाव करना अपराध के माहौल के मामले में समाज के लिए ज्यादा बड़ा खतरा बन जाता है, विशेष रूप से कमजोर संस्थानों वाले राज्यों में। यह निष्कर्ष उस साहित्य के अनुरूप है जिसमें संस्थागत रूप से कमजोर माहौल में आपराधिक रूप से आरोपी नेताओं, विशेष रूप से गंभीर अपराधों के आरोपियों, और माफियाओं के बीच सांठगांठ पर प्रकाश डाला गया है।
इसके बाद हम यह जांचने के लिए कि गंभीर अपराधों के आरोपी नेताओं द्वारा किस प्रकार के आपराधिक मामले सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, जिलों में आपराधिक मामलों की कुल संख्या को तीन श्रेणियों में विभाजित करते हैं - महिलाओं के खिलाफ अपराध, लिंग-तटस्थ अपराध, और अन्य अपराध। हम पाते हैं कि गंभीर रूप से आरोपी एक अतिरिक्त नेता महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 10 और मामलों का कारण बनता है। जैसा कि अपेक्षित था, बीमारू राज्यों में यह प्रभाव अधिक बड़ा है। बीमारू जिलों में गंभीर अपराधों का आरोपी एक अतिरिक्त नेता महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 20 और मामलों का कारण बनता है। इसलिए, ये नेता बीमारू के साथ-साथ गैर-बीमारू राज्यों में समाज में महिलाओं के लिए खतरा बनते दिखाई देते हैं।
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टिप्पणियाँ:
- उदाहरण के लिए, पाकिस्तान और ब्राजील में नेताओं पर क्रमशः बलात्कार और हत्या करवाने का आरोप लगाया गया है।
- डेटोटो और ओट्रान्टो (2010) बताते हैं कि अपराध इटली में वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। कुमार (2013) ने पाया कि भारत में उच्च अपराध प्रति व्यक्ति आय के स्तर और इसकी विकास दर को कम करते हैं। प्रकाश एवं अन्य (2019) यह पाते हैं कि आपराधिक रूप से आरोपी नेताओं के चुनाव का आर्थिक विकास पर एक बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है (निर्वाचन क्षेत्रों के रात्रिकालीन प्रकाश द्वारा अनुमानित)। चेमीन (2012) दर्शाते हैं कि आपराधिक रूप से आरोपी नेता समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- जंगल राज का अर्थ ‘जंगल के कानून' से है।
- छोटे सरकार का अर्थ 'छोटे राजकुमार' से है।
- करीबी चुनावों को उन चुनावों के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां एक निर्वाचन क्षेत्र में शीर्ष दो उम्मीदवारों अर्थात विजेता और उपविजेता के बीच जीत का अंतर, निरंकुश रूप से छोटा होता है, और इसलिए, जीत को लगभग यादृच्छिक माना जा सकता है। इसकी आगे व्याख्या यह की जा सकती है कि शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच मतदाताओं की कोई स्पष्ट प्राथमिकता नहीं है।
लेखक परिचय: निशीथ प्रकाश अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं, और उनकी स्टोर्सेस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट के अर्थशास्त्र विभाग तथा मानवाधिकार संस्थान में संयुक्त नियुक्ति है। सोहम साहू सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी, भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) बैंगलोर में सहायक प्रोफेसर हैं। दीपक सारस्वत यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट में पीएचडी छात्र हैं। रीतिका सिंधी भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर में एक शोध सहायक हैं।























































































