नए कोविड-19, विकासशील देशों की तुलना में पश्चिमी विकसित देशों को अधिक प्रभावित कर रहा है। इस पोस्ट में, बसु और सेन ने दिखाया हैं कि कोविड-19 से हुए हताहत लोगों की संख्या उन देशों में अधिक है जहां बुजुर्ग लोगों की आबादी ज्यादा है, इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या कठोर लॉकडाउन भारत के लिए उपयुक्त व्यावहारिक नीति है जहां बुजुर्ग आबादी का अनुपात कम है।
कोविड-19 से होने वाली मौतों की संख्या जितनी हो गयी है वह चौंका देने वाली है: दुनिया भर के 209 देशों और क्षेत्रों में अब तक 88,543 मौत, तथा 1,519,442 निश्चित मामलों की पुष्टि हो चुकी है। प्रभावित देशों की सूची में इटली सबसे ऊपर है (9 अप्रैल 2020 तक 17,669 मौतें और 1,39,422 पुष्ट मामले)। इटली के बाद स्पेन और अमेरिका का स्थान है, जहां 9 अप्रैल तक मरने वालों की संख्या क्रमशः 14,792 और 14,797 है। द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने चेतावनी दी है कि ये आंकड़े वास्तविक मौतों की संख्या से कम हैं। यह चौंका देने वाली बात है कि विकसित पश्चिमी यूरोपीय देशों तथा अमेरिका में मौतों की दर आश्चर्यजनक रूप से अधिक है। विकासशील देश प्रभावित हो रहे हैं लेकिन वहां अब तक मौतों की संख्या कम है। यह तर्क दिया जा सकता है कि कोविड-19 अभी तक विकासशील देशों में उस मात्रा में नहीं फैला है। इस चेतावनी को देखते हुए, कोई भी यह सवाल कर सकता है कि कोविड-19 वायरस इतनी जल्दी पश्चिमी दुनिया में क्यों फैल गया। एक लोकप्रिय व्याख्या यह है कि चीन के वुहान क्षेत्र में इटली और ईरान के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं जिससे दोनों देशों में महामारी फैल गई। यदि हम इस बिंदु से सहमत होते हैं तो भी यह सवाल बना रहता है कि वायरस इटली से यूरोप और ब्रिटेन के बाकी हिस्सों में इतनी तेजी से क्यों फैल गया जिससे बड़ी संख्या में मौतें हुईं। सिर्फ पर्यटन और लोगों की आवाजाही ही इसकी व्याख्या नहीं कर सकती।
इस लेख में, हम इस महामारी से निपटने के लिए सही दृष्टिकोण पर बहस नहीं करने जा रहे हैं क्योंकि हमारे पास इसके लिए अभी भी पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं है। हम इस तथ्य से अधिक चिंतित हैं कि नया कोविड-19 पश्चिम के कम जनसंख्या घनत्व वाले विकसित देशों को प्रभावित कर रहा है। इन विकसित देशों के लोग अपनी निजता का अपेक्षाकृत अधिक सम्मान करते हैं और विकासशील देशों की तुलना में इन देशों में पारस्परिक संपर्क होने की संभावना कम है। इस तथ्य के बावजूद कि कोविड-19 का कारण एक नया कोरोनावायरस है, विकसित देशों में कई विकासशील देशों की तुलना में बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
इस प्रश्न को ध्यान में रखते हुए, हमने जनसंख्या की आयु संरचना को देखना शुरू किया। हमने विशेष रूप से बुजुर्ग-निर्भरता अनुपात को देखा, जो प्रति 100 काम करने वाली आयु (उम्र 15-64) के लोगों पर बुज़ुर्गों (उम्र 65 या उससे ऊपर) की संख्या का अनुपात है। 2020 के आंकडे, सीआईए (सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी) वर्ल्ड फैक्टबुक से लिए गए हैं। जापान में सबसे अधिक निर्भरता अनुपात यानि 48% है। जापान के बाद इटली (36.6%), स्पेन (30.4%), फ्रांस (33.7%), यूनाइटेड किंगडम (29.3%), और अमेरिका (25.6%) का स्थान है। जाहिर तौर पर विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में बुजुर्ग निर्भरता अनुपात कम है जहां प्रजनन दर उच्च और जीवन प्रत्याशा कम है। भारत में, यह 9.8% है, और सभी उप-सहारा अफ्रीकी देशों में यह अनुपात 10% से कम है। आकृति 1 में भारत और कई विकासशील एवं विकसित देशों के लिए इस बुजुर्ग निर्भरता अनुपात का एक बार चार्ट दिया गया है। जैसा कि आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत और अन्य विकासशील देशों में बुजुर्ग निर्भरता अनुपात यूरोपीय देशों की तुलना में काफी कम है।
आकृति 1. चयनित देशों का बुजुर्ग निर्भरता अनुपात

स्रोत: सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक, 2020

फिर हम दुनिया भर में बुजुर्ग निर्भरता अनुपात के साथ कोविड-19 की घटनाओं और मौत की दरों की तुलना की, जो कि जनसंख्या की आयु संरचना का उचित प्रतिनिधित्व करता है। आकृति 2 और 3 में संक्रमणों तथा मौतों की संख्या के सूचित मामलों के विरुद्ध बुजुर्ग निर्भरता अनुपात के स्कैटर प्लॉट को प्रदर्शित किया गया है। सहसंबंध गुणांक1 क्रमशः 0.53 और 0.44 हैं तथा दोनों के महत्वपूर्ण स्तर2 1% हैं। देशों के प्रतिदर्श को 1813 पर सीमित किया गया है।
आकृति 2. बुजुर्ग निर्भरता अनुपात तथा कोविड-19 से संक्रमित मामलों की संख्या

