कोविड-19 संकट ने शहरी गरीबों को कैसे प्रभावित किया है? एक फोन सर्वेक्षण के निष्कर्ष-III

27 July 2021
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हालांकि भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव को सभी जानते हैं परंतु इसके आर्थिक और मनोवैज्ञानिक आयामों पर अपेक्षाकृत कम साक्ष्‍य उपलब्‍ध है। दिल्ली के औद्योगिक समूहों में सर्वेक्षण के आधार पर अफरीदी और अन्‍य ने गरीबों, अनौपचारिक श्रमिकों की आजीविका एवं मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी के आज तक के विभिन्‍न चरणों के गतिशील प्रभावों की जांच की तथा महिलाओं और पुरुषों के अनुभवों की तुलना की है।

पिछले दो I4I पोस्ट (अफरीदी और अन्य 2020ए, अफरीदी और अन्य 2020बी) में, हमने 3 अप्रैल से 2 मई 2020 के बीच हुए राष्ट्रव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन (24 मार्च को घोषित) के दौरान मुख्य रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के दिल्ली-आधारित सर्वेक्षण1 के अनुवर्ती फोन सर्वेक्षणों के निष्कर्षों की जानकारी दी थी जो मई 2019 में शुरू हुए थे। हमारे शुरुआती निष्कर्षों में लॉकडाउन की सबसे कठोर अवधि, यानी 19 अप्रैल तक चले लॉकडाउन के चरण 1 का डेटा शामिल था। इसके बाद हमने 20 अप्रैल से 3 मई 2020 तक चले लॉकडाउन के चरण 2, जिसमें प्रतिबंधों में कुछ ढील दी गई थी, के डेटा का उपयोग करते हुए अपने निष्कर्षों को दर्शाया था।

उसके बाद से, हमने इन उत्तरदाताओं के साथ दो और दौर के सर्वेक्षण किए हैं: (i) अगस्त-अक्टूबर 2020 (देशव्यापी लॉकडाउन हटाने के बाद एक फोन सर्वेक्षण) और (ii) अप्रैल-जून 2021 (महामारी की हालिया दूसरी लहर के दौरान और स्थानीय लॉकडाउन के साथ)। अप्रैल 2021 के मध्य तक पिछले सर्वेक्षण दौर का 43 प्रतिशत भाग व्यक्तिगत रूप से किया गया था, इसके बाद हमने फोन सर्वेक्षण का उपयोग करना शुरू किया क्योंकि 19 अप्रैल 2021 को दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। परिस्थितियों के बावजूद, सभी चरणों में बेसलाइन उत्तरदाताओं से किए गए हमारे पुन: साक्षात्कार की दर ऊंची यानि 92% से अधिक रही है, सिवाय पहली लहर में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को छोड़कर, जिसमें हम 88% बेसलाइन परिवारों के साथ फिर से जुड़ पाए थे।

हमारा अध्ययन गरीब और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों, जो हमारी आबादी के सबसे दुर्बल वर्गों में से एक है, पर महामारी के गतिशील प्रभावों के बारे में एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करता है। इसके अलावा, चूंकि हमने पति-पत्नी का एक समान सर्वेक्षण किया है, इसलिए हम एक ही परिवार में कोविड-19 संकट के दौरान महिलाओं और पुरुषों दोनों के अनुभवों का दस्तावेजीकरण करने में सक्षम हुए हैं। विशेष रूप से, हम पिछले दो वर्षों में हमारे उत्तरदाताओं की कमाई, आय और मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी के विभिन्न चरणों के सापेक्ष प्रभाव की जांच करते हैं तथा साथ ही, एक निश्चित समय तथा समय के साथ महिलाओं और पुरुषों के अनुभवों की तुलनात्‍मक जांच भी करते हैं।

आजीविका: पिछले दो वर्षों में बेरोजगारी और कमाई की स्थिति कैसी रही?

