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कृषि कानून: गतिरोध का समाधान

हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में भरत रामास्वामी ने किसानों के विरोध से उत्पन्न मौजूदा संकट को हल करने के लिए कुछ उत्तेजक सुझाव पेश किए हैं। इस पोस्ट में रामास्वामी ने अशोक कोटवाल (प्रधान संपादक, आइडियाज फॉर इंडिया) के साथ एक साक्षात्कार में उन विचारों पर विस्तार से प्रकाश डाला है।

27 January 2021
Perspectives
Agriculture
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सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाना तथा उत्पादकता: भारतीय कृषि में मोबाइल फोन की भूमिका

2000 के दशक के मध्‍य और उत्तरार्ध के दौरान भारत ने ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल फोन कवरेज का विस्तार किया और कृषि संबंधी सलाह लेने वाले किसानों के लिए निशुल्क कॉल सेंटर सेवाओं की शुरुआत की। इस लेख से ज्ञात होता है कि इन कार्यक्रमों ने कृषि क्षेत्र में अधिक उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद की। हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि कृषि सलाह की पहुंच में भाषा संबंधी बाधाओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में किसानों के बीच असमानता को बढ़ाया है।

12 January 2021
Articles
Agriculture
Agriculture

किसानों की आय में सुधार करना: झारखंड में किए गए सर्वेक्षण से सीख

वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के केंद्र सरकार के लक्ष्य की दिशा में कार्य करने के लिए झारखंड राज्य सरकार ने 2017 में जोहार परियोजना आरंभ की। इस लेख में खनूजा एवं अन्‍य ने इस परियोजना के तहत शामिल किए गए ग्रामीण उत्पादक परिवारों के एक वृहद आधार-रेखा सर्वेक्षण के परिणामों को प्रस्‍तुत किया है और उच्च मूल्य वाली कृषि की ओर बदलाव को सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।

10 December 2020
Notes from the Field
Agriculture
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कृषि कानून: प्रथम सिद्धांत और कृषि बाजार विनियमन की राजनीतिक अर्थव्यवस्था

कृषि क़ानूनों के इस संगोष्ठी का समापन करते हुए मेखला कृष्णमूर्ति और शौमित्रो चटर्जी इस आलेख में यह तर्क देते हैं कि विनियामक सुधार, अनिवार्य नीतिगत डिजाइन और कार्यान्वयन के लिए एक अधिक व्यापक और प्रासंगिक दृष्टिकोण का, एक महत्वपूर्ण लेकिन सीमित भाग है। इसके अलावा जब बाजार की बात आती है, तो यह सोचना महत्वपूर्ण है कि बाजार विनियमन क्या कर सकता है और क्या नहीं तथा यह समझना कि भारत की कृषि विपणन प्रणाली में मंडियों की क्या भूमिका है?

03 November 2020
Perspectives
Agriculture
Agriculture

कृषि कानून: सकारात्मक परिणामों के लिए क्षमतावान

सिराज हुसैन का तर्क है कि यद्यपि कृषि कानून भारतीय कृषि के लिए मध्यम-से-लंबी अवधि में लाभकारी हो सकते हैं परंतु यदि उन्‍हें पारित कराने के लिए संसदीय प्रक्रियाओं का पालन किए जाता और आम सहमति बनाने के प्रयास किए जाते तो उनके उद्देश्यों में और अधिक विश्वास पैदा हुआ होता।

02 November 2020
Perspectives
Agriculture
Agriculture

कृषि कानून: कायापलट करने वाले बदलाव लाने की संभावना कम है

इस पोस्ट में संजय कौल ने कृषि कानून से सभी हितधारकों (किसानों, व्यवसायियों, कमीशन एजेंटों, और सरकार) को होने वाले लाभों और कमियों पर चर्चा की है। इसमें शामिल गतिशीलता को देखते हुए उन्होने यह निष्कर्ष निकाला है कि इन सुधारों से भारतीय कृषि पर कोई भी परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है।

29 October 2020
Articles
Agriculture
Agriculture

कृषि कानून: वांछनीय होने के लिए डिजाइन में बहुत कुछ छूट गया है

सुखपाल सिंह कृषि विपणन के मौजूदा तंत्र के मद्देनजर कृषि कानून के संभावित निहितार्थों की जांच करते हैं और इसकी डिजाइन में कुछ खामियों को उजागर करते हैं।

26 October 2020
Perspectives
Agriculture
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कृषि कानून: कृषि विपणन का उदारीकरण आवश्यक है

कृषि कानून पर अपना दृष्टिकोण प्रदान करते हुए भरत रामास्वामी ने यह कहा है कि कृषि विपणन का उदारीकरण एक आवश्यक कदम है – पूर्व में सभी राजनीतिक विचारधाराओं द्वारा इसका समर्थन किया गया। इसमें बदलाव करना यानि केंद्र द्वारा विधि का उपयोग करना है। खरीद-अधिशेष राज्यों के लिए कोई तात्कालिक लाभ भी नहीं हैं।

23 October 2020
Perspectives
Agriculture
Agriculture

ई-संगोष्ठी का परिचय: नए कृषि कानून को समझना

क्या कृषि कानून किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेंगे? क्या किसानों को बाजारों तक विस्तारित पहुंच से लाभ मिल सकता है? क्या वे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कानून के कारण शहरी फर्मों के साथ अनुबंध स्थापित करने के लिए अधिक इच्छुक होंगे? क्या आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवर्तन से जल्‍दी खराब होने वाली वस्तुओं की मजबूरन बिक्री में कमी लाने में मदद मिलेगी? या सुधार का परिणाम केवल तब मिलेगा जब कुछ आवश्यक बुनियादी ढांचों का निर्माण हो जाएगा? क्या ये विधेयक कृषि में विविधता लाने में मदद करेंगे? आइडियास फॉर इंडिया के हिन्दी अनुभाग पर अगली छह पोस्टों में चलने वाली इस संगोष्ठी में छह विशेषज्ञ (भरत रामास्वामी, सुखपाल सिंह, संजय कौल, सिराज हुसैन, मेखला कृष्णमूर्ति तथा शोमित्रो चटर्जी) इन मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करेंगे।

21 October 2020
Symposia
Agriculture
Agriculture

निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए अगली पीढ़ी के आर्थिक सुधार क्यों महत्वपूर्ण हैं

कॉर्पोरेट जगत की लाभप्रदता और बैंकों की ऋण देने की क्षमता पिछले कुछ समय से बढ़ रही है, फिर भी कॉर्पोरेट निवेश सुस्त बना हुआ है। गुप्ता और सचदेवा इस लेख में तर्क देते हैं कि भविष्य की मांग में वृद्धि के सन्दर्भ में, भारतीय कंपनियों के निवेश स्तर उनके आकलन के अनुरूप हैं। भूमि अधिग्रहण को प्राथमिकता देते हुए अगली पीढ़ी के सुधारों को लागू करने से बड़ी भारतीय कंपनियाँ वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में अधिक खरी उतर सकती हैं। विकास में सुधार होने से निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

19 June 2025
Articles
Macroeconomics
Macroeconomics

राज्यों की सब्सिडी का बढ़ता बोझ

भारत में राज्य सरकारों द्वारा नागरिकों को कल्याणकारी लाभ पहुँचाना अक्सर ‘सब्सिडी’ के रूप में जाना जाता है। इस लेख में वर्ष 2018-19 और 2022-23 के बीच की अवधि के लिए भारत के सात राज्यों के बजटीय डेटा का विश्लेषण करते हुए दर्शाया है कि किस प्रकार से प्रत्यक्ष सब्सिडी का वित्त पर दबाव पड़ रहा है और विकास व्यय प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा, यह लेख इस बात के नए सबूत पेश करता है कि कैसे सरकारी खातों में सब्सिडी का वर्गीकरण उनके वास्तविक राजकोषीय प्रभाव को छुपाता है।

08 April 2025
Articles
Macroeconomics
Macroeconomics

केन्द्रीय बजट 2025-26 : कई छोटे-छोटे उपाय लेकिन बड़े विचारों का अभाव

वित्त मंत्री ने हाल ही में वर्ष 2025-26 का केन्द्रीय बजट पेश किया। राजेश्वरी सेनगुप्ता इस लेख में बजट पर चर्चा करते हुए यह बताती हैं कि इस का सबसे महत्वपूर्ण पहलू कर राहत के माध्यम से मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं को लक्षित राजकोषीय प्रोत्साहन है। फिर भी, उनका तर्क है कि टिकाऊ, दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त संरचनात्मक सुधारों के अभाव में इस उपाय का प्रभाव सीमित और अल्पकालिक होने की संभावना है।

13 February 2025
Perspectives
Macroeconomics
Macroeconomics

शिक्षकों का विश्वास कैसे प्रेरणा और छात्रों के सीखने को आकार दे सकता है

शिक्षक का प्रयास छात्रों के सीखने के लिए महत्वपूर्ण है, जबकि साक्ष्य दर्शाते हैं कि शिक्षक स्वयं ऐसा नहीं मानते हैं। इस लेख में शिक्षकों पर लक्षित मनो-सामाजिक हस्तक्षेप से जुड़े एक यादृच्छिक प्रयोग से प्राप्त निष्कर्ष प्रस्तुत हैं। लेख में दर्शाया गया है कि हस्तक्षेप प्राप्त करने वाले शिक्षकों ने छात्रों की सीखने की क्षमता बढ़ाने तथा कक्षा के अंदर और बाहर अधिक प्रयास करने की अपनी क्षमता पर ज़्यादा विश्वास दिखाया, जिसके परिणामस्वरूप छात्रों का प्रदर्शन बेहतर हुआ।

01 August 2024
Articles
Macroeconomics
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पंजाब का आर्थिक विकास : सम्भावनाएँ और नीतियाँ

वर्ष 2000 तक उत्तर भारतीय राज्य पंजाब देश में प्रति-व्यक्ति आय रैंकिंग में शीर्ष पर था, उसके बाद से इसकी स्थिति लगातार गिरती गई है। इस लेख में लखविंदर सिंह, निर्विकार सिंह और प्रकाश सिंह ने पंजाब की अर्थव्यवस्था- कृषि, विनिर्माण व सेवाओं, नौकरियों व शिक्षा और सार्वजनिक वित्त व शासन की वर्तमान स्थिति के सन्दर्भ में तथा राज्य के सामने आने वाली चुनौतियों के कारणों पर चर्चा की है। इसके अलावा विकास और सक्षम नीतियों की सम्भावनाओं पर भी विचार किया गया है। यह आइडियाज़@आईपीएफ2024 श्रृंखला का चौथा और अंतिम लेख है।

30 July 2024
Perspectives
Macroeconomics
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आरबीआई के कार्य (और वक्तव्य) कैसे वित्तीय बाजारों को प्रभावित करते हैं

विकसित देशों में उनके केंद्रीय बैंक द्वारा घोषित नीतिगत दरों में अप्रत्याशित परिवर्तन के चलते वित्तीय बाजारों को लगने वाले मौद्रिक झटके के प्रति पर्याप्त प्रतिक्रिया दर्शाने के लिए जाना जाता है। यह लेख भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के मौद्रिक नीति संबंधी वक्तव्यों और 2003-2020 के दौरान ओवरनाइट इंडेक्स स्वैप दरों में दैनिक परिवर्तनों के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर दर्शाता है कि भारत में भी यही स्थिति है।

08 April 2022
Articles
Macroeconomics
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बजट 2022-23: सफलताएं एवं चूक

वर्ष 2022-23 के बजट की सफलताएं एवं चूक को रेखांकित करते हुए, राजेश्वरी सेनगुप्ता यह तर्क देती हैं कि सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देना एक सही दिशा में कदम प्रतीत होता है, जबकि संरक्षणवाद पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने के पीछे का तर्क संदिग्ध है। उनके विचार में, बजट में एक सुसंगत विकास रणनीति का अभाव है, जो कि वर्तमान में विशेष रूप से सरकारी ऋण के उच्च स्तर को देखते हुए आवश्यक थी।

09 March 2022
Perspectives
Macroeconomics
Macroeconomics

बजट 2022-23: क्या सार्वजनिक निवेश पर आधारित विकास रणनीति वांछनीय और विश्वसनीय है?

सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने की इच्छा रखते हुए वर्ष 2022-23 के बजट में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है। इस संदर्भ में, आर. नागराज भारत के वर्तमान नीति अभिविन्यास और उद्योग एवं बुनियादी अवसरंचना में हाल में किये गए निवेश के परिणामों की जांच करते हैं। वे तर्क देते हैं कि उद्योग पर बजट के फोकस में यथार्थवादी प्रस्तावों की कमी है जिससे तेजी से गिरती उत्पादन वृद्धि दर को उलटा जा सके।

02 March 2022
Perspectives
Macroeconomics
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बजट 2021-22: राजनीतिक अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में

वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट को एक राजनीतिक अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से जांचते हुए यामिनी अय्यर कहती हैं कि भारत सरकार द्वारा चुने गए नीतिगत विकल्प यह दर्शाते हैं कि सरकार का झुकाव वित्‍तीय संसाधनों को राज्‍य सरकारों को हस्‍तांतरित करने की बजाय उन्‍हें केंद्रीकरण की ओर तथा कल्‍याणकारी नीतियों से दूर हटने की ओर है।

01 March 2021
Perspectives
Macroeconomics
Macroeconomics

बजट 2021-22: लिंग आधारित नजरिए से

2021-22 के केंद्रीय बजट को लिंग आधारित नजरिए से परखते हुए नलिनी गुलाटी ने इस बात पर चर्चा की है कि इस बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं के लिए विशेष रूप से डिजिटल पुश, सार्वजनिक परिवहन, अन्य सार्वजनिक सेवाओं, स्वास्थ्य क्षेत्र के संबंध में, और कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए क्या प्रावधान किए गए हैं और क्‍या नहीं।

24 February 2021
Perspectives
Macroeconomics
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बजट 2021-22: एक औसत बजट

वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट का आकलन करते हुए भास्कर दत्ता यह तर्क देते हैं कि भले इस बजट में कई सकारात्मक पहलू भी हैं परंतु यह कुल मिलाकर निराशाजनक है क्योंकि इसमें गरीबों की जरूरतों को पूरा करने पर ध्‍यान नहीं दिया गया है।

18 February 2021
Perspectives
Macroeconomics
Macroeconomics

कोविड-19 लॉकडाउन और प्रवासी श्रमिक: बिहार एवं झारखंड के व्यावसायिक प्रशिक्षुओं का सर्वेक्षण

