गर्भनिरोधक संबंधी निर्णयों के घरेलू हिंसा पर प्रभाव : निर्णय और गतिशीलता

14 November 2024
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महिलाओं की परिवार में अपनी बात रखने की शक्ति और रोज़गार व शिक्षा के रूप में उनके सशक्तीकरण को, अन्तरंग-साथी द्वारा उनके प्रति हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वायलेंस- आईपीवी) की घटनाओं के कम होने और बढ़ जाने, दोनों के सन्दर्भ में दर्ज किया गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के नवीनतम सर्वे के डेटा का उपयोग करते हुए, इस लेख में यह जाँच की गई है कि किसी महिला के गर्भनिरोधक उपयोग के फैसले अन्तरंग-साथी द्वारा उसके प्रति हिंसा (आईपीवी) को कैसे प्रभावित करते हैं। यह लेख दर्शाता है कि गर्भनिरोधकों के उपयोग का स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने पर महिला को शारीरिक, यौन और भावनात्मक हिंसा का अधिक खतरा होता है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक व्यापक वैश्विक मुद्दा है जिसमें लगभग तीन में से एक महिला अपने जीवनकाल में अपने साथी द्वारा शारीरिक या यौन शोषण का सामना करती है (विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2021)। आम तौर पर, महिलाओं के खिलाफ हिंसा से उन्हें गम्भीर तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणाम भुगतने पड़ते हैं, जिनमें शारीरिक चोटें, स्थाई विकलांगता, प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और यहां तक ​​कि मृत्यु भी शामिल है (ड्यूरेवल और लिंड्सकॉग 2015, यूंट एवं अन्य 2011, विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2013)। हम घरेलू हिंसा (डीवी) के ठोस रूप में दर्ज किये गए प्रतिकूल प्रभावों और कोविड-19 महामारी (संयुक्त राष्ट्र, 2022) के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि को देखते हुए, डीवी के अपेक्षाकृत अनदेखे सम्भावित निर्धारक- महिलाओं द्वारा गर्भनिरोधक के उपयोग संबंधी निर्णयों (ओझा और बब्बर 2024) की जाँच करते हैं।

जबकि पहले के शोध में इस बात की जाँच की गई है कि घरेलू हिंसा (डीवी) प्रजनन क्षमता और गर्भनिरोधक प्रथाओं को कैसे प्रभावित करता है (कुपोलुई 2020, मुंद्रा एवं अन्य 2016), आमतौर पर इसके दिखने वाले सह-संबंधों की पहचान करते हुए, हमारा तर्क यह है कि गर्भनिरोधक के उपयोग का निर्णय ही अपने आप में घरेलु हिंसा के बारे में महत्वपूर्ण अनुमान दर्शाता है। हम इस बात का विश्लेषण करते हैं कि किसी महिला के गर्भनिरोधक उपयोग के स्व-निर्णय किस प्रकार से डीवी की सम्भावना को प्रभावित करते हैं। इसके लिए हम भारत में वर्ष 2019-2021 के दौरान आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के नवीनतम सर्वे के डेटा का उपयोग करते हैं।

घरेलू हिंसा के निर्धारकों, विशेष रूप से अन्तरंग-साथी द्वारा हिंसा (आईपीवी) पर किये गए हाल के अध्ययन, महिला सशक्तिकरण और आईपीवी के बीच के जटिल संबंधों को उजागर करते हैं। महिलाओं की अपने परिवार में अपनी बात रखने की शक्ति तथा रोज़गार एवं शिक्षा के रूप में महिलाओं के सशक्तीकरण को उनके प्रति अन्तरंग-साथी द्वारा हिंसा (आईपीवी) की घटनाओं के कम होने (भट्टाचार्य एवं अन्य 2011, एर्टेन और केस्किन 2018, हीथ 2014) और बढ़ने (एंडरबर्ग एवं अन्य 2016), दोनों के सन्दर्भ में दर्ज किया गया है। हमारा शोध इस क्षेत्र में विशेष रूप से इस बात पर ध्यान केन्द्रित करके योगदान देता है कि गर्भनिरोधक के उपयोग के सम्बन्ध में किसी महिला का स्वतंत्र निर्णय आईपीवी को कैसे प्रभावित कर सकता है।

