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भारत में उद्यमिता और रोज़गार में लैंगिक असमानताओं का आकलन

आर्थिक विकास सम्पूर्ण कार्यबल के सफल उपयोग पर निर्भर करता है। एजाज़ ग़नी का तर्क है कि लैंगिक समानता न केवल मानवाधिकारों का एक प्रमुख स्तम्भ है, बल्कि उच्च और अधिक समावेशी आर्थिक विकास को बनाए रखने का ए...

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भारत में समाचार पत्र बाज़ार के राजनीतिक निर्धारक

समाचार पत्र भारतीय मतदाताओं के लिए राजनीतिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राजनीतिक कारक समाचार पत्र बाज़ार को किस तरह से प्रभावित करते हैं। 2000 के दशक क...

  • लेख

क्या मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता विश्वसनीय है?

आरबीआई द्वारा लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) को अपनाए जाने के आठ साल बाद गर्ग, लकड़ावाला और सेनगुप्ता इस फ्रेमवर्क की सफलता का मूल्यांकन करते हैं। वे कोविड-पूर्व अवधि में मुद्रास्फीति लक्ष्यीक...

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बुनियाद की मज़बूती: प्राथमिक शिक्षा की चुनौती

रुक्मिणी बनर्जी बताती हैं कि नई शिक्षा नीति का प्रारूप एक सही कदम के रूप में बच्चों की शुरुआती देख-रेख और शिक्षा के महत्व पर ज़ोर देता है। साथ ही, यह प्राथमिक स्तर पर बुनियादी साक्षरता व गणितीय क्षमता ...

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शासन में सुधार के लिए मोबाइल का उपयोग

मुख्य सार्वजनिक कार्यक्रमों का कितनी अच्छी तरह क्रियान्वयन हो रहा है इसे मापना शासन की एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। देश में मोबाइल-फोन की तेजी से बढ़ रही पहुंच को देखते, मुरलीधरन, नीहौस, सुखतंकर, और वीवर...

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अप्रयुक्त मार्ग: राजनीतिक शक्ति की राह में लैंगिक अंतर

महिलाओं की अधिक राजनीतिक भागीदारी की दिशा में रिसर्च और नीतिगत प्रयास मुख्यतः महिलाओं के मतदान संबंधी व्यवहार और निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के बतौर उनके प्रतिनिधित्व पर केंद्रित रहे हैं। हालांकि अनेक अ...

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जनभाषा? मातृभाषा में पढ़ाई शिक्षा को कैसे प्रभावित करती है

2016 में जारी किए किए गए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप में मातृभाषा में शिक्षा, खास कर स्कूल के रचनात्मक वर्षों के दौरान मातृभाषा में शिक्षा के महत्व पर जोर दिया गया था। इस कॉलम में दक्षिणी भारत की...

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दस प्रतिशत कोटा: क्या जाति अब पिछड़ेपन की सूचक नहीं रही है?

संविधान (124वां संशोधन) विधेयक 2019 सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण देकर ‘‘आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों’’ को आगे बढ़ाने के प्रावधान का प्रयास करता है। इसका मतलब कोटा के आध...

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क्या ग्रामीण भारत में सड़कों से वोट मिलते हैं?

भारत में 2001 में जिन गांवों में पक्की सड़क नहीं थी, ऐसे दो-तिहाई से भी अधिक गांवों को एक बड़े पैमाने के ग्रामीण सड़क कार्यक्रम के तहत सड़कें उपलब्ध कराई गई हैं। क्या कनेक्टिविटी और कल्याण में इन सुधा...

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भारत में राजनीतिक भागीदारी में लगातार मौजूद लैंगिक अंतर

पूरी दुनिया में, खास कर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में महिलाएं नागरिक के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में पुरुषों से कम दिखाई देती और बोलती हैं। इस लेख में भारत के मध्य प्रदेश में राजनीतिक भागीदारी में ...

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‘न्याय’ विचार-गोष्ठी: वित्तपोषण के लिए करों की जांच-पड़ताल अत्यंत महत्वपूर्ण

इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के पूर्व नैशनल फैलो प्रोफेसर एस. सुब्रामनियन ने आय अंतरण योजना को समायोजित करने के लिए बढ़े कराधान और वांछित वृद्धि के संभावित स्तर के लिए कुछ अनुमान करने के प्रश्न...

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‘न्याय’ विचार-गोष्ठी: राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के विस्तार को प्राथमकिता

आइजीसी इंडिया के कंट्री डायरेक्टर डॉ. प्रोनाब सेन का तर्क है कि यह देखते हुए कि अधिकांश गरीबी उच्च निर्भरता अनुपातों के कारण हैं – पहली प्राथमिकता वर्तमान सामाजिक सुरक्षा का विस्तार होना चाहिए जिसमे ब...

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‘न्याय’ विचार-गोष्ठी: गरीबी के दीर्घकालिक समाधान के बजाय उपयोगी 'प्राथमिक उपचार'

लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर मैत्रीश घटक का तर्क है कि न्याय द्वारा जिस तरह के नकद अंतरण के बारे में सोचा गया है, उससे जीवन निर्वाह के हाशिए पर जी रहे गरीब लोगों को कुछ राहत और स...

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‘न्याय’ विचार-गोष्ठी: बहुआयामी गरीबी से निपटने का साधन

प्रगति अभियान की निदेशक अश्विनी कुलकर्णी इस विचार को सामने रखती हैं कि न्याय जैसे बिना शर्त आय अंतरण कार्यक्रम से बहुआयामी गरीबी की समस्या हल करने और गरीबों के सबसे असुरक्षित हिस्से को जिंदा रहने से आ...

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‘न्याय’ विचार-गोष्ठी: सही लक्ष्यीकरण करना

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन डीएगो में अर्थशास्त्र के टाटा चांसलर्स प्रोफेसर कार्तिक मुरलीधरन ने न्याय के तहत देश में सबसे गरीब 20 प्रतिशत प्रखंडों (ब्लॉक्स) को लक्षित करने की और उन क्षेत्रों में न...

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