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भारत में उद्यमिता और रोज़गार में लैंगिक असमानताओं का आकलन

आर्थिक विकास सम्पूर्ण कार्यबल के सफल उपयोग पर निर्भर करता है। एजाज़ ग़नी का तर्क है कि लैंगिक समानता न केवल मानवाधिकारों का एक प्रमुख स्तम्भ है, बल्कि उच्च और अधिक समावेशी आर्थिक विकास को बनाए रखने का ए...

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भारत में समाचार पत्र बाज़ार के राजनीतिक निर्धारक

समाचार पत्र भारतीय मतदाताओं के लिए राजनीतिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राजनीतिक कारक समाचार पत्र बाज़ार को किस तरह से प्रभावित करते हैं। 2000 के दशक क...

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क्या मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता विश्वसनीय है?

आरबीआई द्वारा लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) को अपनाए जाने के आठ साल बाद गर्ग, लकड़ावाला और सेनगुप्ता इस फ्रेमवर्क की सफलता का मूल्यांकन करते हैं। वे कोविड-पूर्व अवधि में मुद्रास्फीति लक्ष्यीक...

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बढ़ते शहरीकरण के प्रभाव में ग्रामीण भारत में बढ़ता हुआ मोटापा

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार भारत की लगभग 20% जनसंख्‍या मोटापे से ग्रस्त है। यह लेख बताता है कि देश में मोटापे की प्रवृत्ति ने इसके स्वाभाविक आर्थिक परिव...

  • लेख

जीविकोपार्जन के लैंगिक मानदंड और कार्य निर्णय

यह मानदंड कि ‘एक पुरुष को अपनी पत्नी से अधिक अर्जित करना चाहिए’, विवाहित महिलाओं के श्रम-बाजार भाग लेने को गहरे रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। 1983 से 2012 तक की अवधि के दौरान भारत के राष्ट्र...

  • लेख

ड्यूएट-विकेंद्रीकृत शहरी रोजगार और प्रशिक्षण: संशोधित

सितंबर 2020 में, शहरी रोजगार के लिए ज्यां द्रेज़ का ड्यूएट (विकेंद्रीकृत शहरी रोज़गार एवं प्रशिक्षण) नामक प्रस्ताेव आइडियाज फॉर इंडिया पर प्रस्तु त किया गया था।इसके बाद आयोजित एक गहन परिसंवाद में ख्यात...

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ठोस कचरा प्रबंधन संबंधी चुनौतियां: पटना शहर का मामला

अपर्याप्त योजना के साथ तेजी से शहरीकरण ने भारत के कई शहरों में ठोस कचरा प्रबंधन की समस्याओं को जन्म दिया है। इस नोट में, उमा शरमिष्‍ठा बिहार राज्य के पटना शहर में एक क्षेत्र अध्ययन से प्रारंभिक निष्कर...

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कृषिक्षेत्र के द्वार पर ‘ड्रामा’

नए 'एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी) बाइपास एक्ट' को 'डुअल रेगुलेशन ऑफ एग्रीकल्चर मार्केटिंग एक्ट' या ‘ड्रामा’ बताते हुए ज्यां द्रेज़ यह तर्क देते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दोहर...

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क्‍या कोविड-19 के बढ़ते प्रसार में सामाजिक और आर्थिक विविधता मायने रखती है?

कोविड-19 के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए समुदायों को सामूहिक रूप से कार्य करने की आवश्यकता है, जो अधिक विविधत जनसंख्‍या वाले क्षेत्रों में अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकती है। भारत से जिला-स्तरीय आंकड़ों का उ...

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बजट 2021-22: स्‍वास्‍थ्‍य को प्राथमिकता, एक बार फिर से

वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट का आकलन स्वास्थ्य क्षेत्र के नजरिए से करते हुए, कॉफी और स्पीयर्स यह तर्क देते हैं कि भारत के स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए पुरानी समस्याओं को पुराने तरीको से हल...

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कृषि कानून: कृषि विपणन निजीकरण के लिए कार्य-योजना

कृषि विपणन में मुक्त बाजार प्रतिस्पर्धा को कथित रूप से बढ़ावा देने वाले कृषि कानूनों के सार पर ध्यान केंद्रित करते हुए दिलीप मुखर्जी एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) मंडियों के सुधार की आवश्यकता पर जोर ...

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बजट 2021-22: राजनीतिक अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में

वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट को एक राजनीतिक अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से जांचते हुए यामिनी अय्यर कहती हैं कि भारत सरकार द्वारा चुने गए नीतिगत विकल्प यह दर्शाते हैं कि सरकार का झुकाव वित्‍तीय संसाधनों ...

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बजट 2021-22: लिंग आधारित नजरिए से

2021-22 के केंद्रीय बजट को लिंग आधारित नजरिए से परखते हुए नलिनी गुलाटी ने इस बात पर चर्चा की है कि इस बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं के लिए विशेष रूप से डिजिटल पुश, सार्वजनिक परिवहन, अन्य सार...

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बजट 2021-22: एक औसत बजट

वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट का आकलन करते हुए भास्कर दत्ता यह तर्क देते हैं कि भले इस बजट में कई सकारात्मक पहलू भी हैं परंतु यह कुल मिलाकर निराशाजनक है क्योंकि इसमें गरीबों की जरूरतों को पूरा करने पर ...

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पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए सामूहिक कार्रवाई: ग्रामीण भारत में स्वच्छता से साक्ष्य

भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, बेहतर घरेलू शौचालयों तक की पहुंच और उनका निरंतर उपयोग किया जाना लंबे समय से चुनौती के साथ-साथ एक नीतिगत प्राथमिकता रहा है। घरेलू स्वच्छता विकल्पों को स्‍थापित ...

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