किसी महिला द्वारा गर्भनिरोधकों का उपयोग करने संबंधी स्व-निर्णय का उसके प्रति घरेलु हिंसा के जोखिम के साथ एक जटिल अंतर्संबंध है और इस तरह, यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि महिला का गर्भनिरोधक उपयोग का निर्णय उसके प्रति घरेलु हिंसा को कैसे प्रभावित करेगा। गर्भनिरोधक विकल्पों में स्वायत्तता से शारीरिक नियंत्रण और दृढ़ता में वृद्धि हो सकती है, जिससे सम्भावित रूप से आईपीवी जोखिम कम हो सकता है, लेकिन ऐसे निर्णयों को पितृसत्तात्मक समाजों में पुरुष प्रभुत्व को चुनौती देने, प्रतिक्रिया को भड़काने और आईपीवी को बढ़ाने के रूप में भी देखा जा सकता है (फील्ड एवं अन्य 2021)। यह सूक्ष्म कारक और गतिशीलता एक महत्वपूर्ण अन्तर को रेखांकित करते हैं, जिसे गर्भनिरोधक प्रथाओं पर शोध में अक्सर अनदेखा किया जाता है- परिवारों के भीतर संयुक्त और व्यक्तिगत गर्भनिरोधक निर्णयों के बीच का अन्तर (हक एवं अन्य 2021, मुटोम्बो और बाकिबिंगा 2014)। यद्यपि परिवार नियोजन से स्पष्ट लाभ प्राप्त होते हैं, लेकिन इसकी लागत सेवाओं तक पहुँच से परे होती है तथा इसमें सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक पहलू भी शामिल होते हैं, जो विकासशील देशों में अक्सर बाधाओं के रूप में काम करते हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या कोई महिला गर्भनिरोधक के बारे में निर्णय स्वतंत्र रूप से या संयुक्त रूप से लेती है, क्योंकि गर्भनिरोधक प्रथाओं की प्रेरणा महिलाओं और पुरुषों के बीच भिन्न-भिन्न हो सकती है।

हमारा अध्ययन

गर्भनिरोधक के उपयोग के महिलाओं के स्वतंत्र निर्णय के आईपीवी की घटनाओं पर कारणात्मक प्रभाव की पहचान करने में मुख्य अनुभवजन्य चुनौती यह है कि गर्भनिरोधकों का उपयोग करने का विकल्प कई कारणों से 'अंतर्जात' हो सकता है। यह अंतर्जातता आईपीवी से गर्भनिरोधक का उपयोग करने के निर्णय में विपरीत कारणता, स्व-रिपोर्ट किए गए गर्भनिरोधक उपयोग निर्णय चर में माप की त्रुटि, चयन मुद्दों, साथ ही छोड़े गए चर पूर्वाग्रह के कारण उत्पन्न हो सकती है।1 अंतर्जातता के इस मुद्दे का समाधान और कारणात्मक प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए, हम एक साधन चर या इंस्ट्रुमेंटल अप्रोच (आईवी) दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं, जिसमें रेडियो के माध्यम से परिवार नियोजन संदेशों के प्रति महिलाओं के सम्पर्क के पड़ोस में औसत बहिर्जात भिन्नता का उपयोग, गर्भनिरोधकों का उपयोग करने के उनके निर्णय के लिए हमारे साधन के रूप में किया जाता है।2

हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि गर्भनिरोधकों का स्वतंत्र रूप से उपयोग करने का चुनाव करने से महिला को शारीरिक, यौन और भावनात्मक रूप से आईपीवी का अधिक खतरा होता है। विशेष रूप से, जब निर्णय पूरी तरह से महिला द्वारा किया जाता है, तो शारीरिक हिंसा का जोखिम 9.3 प्रतिशत अंक बढ़ जाता है। यौन व भावनात्मक हिंसा के लिए प्रभाव और भी अधिक स्पष्ट है, जिसमें क्रमशः 11.2 और 29.5 प्रतिशत अंक की वृद्धि हो जाती है।

यह पहचानते हुए कि हमारा साधन पूरी तरह से ‘बहिर्जात’ नहीं हो सकता है क्योंकि यदि यह पड़ोस के स्तर पर अप्रत्याशित सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों के साथ सहसंबंधित है, जो हिंसा के हमारे परिणामों को भी प्रभावित कर सकता है। तो हम कॉनले एवं अन्य (2012) द्वारा प्रस्तुत कार्यप्रणाली का उपयोग करके अपने विश्लेषण को पूरक बनाते हैं जिसमें साधन की पूर्ण ‘बहिर्जातता’ से विचलन कर पाते हैं। हमने पाया कि आईपीवी के सभी तीन रूपों पर गर्भनिरोधक का उपयोग करने के लिए एक महिला के निर्णय का सकारात्मक प्रभाव, साधन अंतर्जातता की काफी हद तक मजबूत है। हमारे परिणाम वैकल्पिक आकलन तकनीकों और पति की विशेषताओं जैसे पति की आयु, रोज़गार की स्थिति, शिक्षा और शराब की खपत, आईपीवी के प्रति लिंग-आधारित दृष्टिकोण और अतिरिक्त नियंत्रण के रूप में पड़ोस-स्तर के सांस्कृतिक मानदंडों को शामिल करने के लिए स्थिर बने हुए हैं। हम अपने परिणामों को मिथ्याकरण विश्लेषण और प्लेसीबो परीक्षणों से और अधिक पुष्ट करते हैं।3