Source: https://coronavirus.jhu.edu/ and CIA Factbook, 2020
Number of cases - मामलों की संख्या; Elderly Dependency ratio - बुजुर्ग निर्भरता अनुपात

आकृति 3. बुजुर्ग निर्भरता अनुपात तथा कोविड-19 के कारण हुई मौतों की संख्या

स्रोत: https://coronavirus.jhu.edu/ और सीआईए फैक्टबुक, 2020
अंग्रेज़ी में दिये शब्दों का अर्थ: Deaths – मौतें

ये सहसंबंध आश्चर्यजनक हैं। ऐसा लगता है कि कोविड-19 से होने वाली मौतों की दर की आयु प्रोफाइल 1918 के स्पैनिश फ्लू महामारी से काफी विपरीत है, जहां पीड़ित अधिकतर युवा कामकाजी थे (बेल एवं लुईस 2004)। कोविड-19 से होने वाली मौतों की दर उन देशों में ज्यादा है जहां पहले से ही बुजुर्ग आबादी अधिक है, बुज़ुर्गों के संक्रमित होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाता है जहां वे बाद में उनकी मृत्यु हो जाती है (इंपीरियल कॉलेज COVID-19 रिस्पांस टीम, 2020)। तुलनात्मक आधार पर कोई निर्णय लिए बिना, या इन देशों में मौतों की दर की गंभीरता को कम आंके बिना, अभी भी सवाल किया जा सकता है कि क्या कठोर लॉकडाउन भारत के लिए एक व्यावहारिक नीति है, जहां बुजुर्ग निर्भरता अनुपात कम है।
देबराज रे और एस. सुब्रमण्यन एक ऐसे सीमित शटडाउन बंद का प्रस्ताव रखते हैं, जिसमें युवा लोगों को एक आधिकारिक प्रतिरक्षा जांच पास करने के बाद काम करने की अनुमति दी जाती है, जबकि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए स्वयं के चयन तंत्र के आधार पर परिवार के अन्य सदस्यों को घरों में रहने दिया जाता है। भारत में शुरुआती 21-दिवसीय लॉकडाउन की अवधि के बाद हम इस दृष्टिकोण को अधिक व्यावहारिक पाते हैं, जब संचरण की दर में गिरावट की संभावना है। इसके अलावा, भारत के झुग्गी-झोंपड़ी वाले क्षेत्रों में, जहां आबादी घनी है, चयनात्मक रूप से प्रतिरक्षा जांचें भी की जानी चाहिए। यह सवाल उठ सकता है कि क्या कम समय में इस तरह की सामूहिक जांचें किया जाना संभव है, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि भारतीय राज्य प्रत्येक 10 वर्षों में सफलतापूर्वक घर-घर जनगणना करता है। यह देखते हुए कि बुजुर्ग आबादी अधिक असुरक्षित है, शायद वृद्ध सदस्यों वाले परिवारों में जांच किए जाने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जहां परिवार के 20 से 40 वर्ष की आयु के युवा वयस्क, यदि प्रतिरक्षा जांच संतोषजनक ढंग से पास कर लेते, वे काम पर लौट सकते हैं।
यह निश्चित रूप से सही है कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई इसके बाद भी जारी रहेगी। चिकित्सा अनुसंधान को उपयुक्त टीकाकरण खोजने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है। ऐसे क्षेत्रों को ढूंढना, जहां संक्रमण दर की संख्या अधिक है, फिर उन्हें बाकी की लोगों से अलग करना और इस अलग किए गए लोगों तक पर्याप्त आपूर्ति की उपलब्धता को सुनिश्चित करना अनिवार्य होगा। सरकार ने आंशिक सफलता के साथ इसे राजस्थान में पहले ही लागू कर दिया है। साथ में हमें सामाजिक दूरी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है।
नोट्स:
- सहसंबंध दो मात्रात्मक चर के बीच रैखिक संबंध को दर्शाता है। संबंध की मात्रा को एक सहसंबंध गुणांक द्वारा मापी जाती है।
- महत्त्वपूर्ण स्तर शून्य परिकल्पना को खारिज करने की संभावना है, जब यह सच है। 1% का महत्वपूर्ण स्तर यह दर्शाता है कि जब वास्तविक रूप से अंतर न हो तो अंतर होने के निष्कर्ष का जोखिम 1% है।
- ध्यान दें कि चरों को 'लॉग' करने के कारण, हम स्वतः ही शून्य मौतों वाले देशों को छोड़ देते हैं, जिसका अर्थ है कि हमारे प्रतिदर्श में देशों की संख्या घटकर 132 हो जाती है। यदि हम शून्य मौतों वाले देशों को शामिल करते हैं तो देशों की संख्या बढ़कर 164 हो जाती है। और ऊपर बताए गए सहसंबंध 0.26 और 0.28 हैं, जो अभी भी 1% के स्तर पर महत्वपूर्ण हैं।
लेखक परिचय: परंतप बसु डरहम यूनिवर्सिटी बिजनेस स्कूल में मैक्रोइकॉनॉमिक्स के प्रोफेसर हैं। कुणाल सेन, 2019 से संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय-वाइडर के निदेशक हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के ग्लोबल डेव्लपमेंट इंस्टीट्यूट में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं।




















































































