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तृतीय अशोक कोतवाल स्मृति व्याख्यान- स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार : विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में चुनौतियाँ और अवसर

हमारे संस्थापक प्रधान संपादक अशोक कोतवाल की याद में वर्ष 2022 में ‘अशोक कोतवाल स्मृति व्याख्यान’ की शुरुआत विकास के प्रमुख मुद्दों पर एक वार्षिक व्याख्यान के रूप में की गई थी। 11 दिसंबर 2024 को संपन्न...

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बेटियों को सशक्त बनाना : सशर्त नकद हस्तांतरण किस प्रकार से पारम्परिक मानदंडों को बदल सकते हैं

हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की स्थापना 2008 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लड़कियों को सशक्त बनाने और उनकी सुरक्षा के महत्व के बारे में ...

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आप्रवासन नीति सम्बन्धी अनिश्चितता श्रम बाज़ारों को प्रभावित करती है

राष्ट्रपति ट्रम्प के फिर से चुने जाने से एच-1बी वीज़ा सम्बन्धी नीतियों पर बहस फिर से शुरू हो गई है, यह एक अस्थाई उच्च कौशल कार्य वीज़ा है जिसमें 70% वीज़ा भारतीयों के पास हैं। इस लेख में, वर्ष 2016 मे...

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शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: अंतर-वैवाहिक पदानुक्रम और कामकाजी माताओं के बारे में धारणाएं

भारत में महिलाएं अवैतनिक घरेलू काम करते हुए अपने परिवार के पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक समय बिताती हैं, और दोगुना समय बच्चों और आश्रित वयस्कों की देखभाल संबंधी गतिविधियों में बिताती हैं। यह ले...

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शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: उत्तर भारत में महिलाओं की गतिशीलता

यद्यपि भारत में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले संरचनात्मक और सामाजिक परिवर्तन कई मायनों में हुए हैं, महिलाओं की प्रत्यक्ष गतिशीलता अभी भी बहुत कम है। यह लेख, उत्तर भारत के तीन शहरी समूहों के प्राथम...

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शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: क्या कामकाजी महिलाएं अधिक स्वायत्तता अनुभव करती हैं?

भारत में महिलाओं की कार्य में सीमित भागीदारी न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका असर उनके कल्याण और सामाजिक स्थिति पर भी होता है। यह लेख, उत्तर भारत के चार शहरी समूहों में किये गए एक घरे...

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शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: भारत में महिला श्रम-शक्ति की भागीदारी इतनी कम क्यों है?

भारत में महिलाओं की श्रम-शक्ति में भागीदारी एक जटिल सामाजिक मसला है, जो अन्य बातों के अलावा– पितृ-सत्तात्मक मानदंड, ग्रामीण-शहरी संक्रमण, और मांग एवं आपूर्ति कारकों के बेमेल होने के परिणामस्वरूप उत्पन...

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ई-संगोष्ठी का परिचय: उत्तर भारत में शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन

भारत में तेजी से हो रहा शहरीकरण लोगों के व्यवहार के प्रचलित सामाजिक और आर्थिक पैटर्न को इस तरह से बदल रहा है कि विद्वान इसे अभी पूरी तरह से नहीं समझ सके हैं। भारत में तेजी से हो रहा यह शहरीकरण कई महत्...

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भारत में भूमि के स्वामित्व के सन्दर्भ में लैंगिक और आंतर-लैंगिक अंतर

हालाँकि महिलाओं के भू-स्वामित्व को उनके आर्थिक सशक्तिकरण के एक प्रमुख संकेतक के रूप में पहचाना जाता है, भारत में कितनी और किन महिलाओं के पास भूमि है, इसका कोई विस्तृत अनुमान नहीं है। नौ राज्यों के लिए...

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शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं: भारत में पुरुषों का शौचालय स्वामित्व और उनकी शादी की संभावनाएं

निरंतर किये जा रहे अनुसंधान से पता चलता है कि परिवारों के लिए स्वच्छता निवेश में लागत एक प्रमुख बाधा रही है। मध्य-प्रदेश और तमिलनाडु में किये गए एक सर्वेक्षण के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि वित्तीय औ...

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क्या ‘वादे’ कारगर होते हैं? 'अपनी बेटी अपना धन' कार्यक्रम के दीर्घकालिक लाभों का आकलन

1994-1998 के दौरान, हरियाणा की राज्य सरकार ने बाल विवाह की समस्या के समाधान हेतु एक सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम चलाया; जिसके तहत, समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के माता-पिता को, यदि उनकी बेटी 18 ...

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शहर-नियोजन को लोकतांत्रिक बनाना: 'मैं भी दिल्ली' अभियान से कुछ विचार

दिल्ली मास्टर प्लान 2041 के अंतर्गत नागरिकों के विचारों को शामिल करना सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2018 में ‘मैं भी दिल्ली’ अभियान शुरू किया गया था। इस संदर्भ में, शलाका चौहान शहर-नियोजन प्रक्रियाओं में स...

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बैंकों की ऋण-जोखिम प्रबंधन संबंधी नीतियां: एक नया दृष्टिकोण

बैंकों की बढ़ती मजबूती और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उन्हें प्रदान की गई बहुउद्देशीय तरलता के बावजूद, बैंकों की ऋण वृद्धि में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। इस लेख में, के. श्रीनिवास राव बैंकों की ऋण...

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केवल विकास ही नहीं: गरीबी दूर करने में पुनर्वितरण का महत्व

हाल के अध्ययनों से इस बात की पुष्टि मिलती है कि विकासशील देशों में नीतियां और संस्थान विश्व के संपन्न देशों के अनुरूप बदल रहे हैं और इसी वजह से इन देशों की प्रति-व्यक्ति आय औद्योगीकृत देशों के बराबर ह...

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क्या ओबीसी हेतु आरक्षण विकास के लिए अच्छा है?

सकारात्मक कार्रवाई के बारे में बहस हमेशा योग्यता बनाम सामाजिक न्याय के सवाल में घिरी रही है, और जाति-आधारित जनगणना किये जाने की चर्चा ने एक बार फिर से अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के आरक्षण से संबंधित ...

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