अंतरिम बजट 2019: तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में बढ़ता राजकोषीय घाटा?

13 February 2019
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इस लेख में राजेस्वरी सेनगुप्ता ने हाल ही में घोषित केंद्रीय अंतरिम बजट की विभिन्न बारीकियों का विश्लेषण किया है जिनमें राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लक्षित मार्ग से भटकाव शामिल है। आधार से जुड़े बैंक खातों के दौर में सरकारों के लिए बड़ी संख्या में मतदाताओं को रुपए ट्रांसफर करना काफी आसान हो गया है जिसके कारण नई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करने का लालच भी बढ़ा है। राष्ट्र की राजकोषीय सुदृढ़ता को संभवतः इसके चलते गंभीर कीमत चुकानी पड़ सकती है।

कार्यवाहक वित्तमंत्री, पीयूष गोयल ने 1 फरवरी 2019 को राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन) के लिए अंतरिम बजट प्रस्तुत किया। अंतरिम बजट राष्ट्रीय चुनाव के समीप आने पर प्रस्तुत किए जाते हैं। पूर्णकालिक बजट के बजाय अंतरिम बजट में आम तौर पर नए व्यय की योजनाएं या नए करों के प्रस्ताव नहीं होते हैं क्योंकि उनकी घोषणा करने वाली सरकार उनको लागू करने के लिए मौजूद नहीं भी हो सकती है।

वर्ष 2004 के आरंभ में पूर्ववर्ती राजग सरकार ने मध्य-जनवरी के बाद से किसी नीतिगत घोषणा से परहेज किया था। इसी प्रकार, 2009 और 2014 के आरंभ में संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन) सरकार ने खुद को संबंधित अंतरिम बजट में महत्वपूर्ण घोषणाएं करने से अलग रखा था। पूर्ण बजट नई सरकार के काम संभालने के दो महीने के अंदर प्रस्तुत किया जाता है। नई नीतिगत बहस शुरू करने और महत्वपूर्ण नीतिगत घोषणाएं करने के मामले में नई सरकार को प्राथमिकता देना ही उचित है। वर्ष 2019-20 के लिए ‘केंद्र सरकार के व्यय के लिए लेखानुदान’ का आरंभ इस प्रस्तावना के साथ होता है :

“संविधान के अनुच्छेद 116 (क) के अनुसरण में, पूरे वर्ष के लिए अनुदानों की मांगो पर विस्तृत-विचार तथा उन्हें पारित किये जाने तक, वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिए व्यय हेतु अनुदान प्रदान करने के लिए लोक सभा से अनुरोध किया जा रहा है। इस विवरण में अप्रैल से जुलाई, 2019 के दौरान संभावित रूप से खर्च किये जाने वाले व्यय को पूरा करने के लिए आवश्यक राशियों को दर्शाया गया है।“

यह दर्शाता है कि अंतरिम बजट वर्तमान सरकार के लिए चुनाव होने तक और एक तिमाही के लिए काम चलाते रहने के लिहाज से अंतरिम उपाय है।

हालांकि, 1 फरवरी 2019 को राजग सरकार द्वारा प्रस्तुत अंतरिम बजट का यह मकसद नहीं दिखता है। लेखानुदान (वोट-ऑन-अकाउंट) होने के बजाय बजट में घोषणाओं की लंबी-चौड़ी सूची प्रस्तुत की गई है, जिसमें अनेक नई, सेक्टेरियन योजनाएं और कर में बदलाव शामिल हैं। इससे बजट में अंतर्निहित राजकोषीय विवेक पर सवाल खड़ा हो जाता है।

राजकोषीय विवेकशीलता?

प्रभावी राजकोषीय प्रबंधन अच्छी आर्थिक नीति की बुनियाद है और वित्तीय तथा वृहदार्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) स्थिरता के लिए बहुत जरूरी है। वर्ष 2003 में सरकार ने राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद राजकोषीय अनुशासन में सुधार लाना; संतुलित बजट की दिशा में बढ़ना; और राजकोषीय घाटे में कमी लाने के जरिए निजी क्षेत्र के निवेश के लिए संसाधनों को मुक्त करना था जो अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में तेजी लाए। राजकोषीय घाटा के लिए एफआरबीएम लक्ष्य जीडीपी का 3 प्रतिशत है।