देखे गए प्रभाव में उल्लेखनीय रूप से जनसांख्यिकीय भिन्नता है। युवा और नौकरीपेशा महिलाओं को गर्भनिरोधक के उपयोग का निर्णय स्वयं लेने पर आईपीवी का अधिक जोखिम होता है। कार्यरत महिलाओं पर परिणाम लैंगिक मानदंडों की अस्थिरता से उत्पन्न 'पुरुष प्रतिक्रिया' प्रभाव की पुष्टि करते हैं। इससे पता चलता है कि आईपीवी तब अधिक होता है जब पति के प्रभुत्व के लिए मानक समर्थन अधिक होता है, भले ही महिलाओं की संरचनात्मक स्थिति अपेक्षाकृत उच्च हो। हमारे परिणाम ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं, पिछड़ी जातियों की महिलाओं, जिन महिलाओं की प्रजनन क्षमता अभी पूरी नहीं हुई है (जिसे एक महिला के बच्चों की वास्तविक संख्या और बच्चों की आदर्श संख्या के बीच के अन्तर के रूप में परिभाषित किया जाता है) और जिन महिलाओं के कम बच्चे हैं, से प्रेरित हैं।

साथ ही, हम पाते हैं कि नौकरीपेशा पतियों वाली महिलाओं को ज़्यादा जोखिम होता है। हमारा मानना ​​है कि दम्पतियों के बीच प्रभुत्व (शक्ति) का संतुलन (यहाँ रोज़गार द्वारा संचालित) आईपीवी संबंधी महत्वपूर्ण अनुमान दर्शाता है। जब वास्तविकता और पुरुष श्रेष्ठता के विचार के बीच संघर्ष पैदा होता है, तो महिला को ज़्यादा जोखिम होता है। नौकरीपेशा पतियों के नमूने में, महिला द्वारा मानदंड से विचलन और अपने साथी (जिसे श्रेष्ठ माना जाता है) को शामिल किए बिना स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना उसे आईपीवी के ज़्यादा जोखिम में डालता है। ये अंतर्दृष्टि पुरुष-केन्द्रित परिवार नियोजन आउटरीच कार्यक्रमों को लागू करने के महत्व को रेखांकित करती है, ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ गर्भनिरोधक के प्रति प्रतिरोध बना हुआ है। ऐसी पहल दम्पतियों द्वारा गर्भनिरोधक के बारे में संयुक्त निर्णय लेने को प्रोत्साहित कर सकती है और आईपीवी को कम करने में मदद कर सकती है।

समापन टिप्पणियाँ

हमारे परिणामों को इस चेतावनी के साथ सबसे अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि डीवी और गर्भनिरोधक प्रथाओं की विशिष्ट गतिशीलता सांस्कृतिक सन्दर्भों में भिन्न-भिन्न हो सकती है। हालांकि हमारा मानना ​​है कि हमारे परिणाम अन्य विकासशील देशों में भी प्रासंगिक हैं, जहां मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक व्यवस्थाएं और उच्च घरेलू हिंसा दर है, ऐसे सन्दर्भों में हमारे परिणामों की व्यापकता का आकलन करने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।

इस लेख में जिस मुद्दे पर चर्चा की गई है, वह समयानुकूल और प्रासंगिक दोनों है। हमारे निष्कर्ष व्यापक महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं, जो यौन और प्रजनन स्वास्थ्य, विशेष रूप से परिवार नियोजन और गर्भनिरोधक उपयोग को प्राथमिकता देते हैं। इसके अलावा, ख़ासकर उन परिवारों में जहाँ पति कार्यरत हैं, सरकारी पहलों में गर्भनिरोधक प्रथाओं के बारे में पुरुषों की समझ को बेहतर बनाने के प्रयास शामिल होने चाहिए।