भारत में हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण विशेष रूप से प्रवासी मजदूर बुरी तरह प्रभावित हुए। जब यात्रा प्रतिबंध हटा दिए गए तब 1.1 करोड़ अंतरराज्यीय प्रवासी अपने घर लौट गए। इस आलेख में चक्रवर्ती एवं अन्‍य बिहार और झारखंड के युवाओं (‘दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना’ के पूर्व प्रशिक्षु) के साथ किए गए फोन सर्वेक्षण से प्राप्‍त प्रमुख निष्कर्षो को प्रस्‍तुत करते हैं। इस सर्वेक्षण के जरिए अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों पर लॉकडाउन के प्रभाव का आकलन करने और भविष्य में उनके द्वारा फिर से प्रवासन की उनकी इच्छा का अनुमान लगाया गया है।

04 January 2021
Notes from the Field
Macroeconomics
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‘मेक इन इंडिया’ में अवरोध

वर्तमान सरकार ने, सीमित सफलता के साथ, वर्ल्ड बैंक के डूइंग बिजनेस संकेतकों में भारत की रैंकिंग को सुधारने का प्रयास किया है। यह लेख बताता है कि राज्य और कारोबारों के बीच 'सौदे' - नियमों के बजाय - राज्य-व्यापार संबंध का विवरण प्रस्तुत करते हैं। कमजोर गुणवत्ता शासन वाले भारतीय राज्यों में लाइसेंस प्राप्त करने की गति के मामले में 'अच्छे सौदों’ का अनुपात अधिक है। इसी प्रकार आवश्‍यक नहीं है कि कारोबार नियमों को आसान बनाने से उच्च उत्पादकता प्राप्‍त हो।

10 September 2020
Articles
Macroeconomics
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कोविड-19 संकट और छोटे व्यवसायों की स्थिति: एक प्राथमिक सर्वेक्षण से निष्कर्ष

हाल के अपने बयान में, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री ने स्वीकार किया कि यह क्षेत्र "अस्तित्व के लिए जूझ रहा है"। इस आलेख में, शांतनु खन्ना और उदयन राठौर ने, मई 2020 में, 360 से अधिक उद्यमों में किए गए अपने सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्षों का उल्‍लेख किया है जिनमें वे इस क्षेत्र पर कोविड संकट के प्रभाव का आकलन करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। प्रारंभिक निष्कर्ष से ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र अत्‍यधिक संकट के दौर से गुजर रहा है जिसमें सूक्ष्म उद्यमों की स्थिति सबसे खराब है।

07 July 2020
Notes from the Field
Macroeconomics
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कोविड-19: विपरीत पलायन से उत्‍पन्‍न होने वाले जोखिम को कम करना

भारत में कोविड-19 लॉकडाउन से सबसे बुरी तरह प्रभावित वर्गों में से एक वर्ग प्रवासी मजदूरों का है, जो बेरोजगार, धनहीन और बेघर हो गये हैं। हालांकि कई राज्य सरकारों द्वारा प्रवासी मजदूरों को वापस लाने और उनके सुरक्षित आवागमन को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यह ‘विपरीत पलायन’ राज्‍यों के भीतरी क्षेत्रों में संक्रमण के फैलने का खतरा बढ़ाता है। इस आलेख में, पारिख, गुप्ता, और सुभम इस बात पर चर्चा करते हैं कि कैसे राज्य इस शीघ्र संभावित जोखिम को कम कर सकते हैं।

03 July 2020
Perspectives
Macroeconomics
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कोविड-19 झटका: अतीत के सीख से वर्तमान का सामना करना – पांचवां भाग

इस श्रृंखला के पिछले दो भागों में, डॉ. प्रणव सेन ने कोविड-19 झटके से उबरने के लिए तीन अलग-अलग चरणों (उत्तरजीविता, पुनर्निर्माण और सुधार) के माध्‍यम से सुधार के मार्ग प्रस्तुत किए हैं। श्रृंखला के अंतिम भाग में, उन्होंने सरकार की राजकोषीय स्थिति के बिगड़ने के बारे में चिंताओं पर विचार करते हुए, सुधार के निधिकरण पर और बड़े प्रोत्साहन पैकेज के निधिकरण के लिए संसाधनों को कैसे जुटाया जा सकता है, इन मुद्दों पर चर्चा की है।

23 June 2020
Perspectives
Macroeconomics
Macroeconomics

कोविड-19 झटका: अतीत के सीख से वर्तमान का सामना करना – चौथा भाग

इस श्रृंखला के पिछले भाग में डॉ. प्रणव सेन ने सुधार के लिए एक मार्ग प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होने 'उत्तबरजीविता' के चरण, यानि लॉकडाउन की तीन महीने की अवधि पर ध्यान केन्द्रित किया था। इस भाग में उन्होंने पुनर्निर्माण चरण यानि लॉकडाउन हटाए जाने के बाद के चार महीने की अवधि जिसमें सामान्य आर्थिक गतिविधियों को जून 2020 से फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाएगी और उसके बाद के सुधार चरण पर चर्चा की है।

20 June 2020
Perspectives
Macroeconomics
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कोविड-19 झटका: अतीत के सीख से वर्तमान का सामना करना – तीसरा भाग

श्रृंखला के पिछले भाग में, डॉ. प्रणव सेन ने वर्तमान में जारी संकट के कारण हुई आर्थिक क्षति, और अगले तीन वर्षों में अर्थव्यवस्था के अपेक्षित प्रक्षेपवक्र के अनुमान प्रदान किए थे। इस भाग में, उन्‍होंने उत्‍तरजीविता के चरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुधार का मार्ग प्रस्तुत किया है। तात्कालिक संदर्भ में जब लॉकडाउन लागू है, दो प्रमुख अनिवार्यताएं होनी चाहिए – पहली, अपनी आजीविका खो चुके लोगों की उत्‍तरजीविता, और दूसरी, गैर-अनिवार्य क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता। इस तीन महीने की अवधि के दौरान आवश्यक अतिरिक्त राजकोषीय समर्थन का अनुमानित आकलन रु.2,00,000 करोड़ है।

18 June 2020
Perspectives
Macroeconomics
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कोविड-19 झटका: अतीत के सीख से वर्तमान का सामना करना – दूसरा भाग

आलेखों की इस श्रृंखला के पहले भाग में डॉ. प्रणब सेन ने पिछले दो बड़े आर्थिक झटकों – 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट और 2016-17 में नोटबंदी एवं जीएसटी के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन पर चर्चा की, और उनसे वर्तमान संकट के लिए सबक प्रस्तुत किए। इस भाग में उन्‍होंने सरकार द्वारा अब तक घोषित राजकोषीय प्रोत्साहन को ध्यान में रखते हुए, लॉकडाउन और निर्यात मंदी के कारण अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान का अनुमान लगाया है। अगले तीन वर्षों में अर्थव्यवस्था के अपेक्षित प्रक्षेपवक्र को प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि संभावित सुधार पथ V नहीं है, बल्कि दीर्घ U है या L के करीब भी जा सकता है।

16 June 2020
Perspectives
Macroeconomics
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कोविड-19: भारत को प्रभावी रूप से लॉकडाउन से बाहर निकालना

भारत अपने कोविड-19 लॉकडाउन से बाहर आने की कगार पर है। इस लेख में, सुगाता घोष और सरमिष्ठा पाल ने भारत को लॉकडाउन से प्रभावी ढंग से बाहर निकालने के लिए विशेषज्ञ सलाह के कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियों की जांच की है। उनका तर्क है कि केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय रणनीति बनाने में अंतर-सरकारी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए और बहुत कुछ कर सकती है ताकि नीतिगत कमजोरियों को दूर किया जा सके, परीक्षण और ट्रैकिंग को बढ़ाने के लिए राज्यों को आवश्यक धनराशि जारी की जा सके और भय एवं अफवाह फैलने से रोकने हेतु फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं को विनियमित किया जा सके।

10 June 2020
Perspectives
Macroeconomics
Macroeconomics

कोविड-19 के प्रति सरकार की प्रतिक्रियाएँ कितनी देाषपूर्ण रही हैं? प्रवासी संकट का आकलन

कोविड-19 संकट के बीच, मार्च के अंत तक, अनगिनत प्रवासी श्रमिकों ने भारत के बंद शहरों से भाग कर अपने-अपने घरों के लिए गांवों की ओर पैदल ही जाना शुरू कर दिया। इस पोस्ट में सरमिष्‍ठा पाल यह तर्क देती हैं कि सरकार की प्रतिक्रियाएँ न केवल प्रवासी श्रमिकों की जरूरतों को पूरा करने में विफल रहीं हैं, बल्कि उनके नियोक्ताओं की नकदी संबंधी बाधाओं को हल करने में भी काफी हद तक अक्षम रहीं हैं। ये नीतिगत विफलताएँ इतनी महंगी पड़ रहीं हैं कि इनके कारण बड़े पैमाने पर भूख एवं भुखमरी, मौतें, उत्पादकता में कमी, कंपनियाँ बंद होने और बेरोजगारी के उत्‍पन्‍न होने की संभावना है।

29 May 2020
Perspectives
Macroeconomics
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कोविड-19 का राज्य वित्त पर प्रभाव

स्वास्थ्य का विषय राज्य सरकारें देखती हैं, इस लिए जब से भारत में कोविड-19 महामारी की शुरुआत हुई, तब से अलग-अलग राज्यों ने वे सारी प्रतिक्रियाएं अपनाईं हैं जो वे अपने राज्य-स्तरीय विधानों के तहत अपना सकते थे। हालांकि, 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद सभी आर्थिक गतिविधियों में से 60% से अधिक को बंद कर दिया गया था, इसके परिणामस्‍वरूप जब राज्यों के खर्चों में वृद्धि हुई, उसी समय उनके अपने करों में अचानक और तेज गिरावट आ गई। इस पोस्ट में, प्रणव सेन उन सभी अलग-अलग प्रकारों के बारे में बताते हैं जिनसे राज्य वित्त को एक विनाशकारी झटका लगा है।

21 May 2020
Perspectives
Macroeconomics
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कोविड-19 संबन्धित आलेखों का संग्रह

हम यहाँ आइडियास फॉर इंडिया (I4I) के कोविड-19 संबंधित हिन्दी विषयवस्तु के लिंक प्रस्तुत करेंगे

18 May 2020
Perspectives
Macroeconomics
Macroeconomics

कोविड-19 और एमएसएमई क्षेत्र: समस्या 'पहचान' की

हाल ही में 5,000 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उनमें से 71 प्रतिशत उद्यम मार्च 2020 में भारत में कोविड-19 लॉकडाउन के कारण अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान नहीं कर पाए। सरकार ने एमएसएमई पर केंद्रित एक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है जो शीघ्र आने वाला है। इस पोस्ट में, राधिका पांडे और अमृता पिल्लई ने एमएसएमई की एक व्यापक डेटासेट की अनुपलब्‍धता के कारण लाभार्थियों की पहचान के मुद्दे और लक्षित राहत वितरण के लिए उपयोग करने हेतु संभावित तंत्र का वर्णन किया है।

05 May 2020
Perspectives
Macroeconomics
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जनसंख्या की आयु संरचना और कोविड-19

नए कोविड-19, विकासशील देशों की तुलना में पश्चिमी विकसित देशों को अधिक प्रभावित कर रहा है। इस पोस्ट में, बसु और सेन ने दिखाया हैं कि कोविड-19 से हुए हताहत लोगों की संख्‍या उन देशों में अधिक है जहां बुजुर्ग लोगों की आबादी ज्‍यादा है, इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या कठोर लॉकडाउन भारत के लिए उपयुक्‍त व्यावहारिक नीति है जहां बुजुर्ग आबादी का अनुपात कम है।

21 April 2020
Perspectives
Macroeconomics
Macroeconomics

हमें कोविड-19 से लड़ने के लिए एक मार्शल प्‍लान की आवश्यकता है

कोविड -19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में अभी भी बहुत कुछ अज्ञात है, लेकिन दो कड़े सबक स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं: हमें अपनी स्वास्थ्य देखभाल क्षमता को सुदृढ़ करने तथा सामाजिक-सुरक्षा जाल को मजबूत बनाने के लिए सभी स्‍तरों पर आक्रामक रूप से प्रयत्‍न करने आवश्यकता है। इस पोस्ट में, परीक्षित घोष तर्क देते हैं कि अगर वायरस के खिलाफ लड़ाई को युद्ध के रूप में माना जाए, तो हमें यह युद्ध को लड़ते वक्त मार्शल प्‍लान की आवश्‍यकता होगी ना कि युद्ध के बाद।

14 April 2020
Perspectives
Macroeconomics
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कोविड-19: क्या हम लंबी दौड़ के लिए तैयार हैं? - भाग 2

इस आलेख के पहले भाग में, लेखकों ने भारत में कोविड-19 के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया का मार्गदर्शन करने हेतु व्यापक सिफारिशें कीं। इस भाग में, वे पांच ऐसे समूहों की पहचान करते हैं जिनके वर्तमान संकट से उत्पन्न आर्थिक एवं स्वास्थ्य संबंधी झटकों की चपेट में आने की आशंका ज्यादा है, और ऐसे क्षेत्र जहां राहत प्रयासों को केंद्रित करने की आवश्यकता है।

08 April 2020
Articles
Macroeconomics
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कोविड-19: क्या हम लंबी दौड़ के लिए तैयार हैं? - भाग 1

कोविड-19 के प्रसार की संभावित पुनरावृत्ति को रोकने के लिए यह लॉकडाउन, संभवतः भविष्य में किए जाने वाले कई लॉकडाउन में से पहला हो सकता है, इसलिए नीति निर्माताओं को इससे प्रतिकूल रूप से प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने के लिए तैयार रहना होगा। इसे ध्यान में रखते हुए, लेखक एक व्यापक दृष्टिकोण का प्रस्ताव करते हैं जिसमें अगले 24 महीनों में होने वाले किसी भी लॉकडाउन के दौरान राशन कार्ड धारक सभी परिवारों को प्रदान किए जाने वाले वस्‍तु रूपी अंतरणों और नकद सहायता के एक संयोजन के लिए तर्क दिया गया है।

06 April 2020
Perspectives
Macroeconomics
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क्‍या एक व्‍यापक लॉकडाउन का कोई उचित विकल्‍प है?

कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई में, हम दो विकल्‍पों में से अनिवार्यत: एक का चयन कर रहे हैं, एक ओर सामाजिक दूरी और दूसरी ओर लोगों को अपनी आजीविका से वंचित करना। सामान्य तथा अनिवार्य लॉकडाउन की अस्थिरता को स्वीकार करते हुए, देबराज रे और सुब्रमण्यन एक प्रस्ताव रखते हैं जिसके तहत युवाओं को कानूनी रूप से काम करने की अनुमति दी जाती है और अंतर-पीढ़ी संचरण से बचने के लिए उपायों के केंद्र को घरों पर स्थानांतरित कर दिया जाता है।

01 April 2020
Perspectives
Macroeconomics
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केंद्रीय बजट 2020 और भारत का आर्थिक भविष्य

इस पोस्ट में, निर्विकार सिंह ने यह चर्चा की है कि हम हाल ही में प्रस्तुत केंद्रीय बजट से भारत की अर्थव्यवस्था की संभावित दिशा के बारे में क्या जान सकते हैं। वे कहते हैं कि, हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभावों के संदर्भ में यह बजट सकारात्मक है, हाल के वर्षों की तुलना में अंतर इतना है कि इसमें ध्‍यान दिए जाने और क्रियान्‍वयन के संबंध में तत्‍परता की आवश्‍यकता महसूस की गई है जो पिछले कुछ समय से आवश्‍यक नहीं समझी गई है।

20 February 2020
Perspectives
Macroeconomics
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केंद्रीय-बजट 2020: बुनियादी ढांचे हेतु खर्च, हिस्‍सेदारी बेचना तथा संसाधनों को मध्यमवर्ग की ओर निर्देशन को प्राथमिकता

वित्त मंत्री सीतारमण ने 1 फरवरी को 2020-21 का केंद्रीय बजट पेश किया – यह उस समय आया है जब अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी का सामना कर रही है। इस पोस्ट में, निरंजन राजध्यक्ष ने कहा कि भले ही इस बार की कर-संबंधी धारणाएं जुलाई 2019 के बजट की तुलना में कम आक्रामक हों, लेकिन बहुत कुछ आर्थिक सुधार की ताकत और सरकार की अपनी हिस्‍सेदारी बेचने की महत्वाकांक्षी योजना बनाने की क्षमता पर निर्भर करता है।

12 February 2020
Perspectives
Macroeconomics
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डॉ. प्रणव सेन का पी.टी.आई. भाषा के साथ देश की आर्थिक सुस्ती पर साक्षात्कार

भारत के वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहले तिमाही के रिपोर्ट आने से यह ज्ञात हो रहा है कि कई कारणों से देश आर्थिक सुस्ती से गुज़र रहा है। इस बढ़ती हुई आर्थिक सुस्ती के ऊपर डॉ प्रणव सेन का कहना है कि देश की सरकार को मांग बढ़ाने की ज़रूरत है, जबकि सरकारी घोषणाओं का झुकाव आपूर्ति बढ़ाने पर ज्यादा है और इन घोषणाओं से लाभ मिलना मुश्किल है।

04 September 2019
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कृषि और केंद्रीय बजट: नीतियां और संभावनाएं

इस पोस्ट में शौमित्रो चटर्जी और मेखला कृष्णमूर्ति ने कृषि बाजार में सुधार, किसानों के लिए व्यवसाय करने में आसानी, और कृषि अनुसंधान तथा विस्तार से संबंधित केंद्रीय बजट 2019 के मुख्य प्रस्तावों का विश्लेषण किया है।

24 July 2019
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वर्ष 2019-20 के केंद्रीय बजट में सामाजिक संरक्षण

इस पोस्ट में सुधा नारायणन ने केंद्रीय बजट 2019 में सामाजिक संरक्षण से संबंधित प्रावधानों का विश्लेषण किया है। उनका तर्क है कि बजट के आंकड़ों से लगता है कि सरकार समाज कल्याण की अनेक योजनाओं के मामले में सही रास्ते पर चल रही है, लेकिन भारत में सामाजिक संरक्षण के ढांचे को वह धीरे धीरे कमज़ोर कर रही हो सकती है।

17 July 2019
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अंतरिम बजट 2019: तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में बढ़ता राजकोषीय घाटा?

इस लेख में राजेस्वरी सेनगुप्ता ने हाल ही में घोषित केंद्रीय अंतरिम बजट की विभिन्न बारीकियों का विश्लेषण किया है जिनमें राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लक्षित मार्ग से भटकाव शामिल है। आधार से जुड़े बैंक खातों के दौर में सरकारों के लिए बड़ी संख्या में मतदाताओं को रुपए ट्रांसफर करना काफी आसान हो गया है जिसके कारण नई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करने का लालच भी बढ़ा है। राष्ट्र की राजकोषीय सुदृढ़ता को संभवतः इसके चलते गंभीर कीमत चुकानी पड़ सकती है।

13 February 2019
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ग्रामीण भारत में युवाओं की डिजिटल तैयारी

भारत में तेज़ी से तकनीकी परिवर्तन हो रहा है, ऐसे में डिजिटल साक्षरता युवाओं की भविष्य की शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक अवसरों की तैयारियों का एक प्रमुख चालक बन गई है। कुमार और भुतडा ने इस लेख में, वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर- एएसईआर) 2023 और 2024 में प्रस्तुत जानकारी के आधार पर ग्रामीण युवाओं के बीच डिजिटल तैयारी की जाँच की है। हालांकि स्मार्टफोन का अब व्यापक रूप में इस्तेमाल हो रहा है, तब भी डिजिटल कौशल और तेज़ी से प्रौद्योगिकी-संचालित दुनिया के अनुकूल होने की तैयारी में महत्वपूर्ण अंतर बना हुआ है।

17 June 2025
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स्वच्छ ईंधन में बदलाव हेतु महिलाओं के समय का मूल्य (महत्त्व) बढ़ाना

ग्रामीण भारत में अधिकांश महिलाएँ पारंपरिक ईंधन का उपयोग जारी रखती हैं, जिसके चलते घरेलू कामों में उनका अधिक समय व्यतीत होता है। फरज़ाना अफरीदी ने इस लेख में मध्य प्रदेश में हुए एक सर्वेक्षण के परिणामों पर चर्चा की है और यह दिखाया है कि स्वच्छ ईंधन का उपयोग शुरू करने से महिलाओं का औसतन प्रतिदिन लगभग 20 मिनट का समय बचता है, लेकिन महिलाओं की कार्यबल भागीदारी में समान वृद्धि नहीं होती है। उनका कहना है कि श्रम बाज़ार में महिलाओं के काम का मूल्य बढ़ाने से स्वच्छ ईंधन अपनाने को प्रोत्साहन मिल सकता है।

12 June 2025
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शिक्षा का मार्ग रोशन करना : क्या बिजली की सुविधा से बच्चों के परीक्षा स्कोर में वृद्धि हो सकती है?

घरों में बिजली की सुविधा उपलब्ध हो जाने पर बच्चों के स्कूल में दाखिला लेने की सम्भावना बढ़ जाती है। लेकिन क्या वे बेहतर प्रदर्शन भी करते हैं? यह लेख पश्चिम बंगाल के सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण कार्यक्रम और राष्ट्रीय स्तर के प्रतिनिधि डेटा के आधार पर, दर्शाता है कि बिजली की सुविधा वाले परिवारों के बच्चे पठन और गणित की परीक्षाओं में बेहतर अंक प्राप्त करते हैं। इसके पीछे के मुख्य तंत्रों के रूप में अधिक देर तक पढ़ने की सुविधा, अधिक पारिवारिक आय और ईंधन संग्रहण की आवश्यकता कम होने के रूप में की गई है।

15 May 2025
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Human Development
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किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर शराब निषेध का अनपेक्षित प्रभाव

शराब का सेवन आमतौर पर किशोरावस्था के दौरान शुरू होता है, जिसका वयस्कों के स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिरता और कल्याण पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। इस लेख में बिहार के शराब प्रतिबंध का विश्लेषण करते हुए, पड़ोसी राज्यों से अवैध शराब की बढ़ती पहुँच और घर में व स्थानीय रूप से तैयार शराब की अधिक खपत के कारण किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पाया गया। इसके अतिरिक्त, जोखिम भरे व्यवहार में वृद्धि हुई और किशोरों के सामाजिक वातावरण में गिरावट आई।

08 May 2025
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एएसईआर 2024: महामारी के बाद के सुधार से कहीं बेहतर

गत कई वर्षों की ही भाँति शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2024 में भारत के लगभग सभी ग्रामीण जिलों से बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति, उनके पठन और अंकगणित के स्तर के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। एएसईआर केन्द्र की निदेशक विलिमा वाधवा ने इस लेख में सरकारी और निजी स्कूलों में स्कूल नामांकन और शिक्षा के परिणामों में प्रमुख रुझानों पर चर्चा की है। अधिगम में हुए सुधार का श्रेय उन्होंने नई शिक्षा नीति में बुनियादी साक्षरता और अंक-ज्ञान पर दिए गए ध्यान को दिया है।

03 April 2025
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लैंगिक समानता और सशक्तिकरण की ओर बढ़ते पहिए

भारत के बिहार और ज़ाम्बिया के ग्रामीण इलाके में, सरकार ने किशोरियों को स्कूल आने-जाने के लिए साइकिल प्रदान करके शिक्षा में लैंगिक अंतर को दूर करने के कार्यक्रम शुरू किए। इस लेख में, इन पहलों के तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभावों पर चर्चा करते हुए, शिक्षा में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए अधिक प्रभावी और स्थाई नीतियाँ डिज़ाइन करने के बारे में रोशनी डाली गई है। यह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 के उपलक्ष्य में हिन्दी में प्रस्तुत श्रृंखला का तीसरा लेख है।

13 March 2025
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माता-पिता एवं शिक्षक के बीच सहयोग के माध्यम से आधारभूत शिक्षा को बढ़ावा देना

प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन में प्रगति होने के बावजूद, ग्रामीण भारत में 50% से अधिक विद्यार्थी मूल साक्षरता हासिल करने में असफल रहते हैं, जबकि 5वीं कक्षा के अंत तक 44% विद्यार्थियों में अंकगणित कौशल का अभाव होता है। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में किए गए एक यादृच्छिक प्रयोग के आधार पर, इस लेख में पाया गया है कि माता-पिता और शिक्षकों के बीच सहयोगात्मक तथा भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी से स्कूलों में जवाबदेही बढ़ती है, और बच्चों की बुनियादी शिक्षा में उल्लेखनीय सुधार होता है।

27 February 2025
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बेटियों को सशक्त बनाना : सशर्त नकद हस्तांतरण किस प्रकार से पारम्परिक मानदंडों को बदल सकते हैं

हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की स्थापना 2008 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लड़कियों को सशक्त बनाने और उनकी सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की थी। यह दिन उन सभी असमानताओं के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है जिनका सामना लड़कियों को करना पड़ता है। इसी अवसर पर पेश है आज का आलेख। पिछले 30 वर्षों में भारत सरकार ने बेटियों के जन्म के बाद, उनके लिए निवेश करने वाले माता-पिता को पुरस्कृत करने के लिए 20 से अधिक कार्यक्रम लागू किए हैं। फिर भी, पुत्र प्राप्ति की प्राथमिकता को कम करने तथा सांस्कृतिक मानदंडों में बदलाव लाने में इन कार्यक्रमों की प्रभावशीलता के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इस शोध आलेख में, कई विशिष्ट डिज़ाइन वाली योजनाओं के प्रभाव का विश्लेषण करते हुए पाया गया है कि ऐसे कार्यक्रम सही मायने में नीति सम्बन्धी टूलकिट का हिस्सा हैं और उन पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

24 January 2025
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प्रतिस्पर्धी नौकरियों की खोज : कम शेयरिंग से कंपनियों का नुकसान

श्रम बाज़ार में नौकरियों और कर्मचारियों के सही तालमेल के लिए यह ज़रूरी है कि नौकरी पोस्टिंग की जानकारी उपयुक्त नौकरी खोजने वालों तक पहुँचे। हालांकि इस सम्बन्ध में सोशल नेटवर्क महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन नौकरियों के लिए होने वाली प्रतिस्पर्धा सूचना के साझाकरण को हतोत्साहित कर सकती है। मुंबई में कॉलेज छात्रों के साथ किए गए एक प्रयोग के आधार पर, इस लेख में पाया गया है कि इस हतोत्साहन के कारण आवेदकों और नियुक्तियों की समग्र गुणवत्ता कम हो जाती है।

16 January 2025
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कैसे लड़कियों की शिक्षा में निवेश से भारत में घरेलू हिंसा कम हो सकती है

भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु की लगभग एक तिहाई महिलाएँ घरेलू हिंसा का सामना करती हैं। यह लेख जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम, बड़े पैमाने के एक स्कूल विस्तार कार्यक्रम, के कारण लड़कियों की शिक्षा में वृद्धि के उस प्रभाव की जाँच करता है जो वयस्क जीवन में घरेलू हिंसा पर पड़ता है। इसमें महिलाओं के प्रति लैंगिक दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव, साथी की गुणवत्ता में सुधार और सूचना तक पहुँच में वृद्धि के माध्यम से घरेलू हिंसा में उल्लेखनीय कमी पाई गई है।

25 October 2024
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भारत में रोज़गार की विशाल समस्या और इसके कुछ समाधान

भारत के केन्द्रीय बजट 2024-25 की घोषणा में रोज़गार सृजन की आवश्यकता पर महत्वपूर्ण ज़ोर दिया गया है। प्रणब बर्धन इस लेख के ज़रिए लम्बे समय में अच्छी नौकरियों के स्थाई सृजन हेतु एक चार-आयामी रणनीति- बड़े पैमाने पर व्यावसायिक शिक्षा व प्रशिक्षुता, पूंजी सब्सिडी को सशर्त मज़दूरी सब्सिडी से बदलना, गैर-कृषि घरेलू उद्यमों को विस्तार सेवाएँ प्रदान करना और कमज़ोर समूहों के लिए बुनियादी आय अनुपूरक के माध्यम से मांग को बढ़ावा देना प्रस्तुत करते हैं।

11 October 2024
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क्या सार्वजनिक सेवाओं में सब्सिडी से बाज़ार अनुशासित होते हैं या मांग का स्वरूप खराब हो जाता है?

