भारत के कुल रोज़गार में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा : प्रदर्शन खराब नहीं है

26 November 2024
2
min read

भारत में नौकरियों के बारे में उपलब्ध आँकड़े पिछले 50 वर्षों में भारत के कुल रोज़गार में विनिर्माण के हिस्से में मामूली वृद्धि ही दर्शाते हैं। इस लेख में बिश्वनाथ गोलदार ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि विनिर्माण से सेवाओं के अलग हो जाने के कारण, विनिर्माण द्वारा उपयोग की जाने वाली सेवाओं की आउटसोर्सिंग समय के साथ तेज़ी से बढ़ी है। यदि इसे ध्यान में रखा जाए, तो रोज़गार सृजन में विनिर्माण का प्रदर्शन उतना निराशाजनक नहीं है जितना कि आकँड़े बताते हैं।

कई विद्वानों और समीक्षकों ने इस बात पर निराशा व्यक्त की है कि उपलब्ध रोज़गार आँकड़ों के अनुसार भारत के कुल रोज़गार में विनिर्माण का हिस्सा लगभग स्थिर रहा है और रोज़गार में वृद्धि का प्रदर्शन पूर्वी एशियाई देशों जितना अच्छा नहीं रहा है। व्यापार उदारीकरण और औद्योगिक लाइसेंसिंग के उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण सुधारों के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण हिस्सेदारी में वृद्धि का रुझान नहीं दिखने पर भी इसी तरह का असंतोष व्यक्त किया गया है।

हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि यदि हम 2003-04 से विभिन्न वर्षों के सन्दर्भ में ‘डबल डिफ्लेशन विधि’1 का उपयोग करके भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के स्थिर-मूल्य, सकल मूल्य-वर्धित यानी ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए), की गणना करते हैं तो पाते हैं कि कुल जीवीए में विनिर्माण का हिस्सा स्थिर नहीं रहा है, बल्कि समय के साथ काफी बढ़ गया है (गोलदार 2024, गोलदार और दास 2024)। राष्ट्रीय खातों के लिए ‘डबल डिफ्लेशन विधि’ का अनुप्रयोग अत्यधिक वांछनीय है और कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं तथा कुछ उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं वाले कई देश (ब्राज़ील, मैक्सिको और दक्षिण कोरिया) अपने राष्ट्रीय खातों के लिए इसी विधि को लागू करते हैं। यदि भारत ने 2004-05 श्रृंखला से ‘डबल डिफ्लेशन विधियों’ का उपयोग किया होता और उसे वर्ष 2011-12 श्रृंखला में जारी रखा होता तो वर्ष 2004-05 की कीमतों पर कुल वास्तविक जीवीए में विनिर्माण का हिस्सा वर्ष 2003-04 के 16% से दोगुना होकर वर्ष 2018-19 में 32% हो गया होता।

विनिर्माण क्षेत्र की रोज़गार में हिस्सेदारी के रुझान

रोज़गार में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी पर करीब से नज़र डालते हैं। देव (2024) के हालिया अनुमानों के अनुसार, रोज़गार में विनिर्माण की हिस्सेदारी वर्ष 1972-73 में 8.9% थी, जो वर्ष 2011-12 में बढ़कर 12.8% हो गई, जो लगभग 40 वर्षों में चार प्रतिशत की वृद्धि है। ये अनुमान राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के 'रोज़गार-बेरोज़गारी सर्वेक्षण' (ईयूएस) पर आधारित हैं। एनएसएसओ के ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (पीएलएफएस) और ईयूएस के रोज़गार आँकड़ों के बीच असंगति के कारण वर्ष 2011-12 से आगे के वर्षों के लिए रोज़गार में विनिर्माण की हिस्सेदारी का पता लगाने में कठिनाइयाँ हैं। ईयूएस पर आधारित वर्ष 2011-12 के लिए विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार और पीएलएफएस पर आधारित वर्ष 2018-19 के अनुमान लगभग 6 करोड़ हैं। यह विश्वास करना आसान नहीं है कि भारत के विनिर्माण क्षेत्र ने सात वर्षों में अधिक नौकरियाँ सृजित नहीं हुई, जबकि औद्योगिक उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