2020 में किया गया राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन इन परिवारों की आजीविका और मजदूरी आय के लिए एक बड़ा झटका था (आकृति 1)। जैसा कि अपेक्षित था, इन आवासीय क्षेत्रों में अधिकांश पुरुष श्रमिक काम करने में पूरी तरह असमर्थ रहे थे। लगातार, लगभग 85% पुरुष उत्तरदाताओं ने अपने मुख्य व्यवसाय से कोई आय अर्जित नहीं की थी। जैसा कि 2020 में प्रतिबंधों में कुछ ढील के साथ लॉकडाउन के बाद की प्रतिक्रियाओं से पता चलता है, यह स्थिति समय के साथ थोड़ी ठीक होती गई जिससे यह ज्ञात होता है कि इनमें से कई नौकरियों का नुकसान अस्थायी था। हालांकि, सुधार पूर्ण रूप से नहीं हुआ था, रोजगार का स्तर 2019 के महामारी-पूर्व के स्तर पर वापस नहीं आया था। 70 प्रतिशत पुरुष उत्तरदाताओं ने कोविड-19 की पहली लहर के लॉकडाउन के बाद काम करने की जानकारी दी, जोकि 2019 की तुलना में 14 प्रतिशत (पीपी) कम है।

आकृति 1. सर्वेक्षण दौरों के अनुसार पुरुषों की वर्तमान कामकाजी स्थिति

नोट: सर्वेक्षण अवधि हैं: कोविड-19-पूर्व (मई-जुलाई 2019), कोविड -19 पहली लहर के दौरान (अप्रैल-मई 2020), कोविड-19 पहली लहर के बाद (अगस्त-अक्टूबर 2020), और कोविड-19 दूसरी लहर के दौरान (अप्रैल-जून 2021)।

2021 में महामारी की दूसरी लहर के दौरान फिर से रोजगार कम हो गए लेकिन लॉकडाउन की स्थानीय प्रकृति और इसकी कम कठोरता के कारण रोजगार और कमाई पर इसके प्रभाव 2020 के लॉकडाउन की तुलना में उतने प्रतिकूल नहीं हैं। 2020 में पिछले सर्वेक्षण दौर में 85 पीपी के मुकाबले 2021 में पुरुषों के रोजगार में 17 पीपी की गिरावट आई है। हालांकि, पहली लहर के बाद की अवधि में, महामारी-पूर्व के स्तर तक आने में कुछ हद तक सुधार हुआ है।

हालाँकि, हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि 2020 के राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान बहुत अधिक अनिश्चितता थी क्योंकि श्रमिक उनकी नौकरी का नुकसान स्थायी होगा या अस्थायी, इस बात को लेकर असमंजस में थे। महामारी की दूसरी लहर में, लॉकडाउन न केवल अधिक स्थानीयकृत और कम कड़े थे, बल्कि काफी हद तक उनके अस्थायी होने की भी उम्मीद थी। ये कारक कार्य की रिपोर्ट की गई स्थिति पर दो लहरों के अंतर प्रभाव को बढ़ा सकते हैं।2

इसके बाद, हम कोविड-पूर्व (2019) व्यवसाय के अनुसार कामकाजी स्थिति की जानकारी देते हैं (आकृति 2)। पहली लहर में लॉकडाउन के दौरान अनौप‍चारिक श्रमिक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, लगभग किसी ने भी यह नहीं बताया कि वे काम कर रहे हैं, जबकि 6% स्व-नियोजित और 10% वेतनभोगी श्रमिकों ने काम करने की जानकारी दी। कोविड-19 की पहली लहर के बाद की अवधि में 78% स्व-नियोजित और 75% अनौपचारिक श्रमिकों के मुकाबले वेतनभोगी श्रमिकों के लिए सुधार की दर ऊंची थी जिसमें 81% ने वर्तमान में काम करने की जानकारी दी। दूसरी लहर में, स्वरोजगार करने वालों में 18 पीपी और वेतनभोगी श्रमिकों में 14 पीपी की तुलना में अनौपचारिक श्रमिकों के रोजगार में 24 पीपी की गिरावट आई है।

आकृति 2. कोविड-19-पूर्व व्यवसाय के अनुसार पुरुषों की वर्तमान कामकाजी स्थिति

नतीजतन, पहले लॉकडाउन की तुलना में दूसरी लहर में मासिक आय का कथित नुकसान भी कम हुआ है, पहली लहर में यह नुकसान रु.10,000 से अधिक था जबकि दूसरी लहर में यह 1,300 रुपये था (आकृति 3)3। परंतु दूसरी लहर के कारण, महामारी के पूर्व और महामारी की अवधि के बीच कमाई का अंतर काफी बढ़ गया है।

