कोविड-19: ‘आभासी महामारी’ और महिलाओं के खिलाफ हिंसा

08 October 2020
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महिलाओं के खिलाफ हिंसा दुनिया भर में एक समस्या है जिसकी आर्थिक लागतें वैश्विक जीडीपी में 1% से 4% तक आती हैं। यह लेख इस बात की जांच करता है कि भारत में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा की संख्या और तरीके किस प्रकार बदल गए हैं। इसमे यह दर्शाया गया है कि सबसे कड़े प्रतिबंध वाले जिलों में घरेलू हिंसा और साइबर क्राइम की शिकायतों में बढ़ोतरी हुई है जबकि बलात्कार और यौन हमले की शिकायतों में कमी आई है।

दुनिया भर में प्रत्‍येक तीन महिलाओं में से एक महिला अपने अंतरंग साथी की हिंसा (आईपीवी) झेलती है, और इस हिंसा की आर्थिक लागत वैश्विक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की 1% से 4% तक है (डेवरीस एवं अन्‍य 2013, गार्सिया-मोरेनो एवं अन्‍य 2015, रिबेरो और सेंचेज 2005)। संयुक्त राष्ट्र वुमन ने कोविड-19 महामारी एवं इससे जुड़े लॉकडाउनों के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि को "आभासी महामारी" (यूएन महिला, 2020) के रूप में संदर्भित किया है। नए शोध में, हम (रवींद्रन और शाह 2020) भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसे महिलाओं के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देश का दर्जा दिया गया है। विशेष रूप से, हम इस बात की जांच करते हैं कि भारत में कोविड-19 महामारी और लॉकडाउनों के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा की संख्या और प्रकार बदले हैं या नहीं।

आंकडे और विधियाँ

हम घरेलू हिंसा, साइबर क्राइम, बलात्कार और यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच करने के लिए भारत में सरकार द्वारा लागू किए गए अनिवार्य लॉकडाउनों की तीव्रता में बदलावों का उपयोग करते हैं। हम राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्‍ल्‍यू) द्वारा देश भर से प्राप्त शिकायतों पर आंकड़ों का उपयोग करते हैं। ये जिले और महीने के अनुसार दिए गए सार्वजनिक-पहुंच के प्रशासनिक रिकॉर्ड हैं। इन आंकड़ों को शिकायतों की श्रेणियों के अनुसार अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया जाता है, जिसे हम मोटे तौर पर इन समूहों में रखते हैं: (i) घरेलू हिंसा (ii) साइबर क्राइम (iii) उत्पीड़न और (iv) बलात्कार और यौन हमला। हम अपने विश्लेषण में जनवरी 2018-मई 2020 की अवधि पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि हिंसा की आवृत्ति पूरे वर्ष बदलती रहती है जिसमें कुछ महीनों में हिंसा की संख्या अधिक देखी जाती है। कोविड लॉकडाउनों से पहले के दो साल के आंकड़ों को शामिल करके हम इस विश्लेषण में हिंसा की इस मौसमी स्थिति को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं।

आकृति 1. राष्ट्रीय महिला आयोग को प्राप्त शिकायतें

आकृतियों में आए अंग्रेजी शब्‍दों के हिंदी अर्थ

Domestic Violence Complaints घरेलू हिंसा की शिकायतें

Cyber Crime Complaints साइबर क्राइम की शिकायतें

Red Zone लाल क्षेत्र

Orange Zone नारंगी क्षेत्र

Green Zone हरा क्षेत्र

Harassment Complaints उत्‍पीड़न की शिकायतें

Rape & Sexual Assault Complaints बलात्‍कार एवं यौन हमले की शिकायतें

स्रोत: शिकायत और जांच प्रकोष्‍ठ, एनसीडब्‍ल्‍यू, भारत

नोट: आंकड़े अक्टूबर 2019-मई 2020 के दौरान एनसीडब्ल्यू द्वारा लॉकडाउन क्षेत्र रंग की श्रेणी (लाल, नारंगी, और हरा) के अनुसार प्राप्त शिकायतों के जिला माध्‍य (औसत) की संख्या को दर्शाते हैं। भारत ने 25 मार्च 2020 को देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया था।