अन्य उपलब्ध डेटा वर्ष 2011-12 और 2018-19 के बीच विनिर्माण रोज़गार में वृद्धि का संकेत देते हैं। 'वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण' (एएसआई) के अनुसार, संगठित विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार इन दो वर्षों के बीच लगभग 27 लाख से बढ़ा तथा खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के उद्यमों में रोज़गार, जो असंगठित विनिर्माण रोज़गार का एक हिस्सा है, में 28 लाख की वृद्धि हुई। इसलिए, पीएलएफएस डेटा से प्राप्त वर्ष 2018-19 के सन्दर्भ में विनिर्माण रोज़गार के अनुमान को ईयूएस डेटा आधारित वर्ष 2011-12 के अनुमान के बराबर बनाने के लिए कम से कम 60 लाख तक बढ़ाने की आवश्यकता है। इन समायोजनों के के बाद देखें तो वर्ष 2018-19 में रोज़गार में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 13.8% थी, जो वर्ष 1972-73 की तुलना में लगभग पांच प्रतिशत अधिक थी (आकृति-1 देखें)। इस प्रवृत्ति को स्थिर नहीं कहा जा सकता है।

आकृति-1. रोज़गार में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी

स्रोत : वर्ष 1972-73 से 2011-12 तक के आँकड़े देव (2024) से लिए गए हैं। वर्ष 2018-19 का अनुमान लेख में बताए अनुसार प्राप्त किया गया है।

विनिर्माण से सेवाओं का अलग होना

विनिर्माण क्षेत्र से सेवा क्षेत्र के अलग होने की प्रक्रिया सर्वविदित है। इस पहलू पर सबसे पुराने अध्ययनों में से एक भगवती (1984) द्वारा किया गया था। हमने गोलदार और बंगा (2007) में, भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में सेवाओं के इनपुट की भूमिका का भी अध्ययन किया है। उपलब्ध रोज़गार आँकड़ों के आधार पर देश में रोज़गार में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी में देखी गई सुस्त वृद्धि के मूल में यही घटना है। वर्ष 1973 में भारत में एक विनिर्माण कारखाने की स्थिति को देखते हैं। इस कारखाने को अपनी विनिर्माण गतिविधि में सहयोग के लिए कई सेवाओं की आवश्यकता थी, जिनमें से अधिकांश उसके कर्मचारी द्वारा प्रदान करते थे, इसलिए उन्हें विनिर्माण क्षेत्र के श्रमिकों के रूप में गिना जाता था। समय के साथ, कारखाने ने इन सेवाओं को आउटसोर्स करना अधिक लाभदायक पाया और उन सेवाओं को प्रदान करने वाले श्रमिकों को विनिर्माण क्षेत्र के बजाय सेवा क्षेत्र में गिना जाने लगा। ये नौकरियाँ विनिर्माण गतिविधि का एक स्वाभाविक हिस्सा थीं, लेकिन प्रौद्योगिकी के विकास और सक्षम सेवा-प्रदाता फर्मों के विकास के साथ ये विनिर्माण क्षेत्र से अलग हो गईं।

भारत में विनिर्माण से सेवाएं किस हद तक अलग हुई हैं, इसका अनुमान लगाना कठिन है। हालांकि, विनिर्माण कारखानों द्वारा खरीदी गई सेवाओं और उनके कर्मचारियों को किए गए भुगतान पर विचार करके एक मोटा अनुमान लगाया जा सकता है। एएसआई की रिपोर्ट में कारखानों द्वारा खरीदी गई सेवाओं के बारे में डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुल (मध्यवर्ती) इनपुट का मूल्य लेकर और उपभोग की गई सामग्री, ईंधन और बिजली के मूल्य को घटाकर एक मोटा अनुमान लगाया जा सकता है। जब खरीदी गई सेवाओं (जिसमें अन्य विविध लागतें जैसे कि भवन, संयंत्र और मशीनरी के लिए भुगतान किया गया किराया और मरम्मत और रखरखाव की लागत शामिल है) पर व्यय किया गया यह आँकड़ा कर्मचारियों को दिए गए वेतन से विभाजित किया जाता है, तो अनुपात वर्ष 1973-74 के लिए 0.4, वर्ष 1974-95 के लिए 0.8 और वर्ष 1975-76 के लिए 0.9 (औसत 0.7) तथा वर्ष 2017-28 के लिए 2.4, वर्ष 2018-19 के लिए 2.5 और वर्ष 2019-20 के लिए 2.4 (औसत 2.4) पाया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि एक बार जब विनिर्माण से अलग की गई सेवा नौकरियों को संगठित विनिर्माण में श्रमिकों की संख्या में वापस जोड़ दिया जाता है, तो ऐसी नौकरियों की कुल संख्या एएसआई में बताई गई संख्या से दोगुनी या उससे भी अधिक हो सकती है। चूंकि संगठित विनिर्माण क्षेत्र में कुल विनिर्माण रोज़गार का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है, इसलिए ऊपर उल्लिखित विनिर्माण क्षेत्र के 13.8% के अनुमानित हिस्से को वर्ष 1972-73 के आँकड़े के बराबर करने के लिए चार प्रतिशत अंक या उससे अधिक बढ़ाने की आवश्यकता होगी। इसलिए, भारत में विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार हिस्सेदारी में वृद्धि मामूली नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण रही है।