आकृति 3. सर्वेक्षण दौरों के अनुसार पुरुषों की मासिक आय

यद्यपि हमने 2019 में महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए रोजगार के आंकड़े प्राप्त किए थे, 2020 में लॉकडाउन के दौरान, हम केवल पुरुष उत्तरदाताओं के लिए आजीविका पर डेटा एकत्र कर सके। इसलिए, हमारे पास पुरुष उत्तरदाताओं के लिए रोजगार डेटा के चार दौर और महिलाओं के लिए तीन दौर (2020 के राष्ट्रीय लॉकडाउन को छोड़कर) की जानकारी है।

पुरुषों, जिनकी वर्तमान कामकाजी स्थिति काफी गिरी है, के विपरीत महामारी की दो लहरों और दूसरी लहर के बीच की अवधि के दौरान महिलाओं का रोजगार लगभग 11% -13% पर स्थिर रहा है (आकृति 4)। पुरुषों की तरह, महिलाओं के रोजगार का स्तर कोविड-पूर्व स्तर 21% पर वापस नहीं आया है और यह कोविड-19 की पहली लहर के बाद 10 पीपी कम, और दूसरी लहर के दौरान 8 पीपी कम रहा है।

आकृति 4. सर्वेक्षण दौरों के अनुसार महिलाओं की वर्तमान कामकाजी स्थिति

नोट: सर्वेक्षण अवधि इस प्रकार हैं: कोविड-19-पूर्व ( मई-जुलाई 2019 ), कोविड-19 पहली लहर के दौरान ( अप्रैल-मई 2020 ), जिसका महिलाओं की वर्तमान कामकाजी स्थिति के लिए डेटा उपलब्ध नहीं है, कोविड-19 पहली लहर के बाद ( अगस्त-अक्टूबर 2020 ), और कोविड-19 दूसरी लहर के दौरान ( अप्रैल-जून 2021 )।

यही स्थिति तब भी बनी रहती है जब हम कोविड-19-पूर्व व्यवसाय श्रेणियों के अनुसार वर्तमान कामकाजी स्थिति का विश्लेषण करते हैं (आकृति 5)। पुरुषों के विपरीत, जिनकी वर्तमान कामकाजी स्थिति अगस्त-अक्टूबर 2020 और हाल ही में महामारी की दूसरी लहर के बीच गिरती है, इन दो अवधियों के बीच यह जानकारी प्राप्‍त होती है कि प्रत्येक व्यवसाय श्रेणी में अधिक महिलाएं काम कर रहीं हैं।

आकृति 5. कोविड-19-पूर्व व्यवसाय के अनुसार महिलाओं की वर्तमान कामकाजी स्थिति

नतीजतन, पिछले दो सर्वेक्षण दौरों के बीच महिलाओं की मासिक आय में मामूली और सांख्यिकीय रूप से नगण्य वृद्धि हुई है, हालांकि यह 2019 में बताई गई उनकी आय की तुलना में कम बनी हुई है (आकृति 6)।

आकृति 6. सर्वेक्षण दौरों के अनुसार महिलाओं की मासिक आय

जहाँ कोविड-पूर्व अवधि के बीच और 2020 में कड़े लॉकडाउन के बाद पुरुषों की कामकाजी स्थिति में 14 पीपी की गिरावट आई है, वहीं महिलाओं की कामकाजी स्थिति 10 पीपी कम हो गई है। कोविड-पूर्व स्तरों की तुलना में, पुरुषों की कामकाजी स्थिति 31 पीपी कम है, जबकि महिलाओं की कामकाजी स्थिति 8 पीपी कम है। दो लहरों के बीच की अवधि के दौरान और दूसरी लहर के दौरान (अर्थात अगस्त-अक्टूबर 2020 और अप्रैल-जून 2021 के बीच), पुरुषों की कामकाजी स्थिति में 17 पीपी की गिरावट आई है, जबकि महिलाओं की स्थिति में लगभग 2 पीपी की वृद्धि हुई है।