पूर्व में हुए शोधों ने भारत के प्रमुख सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम की विफलता को दर्ज किया है- यह कार्यक्रम प्रसवकालीन मृत्यु दर को कम करने में विफल रहा है जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रसव कराने वाली माताओं की हिस्सेदारी में पर्याप्त वृद्धि हुई है। यह नीति-निर्माताओं के सामने एक उलझी हुई पहेली की तरह खड़ा है। मातृ-स्वास्थ्य सेवा बाज़ार के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यक्रम के प्रति प्रतिक्रियाओं की जाँच करते हुए इस लेख में, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच की अंतर्क्रियाओं में स्पष्टीकरण का पता लगाने प्रयत्न किया गया है।

24 September 2024
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भूमि संबंधी ऐतिहासिक नीतियाँ और सामाजिक-आर्थिक विकास : उत्तर प्रदेश का मामला

उत्तर प्रदेश में विकासात्मक परिणामों में महत्वपूर्ण अंतर-राज्यीय भिन्नता पाई जाती है और शोध से पता चलता है कि ऐसा आंशिक रूप से, राज्य के भीतर औपनिवेशिक भूमि संबंधी नीतियों में अंतर के दीर्घकालिक प्रभावों के कारण हो सकता है। यह लेख 19वीं शताब्दी में भूमि सुधार वाले क्षेत्रों और जहाँ सुधार नहीं हुए हैं, ऐसे क्षेत्रों की तुलना करते हुए दर्शाता है कि पूर्व में धन और मानव पूंजी पर सकारात्मक दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है। इसमें निम्न जाति के वे परिवार भी शामिल हैं जिनके पूर्वजों को सुधारों के तहत भूमि नहीं मिली थी।

20 August 2024
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मध्य भारत के आदिवासी समुदाय : चुनौतियाँ और आगे की राह

‘आदिवासी आजीविका की स्थिति’ रिपोर्ट ने एक बार फिर मध्य भारत में जनजातियों की भयावह स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित किया है। विश्व के मूल व आदिवासी लोगों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मूल लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी उपलक्ष्य में प्रस्तुत इस लेख में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी परिवारों के सर्वेक्षण के आधार पर, चौधुरी और घोष जैव विविधता की हानि और भूमिहीनता, खराब खाद्य सुरक्षा और कुपोषण, और निरक्षरता जैसी चुनौतियों पर चर्चा करते हैं। वे खाद्य सब्सिडी के ज़रिए प्रदान की जाने वाली राहत पर प्रकाश डालते हैं, साथ ही इन समुदायों के उत्थान के लिए शासन प्रणाली में सुधार और आदिवासी मूल्यों को संरक्षित करने का सुझाव देते हैं।

09 August 2024
Notes from the Field
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माध्यमिक स्तर के अधिगम में सुधार : रेमिडियल शिविरों और कक्षा में शिक्षकों के लचीलेपन की भूमिका

भारतीय शिक्षा प्रणाली की एक प्रमुख दुविधा यह है कि बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं, लेकिन वास्तव में ढ़ंग से सीख नहीं रहे हैं। यह लेख ओडिशा में हुए एक प्रयोग के आधार पर, माध्यमिक विद्यालय में अधिगम की कमी के सम्भावित समाधानों की खोज करता है। इसमें पाया गया है कि अनुकूलित सुधारात्मक या रेमिडियल कार्यक्रम सीखने की प्रक्रिया में सुधार और सीखने के स्तर के बारे में शिक्षकों की धारणाओं में सुधार लाते हैं। लेकिन पाठ योजनाओं में शिक्षक स्वायत्तता को बढ़ाने से होने वाले लाभ इतने स्पष्ट रूप से नहीं दिखते।

21 June 2024
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चहुँ ओर पानी लेकिन पीने के लिए एक बूँद भी नहीं! साफ़ पानी के सन्दर्भ में सूचना और पहुँच को सक्षम बनाना

भारत में 5 करोड़ से ज़्यादा लोग आर्सेनिक-दूषित पानी पीते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर, ख़ास तौर पर बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसके बावजूद प्रभावित क्षेत्रों में निजी, सुरक्षित पेयजल की माँग कम बनी हुई है। यह लेख असम में किए गए एक प्रयोग के आधार पर दर्शाता है कि किस प्रकार जल गुणवत्ता जागरूकता हस्तक्षेपों को, सरकारी लाभ प्राप्त करने में लेन-देन सम्बन्धी जटिलता को कम करने के साथ संयोजित करने से, इस समस्या के समाधान में मदद मिल सकती है।

19 June 2024
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क्या सुरक्षित पेयजल से बच्चों के शैक्षिक परिणामों में सुधार हो सकता है?

यह अच्छी तरह से प्रमाणित हो चुका है कि शुद्ध पानी पीने से स्वास्थ्य संबंधी लाभ होते हैं, लेकिन क्या इससे बच्चों के शैक्षिक परिणामों में भी सुधार हो सकता है? साफ पानी का अधिकार एक मूल अधिकार है और एक सतत विकास लक्ष्य भी। विश्व स्वास्थ्य दिवस, जो हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है, के सन्दर्भ में भारत मानव विकास सर्वेक्षण के आँकड़ों का विश्लेषण करते हुए, इस लेख में दस्त की घटनाओं में कमी, पानी लाने में कम समय बिताया जाना और अल्पकालिक रुग्णता पर कम खर्च तथा शिक्षा पर अधिक खर्च कर पाने जैसे विकल्पों की पहचान के प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं। एक विशेष बात यह है कि इसका प्रभाव लड़कियों पर अधिक स्पष्ट है।

08 April 2024
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मानसिक बीमारी की 'अदृश्य' विकलांगता : सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच में बाधाएं

विश्वव्यापी अनिश्चितता और सन्घर्ष में अंतर्राष्ट्रीय ख़ुशी दिवस, 20 मार्च का महत्व और बढ़ जाता है। इसी सन्दर्भ में दिव्यांगता के आयाम में प्रस्तुत इस शोध आलेख में साक्षी शारदा लिखती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य के मूल्याँकन और उसके निदान के बारे में स्पष्टता की कमी तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अपर्याप्त कार्यान्वयन के चलते किस प्रकार विकलांग लोगों की भेद्यता बढ़ जाती है। वे मानसिक बीमारी, तंत्रिका सम्बन्धी विकारों और सीखने की अक्षमता जैसी 'अदृश्य' सीमितताओं से पीड़ित लोगों के लिए ‘विकलांगता प्रमाणपत्र’ प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयों का पता लगाती हैं। वे मौजूदा नीति में व्याप्त कमियों, मानसिक स्वास्थ्य के लिए जाँच के बारे में आम सहमति की कमी और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों तक की सीमित पहुँच के कारण होने वाले मुद्दों पर प्रकाश डालती हैं।

20 March 2024
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महिलाओं में ग़ैर-संचारी रोगों की वृद्धि को रोकने के लिए स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में सुधार करना

ग़ैर-संचारी रोगों के कारण मृत्यु दर में हो रही वृद्धि के चलते महिलाओं के लिए बदलते स्वास्थ्य देखभाल बोझ को देखते हुए, भान और शुक्ला पिछले दो दशकों में विभिन्न भारतीय राज्यों में हुई बीमारियों की घटनाओं और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में आने वाली बाधाओं को कम करने के लिए पीएमजेएवाई कार्यक्रम की भूमिका की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रस्तुत इस शोध आलेख में भान और शुक्ला सार्वजनिक वित्त-पोषित स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों के उपयोग में पुरुष पूर्वाग्रह पर, जैसा कि राज्य की बीमा योजनाओं से पता चलता है, ध्यान देते हैं और महिलाओं की पहुँच और उपयोगकर्ता अनुभव में आने वाली बाधाओं को समझने की आवश्यकता पर रौशनी डालते हैं।

08 March 2024
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भारत के मिशन परिवार विकास का प्रजनन दर व परिवार नियोजन पर प्रभाव

भारत का बड़े पैमाने का परिवार नियोजन कार्यक्रम, मिशन परिवार विकास, गर्भनिरोधक तक पहुँच में सुधार करता है, कार्यक्रम अपनाने वाले लाभार्थियों को नकद प्रोत्साहन प्रदान करता है और 146 जिलों में प्रजनन की वर्तमान उच्च दर को कम करने के उद्देश्य से परिवार नियोजन के बारे में जानकारी का प्रसार करता है। इस लेख में एनएफएचएस के कई दौरों के डेटा का उपयोग करते हुए, हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप जन्मों की संख्या में गिरावट, महिलाओं और पुरुषों की प्रजनन प्राथमिकताओं में कमी और गर्भनिरोधक को अपनाने में वृद्धि के साक्ष्य का दस्तावेज़ीकरण किया गया है।

16 February 2024
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भारत में विज्ञान शिक्षा के निर्धारण में जाति और लिंग की भूमिका

12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत है यह आलेख। शिक्षा और करियर युवाओं के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं। भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए उच्च माध्यमिक स्तर पर विज्ञान का अध्ययन करना आवश्यक है। इस लेख में हालिया शोध के आधार पर विज्ञान का अध्ययन करने के विकल्प में लिंग और जाति-आधारित असमानताओं की व्यापकता को प्रस्तुत किया गया है। लेख में परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्कूली शिक्षा तक पहुँच की कमी और इन असमानताओं को समझाने में गलत मान्यताओं व पूर्वाग्रहों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, यह दर्शाया है कि शिक्षकों की सामाजिक पहचान का वंचित समूहों द्वारा विज्ञान को चुनने पर प्रभाव पड़ सकता है।

11 January 2024
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सीखने के लिए सतत संघर्ष : आदिवासी क्षेत्रों की कहानी

हाल के राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण यानी नेशनल अचीवमेंट सर्वे से पता चलता है कि अधिगम परिणामों के सन्दर्भ में आदिवासी जिले पीछे चल रहे हैं। इसे महत्वपूर्ण मानते हुए, लेख में इस तथ्य पर चिन्ता जताई गई है, क्योंकि स्कूली शिक्षा के भौतिक ढाँचे के वितरण में ऐसा अन्तर नज़र नहीं आता है। लेख में जनजातीय आबादी की अधिक हिस्सेदारी वाले क्षेत्रों में, भाषा और गणित के औसत से कम परिणामों पर प्रकाश डाला गया है। लेख में, समावेशी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भौतिक ढाँचे में निवेश के अलावा, शिक्षकों की भागीदारी और शैक्षणिक सुधार (पेडागोजी और अध्यापन में सुधार) पर ध्यान केन्द्रित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है।

21 December 2023
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लचीली शिक्षा प्रणालियों की स्थापना : पाँच देशों से प्राप्त साक्ष्य

देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जन्मतिथि के अवसर पर प्रति वर्ष 11 नवम्बर को मनाए जाने वाले राष्ट्रिय शिक्षा दिवस के उपलक्ष्य में यह आलेख प्रस्तुत है जिसमें कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया भर में एक अरब से अधिक बच्चों की शिक्षा बाधित होने की स्थिति को देखते हुए, एक ऐसी शिक्षा प्रणाली स्थापित किए जाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, जो लचीली हो और ऐसे झटकों के बावजूद शिक्षा की निरंतरता को बनाए रखने में कारगर साबित हो। इस लेख में मोबाइल फोन जैसी कम लागत वाली पारिवारिक स्वामित्व वाली संपत्ति का लाभ उठाने के लिए पाँच विकासशील देशों में किए गए हस्तक्षेप का वर्णन किया गया है और बच्चों के अधिगम प्रतिफल और उनके कल्याण पर इसके प्रभाव का सारांश प्रस्तुत किया गया है। इससे पता चलता है कि कैसे बड़े पैमाने पर कार्यों के कम रिटर्न प्राप्त करने की अपेक्षा, मूल प्रमाण-अवधारणा यानी प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट को विभिन्न देशों के सन्दर्भों में सफलतापूर्वक बढ़ाया जा सकता है।

14 November 2023
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मासिक धर्म सम्बन्धी स्वास्थ्य को कल्याणकारी प्राथमिकता देना : तीन राज्यों से प्राप्त अंतर्दृष्टि

अक्तूबर 11 पूरी दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य है देशों, समुदायों और समाजों को बालिकाओं के महत्त्व के बारे में याद दिलाना और उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में बराबरी का स्थान दिलाना। इसी सन्दर्भ में आज का यह लेख प्रस्तुत है जिसमें तान्या राणा ने बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान के फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत से प्राप्त अंतर्दृष्टि साझा की है। मासिक धर्म सम्बन्धी सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों का ध्यान मुख्य रूप से महिलाओं और बालिकाओं को सैनिटरी नैपकिन वितरित करने पर केन्द्रित रहता है। अपने इस लेख में तान्या राणा ने अधिक व्यापक मासिक धर्म सम्बन्धी स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। वह इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि मासिक धर्म सम्बन्धी स्वास्थ्य योजनाएं कार्यक्रम के खराब कार्यान्वयन और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की कमी से ग्रस्त हैं और अनुशंसा करती हैं कि योजना बनाते समय बालिकाओं को चिंतन के केन्द्र में रखने से इन कमियों को दूर किया जा सकता है।

12 October 2023
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‘स्वीट कैश’- विकासशील देशों में महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी ज़रूरतें

अग्रवाल एवं अन्य, स्वास्थ्य देखभाल की मांग के संदर्भ में लिंग-आधारित प्राथमिकताओं की भूमिका का पता लगाते हैं। सीपीएचएस डेटा का उपयोग करते हुए वे पाते हैं कि ईपीएफ में योगदान की अनिवार्य दरों में बदलाव से उत्पन्न सकारात्मक आय-झटके के कारण चिकित्सा परामर्श और दवाओं पर खर्च कम होने से, स्वास्थ्य देखभाल के खर्चों में 11.6% की गिरावट आती है। पर यह गिरावट स्पष्ट रूप से महिलाओं के बेहतर स्वास्थ्य परिणामों को इंगित नहीं करती है। यह दर्शाती है कि महिलाएँ, विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ, अपनी बढ़ी हुई आय का उपयोग घरेलू सामान की खरीद पर करने को प्रमुखता देती हैं।

29 September 2023
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समय पर चेतावनी’ के रूप में स्कूल में अनुपस्थिति

जब बच्चे अक्सर स्कूल में अनुपस्थित रहते हैं तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि वे प्रतिकूल व्यक्तिगत परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं। अनुराग कुंडू इस लेख में, स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति पर नज़र रखने और कमज़ोर छात्रों को सहायता प्रदान करने के लिए बड़े पैमाने के एक हस्तक्षेप संबंधी अनुभव की चर्चा करते हैं, जिससे छात्रों के स्कूल वापस आने में मदद मिल सकती है। वे स्कूलों में बेहद कम उपस्थिति के कारण सीखने और स्वास्थ्य परिणामों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों और छात्रों की परिस्थितियों को समझने और उचित हस्तक्षेप डिज़ाइन करने के लिए स्कूलों में उनकी उपस्थिति को ट्रैक करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

17 August 2023
Notes from the Field
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भारत में महिला बाल विवाह के संबंध में एक डेटा अध्ययन

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के उपलक्ष्य में I4I के महीने भर चलने वाले अभियान के दौरान प्रस्तुत अपने लेख में, क्वांटम हब के शुभम मुदगिल और स्वाति राव देश भर के संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में बाल विवाह पर डेटा हाइलाइट्स प्रस्तुत करने के लिए एनएफएचएस पर आधारित एक नवीनतम डेटासेट का उपयोग करते हैं। वे महिला बाल विवाह की व्यापकता और पिछले वर्षों में कुछ राज्यों में इसकी स्थिति में हुए सुधार का पता लगाते हैं। साथ ही वे बाल विवाह की कम रिपोर्टिंग के मुद्दे और महिला बाल विवाह दरों में कमी सुनिश्चित करने के लिए महिला सशक्तिकरण के एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी चर्चा करते हैं।

03 August 2023
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भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण : क्या औपनिवेशिक इतिहास मायने रखता है?