वर्तमान राजग सरकार द्वारा जारी मध्यावधि राजकोषीय नीति संबंधी वक्तव्य के अनुसार, 2018-19 के लिए राजकोषीय घाटे का एफआरबीएम टार्जेट जीडीपी का 3.3 प्रतिशत था जिसे घटाकर 2019-20 में 3.1 प्रतिशत कर दिया गया था। लेकिन अंतरिम बजट में प्रस्तुत 2018-19 के पुनरीक्षित अनुमान (रिवाइज्ड एस्टिमेट्स) के अनुसार, 2018-19 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.4 प्रतिशत होगा। वर्ष 2019-20 के लिए टार्जेट भी बढ़ाकर जीडीपी का 3.4 प्रतिशत कर दिया गया है। यह दर्शाता है कि वर्तमान राजग सरकार अपने कार्यकाल के अंत में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रही है।

अंतरिम बजट में कल्याणकारी योजनाओं की सूची और आबादी के खास-खास तबकों के लिए लक्षित कर संबंधी प्रलोभन मौजूद हैं। सरकार ने अपने पूर्ववर्ती बजट में एक रैंक एक पेंशन1, और आयुष्मान भारत2 जैसे भारी-भरकम खर्च वाले कदमों की घोषणा की थी जिनमें से प्रत्येक पर अच्छी-खासी मात्रा में बजट के संसाधन खर्च होने थे। अंतरिम बजट में इस सूची में ‘प्रधानमंत्री किसान योजना’ की घोषणा के साथ एक और नाम जुड़ गया है जिसके तहत जमीन वाले किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रु. की प्रत्यक्ष आय संबंधी सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। इस कार्यक्रम की फंडिंग भारत सरकार द्वारा की जाएगी और इस पर 75,000 करोड़ रु. का वार्षिक व्यय होगा। बजट में एक पेंशन योजना भी घोषित की गई है जिसका लक्ष्य असंगठित क्षेत्र के लगभग 42 करोड़ श्रमिकों का लाभ पहुंचाना है। इस कारण यह दुनिया की सबसे बड़ी पेंशन योजनाओं में से एक बन गई है। दोनो योजनाएं वर्तमान वर्ष में ही शुरू हो जाएंगी।

सरकार ने नई योजनाओं की तो घोषणा की है लेकिन पुरानी योजनाओं को वापस लेने का संकेत नहीं दिया है। जब तक पुरानी योजनाओं को समाप्त नहीं किया जाता है या सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक सेक्टर) की इकाइयों को बेचा नहीं जाता है, जिनके लिए सरकार ने कोई इरादा नहीं जाहिर किया है, तब तक स्पष्ट नहीं है कि मध्यावधि में नई व्यय योजनाओं की फंडिंग कैसे होगी। इन योजनाओं के अलावा, अंतरिम बजट में लोगों, खास कर मध्य वर्ग, वेतनभोगी व्यक्तियों, और छोटे व्यवसायियों के लिए कर संबंधी अनेक लाभों की भी घोषणा की गई है। इससे व्यय का बोझ और भी बढ़ेगा।

वर्ष 2018-19 के पुनरीक्षित अनुमान में सरकार का कुल व्यय जीडीपी का 13 प्रतिशत था जिसे 2019-20 के बजट अनुमान में बढ़ाकर 13.3 प्रतिशत कर दिया गया है। वहीं, कर राजस्व के लिहाज से देखें तो सकल कर राजस्व 2018-19 के बजट अनुमान में जीडीपी का 12.1 प्रतिशत था जो 2018-19 के पुनरीक्षित अनुमान में घटकर 11.9 प्रतिशत हो गया। यह कमी मुख्यतः नए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से अनुमान से कम कर प्राप्ति होने के कारण थी। दूसरी ओर, 2019-20 के बजट अनुमान में अप्रत्यक्ष करों (इंडिरेक्ट टैक्स) में 2018-19 के पुनरीक्षित अनुमान से 11.8 प्रतिशत की वृद्धि होना अनुमानित है। यह वृद्धि मुख्य रूप से 2019-20 में जीएसटी से प्राप्ति में सुधार होने के अनुमान कारण हुई है। यह स्पष्ट नहीं है कि जब तक जीएसटी के फ्रेमवर्क में ढांचागत परिवर्तन नहीं होता है या उसके प्रशासन में सुधार नहीं होता है, तब तक यह सुधार कैसे होगा क्योंकि बजट में इनका कोई उल्लेख नहीं है।

उक्त चर्चा के आलोक में, अब यह पूछना विवेकपूर्ण होगा कि जीएसटी का टारगेट कितना विश्वसनीय है? अगर 2019-20 के बजट अनुमान में जीएसटी से कलेक्शन का अनुमान वास्तविकता से अधिक है, तो किसान आय सहायता योजना को देखते हुए, जिसका पूरा राजकोषीय प्रभाव 2019-20 में महसूस किया जाएगा, 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे का 3.4 प्रतिशत का टार्जेट कितना विश्वसनीय है?