देश-दर-देश तुलना

संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत में कुल रोज़गार में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी (आईसीएलएस-19 के अनुरूप- वर्ष 2013 में श्रम सांख्यिकीविदों के 19वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अपनाए गए मानक) 10.9% थी। कंबोडिया के सन्दर्भ में यह आँकड़ा 15.1% (2019), चीन के लिए 28.7% (2020), इंडोनेशिया के लिए 14.0% (2022), मलेशिया के लिए 16.7% (2022), फिलीपींस के लिए 7.9% (2021), दक्षिण कोरिया के लिए 16% (2022), थाईलैंड के लिए 15.7% (2021) और वियतनाम के लिए 21.0% (2021) है (आवर वर्ल्ड इन डाटा, 2022)। ये आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत का विनिर्माण रोज़गार हिस्सा अधिकांश पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में कम है।

ऊपर यह तर्क दिया गया है कि भारत में विनिर्माण क्षेत्र से सेवाओं के अलग हो जाने से संबंधित आकलन हेतु, विनिर्माण क्षेत्र की अनुमानित हिस्सेदारी को लगभग चार प्रतिशत अंक या उससे अधिक तक समायोजित करने की आवश्यकता है। यह समायोजन भारत में विनिर्माण क्षेत्र की रोज़गार में हिस्सेदारी को पूर्वी एशियाई देशों के स्तर पर नहीं लाएगा, क्योंकि यह विभाजन प्रभाव इन देशों में भी अवश्य रहा होगा। इस संबंध में दो तर्क दिए जा सकते हैं। पहला, भारत के व्यापक रूप से विकसित सेवा क्षेत्र को देखते हुए, विभाजन की सीमा अपेक्षाकृत अधिक रही होगी। दूसरा, अधिकांश पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में भारत में विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी सेवाओं का उपयोग कम है। ट्रेड इन वैल्यू एडेड (टीआईवीए) डेटाबेस के 2023 संस्करण के अनुसार, वर्ष 2018 में देश के विनिर्मित उत्पादों के सकल निर्यात में विदेशी सेवाओं का मूल्य-वर्धित घटक भारत में लगभग 9% था, जबकि कंबोडिया में 18%, चीन में 7%, इंडोनेशिया में 7%, मलेशिया में 18%, फिलीपींस में 13%, दक्षिण कोरिया में 13%, थाईलैंड में 17% और वियतनाम में 20% था। इसका तात्पर्य यह है कि विनिर्माण से सेवाओं के अलग हो जाने से, भारत के मामले में मुख्य रूप से भारतीय धरती पर सेवाओं में रोज़गार सृजन हुआ, जबकि कई पूर्वी एशियाई देशों के मामले में इससे विदेशी धरती पर भी काफी मात्रा में रोज़गार सृजन हुआ। इन दो कारकों को ध्यान में रखने पर, भारतीय विनिर्माण क्षेत्र का रोज़गार सृजन प्रदर्शन पूर्वी एशियाई देशों से बहुत कम नहीं लगता है।

इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं, और जरूरी नहीं कि वे I4I संपादकीय बोर्ड के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।

टिप्पणी:

  1. ‘डबल डिफ्लेशन विधि’ में, आउटपुट के मूल्य को आउटपुट डिफ्लेटर द्वारा डिफ्लेट किया जाता है, जबकि कच्चे माल को कच्चे माल के डिफ्लेटर द्वारा डिफ्लेट किया जाता है। फिर वास्तविक जीवीए अनुमान प्राप्त करने के लिए दो वास्तविक संख्याओं को घटाया जाता है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : बिश्वनाथ गोलदार आर्थिक विकास संस्थान (आईईजी), दिल्ली के अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं। वे वर्तमान में आर्थिक विकास संस्थान में नॉन रेज़िडेंट वरिष्ठ फेलो हैं। वे राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व सदस्य हैं।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक न्यूज़ लेटर की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

नौकरियाँ, फर्म, विनिर्माण, सेवाएँ

Subscribe Now

Sign up to our newsletter to receive new blogs in your inbox
Thank you! Your submission has been received!
Oops! Something went wrong while submitting the form.

Related

Sign up to our newsletter to receive new blogs in your inbox

Thank you! Your submission has been received!
Your email ID is safe with us. We do not spam.