क्या औपनिवेशिक इतिहास भारत में महिलाओं के समकालीन आर्थिक परिणामों की दृष्टि से मायने रखता है? इसकी जांच करते हुए यह लेख इस बात की ओर इशारा करता है कि जो क्षेत्र सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन रहा, महिला सशक्तिकरण के लगभग सभी मानदण्डों के आधार पर वहां की निवासी महिलाएं बेहतर स्थिति में हैं। इसमें तर्क दिया गया है कि अंग्रेज़ों के काल में महिलाओं के पक्ष में लाए गए कानूनी और संस्थागत परिवर्तन और 19वीं शताब्दी में पश्चिम-प्रेरित सामाजिक सुधार इस दीर्घकालिक संबंध को समझाने में प्रासंगिक हो सकते हैं।

21 July 2023
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भारत में स्वच्छ पेयजल तक पहुंच और महिलाओं की सुरक्षा

सेखरी और हुसैन इस अध्ययन में, भूजल की कमी के कारण महिलाओं के प्रति होने वाली यौन हिंसा में वृद्धि के संदर्भ में अनुभवजन्य साक्ष्य का पता लगाने के लिए जिला स्तर के आंकड़ों का उपयोग करते हैं। वे तर्क देते हैं कि जिन परिवारों को पीने का साफ पानी घरों में नहीं मिल पाता, उन परिवारों की महिलाओं को पानी लाने के लिए अक्सर घर से दूर जाना पड़ता है, जिससे वे यौन हिंसा के प्रति अधिक असुरक्षित हो जाती हैं। क्योंकि यह सिद्ध होता है कि पानी की कमी से महिलाओं के लिए यौन हिंसा का खतरा बढ़ता है, यह शोध पानी के बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ बनाने के लिए अधिक पूँजी निवेश की दलील प्रस्तुत करता है।

23 June 2023
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मातृत्व पर पोषण का बोझ : क्या बच्चों को दिया जाने वाला मध्याह्न भोजन उनकी माताओं के स्वास्थ्य परिणामों में भी सुधार ला सकता है?

मध्याह्न भोजन बच्चों को पोषण सुरक्षा जाल प्रदान करता है और उनके अधिगम परिणामों तथा स्कूलों में उनकी उपस्थिति में सुधार लाता है। निकिता शर्मा तर्क देती हैं कि मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले बच्चों की माताओं को भी इसके ‘स्पिलओवर’ लाभ मिल सकते हैं। वह शोध के निष्कर्षों पर प्रकाश डालती हैं जो यह दर्शाते हैं कि मध्याह्न भोजन बच्चों में कुपोषण को दूर करने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि पोषण में कमी के दौरान बच्चों को खिलाने के लिए माताओं को अपना आहार त्यागने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

09 June 2023
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अस्पताल की जवाबदेही में सुधार हेतु मरीज़ों को जानकारी देकर सशक्त बनाना

समूचे भारत में गरीबों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा में विस्तार होने के बावजूद, कई अस्पतालों ने मरीज़ों की जेब से फीस लेना जारी रखा है। डुपास और जैन ने अपने अध्ययन में, इस बात की जांच की है कि क्या मरीज़ों को उनके लाभों के बारे में सूचित करने से अस्पतालों को जवाबदेह बनाने में मदद मिलती है। वे राजस्थान की एक सरकारी योजना के तहत, बीमा के हकदार डायलिसिस मरीज़ों का सर्वेक्षण करते हैं और पाते हैं कि निजी एवं सार्वजनिक अस्पतालों में जानकारी संबंधी हस्तक्षेप के प्रभाव अलग-अलग तरीके से उजागर होते हैं और केवल सार्वजनिक अस्पतालों में परीक्षण और दवाओं की कम कीमतों के कारण मरीज़ों के जेब से भुगतान में कमी आती है।

02 June 2023
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क्या ग्रामीण उत्तर भारत में अभी भी खुले में शौच प्रचलित है?

स्वच्छ भारत मिशन के बाद चार फोकस वाले राज्यों में प्रचलित खुले में शौच को समझने की कोशिश में, व्यास और गुप्ता एनएफएचएस-5 के निष्कर्षों का मूल्यांकन करते हैं। वे पाते हैं कि पारिवारिक स्तर पर एकत्र किए गए डेटा के उपयोग और प्रतिक्रिया पूर्वाग्रह की संभावना के चलते खुले में शौच की दर को एनएफएचएस द्वारा कम आंके जाने की संभावना है। अनुमानों को समायोजित करने के पश्चात वे पाते हैं कि वर्ष 2019-21 के दौरान फोकस वाले राज्यों में लगभग आधे ग्रामीण भारतियों ने खुले में शौच किया।

23 February 2023
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भारत में माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच से संबंधित चुनौतियां

भारत की नवीनतम राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वर्ष 2030 तक शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच की परिकल्पना की गई है। हालांकि, प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन अधिक होने के बावजूद माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच कम रही है। इसमें योगदान करने वाले कुछ कारकों के बारे में बोरदोलोई और पांडेय विचार करते हैं, जिनमें माध्यमिक शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूलों की सीमित संख्या, स्कूली शिक्षा से जुड़ी उच्च लागत और शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण में सार्वजनिक निवेश की कमी शामिल हैं। वे माध्यमिक शिक्षा पर केंद्रित नीति पर अधिक ध्यान देने का आह्वान करते हैं।

01 December 2022
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उच्च स्कोरिंग लेकिन गरीब: उच्च शिक्षा में प्रतिभा का गलत आवंटन

जैसे-जैसे कॉलेज शिक्षा में श्रम बाजार के लाभों में बढ़ोतरी हुई है, अब पहले से कहीं अधिक युवको को किसी न किसी प्रकार की उच्च शिक्षा प्राप्त हो रही है। फिर भी, गरीब सामाजिक आर्थिक स्थिति के बच्चों की कॉलेज में उपस्थिति कम रहती है। यह लेख उस असमानता की पड़ताल करता है। इस लेख में पाया गया है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि कॉलेज में उपस्थिति के लिए अकादमिक तैयारी से अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि अपनी कक्षा में शीर्ष स्थान पर रहने वाले गरीब छात्रों के कॉलेज में उपस्थित रहने की संभावना उतनी ही होती है जितनी उनकी कक्षा में सबसे नीचे स्थान पर रहने वाले अमीर छात्रों की होती है।

20 October 2022
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बुढ़ापे का भविष्य

भारत में बुजुर्गों के लिए सार्वजनिक सहायता के व्यापक स्तर पर विस्तार की आवश्यकता है। ड्रेज़ और डफ्लो इस लेख में तर्क देते हैं कि इसकी अच्छी शुरुआत निकट-सर्वव्यापक सामाजिक सुरक्षा पेंशन से हो सकती है। बुजुर्ग व्यक्ति- विशेष रूप से विधवाएं, अक्सर गरीबी, खराब स्वास्थ्य और अकेलेपन से जूझती हैं, और इसके चलते उनके अवसाद-ग्रस्त होने का जोखिम होता है। वित्तीय सहायता मिलने से उन्हें एक आसान जीवन जीने में मदद होगी। कुछ भारतीय राज्यों में पहले से ही निकट-सर्वव्यापक पेंशन दी जा रही है, और ये पूरे देश में अपनाये जाने का आधार बनता है।

07 October 2022
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इल्लम थेडी कलवी: कोविड के बाद की शिक्षा के लिए एक बूस्टर शॉट

कोविड -19 महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण हुए शिक्षण के नुकसान की चिंताओं के बीच, तमिलनाडु के एक स्वयंसेवक-आधारित शिक्षा कार्यक्रम - इल्लम थेडी कलवी (आईटीके) – ने सीखने की खाई को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस लेख में, सार्थक अग्रवाल ने ग्रामीण आईटीके कक्षा में किये अपने दौरे को याद किया है, और कार्यक्रम की सफलता में योगदान देने वाले कारकों की और इस मॉडल से अन्य राज्य क्या सीख ले सकते हैं, इसकी रूपरेखा प्रस्तुत की है।

23 September 2022
Notes from the Field
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वित्तीय पहुंच परिवारों में महिलाओं की निर्णय लेने की भूमिका को कैसे प्रभावित करती है

महिलाओं को वित्तीय सहायता तक पहुंच प्रदान करने वाले सरकारी कार्यक्रमों द्वारा दी जाने वाली सहायता अक्सर इतनी कम होती है कि जिससे महिलाओं की उनके परिवार में आर्थिक स्थिति में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हो पाता है। इस लेख में एनआरएलपी स्वयं-सहायता समूहों के सदस्यों को दिए गए ऋणों से संबंधित डेटा का उपयोग किया गया और यह पाया गया कि वित्तीय संसाधनों तक महिलाओं की पहुंच बढ़ने से परिवार में उनकी निर्णय लेने की भूमिका में वृद्धि होती है। हालाँकि, केवल बड़े ऋणों के बारे में ही यह प्रभाव दिखता है, जबकि महिलाओं को छोटे ऋण प्रदान करने से परिवार की वित्तीय स्थिति में सुधार के समान परिणाम दिखाई देते हैं।

16 September 2022
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भारत में छात्र मूल्यांकन संबंधी खराब डेटा में सुधार लाना

भारत में छात्रों के शिक्षा के स्तर के बारे में प्रशासनिक डेटा की सटीकता पर मौजूदा प्रमाण को ध्यान में रखते हुए, सिंह और अहलूवालिया चर्चा करते हैं कि छात्र मूल्यांकन की एक विश्वसनीय प्रणाली क्यों मायने रखती है; मूल्यांकन डेटा की गुणवत्ता तय करना भारतीय शिक्षा प्रणाली में औसत दर्जे के दुष्चक्र को रोकने की दिशा में एक कदम है। वे इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे तृतीय-पक्ष द्वारा स्वतंत्र मूल्यांकन और प्रौद्योगिकी एवं उन्नत डेटा फोरेंसिक के उपयोग से शिक्षा के वास्तविक स्तर की गलत व्याख्या को रोका जा सकता है।

08 September 2022
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भारत में स्वास्थ्य बीमा तक पहुंच: प्रत्यक्ष और स्पिलओवर प्रभाव

भारत में स्वास्थ्य देखभाल की उच्च लागत के चलते कई कम आय वाले परिवार गरीबी में आ जाते हैं | गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम - राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ इष्टतम से कम है। यह लेख कर्नाटक में गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों के एक नमूने के लिए अस्पताल बीमा की पेशकश के प्रभाव की जांच करता है। यह बीमा के उपयोग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण समकक्ष प्रभाव पाता है; जबकि अस्पताल बीमा का स्वास्थ्य परिणामों पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ता है।

04 August 2022
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भारत में शिक्षकों की कमी और इससे जुड़ी वित्तीय लागत का आकलन

भारत में नई शिक्षा नीति के तहत सार्वजनिक प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के 10 लाख रिक्त पदों को अत्‍यावश्‍यक रूप से भरने का प्रस्ताव किया गया है। इस लेख में,शिक्षा से संबंधित वर्ष 2019-20 के जिला सूचना प्रणाली (यू-डीआईएसई) आंकड़ों का उपयोग करते हुए,पूरे भारत में शिक्षकों की कमी के इस अनुमान का आकलन किया गया है। शिक्षक अधिशेष की व्यापकता और 'फर्जी' छात्र नामांकन को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि दस लाख शिक्षकों की बहुप्रचारित कमी के बजाय लगभग 100,000 शिक्षकों का शुद्ध अधिशेष है।

15 July 2022
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सामाजिक-धार्मिक समूहों के भीतर व्याप्त जातिगत असमानताएँ: उत्तर प्रदेश से साक्ष्य प्रमाण

मंडल आयोग और सचर समिति की रिपोर्ट में चार प्रमुख जाति समूहों के भीतर जातिगत असमानताओं के अस्तित्व को दर्शाया गया है। हालाँकि, इस विषय पर सीमित डेटा ही उपलब्ध है। यह लेख उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014-2015 में किए गए एक नवल सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग करते हुए दर्शाता है कि हिंदू और मुस्लिम ओबीसी और दलित दोनों के बीच पाई गई समूह असमानताओं की तुलना में उच्च जातियों के बीच समूह असमानताएं काफी कम हैं।

13 May 2022
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क्या स्कूल प्रबंधन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढाने से स्कूल की गुणवत्ता में सुधार होता है?

वर्ष 2009 में लागू किये गए शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) ने सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से स्कूलों में जवाबदेही में सुधार लाने हेतु सार्वजनिक और निजी सहायता-प्राप्त स्कूलों को स्कूल प्रबंधन समितियों (एसएमसी) का गठन करने के लिए अनिवार्य किया। यह लेख स्कूलों के बारे में वर्ष 2012-2018 के बीच के भारतीय प्रशासनिक डेटा और एएसईआर (शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट) डेटा का उपयोग करते हुए, दर्शाता है कि स्कूल प्रबंधन समितियों में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व उस स्कूल की उच्चतम गुणवत्ता से जुड़ा है; जिसे तैनात किए गए शिक्षकों की संख्या, शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता, शैक्षणिक संसाधन, स्कूल में छात्रों के दाखिले, और शिक्षा प्राप्त करने के परिणाम के संदर्भ में मापा गया है।

05 May 2022
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राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) का स्वास्थ्य सेवा के उपयोग और खर्च को कैसे प्रभावित किया

सामाजिक स्वास्थ्य बीमा का उद्देश्य गरीबों को उनके स्वास्थ्य पर होने वाले अत्यधिक खर्च से बचाना और उन्हें स्वास्थ्य सेवा के अधिकाधिक उपयोग हेतु प्रोत्साहित करना है। इस लेख में, वर्ष 2004-05 और वर्ष 2011-12 के भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, पाया गया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना ने लंबी अवधि की बीमारी के उपचार हेतु अस्पताल में भर्ती होने तथा अल्पकालिक बीमारी में डॉक्टर के दौरे की संभावना को बढ़ा दिया है। जैसे ही स्वास्थ्य हेतु जेब से खर्च में (ओओपी) वृद्धि हुई, वहीँ बीमारी के कारण खोए दिनों की संख्या में गिरावट आई।

21 April 2022
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भारत में कोविड-19: मामले, मौतें और टीकाकरण

भारत में कोविड-19 की तीसरी बड़ी लहर के रूप में इसके ओमाइक्रोन वेरिएंट का प्रसार हुआ है, जिसमें मामलों की संख्या तो दूसरी लहर से अधिक है, लेकिन इससे बीमारी का खतरा औसतन कम गंभीर रहा है। इस लेख में, कुंडू और गिसेलक्विस्ट देश में ओमाइक्रोन-पूर्व के कोविड-19 के मुख्य पैटर्न और रुझानों को स्पष्ट करने के लिए कई राष्ट्रीय प्रतिनिधि डेटा स्रोतों को संकलित करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में इसके अंतर-प्रभावों को दर्शाते हैं, और चर्चा करते हैं कि महामारी प्रतिक्रिया में किस प्रकार से सुधार किया जा सकता है।