फाइनांसिंग की समस्याएं

दिनांकित (डेटेड) सरकारी प्रतिभूतियां (गवर्नमेंट सिक्योरिटीज या जी-सेक) जारी करने के जरिए बाजार से उधार लेना राजकोषीय घाटे की फाइनांसिंग का अभी भी मुख्य स्रोत रहा है। वर्ष 2019-20 के लिए बजट में बाजार से 7,10,000 करोड़ रु. के सकल उधार का अनुमान किया गया है। यह रकम 2018-19 के पुनरीक्षित अनुमान में 571,000 करोड़ रु. थी। इसका अर्थ 24 प्रतिशत की भारी-भरकम वृद्धि है। हालांकि नेट वृद्धि (रिडेंप्शन घटाने के बाद) कम है लेकिन फिर भी काफी है।

सरकार द्वारा खर्च बढ़ने के कारण जी-सेक जारी करने में तेज वृद्धि होने से बांड यील्ड जुलाई 2017 से लगातार बढ़ रहीं हैं। सरकारी बांड यील्ड की वृद्धि से अर्थव्यवस्था में उधार लेने की समग्र लागत बढ़ जाती है जिसके कारण निजी निवेश कम हो जाता है। सरकार द्वारा उधार लेने का कार्यक्रम और भी बढ़ने से बांड बाजार में मौजूदा दबाव और भी बढ़ेगा।

सरकारी प्रतिभूतियां मुख्यतः व्यावसायिक बैंकों, बीमा कंपनियों और पेंशन फंडो द्वारा खरीदी जाती हैं। व्यावसायिक बैंकों के पास नियामक मानकों के हिसाब से जितना जी-सेक बांड होना चाहिए, उनके पास पहले से ही उससे अधिक बांड मौजूद हैं। सरकार द्वारा महत्वकांक्षी व्यय की नई योजनाएं घोषित करते देखते हुए यह पूछना उचित होगा कि क्या बैंकों के पास इन जारी सरकारी प्रतिभूतियों को पाने की भूख है? अगर नहीं, तो जी-सेक की दरों का क्या होगा और उसके बाद निजी निवेश और वृद्धि का क्या होगा?

तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था?

बाजार आधारित आधुनिक अर्थव्यवस्था में राजकोषीय विवेकशीलता का एक महत्वपूर्ण तत्व प्रति-चक्रीयता (काउंटर-साइक्लीकलिटी) है। इसका अर्थ यह है कि सरकारों को अच्छे समय के दौरान बचत करनी चाहिए, अधिक कर राजस्व का फायदा उठाना चाहिए और बजट में अधिशेष (सरप्लस) रखने या घाटा कम करने की दिशा में काम करना चाहिए। जब अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति हो और कर राजस्व में कमी आए, तो सरकारों को समग्र मांग (एग्रीगेट डिमांड) में तेजी लाने के लिए अधिक खर्च करना चाहिए और बजट अधिशेष को उसमें खर्च देना चाहिए या बजट घाटे की स्थिति तक भी चले जाना चाहिए। यह मैक्रोइकनॉमिक्स का एक मूल सिद्धांत है। इस संदर्भ में, भारतीय अर्थव्यवस्था की स्पष्ट स्थिति और सरकार की राजकोषीय नीति के बीच अंतर्विरोध दिखता है।

बेस वर्ष 2011-12 के आधार पर 2015 में जारी जीडीपी की नई शृंखला और जीडीपी के आंकड़ों में किए गए संशोधन के बाद सबसे हाल के आंकड़ों के आधार पर सरकार का दावा है कि 2014-18 की अवधि में भारत में जीडीपी की वृद्धि दर आजादी के बाद से अभी तक में सर्वाधिक है। ऐसी परिस्थिति में सरकार का घाटा बहुत कम होना चाहिए था या यहां तक कि अधिशेष (सरप्लस) भी होना चाहिए था। लेकिन इसके बजाय, इस पूरी अवधि में राजकोषीय घाटा और जीडीपी का अनुपात 3 प्रतिशत के एफआरबीएम टारगेट से ऊपर रहा है।

सरकार द्वारा प्रस्तुत अंतरिम बजट में भी इस अंतंर्विरोध को दुहराया गया है। किसी ऐसी अर्थव्यवस्था में, जो सरकार के अनुसार पांच वर्षों से असाधारण विकास दर दर्ज कर रही है और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था है, ऐसी कल्याणकारी योजनाओं की लंबी सूची पेश करने की इतनी जरूरत क्यों है? बजट भाषण में तर्क दिया गया है कि जनसंख्या के बड़े हिस्से – जिसमें किसान, छोटे व्यापारी और व्यवसायी, मध्य वर्ग के वेतनभोगी लोग, अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूर, और पेंशनधारी शामिल हैं – की स्थिति अच्छी नहीं है और उन्हें सरकार से वित्तीय सहयोग की जरूरत है। यह बात आधिकारिक वक्तव्य से मेल नहीं खाती है कि अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित हो रही है।