नतीजतन, कामकाजी स्थिति में लैंगिक अंतर कम हो गया है और यह कोविड-पूर्व अवधि के 70 पीपी से महामारी की दूसरी लहर के दौरान 47 पीपी तक हो गया है। इससे पता चलता है कि कुछ महिलाएं श्रम बाजार में प्रवेश करने या इन दो लहरों के बीच प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करना जारी रखने के लिए मजबूर हुईं थीं, जबकि पुरुषों ने नौकरी खो दी थी। नतीजतन, औसत कमाई का अंतर (कार्य करने की शर्त के बिना) भी लगभग रु.4,000 रुपये तक कम हो गया है, कोविड-पूर्व अवधि में यह रु.10,256 था जबकि दूसरी लहर के दौरान यह रु.6,048 हो गया। ये परिणाम महिलाओं की श्रम आपूर्ति की प्रतिचक्रीय4 प्रकृति पर साहित्य और महामारी की पहली लहर के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम)5 में महिलाओं की भागीदारी पर साक्ष्य (अफरीदी, महाजन और सांगवान 2021) के अनुरूप हैं।

मानसिक स्वास्थ्य: क्या महामारी शुरू होने के बाद से मनोवैज्ञानिक तनाव और बढ़ गया है या उसमें सुधार हुआ है?

अप्रैल 2020 में महामारी की पहली लहर के बाद से, हमने अपने उत्तरदाताओं के बीच उच्च स्तर के मनोवैज्ञानिक तनाव का दस्तावेजीकरण किया है जो वर्तमान संकट का अक्सर उपेक्षित पहलू है। हमने सर्वेक्षण के चार दौरों में अपने उत्तरदाताओं से उनकी भावनात्मक स्थिति के बारे में पूछना जारी रखा।

महामारी की शुरुआत में वित्तीय असुरक्षा पुरुषों के लिए तनाव का सबसे बड़ा कारण थी और पिछले वर्ष (आकृति 7) तक सबसे बड़ा कारण बना रहा। हालाँकि, स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ अब दूसरी लहर में वित्तीय चिंताओं के बराबर हैं अर्थात 93% उत्तरदाताओं ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं की जानकारी दी, जो कि पहली लहर के दौरान रिपोर्ट किए गए 84% से 9 पीपी की वृद्धि दर्शाता है। इसलिए, जबकि वित्तीय चिंताएँ बनी हुई हैं, महामारी के बढ़ने के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ भी बढ़ गई हैं। हम इसका प्रमुख कारण विनाशकारी दूसरी लहर को मानते हैं, जिसमें भारत (और विशेष रूप से दिल्ली) में वायरस के अत्यधिक संक्रामक डेल्टा वेरिएंट तथा साथ ही स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ा जाने के कारण हफ्तों तक प्रतिदिन कोविड-19 संक्रमण और मौतों के उच्च आंकड़े दर्ज किए गए। आश्चर्य नहीं कि हम अवसाद और चिंता में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखते हैं, जबकि रिपोर्ट किए गए नींद संबंधी विकार लगभग समान रहे हैं।

आकृति 7. सर्वेक्षण दौरों के अनुसार पुरुषों का मानसिक स्वास्थ्य

नोट: सर्वेक्षण अवधि हैं: कोविड-19 पहली लहर के दौरान (अप्रैल-मई 2020), कोविड-19 पहली लहर के बाद (अगस्त-अक्टूबर 2020), कोविड-19 दूसरी लहर के दौरान (अप्रैल-जून 2021) ।

आकृति में आए अंग्रेजी शब्‍दों का हिंदी अर्थ

Financial Stress : वित्‍तीय तनाव

Health Stress : स्‍वास्‍थ्‍य तनाव

Anxious/Nervous : चिंता

Depress : अवसाद

Unable to sleep : नींद न आना

हम पाते हैं कि महिलाओं द्वारा भी समान प्रतिक्रियाएं दी गई हैं (नीचे आकृति 8 देखें), अर्थात उच्च वित्तीय तनाव के साथ स्वास्थ्य तनाव, चिंता और अवसाद में वृद्धि की जानकारी दी गई है। हालांकि, पुरुषों के विपरीत, महिलाएं पहली लहर के दौरान के नींद संबंधी विकारों में 49% से दूसरी लहर के दौरान 53% तक वृद्धि की जानकारी देती हैं।

आकृति 8. सर्वेक्षण दौरों के अनुसार महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य

नोट: सर्वेक्षण अवधि हैं: कोविड-19 पहली लहर के दौरान (अप्रैल-मई 2020), कोविड-19 पहली लहर के बाद ( अगस्त-अक्टूबर 2020 ), कोविड-19 दूसरी लहर के दौरान ( अप्रैल-जून 2021 )।