समय के साथ-साथ भिन्नता के अलावा हम अप्रैल और मई 2020 में सभी जिलों के लाल, नारंगी और हरे क्षेत्रों में वर्गीकरण के आधार पर लॉकडाउन प्रतिबंधों में स्थानिक भिन्नता का भी उपयोग करते हैं। लाल क्षेत्र में स्थित जिलों में सबसे सख्त लॉकडाउन उपाय लागू किए गए जबकि नारंगी और हरे क्षेत्र में स्थित जिलों में कम प्रतिबंध लगाए गये थे। यह वर्गीकरण संख्या एवं कोविड-19 मामलों के दुगुने होने की दर सहित कई कारकों पर आधारित था। 639 जिलों में से 120 जिलों को लाल क्षेत्र में, 257 को नारंगी क्षेत्र में और 262 को हरे क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया था। गूगल सामुदायिक आवाजाही रिपोर्ट के आंकड़ों का उपयोग करते हुए हम यह सत्यापित करते हैं कि क्षेत्र रंग की श्रेणियों के अनुसार लाल क्षेत्र में स्थित जिलों में गंभीर लॉकडाउन के कारण अप्रैल और मई 2020 में आवाजाही सबसे अधिक प्रभावित हुई जैसा कि इस नीति से अपेक्षित था।

हम लॉकडाउन के उपायों के कारण सर्वाधिक प्रभावित जिलों के सापेक्ष सबसे कम प्रभावित जिलों के अनुसार जिलों में शिकायतों के विभेदक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए ‘अंतर-में-अंतर’1 डिज़ाइन का उपयोग करते हैं। हमारे अनुसंधान डिजाइन में हम लाल, नारंगी और हरे क्षेत्रों के अनुसार जिलों के वर्गीकरण और लॉकडाउन उपायों का उपयोग करते हैं और महीने के अनुसार परिणाम दिखाते हैं। हम समय के साथ एनसीडब्ल्यू को की गई शिकायतों में देश-व्यापी ट्रेंड दिखाने के लिए लचीला लेखा-जोखा देते हैं जिसके लिए हम जिलों में किसी महीने तथा वर्ष के भीतर विचलन तथा किसी जिले में समय के साथ विचलन का उपयोग करते हैं।

निष्‍कर्ष

भारत में सरकार द्वारा लागू किए गए अनिवार्य लॉकडाउनों की तीव्रता में भिन्नता का उपयोग करते हुए हम दिखाते हैं कि सख्त लॉकडाउन नियमों वाले जिलों में मई 2020 में घरेलू हिंसा की शिकायतों में 0.47 मानक विचलन 2 (131%) की वृद्धि हुई है। हम सख्त लॉकडाउन नियमों वाले जिलों में साइबर क्राइम की शिकायतों में भी इसी प्रकार की बड़ी वृद्धि पाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन जिलों में इसी अवधि के दौरान बलात्कार और यौन उत्पीड़न की शिकायतों में 0.39 मानक विचलन (119%) की कमी आई है जो सार्वजनिक स्थानों, सार्वजनिक परिवहन और कार्यस्थलों में महिलाओं की आवाजाही में आई कमी (उदाहरण के लिए, बोर्कर 2018 देखें) के अनुरूप है। महत्वपूर्ण रूप से इन परिणामों से यह पता चलता है कि महिलाएं विशेष प्रकार के खतरों का सामना करती हैं और इस प्रकार की नीति विशिष्‍ट प्रकार की हिंसा के परिणामों में सुधार कर सकती है जबकि अन्‍य प्रकार के खतरों को बढ़ा सकती है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के प्रति दृष्टिकोण की भूमिका

हम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (2015-2016) के आंकड़ों का उपयोग करते हुए लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की शिकायतों में परिवर्तन की व्याख्या करने में घरेलू हिंसा के प्रति दृष्टिकोण की भूमिका का भी पता लगाते हैं। सर्वेक्षण में पतियों और पत्नियों से अलग-अलग पूछा जाता है कि पति द्वारा अपनी पत्नी को बार-बार मारना या पीटना किसी भी कारण से उचित है चाहे वह घर या बच्‍चों की ओर ध्‍यान न देना हो, खराब खाना बनाना हो, ससुराल वालों का अपमान करना हो या यौन संबंध बनाने से मना करना हो। हम घरेलू हिंसा के प्रति जिला-स्तर के नजरिए को प्राप्त करने के लिए जिला स्‍तर पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग स्वयं-रिपोर्ट की गई प्रतिक्रियाओं को जोड़ते हैं और औसत निकालते हैं।