निष्कर्ष

एफआरबीएम अधिनियम में जिस राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की जरूरत रेखांकित की गई है, अंतरिम बजट द्वारा अर्थव्यवस्था को उसके रास्ते से दूर ले जाने की आशंका है। ऐसा सिर्फ इस कारण से नहीं है कि नियोजित घाटा 3 प्रतिशत के एफआरबीएम टारगेट से ऊपर चला गया है। अधिक बुनियादी बात यह है कि बजट द्वारा एक महत्वपूर्ण विकास को सामने लाया गया है। इसने हमें याद दिलाया है कि हम एक नए युग में रह रहे हैं जिसमें आधार3 से जुड़े बैंक खातों के कारण सरकारों के लिए बड़ी संख्या में मतदाताओं के खातों में रुपए ट्रांसफर करना काफी आसान हो गया है। यह स्थिति किसी नई कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने के सरकारों के लालच को बढ़ा सकती है जिसकी बाद में राष्ट्र की राजकोषीय क्षमता को गंभीर कीमत चुकानी पड़ सकती है। जो सरकार मई 2019 में सत्ता में आएगी, उसे सुनिश्चित करने की जरूरत पड़ेगी कि ऐसे लालचों से बचा जाय और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को पुनः रास्ते पर लाया जाय।

अंत में, अंतरिम बजट ऐसे समय में जारी किया गया जब देश आंकड़ा-संबंधी संकट का सामना कर रहा है। जीडीपी के आंकड़े बजट निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण इनपुट होते हैं। राजकोषीय घाटा अधिक होना चाहिए या कम, इसके मूल्यांकन में विकास का नजरिया अलग रंग भर देता है, और कर लेने वालों द्वारा तय लक्ष्यों को भी प्रभावित करता है। जैसे, अनुमानित वृद्धि दर बहुत ऊंची होने पर कर के टार्गेट भी बहुत ऊंचे होंगे, और निजी क्षेत्र को उसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

जीडीपी के नए आंकड़ों की छानबीन 2015 में उनके जारी होने के बाद से ही चल रही है। विशेषज्ञों ने प्रविधि (मेथडोलॉजी) में गंभीर कमियों की पहचान की है। यह ऐसी समस्या है जिसे अभी भी दूर नहीं किया गया है जिसके कारण विकास दर का अनुमान लगातार वास्तविकता से अधिक दिखता है। राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से आगे जाकर भी आबादी के अनेक तबकों को वित्तीय सहायता देने की सरकार द्वारा महसूस की गई जरूरत इसका भी संकेत देती है कि अर्थव्यवस्था में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। अगली सरकार के लिए जीडीपी को मापने में मौजूद इन समस्याओं को दूर करना जरूरी होगा। तब तक राजकोषीय नीति के बारे में कोई सार्थक चर्चा करना मुश्किल बना रहेगा।

लेखक परिचय: राजेस्वरी सेनगुप्ता इंदिरा गाँधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई में अर्थशास्त्र की असिस्टेंट प्रॉफेसर हैं।

नोट्स:

  1. एक रैंक एक पेंशन योजना का अर्थ यह है कि एक समान सेवा देने के बाद एक पद से रिटायर होने वाले सेना के सभी कर्मियों को समान पेंशन दिया जाएगा चाहे उनके रिटायर होने की तिथि कोई भी क्यों नहीं हो।
  2. भारत सरकार ने 2018 में आयुष्मान भारत योजना (राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण मिशन) की घोषणा की। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मिलकर चलाई जाने वाली यह योजना देश के लगभग 10 करोड़ परिवारों को टर्शियरी हेल्थकेयर के लिए भुगतान करने के लिहाज से तैयार की गई है।
  3. आधार या अद्वितीय पहचान संख्या (यूआइडी) 12 अंकों की खास पहचान संख्या होती है जिसे यूनिक आइडेंटीफिकेशन ऑथरिटी ऑफ इंडिया (यूआइडीएआइ) द्वारा भारत सरकार की ओर से जारी किया जाता है। उसमें हर निवासी की बायोमेट्रिक पहचान – 10 उंगलियों के निशान, पुतलियों और फोटोग्राफ – कैप्चर किए जाते हैं, और उसे भारत में कहीं भी पहचान और पता के प्रमाणपत्र के बतौर काम करने की आशा की जाती है।
राजकोषीय नीति, राजकोषीय घाटा

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