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भारत में उद्यमिता और रोज़गार में लैंगिक असमानताओं का आकलन

आर्थिक विकास सम्पूर्ण कार्यबल के सफल उपयोग पर निर्भर करता है। एजाज़ ग़नी का तर्क है कि लैंगिक समानता न केवल मानवाधिकारों का एक प्रमुख स्तम्भ है, बल्कि उच्च और अधिक समावेशी आर्थिक विकास को बनाए रखने का ए...

  • दृष्टिकोण

भारत में समाचार पत्र बाज़ार के राजनीतिक निर्धारक

समाचार पत्र भारतीय मतदाताओं के लिए राजनीतिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राजनीतिक कारक समाचार पत्र बाज़ार को किस तरह से प्रभावित करते हैं। 2000 के दशक क...

  • लेख

क्या मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता विश्वसनीय है?

आरबीआई द्वारा लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) को अपनाए जाने के आठ साल बाद गर्ग, लकड़ावाला और सेनगुप्ता इस फ्रेमवर्क की सफलता का मूल्यांकन करते हैं। वे कोविड-पूर्व अवधि में मुद्रास्फीति लक्ष्यीक...

  • लेख
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'न्याय' विचार-गोष्ठी: न्याय से अन्याय न हो

रांची विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर ज्यां द्रेज़ ने भारत में सामाजिक सुरक्षा के व्यापक संदर्भ में ‘न्याय’ की भूमिका पर चर्चा की है और इस योजना के लिए कुछ संभावित सिद्धांत प्रस्तावित किए हैं।...

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‘न्याय’ विचार-गोष्ठी: न्याय का संभावित मैक्रोइकोनॉमिक प्रभाव

आईडीएफसी इंस्टिट्यूट के रिसर्च डायरेक्टर और सीनियर फेलो निरंजन राजाध्यक्ष का तर्क है कि न्याय की अनुमानित लागत काफी है और योजना के राजकोषीय बोझ के बारे में चिंतित होने के पर्याप्त कारण हैं। इसके अलावा...

  • दृष्टिकोण

‘न्याय’ विचार-गोष्ठी: यूनिवर्सल बेसिक इनकम के एक अनुपूरक का पक्ष

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कली में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर प्रनब बर्धन ने एक आय अनुपूरक के पक्ष में तर्क दिए हैं, लेकिन वह जो सबको उपलब्ध हो।...

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विचार-गोष्ठी की प्रस्तावना: कांग्रेस के 'न्याय' का विश्लेषण

जारी संसदीय चुनाव में कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में की गई एक बड़ी घोषणा न्यूनतम आय की गारंटी के प्रस्ताव – न्यूनतम आय योजना (न्याय) की है। इस विचार गोष्ठी में भरत रामास्वामी (अशोका विश्वविद्यालय), ...

  • विचार-गोष्ठी

‘न्याय' विचार-गोष्ठी: नकद अंतरण नीतियों से संबंधित चार चिंताएं

भरत रामास्वामी (अशोका विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर) ने अतिरिक्त नकद अंतरण (ऍड-ऑन कैश ट्रांसफर) के बतौर ‘न्याय' के क्रियान्वयन में चार प्रकार की आपत्तियों पर चर्चा की है। उनका तर्क है कि प...

  • दृष्टिकोण

अपनों को मताधिकार? मतदान अधिकारी की पहचान और चुनाव परिणाम

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का प्रावधान ऐसी लोक सेवा है जो निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह और प्रतिक्रियाशील बनाए रखने के लिहाज से बहुत ज़रूरी है। इस आलेख में मतदान केंद्रों के प्रशासन की छानबीन की ग...

  • लेख

चुनावी धोखाधड़ी, लोकतंत्र, और विकास पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का प्रभाव

चुनावी गड़बडि़यों पर नियंत्रण रखने के प्रयास में भारतीय चुनाव आयोग द्वारा 1990 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग शुरू किया गया था। इस लेख में राज्यों की विधान सभाओं के 1...

  • लेख

क्या महिला राजनेता आर्थिक विकास के लिए अच्छी होती हैं?

विगत दो दशकों के दौरान वैश्विक स्तर पर राजनीति में महिलाओं के अनुपात में असाधारण वृद्धि हुई है, लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि इससे आर्थिक प्रदर्शन पर कैसा प्रभाव पड़ता है। इस लेख में भारत में ...

  • लेख

जैसा पिता, वैसा पुत्र? राजनीतिक घरानों के कारण ‘भाग्यों का उलटाव’ क्यों होता है

हालांकि अनेक समाजों ने वंशवादी शासन समाप्त करने के लिए लोकतंत्र अपना लिया लेकिन राजनीतिक घराने लोकतांत्रिक देशों में हर जगह मौजूद हैं। इस आलेख में भारत में वंशवादी राजनीति के आर्थिक प्रभावों का अध्ययन...

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भारत में मौसमी प्रवास और स्वास्थ्य: रिसर्च और प्रैक्टिस के लिए बाधाएं

भारत में मौसमी प्रवासी (सीजनल माइग्रेंट) श्रमिक ऐसे माहौल में अस्थायी अनौपचारिक काम करते हैं जिसमें मजदूरी, काम के घंटों, और जीवनदशा पर मौजूद श्रम संबंधी कानूनों की सक्रियता से उपेक्षा की जाती है। इसक...

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क्या हिंसा के भय से भारत में महिला श्रम सप्लाई प्रभावित होती है?

विकासशील देशों के श्रम बाजारों में काम करने की उम्र वाली महिलाएं महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की अचानक हुई घटनाओं पर होने वाली मीडिया खबरों के प्रति खास तौर से संवेदनशील हो सकती हैं। यह उन्हें काम करने के...

  • लेख

मनरेगा से निकली हैं कई राहें

भारत की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की भूमिहीन ग्रामीण परिवारों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाए गए सुरक्षा तंत्र के रूप में प्रभावशीलता को लेकर बहुत सारे विवाद उत्पन्न हुए...

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