29 March 2022
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बजट 2022-23: समस्याएँ तथा युक्तियां

भारत के 2022-23 के केंद्रीय बजट का विश्लेषण करते हुए, नीरज हाटेकर तर्क देते हैं कि मनरेगा, ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम, जिसे 2021-22 के बजट अनुमानों की तुलना में अतिरिक्त धन प्राप्त नहीं हुआ है, का उपयोग मंडरा रहे कृषि संकट से निपटने के लिए किया जाना चाहिए। वे स्वास्थ्य और पोषण संकेतकों की गिरावट की भी जांच करते हैं, और यह विचार रखते हैं कि इसके समाधान हेतु बजट में कोई उल्लेखनीय पहल नहीं की गई है।

25 February 2022
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ग्रामीण भारत में गणित सीखने में लैंगिक अंतर

विकसित देशों में साक्ष्य के बढ़ते दायरे यह संकेत देते हैं कि गणित सीखने संबंधी परिणामों में महिलाओं के लिए प्रतिकूल स्थिति बनी रहती है और इसके संभावित कारण सामाजिक कारक, सांस्कृतिक मानदंड, शिक्षक पूर्वाग्रह और माता-पिता के दृष्टिकोण आदि से संबंधित होते हैं। यह लेख भारत के राष्ट्रीय स्तर के प्रतिनिधिक आंकड़ों का उपयोग करते हुए, विभिन्न आयु वर्गों में गणित सीखने में मौजूद लैंगिक असमानता को दर्शाता है और यह भी दर्शाता है कि समय के साथ इसके कम होने के कोई प्रमाण भी नहीं मिलते हैं।

11 February 2022
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आर्थिक विकास, पोषण जाल, और चयापचय संबंधी रोग

हाल ही में प्रलेखित किये गए दो तथ्य इस परंपरागत धारणा के विपरीत चलते हैं कि आर्थिक विकास बेहतर स्वास्थ्य की ओर ले जाता है: विकासशील देशों में आय और पोषण की स्थिति के बीच एक स्पष्ट लिंक का अभाव; और आर्थिक विकास के साथ, तथा सामान्य व्यक्तियों में, जो कि जरूरी नहीं कि अधिक वजन वाले हों, चयापचय संबंधी बीमारी का बढ़ता प्रचलन। यह लेख इन प्रतीत होने वाले असंबंधित अवलोकनों के लिए एक ही स्पष्टीकरण प्रदान करता है।

27 January 2022
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शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं: भारत में पुरुषों का शौचालय स्वामित्व और उनकी शादी की संभावनाएं

निरंतर किये जा रहे अनुसंधान से पता चलता है कि परिवारों के लिए स्वच्छता निवेश में लागत एक प्रमुख बाधा रही है। मध्य-प्रदेश और तमिलनाडु में किये गए एक सर्वेक्षण के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि वित्तीय और स्वास्थ्य-संबंधी विचारों के अलावा, घर में शौचालयों का निर्माण करने के बारे में परिवारों का निर्णय इस विश्वास से प्रभावित होता है कि खुद का शौचालय होने से उनके लड़कों के लिए अच्छे जीवन-साथी खोजने की संभावनाओं में सुधार होता है।

30 November 2021
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भारत में बच्चों के टीकाकरण की समयबद्धता और उसका कवरेज

यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त में टीकाकरण उपलब्ध होने के बावजूद, विश्व के एक तिहाई बच्चों की मौतें भारत में जिन बीमारियों की रोकथाम वैक्सीन से हो सकती है ऐसी बीमारियों के कारण होती हैं। देबनाथ और चौधरी इस लेख में, 2005-06 और 2015-16 के राष्ट्रीय स्तर के प्रातिनिधिक डेटा का उपयोग देश में नियमित टीकाकरण की समयबद्धता और उसके कवरेज की जांच करने के लिए करते हैं। इसके अलावा, वे इस संबंध में कोविड-19 के प्रभाव का आकलन करने के लिए बिहार में किये गए हाल के एक प्राथमिक सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर भी चर्चा करते हैं।

26 October 2021
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कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य: क्या बच्चे वापस स्कूल में जाने के लिए तैयार हैं?

कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य' पर आयोजित की गई I4I ई-संगोष्ठी के पूर्व भाग में स्कूल बंद होने के कारण, विशेष रूप से हाशिए पर रहे और कमजोर समूहों से संबंधित बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले संभावित प्रतिकूल प्रभावों की चर्चा की गई है। इस लेख में, विलीमा वाधवा ने इस अवधि के दौरान सीखने की सामग्री तक बच्चों की पहुंच के बारे में एएसईआर (वार्षिक शैक्षिक स्थिति रिपोर्ट) 2020 के आधार पर प्राप्त निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं। उनका तर्क है कि स्कूलों के फिर से खुलते ही, शिक्षण-व्यवस्था को किसी अन्य तरीकों को न अपनाते हुए बच्चों और उनकी वर्तमान वास्तविकता के अनुकूल चलना होगा।

18 October 2021
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कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य: बच्चों के समग्र विकास पर ध्यान देना

शांतनु मिश्रा (सह-संस्थापक और ट्रस्टी, स्माइल फाउंडेशन) चर्चा करते है कि कैसे कोविड के कारण सामाजिक आवागमन और सामाजिक कार्यकलापों पर लगे प्रतिबंध एवं घर में अनुकूल माहौल बनाने के लिए वयस्कों पर पूर्ण निर्भरता के कारण बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। वे स्कूलों के दोबारा खुलने पर (जब खुलेंगे) उनके द्वारा बच्चों के अधिकाधिक समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालते हैं।

12 October 2021
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कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य: "इन्फोडेमिक" से लड़ाई, एक समय में एक फोन कॉल

भारत में कोविड-19 के बारे में जानकारी संप्रेषित करने की नीतियों में मुख्य रूप से टेक्स्ट संदेश और फोन कॉल की शुरुआत में रिकॉर्ड किए गए वॉयस मैसेज शामिल हैं। कर्नाटक में गारमेंट श्रमिकों के किये गए एक दूरस्थ सर्वेक्षण के आधार पर यह लेख दर्शाता है कि महामारी से संबंधित जानकारी देने के लिए फोन कॉल का उपयोग टेक्स्ट संदेश और वॉयस रिकॉर्डिंग के जरिये ज्ञान प्रदान करने जितना ही प्रभावी है- और साथ ही यह मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव भी डालता है।

08 October 2021
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कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य: टेलीकाउंसलिंग के माध्यम से महिलाओं की मानसिक स्थिति में सुधार लाना

कोविड-19 जैसी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति के कारण परिवार में निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति, देखभाल की अधिक जिम्मेदारियां, और जीवन-साथी द्वारा हिंसा के खतरे के चलते महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। ग्रामीण बांग्लादेश में किये गए एक क्षेत्रीय अध्ययन के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि संसाधन के अभाव वाले सेटिंग्स में कम लागत वाला टेलीकाउंसलिंग हस्तक्षेप महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य में प्रभावी रूप से सुधार ला सकता है।

05 October 2021
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कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य: ई-संगोष्ठी का परिचय

कोविड-19 महामारी और इससे संबंधित लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा जिसके कारण सबसे कमजोर वर्गों को आजीविका, कमाई का नुकसान हुआ और उन्हें खाद्य असुरक्षा भी झेलनी पड़ी। यद्यपि इस महामारी का लोगों के आर्थिक कल्याण पर पड़ा प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से दिखता है, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर हुआ प्रभाव उतना ही प्रतिकूल है लेकिन वह साफ दिखता नहीं है। अगले दो सप्ताह में आयोजित की जा रही ई-संगोष्ठी में, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ दो विशेष रूप से कमजोर जनसांख्यिकीय समूहों-महिलाओं और बच्चों पर महामारी के पड़े मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों पर विचार करेंगे।

01 October 2021
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हाई स्कूल में विज्ञान? कॉलेज और नौकरी के परिणाम

भारत में विज्ञान के अध्ययन के साथ जुड़े कैरियर पथ, हाई स्कूलों में अन्य विषयों के अध्ययन से जुड़े कैरियर पथ के मुक़ाबले, अधिक प्रतिष्ठित और लाभप्रद माने जाते हैं। यह लेख उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में विज्ञान के अध्ययन और श्रम-बाजार की कमाई के बीच के संबंध की जांच करता है। परिणाम यह बताते हैं कि हाई स्कूल में विज्ञान का अध्ययन, व्यवसाय या मानविकी के अध्ययन की तुलना में 18-25% अधिक आय के साथ जुड़ा हुआ है। यह उच्च आय छात्रों की अंग्रेजी में प्रवीणता के साथ और बढ़ जाती है।

17 September 2021
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भारत में हिंदू-मुस्लिम प्रजनन दर में अंतर: 2011 की जनगणना के अनुसार जिला-स्तरीय अनुमान

2011 की भारतीय जनगणना के आंकड़े हिंदू आबादी की तुलना में मुस्लिम आबादी की उच्च वृद्धि दर दिखाते हैं। इस लेख में जिला स्तर पर हिंदू-मुस्लिम प्रजनन में अंतर और राज्य स्तर पर उनकी प्रवृत्तियों का एक सटीक विवरण प्रस्तुत किया गया है। यह दर्शाता है कि पिछले दशक के दौरान प्रजनन परिवर्तन स्थिर रहा है; और हिंदुओं तथा मुस्लिमों के बीच प्रजनन दर को एक स्तर पर लाने का कार्य चल रहा है, तथापि महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भिन्नताएं बनी हुई हैं।

27 August 2021
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पोषण में सुधार हेतु स्कूली भोजन योजनाओं का महत्‍व

भारत में अल्‍पपोषित बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है और यहां मिड-डे मील (एमडीएम) के रूप में स्कूली भोजन की सबसे बड़ी योजना जारी है परंतु इस योजना के अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव पर सीमित साक्ष्‍य उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर, यह लेख दिखाता है कि अगर स्कूली शिक्षा के दौरान एक माँ एमडीएम की लाभार्थी थी, तो उसके बच्चों की लम्बाई की कमी में 20-30% की गिरावट आती है।

24 August 2021
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आरम्भ वही करे जो समाप्त हो सके! जोखिम और स्कूली शिक्षा में निवेश

आर्थिक झटकों के परिणामों को कम करने के लिए माता-पिता अधिक काम करने के लिए प्रेरित होते हैं और बच्चों का अधिक समय घर के कामों में उनकी मदद करने या परिवार के खेतों में बीत सकता है, जिससे उनकी स्कूली शिक्षा बाधित हो सकती है। ग्रामीण भारत के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, इस लेख में दर्शाया गया है कि अधिक अस्थिर कृषि उत्पादन और खपत के रूप में जोखिम में 100% की वृद्धि होने से बच्‍चे के स्‍कूल जाने की संभावना में 4-5% तक की कमी हो जाती है।

30 July 2021
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कोविड -19: क्या मोटापा कोई भूमिका निभाता है?

भारत में अतिपोषण एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। अधिक वजन या मोटापा कोविड -19 की वजह से होने वाली गंभीर बीमारी के प्रति व्यक्तियों को अधिक संवेदनशील बनाते हैं। कोविड -19 के जिला-स्तरीय डेटा और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पोषण डेटा का उपयोग करते हुए, यह लेख अतिपोषण संकेतकों और कोविड -19 के प्रसार एवं मृत्यु दर के बीच बहुत ही उल्लेखनीय सह-संबंध का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

09 July 2021
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भारत के स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन में लैंगिक अंतर

भारत में कुल योग्यता-प्राप्त स्वास्थ्य कर्मियों में लगभग आधी महिलाएं होने के बावजूद, महिला स्वास्थ्य कर्मियों को एक स्पष्ट लैंगिक वेतन अंतर और अनुकूल कार्य-परिस्थितियों की कमी का सामना करना पड़ता है। इस लेख में, आरुषि पाण्डेय विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य कर्मियों के लिए मुआवजे में लैंगिक असमानताओं, और महिलाओं के कैरियर, सेवा प्रदान करने, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज तथा स्वास्थ्य से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों पर हो रहे प्रभाव की जांच करती हैं।

25 June 2021
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प्रशिक्षण कार्यक्रमों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए युवाओं को नौकरी के अवसरों की जानकारी देना

केंद्र सरकार द्वारा 2014 में शुरू की गई दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना ग्रामीण, साधनहीन युवाओं को कौशल आधारित प्रशिक्षण प्रदान करने और उन्हें वेतनभोगी नौकरियां दिलवाने का प्रयास करती है। बिहार और झारखंड में किए गए एक प्रयोग के आधार पर, इस लेख में बताया गया है कि प्रशिक्षुओं को कार्यक्रम और भावी नौकरियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने से उनकी उम्मीदों को वास्तविकताओं के अनुरूप रखने में मदद मिलती है और साथ ही इससे उन्‍हें नौकरियों में बनाए रखने में भी वृद्धि होती है।

24 May 2021
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कोविड-19 टीके के बारे में झिझक: राज्यों में समय के साथ रुझान

कोविड-19 के टीके की उपलब्धता के बावजूद इसे स्‍वीकार या अस्‍वीकार करने में देरी, दुनिया भर में आबादी को इष्टतम टीकाकरण कवरेज प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है। इस लेख में यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड और कार्नेगी मेलन की साझेदारी मे किए गए एक फेसबुक सर्वेक्षण के डेटा का उपयोग करते हुए भारत में राज्यवार वैक्सीन संबंधी झिझक एवं समय के साथ इसके रुझानों की पड़ताल की गई है।

05 May 2021
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भारत के मानसिक स्वास्थ्य संकट को समझना

जब से कोविड-19 महामारी शुरू हुई है, तब से कई रिपोर्टों से यह संकेत मिला है कि अलग-अलग आयु वर्ग के व्यक्तियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति बिगड़ रही है। इस पोस्ट में, मिशेल मैरी बर्नडाइन ने भारत में मानसिक स्वास्थ्य की परिस्थितियों को दर्शाया है, जैसे अर्थव्यवस्था के लिए मानसिक स्वास्थ्य संकट की लागत कितनी है और इस संकट का समाधान करने के लिए कानून और राज्य की मौजूदा क्षमता किस हद तक समर्थ हैं।

27 April 2021
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महिलाओं को पीछे छोड़ दिया: सरकारी स्वास्थ्य बीमा के उपयोग में लैंगिक असमानताएँ