यह लेख लैंगिक समानता और समग्र कल्याण के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में महिलाओं को स्वतंत्र रूप से गर्भनिरोधक चुनने के विकल्प के लिए सशक्त बनाने के महत्व को रेखांकित करता है। वास्तविक सशक्तिकरण प्राप्त करने के लिए गहराई से जड़ जमाए हुए लैंगिक मानदंडों और सम्भावित पुरुष प्रतिरोध का समाधान करना आवश्यक है। हालांकि हमारा अध्ययन गर्भ निरोधकों के प्रति पुरुषों के दृष्टिकोण को लक्षित करने वाले हस्तक्षेपों की सीधे जाँच नहीं करता है, लेकिन मौजूदा शोध से पता चलता है कि परिवार नियोजन के प्रति पुरुषों का सकारात्मक दृष्टिकोण आईपीवी के कम जोखिम से जुड़ा हुआ है (यूएनएफपीए और भारतीय जनसंख्या कोष, 2023)। भविष्य के शोध में ऐसे कार्यक्रमों की प्रभावशीलता की जाँच की जानी चाहिए जो सहायक साझेदारी को बढ़ावा देते हैं और प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित हानिकारक लिंग मानदंडों को चुनौती देते हैं।

टिप्पणियाँ :

  1. उदाहरण के लिए, अन्तरंग-साथी द्वारा हिंसा (आईपीवी) का अनुभव करने वाली महिलाओं में दुर्व्यवहार करने वाले साथी के साथ गर्भधारण से बचने के लिए गर्भनिरोधक का उपयोग करने की अधिक सम्भावना हो सकती है। अन्य अप्राप्य कारक, जैसे कि पहले से मौजूद सामाजिक मानदंड जो आईपीवी और महिला के गर्भनिरोधक निर्णय लेने दोनों से संबंधित हैं, सम्भावित अंतर्जातता के स्रोत के रूप में भी काम कर सकते हैं।
  2. अंतर्जातता के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए अनुभवजन्य विश्लेषण में ‘साधन चर’ का उपयोग किया जा सकता है। साधन (यहाँ, रेडियो के माध्यम से परिवार नियोजन संदेशों के सम्पर्क में आना) व्याख्यात्मक चर (गर्भनिरोधकों का उपयोग करने का निर्णय) के साथ सह-संबद्ध है, लेकिन नियंत्रण पर सशर्त, रुचि के परिणाम (आईपीवी) को सीधे प्रभावित नहीं करता है। इसलिए साधन का उपयोग व्याख्यात्मक कारक और रुचि के परिणाम के बीच के कारण-सम्बन्ध को मापने के लिए किया जा सकता है।
  3. हम ‘मिथ्याकरण परीक्षण’ फाल्सीफिकेशन टेस्ट में यह दर्शाते हैं कि यदि हम अपने मॉडल में किसी भी यादृच्छिक रूप से निर्दिष्ट आईपीवी परिणाम पर विचार करते हैं तो ऐसा परिणाम प्राप्त नहीं होता है। दूसरे शब्दों में, हम एक यादृच्छिक महिला (क) के डीवी के उदाहरण को महिला (ख) के गर्भनिरोधक उपयोग निर्णय से जोड़ते हैं, जो रेडियो के माध्यम से परिवार नियोजन संदेशों के लिए पड़ोस में रहने वाली महिलाओं के औसत सम्पर्क द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्लेसीबो परीक्षणों के लिए, हम उन चरों का उपयोग करते हैं जो गर्भनिरोधक लेने संबंधी निर्णयों से प्रभावित नहीं होते हैं जैसे कि महिला का हीमोग्लोबिन स्तर, तपेदिक के बारे में ज्ञान, एनीमिया का स्तर और मासिक धर्म के समय उसकी उम्र। हमें महिलाओं के गर्भनिरोधक लेने संबंधी निर्णय का इन परिणामों पर कोई प्रभाव नहीं नज़र आता है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : करण बब्बर ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल ग्लोबल बिज़नेस स्कूल (जेजीबीएस) में सहायक प्रोफेसर हैं। उनके शोध क्षेत्रों में लिंग, स्वास्थ्य नीति, स्वास्थ्य अर्थशास्त्र, स्वास्थ्य मनोविज्ञान और विकास अर्थशास्त्र सहित विभिन्न विषय शामिल हैं। मानिनी ओझा भी विश्वविद्यालय के जिंदल स्कूल ऑफ गवर्नमेंट एंड पब्लिक पॉलिसी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उनके शोध के क्षेत्र अनुप्रयुक्त सूक्ष्मअर्थशास्त्र, अनुभवजन्य विकास अर्थशास्त्र, परिवारों का अर्थशास्त्र, शिक्षा, लिंग और श्रम अर्थशास्त्र के क्षेत्र हैं।

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लिंग, सार्वजनिक स्वास्थ्य

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