हम यह पाते हैं कि जिन जिलों में अधिक अनुपात में पति यह बताते हैं कि अपनी पत्नी को मारना या पीटना उचित है, अप्रैल और मई 2020 में हरे क्षेत्र के जिलों के सापेक्ष लाल क्षेत्र के जिलों में घरेलू हिंसा की शिकायतों में अधिक वृद्धि देखी गई है। दूसरी ओर जिन जिलों में ऐसी पत्नियों की संख्या अधिक है जो यह बताती हैं कि एक पति द्वारा अपनी पत्नी को मारना या पीटता उचित है, उन जिलों में मई 2020 में हरे क्षेत्र के जिलों की तुलना में लाल क्षेत्र के जिलों में घरेलू हिंसा की कम शिकायतें मिली हैं। कुल मिलाकर ये परिणाम घरेलू हिंसा की शिकायतों की घटनाओं और इनकी रिपोर्टिंग के मामले में घरेलू हिंसा के प्रति दृष्टिकोण की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करते हैं।

चर्चा और नीति के निहितार्थ

जबकि अधिकांश अध्ययन केवल घरेलू हिंसा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, हम महिलाओं (घरेलू हिंसा, साइबर अपराध, उत्पीड़न, बलात्कार और यौन उत्पीड़न) द्वारा सामना की जाने वाली संभावित हिंसा परिणामों के एक वर्ग का अध्ययन करते हैं और बताते हैं कि विकल्प के परिणाम के आधार पर एक ही नीति के अलग-अलग प्रभाव हो सकते हैं। जब भारतीय लॉकडाउन एक आभासी महामारी का कारण बना, जिसमें महिलाओं के खिलाफ घर और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हिंसा बढ़ गई, तब इसने बलात्कार और यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों को कम भी कर दिया जो यह दर्शाता है कि एक ही नीति विभिन्न तरीकों से महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कैसे प्रभावित कर सकती है।

हमारा यह निष्कर्ष कि घरेलू हिंसा की घटनाओं में दृष्टिकोण एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा लॉकडाउन के दौरान इनकी रिपोर्टिंग किया जाना यह दर्शाता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में प्रवृत्तियों को पलटने के लिए अतिरिक्त हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए बांग्लादेश में व्यवहार परिवर्तन संचार (बीसीसी) हस्तक्षेप को शारीरिक हिंसा को कम करने के लिए प्रभावी माना गया है (रॉय एवं अन्‍य 2019)। शाह और सीगर (2019) बताते हैं कि लड़कों और नौजवानों को लक्षित करने वाले सामाजिक मानदंडों को सशक्त बनाने और बदलने के लिए सॉकर हस्तक्षेप से किशोर महिलाओं के संबंध में अंतरंग साथी हिंसा की रिपोर्टों में कमी आती है। धर एवं अन्‍य (2018) यह भी पाते हैं कि भारत में स्कूल-आधारित हस्तक्षेप जिसके अंतर्गत कक्षा में किशोरों के साथ लैंगिक समानता के बारे में चर्चा की जाती है। इसमें देखा गया है कि इसके प्रतिभागी अधिक लैंगिक-समान व्यवहार करते हैं। हिंसा के इर्द-गिर्द सामाजिक मानदंड और दृष्टिकोण, हिंसक व्यवहार और रिपोर्टिंग दोनों के महत्वपूर्ण उत्‍प्रेरक हैं।

टिप्‍पणियां:

  1. किसी हस्‍तक्षेप तक पहुंच रखने वाले और न रखने वाले समान समूहों में समय के साथ परिणामों के उद्भव की तुलना करने के लिए एक तकनीक।
  2. मानक विचलन एक माप है जिसका उपयोग किसी समुच्चय के माध्‍य मान (औसत) से मानों के समुच्चय की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को निर्धारित करने के लिए किया जाता है।

लेखक परिचय: मनीषा शाह लॉस एंजिल्स स्थित कैलिफोर्निया यूनिवरसिटि में पब्लिक पॉलिसी की असोसिएट प्रोफेसर हैं। सरवना रविंद्रन नैशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर के ली कुआं यू स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी में असोसिएट प्रोफेसर हैं।

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