भारत में स्वास्थ्य नीति का एक प्रमुख लक्ष्य स्वास्थ्य सेवा में समानता लाना है। राजस्थान के प्रशासनिक आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए इस लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राज्य स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के तहत सब्सिडी-प्राप्‍त अस्पताल देखभाल के उपयोग में बड़ी मात्रा में लैंगिक असमानता मौजूद है। कार्यक्रम का काफी विस्‍तार किए जाने के बावजूद ये असमानताएँ बनी हुई हैं, और ऐसा प्रतीत होता है कि ये असमानताएं परिवारों द्वारा स्‍वास्‍थ्‍य संसाधनों को पुरुषों की तुलना में महिलाओं को आवंटित करने की कम इच्‍छा के कारण हैं।

23 April 2021
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बढ़ते शहरीकरण के प्रभाव में ग्रामीण भारत में बढ़ता हुआ मोटापा

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार भारत की लगभग 20% जनसंख्‍या मोटापे से ग्रस्त है। यह लेख बताता है कि देश में मोटापे की प्रवृत्ति ने इसके स्वाभाविक आर्थिक परिवर्तन का ही अनुसरण किया है जिसके अंतर्गत शहरीकरण में वृद्धि ग्रामीण विकास को प्रभावित करती है। इससे ज्ञात होता है कि शहर के आसपास के गांवों पर पड़ने वाले शहरीकरण के प्रभाव का दायरा जब एक किलोमीटर बढ़ता है तो लगभग 3,000 ग्रामीण महिलाओं में मोटापे में वृद्धि होती है।

07 April 2021
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बजट 2021-22: स्‍वास्‍थ्‍य को प्राथमिकता, एक बार फिर से

वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट का आकलन स्वास्थ्य क्षेत्र के नजरिए से करते हुए, कॉफी और स्पीयर्स यह तर्क देते हैं कि भारत के स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए पुरानी समस्याओं को पुराने तरीको से हल करने की आवश्यकता है और ‘नए’ बजट में ऐसे किसी हल को ढूंढ पाना कठिन है। विशेष रूप से, वे अगले बजट में मातृ और नवजात शिशु सबंधी स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए आवंटन बढ़ाने का पक्ष लेते हैं।

15 March 2021
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पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए सामूहिक कार्रवाई: ग्रामीण भारत में स्वच्छता से साक्ष्य

भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, बेहतर घरेलू शौचालयों तक की पहुंच और उनका निरंतर उपयोग किया जाना लंबे समय से चुनौती के साथ-साथ एक नीतिगत प्राथमिकता रहा है। घरेलू स्वच्छता विकल्पों को स्‍थापित करने वाले सामाजिक तंत्रों के महत्व को स्वीकारते हुए इस शोध में बिहार और ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में प्रयोगात्मक सार्वजनिक वस्तुओं के खेल का उपयोग यह जांचने के लिए किया गया है कि बेहतर स्वच्छता हेतु प्राथमिकताएं निर्धारित करने में लिंग जैसे सामाजिक कारक कितने प्रभावशाली होते हैं।

10 February 2021
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कोयला आधारित बिजली इकाइयों से प्रदूषण और बच्चों एवं महिलाओं की एनीमिक स्थिति

स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को व्‍यापक रूप से शोध-साहित्य में जगह मिली है। जहां अन्य अध्ययनों में मुख्य रूप से सामान्य रुग्णता और मृत्यु दर जैसे परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, यह लेख भारत में छोटे बच्चों और प्रौढ़ उम्र की महिलाओं की एनीमिक स्थिति पर कोयला आधारित बिजली इकाइयों द्वारा पड़ने वाले प्रदूषण के प्रभाव का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। इन अतिरिक्त लागतों के जुड़ जाने से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर प्रगतिशील बदलाव और कोयले पर निर्भरता कम करने का मामला मजबूत होता है।

07 January 2021
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शिक्षक की जवाबदेही: कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों की तुलना में गैर-शैक्षणिक कार्य को प्राथमिकता

यद्यपि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं के लिए 200 दिनों का शिक्षण अनिवार्य है लेकिन सरकारी स्कूलों में इसकी वास्तविक संख्या बहुत कम प्रतीत होती है। गुणात्मक फील्डवर्क और राजस्थान के उदयपुर जिले में एक सर्वेक्षण के आधार पर, इंदिरा पाटिल ने यह चर्चा की है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों की तुलना में गैर-शैक्षणिक कार्यों को प्राथमिकता क्‍यों देते हैं, और इससे अभिभावकों की स्कूल पसंद कैसे प्रभावित होती है।

23 November 2020
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बाधित महत्वपूर्ण देखभाल सुविधाएं: कोविड-19 लॉकडाउन और गैर-कोविड मृत्यु दर

कोविड के प्रसार को रोकने के लिए भारत में 10 हफ्तों तक चला राष्ट्रीय लॉकडाउन दुनिया के सबसे कड़े लॉकडाउनों में से एक था। यह लेख उन रोगियों के स्वास्थ्य की देखभाल तक पहुँच और स्वास्थ्य परिणामों पर लॉकडाउन प्रतिबंधों के प्रभावों की पड़ताल करता है जिन्हें दीर्घकालिक जीवन-रक्षक-देखभाल की आवश्यकता होती है। इसमें दर्शाया गया है कि इस दौरान स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बुरी तरह बाधित हो गई थी। मार्च और मई 2020 के बीच मृत्यु दर में 64% की वृद्धि हुई, और लॉकडाउन लागू होने के बाद के चार महीनों में अतिरिक्‍त मृत्यु दर कुल 25% थी।

16 November 2020
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अभिभावक लड़कियों की शिक्षा में निवेश क्यों करते हैं? ग्रामीण भारत से प्रमाण

ग्रामीण राजस्थान में किशोरियां अक्सर कम उम्र में पढ़ना छोड़ देती हैं और कम उम्र में हीं उनकी शादी भी हो जाती है। इस आलेख में बेटी की शिक्षा और विवाह की उम्र के बारे में औसत अभिभावक की पसंदों, तथा विवाह बाजार में उसकी संभावनाओं के विकास के बारे में आत्मगत धारणाओं की जानकारी सामने लाने के लिए एक अनूठी प्रविधि विकसित की गई है। इसमें पाया गया है कि एक मनपसंद वर ढूंदना लड़कियों की शिक्षा का एक महत्वपूर्ण प्रेरक है। लड़कियों को स्कूलों में टिके रहने में मददगार नीतियों से उनके कम उम्र में विवाह होने रोका जा सकता है।

11 September 2019
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वर्गीकृत ऋण और स्वच्छता संबंधी निवेश

ग्रामीण भारतीय परिवार शौचालय बनवाने का खर्च वहन नहीं कर पाने को शौचालय नहीं बनवाने का मुख्य कारण बताते हैं। इस लेख में ग्रामीण महाराष्ट्र के एक प्रयोग के जरिए जांच की गई है कि स्वच्छता के लिए वर्गीकृत सूक्ष्मऋण (माइक्रोफाइनांस लेबल्ड फॉर सैनिटेशन) स्वच्छता में निवेश बढ़ा सकता है या नहीं। इसमें पाया गया कि लक्षित परिवारों ने स्वच्छता ऋणों की मांग की और शौचालय के उपयोग में 9 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई। हालांकि मोटे तौर पर आधे ऋणों का उपयोग स्वच्छता के लिए नहीं किया गया।

01 August 2019
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एक अनोखी क्रांति: उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा

आज भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में चुनौती यह है कि स्कूली शिक्षा को ‘सीखने’ में कैसे रूपांतरित किया जाए । जहाँ सीखने के संकट पर दुखी होने के कारण मौजूद हैं वहीं उत्तर प्रदेश में एक अनोखी क्रांति हो रही है । इस नोट में जे-पाल साउथ एशिया की कार्यकारी निदेशक शोभिनी मुखर्जी ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘ग्रेडेड लर्निंग प्रोग्राम’ के ज़रिए राज्य की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में लाए गए बदलाव का ज़िक्र किया है।

10 July 2019
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बुनियाद की मज़बूती: प्राथमिक शिक्षा की चुनौती

रुक्मिणी बनर्जी बताती हैं कि नई शिक्षा नीति का प्रारूप एक सही कदम के रूप में बच्चों की शुरुआती देख-रेख और शिक्षा के महत्व पर ज़ोर देता है। साथ ही, यह प्राथमिक स्तर पर बुनियादी साक्षरता व गणितीय क्षमता को अविलम्ब दुरुस्त करने की ज़रूरत को रेखांकित करता है – वह स्तर जो आज सीखने के संकट से जूझ रहा है।

03 July 2019
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जनभाषा? मातृभाषा में पढ़ाई शिक्षा को कैसे प्रभावित करती है

2016 में जारी किए किए गए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप में मातृभाषा में शिक्षा, खास कर स्कूल के रचनात्मक वर्षों के दौरान मातृभाषा में शिक्षा के महत्व पर जोर दिया गया था। इस कॉलम में दक्षिणी भारत की बड़े पैमाने की ऐतिहासिक घटनाओं के डेटा का उपयोग करके स्कूलों में मातृभाषा के उपयोग और शैक्षिक उपलब्धि के बीच लिंक को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। इसमें पाया गया कि मातृभाषा में शिक्षा के कारण प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की स्कूली शिक्षा के दौरान शैक्षिक उपलब्धियों में लगातार वृद्धि हुई।

12 June 2019
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भारत में बच्चों की लंबाई: नए आंकड़े, परिचित चुनौतियां

भारत के बच्चे दुनिया के सबसे नाटे बच्चों में आते हैं। देश में बच्चों की लंबाई संबंधी जटिलता और विविधता की जांच के लिए इस आलेख में राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इसमें पाया गया है कि भारत में बच्चों के हाइट-फॉर-एज (उम्र की तुलना में लंबाई) के मामले में 2005-06 और 2015-16 के बीच सुधार हुआ है। हालांकि यह महत्वपूर्ण बात है परन्तु भारत में कुल मिलाकर कम लंबाई और भारत की आर्थिक प्रगति को देखते हुए यह वृद्धि बहुत कम है।

06 March 2019
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मोदीकेयर के सफल आरंभ का रोडमैप

पिछले साल घोषित की गई नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम पहले मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (रएसबीवाई) को अपने अंदर शामिल करती है, जिसने सबसे गरीब 30 करोड़ भारतीयों को अल्पकालिक अस्पताल के दौरे के लिए स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया था। कर्नाटक में आरएसबीवाई पर अपने बड़े पैमाने पर किये गए अध्ययन के आधार पर, मलानी और कीनन ने नए कार्यक्रम के लिए कुछ महत्वपूर्ण सबक दिए हैं।

09 January 2019
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अपेक्षित आय समर्थन तथा शिशु स्वास्थ्य

भारत सरकार के मातृत्व सहायता कार्यक्रम - प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना- का उद्देश्य ग्रामीण भारत में गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को आय सहायता मुहैया कराना है। इस लेख में बिहार में चलाए गए इस कार्यक्रम का मूल्यांकन किया गया है, जिसमें पाया गया कि भुगतान में देरी होने के बावजूद इस योजना की वजह से पहले बच्चे के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण सुधार हुआ। इसकी संभावित वजह है पहले और दूसरे जन्म के बीच अंतराल में बढ़ोतरी।

14 December 2018
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अच्छी मॉनसून तो परीक्षा में कम प्राप्तांक? शिक्षा से भटकाव

भारत में अच्छी मॉनसून कृषि की उत्पादकता बड़ा देती है जिसके कारण रोजगार और वेतन भी बढ़ जाता है। क्या यह अतिरिक्त रोजगार गरीब बच्चों के मामले में उनकी स्कूली शिक्षा की कीमत पर होता है? इस लेख में पता चलता है कि बढ़ी हुई घरेलू आय से छोटे बच्चों को लाभ होता है क्योंकि उनकी मानव पूंजी पर अधिक निवेश किया जा सकता है। हालांकि वेतन बढ़ जाने के कारण बड़े बच्चों को स्कूल की पढ़ाई के बजाय घर का काम, खेत का काम, या दिहाड़ी मजदूरी का काम करना पड़ता है।

14 December 2018
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प्रौद्योगिकी में लड़कियाँ : आईआईटी की अतिरिक्त सीट योजना का मूल्यांकन

वर्ष 2018 में शुरू की गई अतिरिक्त सीट योजना (सुपरन्यूमरेरी सीट्स स्कीम) का उद्देश्य परंपरागत रूप से पुरुष-प्रधान रहे आईआईटी संस्थानों के स्नातक इंजीनियरिंग छात्रों में स्त्री-पुरुष अनुपात में सुधार लाना है। लेख बताता है कि यह पहल इन प्रतिष्ठित संस्थानों में अधिक लड़कियों की भर्ती में सफल रही है। इसके अलावा, यद्यपि लड़कियों की शुरूआत प्रवेश स्तर पर निचले रैंकों से होती है, वे औसतन कार्यक्रम अवधि में शैक्षणिक रूप से अपने पुरुष समकक्षों के बराबर आ जाती हैं।

08 July 2025
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आर्थिक विकास और महिलाओं के खिलाफ अपराध

जैसे-जैसे आर्थिक विकास होता है, प्रौद्योगिकी शक्ति-प्रधान की बजाय कौशल पर अधिक निर्भर होती जाती है, जिससे महिलाओं की कमाई की सम्भावना बढ़ जाती है। इस लेख में, वर्ष 2004-2012 के भारतीय डेटा का विश्लेषण करते हुए यह दिखाया है कि स्त्री-पुरुष अनुपात में कमी के कारण विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ लिंगानुपात में पूर्वाग्रह अधिक है, महिलाओं के साथ बलात्कार और अभद्र व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण महिला सशक्तिकरण के खिलाफ़ पुरुषों की प्रतिक्रिया है, वह भी ऐसे परिवेश में जहाँ सामाजिक संस्थाएँ पारम्परिक रूप से पुरुषों का पक्ष लेती रही हैं।

29 May 2025
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‘ब्रिंग-ए-फ्रेंड’: महिलाओं के प्रजनन अधिकार में सुधार के लिए वित्तीय और साथी के समर्थन का लाभ उठाना

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के सन्दर्भ में प्रस्तुत दो आलेखों की श्रृंखला के इस दूसरे लेख में उन परिणामों पर प्रकाश डाला गया है, जिनसे पता चलता है कि अगर महिलाओं के साथी उनके साथ हों तो उनके परिवार नियोजन सेवाओं का लाभ उठाने की अधिक संभावना होती है। शोधकर्ता दर्शाते हैं कि साथी का समर्थन सामाजिक अलगाव को कम कर सकता है, महिलाओं के आवागमन को बढ़ा सकता है और सास व परिवार के अन्य सदस्यों के विरोध को दूर कर सकता है। इस प्रकार के परिणामों का महिला सशक्तिकरण पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

16 April 2025
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मम्मी-जी को मनाना : भारत में परिवार नियोजन के लिए सास की स्वीकृति