प्रत्येक सर्वेक्षण लहर में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मानसिक स्थिति काफी खराब है, जहां पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं भावनात्मक चिंताओं की जानकारी देती हैं। लिंग के आधार पर यह अंतर अवसाद और नींद संबंधी विकारों के लिए महिलाओं में काफी बढ़ गया है।

सारांश

हमारे सर्वेक्षण भारतीय समाज के कुछ सबसे कमजोर वर्गों के आर्थिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति में परिवर्तन को दर्ज करते हैं। हम पाते हैं कि महामारी की हालिया विनाशकारी दूसरी लहर के दौरान लगा आर्थिक झटका 2020 के राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान लगे आर्थिक झटके से ज्यादा बड़ा नहीं है। हालांकि, श्रम बाजार अभी तक महामारी-पूर्व के अपने स्तर तक नहीं पहुंच सका है, जो महामारी के बढ़ते रहने पर गरीब और दुर्बल वर्ग पर इसके दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में चिंताओं को दर्शाता है। उस स्तर की पुनःप्राप्ति रुक-सी गई है, यद्यपि वह विपरीत नहीं हुई है; अतः इस दिशा में तत्काल बड़े, सार्वजनिक हस्‍तांतरण की आवश्यकता है ताकि स्थिति को और बिगड़ने से रोका जा सके।

भले ही दूसरी लहर में आर्थिक झटका कम रहा हो, इसका मनोवैज्ञानिक झटका महामारी की शुरुआत की तुलना में अधिक रहा है, खासकर जबकि स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं। भावनात्मक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव न केवल जारी रहा है और पिछले एक साल में ऊंचा बना हुआ है, बल्कि यह बिगड़ता हुआ प्रतीत होता है और यह इन श्रमिकों की दीर्घकालिक उत्पादकता को संभावित रूप से प्रभावित कर रहा है, जो आर्थिक सुधार को धीमा कर रहा है।

यह नोट ‘द वायर’ के सहयोग से पोस्ट किया गया है।

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टिप्पणियाँ:

  1. सर्वेक्षण एक यादृच्छिक नमूने के साथ किया गया था, जिसमें औद्योगिक क्षेत्रों में कम आय वाले परिवार शामिल थे जिनमें लगभग 1,500 परिवारों में रहने वाले 3,000 से अधिक पुरुष और महिलाएं सम्मिलित थे।
  2. सभी सर्वेक्षण दौरों में, 'कोविड-19 की पहली लहर के दौरान' को छोड़कर, एक व्यक्ति को नियोजित माना गया है यदि वह यह सूचित करता है कि वह वर्तमान में काम कर रहा है। 'कोविड-19 की पहली लहर के दौरान', 24 मार्च 2020 के बाद जिस व्यक्ति के कार्य के दिनों की संख्या शून्य नहीं थी, अर्जित आय धनात्‍मक थी, या उत्‍तरदाता ने वर्तमान में काम के लिए यात्रा करने की जानकारी दी थी, उस व्यक्ति को नियोजित माना गया है।
  3. 'कोविड-19 की पहली लहर' सर्वेक्षण के दौरान, पुरुष उत्तरदाताओं को 2020 के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के पहले दिन से सर्वेक्षण की तारीख तक अपनी कुल कमाई की जानकारी देने के लिए कहा गया था। अन्य सर्वेक्षण दौरों के साथ इसकी तुलना करने के लिए हमने प्रति दिन आय की गणना की और मासिक आय प्राप्त करने के लिए इसे 30 से गुणा किया।
  4. प्रतिचक्रीय का अर्थ एक आर्थिक चक्र में उतार-चढ़ाव का विरोध करना या विरोध करने के लिए प्रवृत्त होना है।
  5. मनरेगा एक ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों के वेतन-रोजगार की गारंटी देता है, जिसके वयस्क सदस्य निर्धारित न्यूनतम मजदूरी पर अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हैं।

लेखक परिचय : फरजाना आफरीदी भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली की अर्थशास्त्र और योजना इकाई में प्रोफेसर हैं। अमृता ढिल्लों किंग्स कॉलेज, लंदन में राजनीतिक अर्थव्यवस्था विभाग में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं। संचारी रॉय किंग्स कॉलेज लंदन में विकास अर्थशास्त्र में वरिष्ठ व्याख्याता (एसोसिएट प्रोफेसर) हैं।

मानव विकास, लिंग, नौकरियां, सार्वजनिक स्वास्थ्य

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