भारत में हर साल 11 अप्रैल को, जो कस्तूरबा गाँधी की जयन्ती होती है, राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसे मानाने का उद्देश्य गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोत्तर चरणों में माताओं के लिए उचित स्वास्थ्य सेवा और कल्याण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत दो आलेखों की इस श्रृंखला के पहले लेख में यह चर्चा की है कि महिलाओं की परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच पर सास का क्या प्रभाव पड़ता है। पारम्परिक रूप में सास औसतन महिलाओं और उनके पतियों की तुलना में अधिक बच्चों और बेटों को प्राथमिकता देती हैं। लेख में उत्तर प्रदेश में महिलाओं को सब्सिडी वाले परिवार नियोजन तक पहुँच प्रदान करने वाले एक हस्तक्षेप के प्रभावों का वर्णन है। इस हस्तक्षेप से महिलाओं और उनकी सास के बीच परिवार नियोजन के बारे में बातचीत में वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप सासों द्वारा परिवार नियोजन के प्रति स्वीकृति में वृद्धि हुई, और उल्लेखनीय रूप से बहुओं के क्लिनिक में जाने की संख्या में भी वृद्धि हुई है।

11 April 2025
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मानसिक मामले : नेपाल में कलंक-मुक्ति से कैसे सहायता मांगने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला

चिंता और अवसाद जैसी सामान्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं एक महत्वपूर्ण लोक स्वास्थ्य चुनौती बन गई हैं तथा उचित देखभाल प्राप्त करने में कलंक (स्टिग्मा) एक प्रमुख बाधा है। यह लेख नेपाल में किए गए एक अध्ययन के आधार पर दर्शाता है कि सूचना अभियान या सेलिब्रिटी समर्थन जैसे कम लागत वाले, अच्छी तरह से लक्षित हस्तक्षेप लोगों को सहायता लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं और उपचार की खाई को पाट सकते हैं।

25 March 2025
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गतिशीलता के माध्यम से लैंगिक असमानता से लड़ना : दिल्ली की ‘पिंक टिकट’ योजना का आकलन

आवागमन में व्याप्त लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए, दिल्ली सरकार ने वर्ष 2019 में महिलाओं के लिए किराया-मुक्त बस यात्रा योजना की शुरुआत की। शहर में महिला यात्रियों के एक सर्वेक्षण के आधार पर, निशांत और अर्चना ने इस योजना के सकारात्मक प्रभावों, जैसे कि स्वतंत्र रूप से यात्रा करने के आत्मविश्वास में वृद्धि, मुफ्त यात्रा से होने वाली बचत का अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग पर प्रकाश डाला है। साथ ही, वे व्यापक अर्थों में बस परिवहन को और अधिक महिला-अनुकूल बनाने की आवश्यकता पर बल देते हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 के उपलक्ष्य में हिन्दी में प्रस्तुत श्रृंखला का दूसरा लेख है।

11 March 2025
Notes from the Field
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क्या अल्पसंख्यकों के बारे में बातचीत के ज़रिए भेदभाव कम हो सकता है? चेन्नई में ट्रांसजेंडर-विरोधी भेदभाव से जुड़े साक्ष्य

भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस भाषाई, धर्म, जाति, लिंग और रंग के आधार पर अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों को बढ़ावा और संरक्षण देने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है और प्रति वर्ष 18 दिसम्बर को मनाया जाता है। भले ही भारतीय संविधान अल्पसंख्यकों समेत सभी हाशिए पर रहने वाले समुदायों को समान और न्यायपूर्ण अधिकार प्रदान करता है लेकिन अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित कई मुद्दे अभी भी जीवित हैं। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत है यह शोध आलेख। सभी जानते हैं कि भेदभावपूर्ण व्यवहार से विभिन्न आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में समानता और दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस लेख के माध्यम से, चेन्नई के शहरी भागों में ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ भेदभाव के सन्दर्भ में यह पता लगाया गया है कि क्या अल्पसंख्यक के बारे में बहुसंख्यक समूह के सदस्यों के बीच आपसी बातचीत से भेदभाव को कम किया जा सकता है। यह पाया गया कि इस तरह के आपसी बातचीत के महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव होते हैं, जो समूह के सदस्यों द्वारा एक-दूसरे को ट्रांसजेंडर के प्रति अधिक संवेदनशील बनने के लिए राजी करने से प्रेरित होते हैं।

20 December 2024
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अत्याचार, हत्याएं व अस्पृश्यता : जाति-आधारित भेदभाव का मापन

मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो किसी भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिल जाते हैं। सरल शब्दों में इसका अर्थ है किसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार। 10 दिसंबर को हर साल मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन लोगों को मूल अधिकार देने की घोषणा की गई थी। हम भारत में व्याप्त अंतर-जातीय तनाव और भेदभाव को सबसे अच्छे तरीके से कैसे माप सकते हैं? मानवाधिकार दिवस के सन्दर्भ में प्रस्तुत विकटॉयख़ जिरार्ड के इस लेख में, वर्ष 1989 में जाति-आधारित भेदभाव से निपटने के लिए लागू हुए अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत संकलित आँकड़ों का उपयोग करने की सीमाओं पर चर्चा की गई है। जिरार्ड दर्शाती हैं कि निचली जातियों की हत्याओं की रिपोर्ट या यहाँ तक कि घरेलू सर्वेक्षणों में अस्पृश्यता के बारे में औसत प्रतिक्रियाएं, राज्यों में अंतर-समूह तनावों के अधिक सुसंगत संकेत प्रदान करती हैं।

10 December 2024
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लिंग-आधारित हिंसा की रिपोर्टिंग : सार्वजनिक सक्रियता और संवाद क्यों महत्वपूर्ण हैं

कोलकाता के एक अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात एक महिला डॉक्टर के साथ हुए क्रूरतापूर्वक बलात्कार और हत्या के हालिया मामले के कारण देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए और इसने एक बार फिर भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गम्भीर सवाल और चिन्ताएँ खड़ी कर दी। इस लेख में, वर्ष 2012 में दिल्ली में हुई ‘निर्भया’ घटना और उसके परिणामस्वरूप हुए सामाजिक आन्दोलन के प्रभाव की जाँच करते हुए पाया गया कि इस घटना के बाद लिंग-आधारित हिंसा की रिपोर्टिंग में 27% की वृद्धि हुई थी।

28 November 2024
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रक्षात्मक सहयोग : भारतीय मुसलमानों के समाज-सार्थक दृष्टिकोण को समझना

विकास के मुख्यधारा के सिद्धांत अधिक समरूप परिस्थितियों में सार्वजनिक साधनों में योगदान करने की अधिक इच्छा को दर्शाते हैं। दिल्ली की झुग्गियों में किए गए एक अध्ययन के निष्कर्षों को इस लेख में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह आकलन किया गया है कि हिन्दू और मुसलमान सामुदायिक स्वच्छता की पहलों में योगदान को बढ़ावा देने वाले सामाजिक दबाव पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। सैद्धांतिक परिकल्पना के विपरीत, यह अध्ययन बताता है कि मुसलमानों में सामाजिक जवाबदेही तंत्र अधिक प्रभावी हैं जो शत्रुतापूर्ण सामाजिक-राजनीतिक वातावरण से निपटने में अल्पसंख्यकों द्वारा अपनाई गई रणनीतियों को दर्शाता है।

21 November 2024
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गर्भनिरोधक संबंधी निर्णयों के घरेलू हिंसा पर प्रभाव : निर्णय और गतिशीलता

महिलाओं की परिवार में अपनी बात रखने की शक्ति और रोज़गार व शिक्षा के रूप में उनके सशक्तीकरण को, अन्तरंग-साथी द्वारा उनके प्रति हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वायलेंस- आईपीवी) की घटनाओं के कम होने और बढ़ जाने, दोनों के सन्दर्भ में दर्ज किया गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के नवीनतम सर्वे के डेटा का उपयोग करते हुए, इस लेख में यह जाँच की गई है कि किसी महिला के गर्भनिरोधक उपयोग के फैसले अन्तरंग-साथी द्वारा उसके प्रति हिंसा (आईपीवी) को कैसे प्रभावित करते हैं। यह लेख दर्शाता है कि गर्भनिरोधकों के उपयोग का स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने पर महिला को शारीरिक, यौन और भावनात्मक हिंसा का अधिक खतरा होता है।

14 November 2024
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ऋण बाज़ार में सकारात्मक कार्रवाई : क्या इससे अल्पसंख्यक कल्याण में बढ़ोतरी होती है?

धार्मिक अल्पसंख्यकों के कल्याण में सुधार के लिए भारत सरकार के कार्यक्रम के एक भाग के रूप में, वर्ष 2009 में वाणिज्यिक बैंकों को इन समूहों को दिए जाने वाले ऋण बढ़ाने के निर्देश दिए। यह लेख दर्शाता है कि इस नीति के कारण लक्षित क्षेत्रों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की बैंक ऋण तक पहुँच में वृद्धि हुई है। इससे अल्पसंख्यकों और ग़ैर-अल्पसंख्यकों के बीच उपभोग की खाई कम हुई है, जबकि ग़ैर-अल्पसंख्यकों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।

12 September 2024
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भारत में स्कूली पाठ्य पुस्तकों में व्याप्त लैंगिक पूर्वाग्रह का विश्लेषण

शिक्षक का पुस्तकों, पाठ्यक्रमों, शिक्षण प्रणालियों, नई पीढ़ियों, नवाचार और समाज से अंतरंग सम्बन्ध है। शिक्षक दिवस, 5 सितम्बर को प्रस्तुत इस शोध आलेख में शिक्षकों की नहीं अपितु पाठ्य पुस्तकों के एक संवेदनशील और अति वांछनीय पहलू की चर्चा है। यदि हम चाहते हैं कि शिक्षा से लैंगिक समानता स्थापित करने में मदद मिले, तो पहला बुनियादी कदम यह सुनिश्चित करना है कि हम बच्चों को लैंगिक भेदभाव वाली पाठ्य पुस्तकें न दें। इस लेख में भारत की स्कूली पाठ्य पुस्तकों में व्याप्त लैंगिक पूर्वाग्रह का विश्लेषण किया गया है और यह खोज की गई है कि क्या यह अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। इसके अलावा यह भी जाँच की गई है कि क्या पुस्तकों में लिंग-आधारित प्रतिनिधित्व तथा समाज में महिलाओं व लड़कियों के प्रति प्रचलित दृष्टिकोण के बीच कोई सम्बन्ध है।

05 September 2024
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श्रम बाज़ार में महिलाओं के खिलाफ पितृसत्तात्मक भेदभाव

कई कम आय वाले देशों में महिलाएं अक्सर श्रम बाज़ार से बाहर रह जाती हैं। इस लेख में पितृसत्तात्मक भेदभाव के रूप में एक नई व्याख्या प्रस्तुत की गई है- महिलाओं को खतरनाक या अप्रिय कार्यों से बचाने के लिए पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है। बांग्लादेश में रात्रि पाली की नौकरियों और श्रमिकों के परिवहन और सब्सिडी के प्रावधान से जुड़े क्षेत्र में हुए प्रयोग में नियोक्ताओं के बीच इस तरह के भेदभाव के सबूत मिलते हैं।

28 August 2024
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भारत में उद्यमिता और रोज़गार में लैंगिक असमानताओं का आकलन

आर्थिक विकास सम्पूर्ण कार्यबल के सफल उपयोग पर निर्भर करता है। एजाज़ ग़नी का तर्क है कि लैंगिक समानता न केवल मानवाधिकारों का एक प्रमुख स्तम्भ है, बल्कि उच्च और अधिक समावेशी आर्थिक विकास को बनाए रखने का एक शक्तिशाली साधन हो सकता है। उनके अनुसार भारत की आर्थिक प्रगति के बावजूद, आर्थिक भागीदारी के मामले में भारत में लैंगिक संतुलन दुनिया में सबसे कम है और वे इस शोध आलेख में इन असमानताओं को उजागर करने वाले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के कुछ आँकड़े साझा करते हैं।

12 April 2024
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भारत में महिलाएँ और उनका स्वास्थ्य

मार्च महीने में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सन्दर्भ में प्रस्तुत लेखों की श्रृंखला के इस अंतिम आलेख में I4I की संपादकीय सलाहकार नलिनी गुलाटी भारत में महिलाओंके स्वास्थ्य पर आर्थिक शोध का एक सार प्रस्तुत करती हैं, जिसमें मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, स्वास्थ्य देखभाल तक लैंगिक पहुँच, अन्तरंग-साथी द्वारा हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी चिंताओं के पहलुओं को शामिल किया गया है। लेख में इन सभी पहलुओं में व्याप्त असमानताओं को दूर करने में संसाधन, लैंगिक दृष्टिकोण और जानकारी की भूमिका पर विचार किया गया है।

26 March 2024
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क्या लड़कियों पर 'नियंत्रण' रखा जाना चाहिए? बिहार के लड़कों और अभिभावकों की राय

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में मार्च महीने में प्रस्तुत लेखों की श्रृंखला के इस द्वितीय शोध आलेख में लड़कियों और महिलाओं की लैंगिकता पर नियंत्रण की चर्चा है। बिहार में लड़कियों के बाल विवाह की प्रथा आज भी आम है। प्रियदर्शनी, जोशी और भट्टाचार्य ने इस लेख में, लड़कों और माता-पिता के अपने सर्वेक्षण के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं, जिसमें वे इस प्रवृत्ति के पीछे के सम्भावित कारकों को मापने के लिए 'महिलाओं और लड़कियों की लैंगिकता को नियंत्रित करने और उन पर अपनी पसन्द थोपने की प्रवृत्ति' के लिए एक सूचकांक का निर्माण करते हैं। विशेष रूप से लड़कों के प्रतिगामी विचारों को उजागर करते हुए, वे स्कूल और सामुदायिक स्तर पर लैंगिक संवेदनशीलता की वकालत करते हैं।

15 March 2024
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भारत का महिला आरक्षण अधिनियम : शासन के लिए एक बड़ी सफलता और उससे परे

20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस, जिसका मूल लैंगिक असमानता, बहिष्कार, गरीबी बेरोज़गारी व सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर आधारित है, के उपलक्ष्य में प्रस्तुत इस लेख में महिला आरक्षण अधिनियम पर चर्चा है। पिछले वर्ष सितम्बर में पारित महिला आरक्षण अधिनियम क्या ज़मीनी स्तर पर लैंगिक असमानताओं को कम कर सकेगा, इस विषय पर विभिन्न चर्चाओं में वट्टल और गोपालन स्थानीय सरकार में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित कई यादृच्छिक मूल्याँकनों से साक्ष्य का सारांश जोड़ते हैं। इन अध्ययनों से पता चलता है कि स्थानीय सरकारों में महिला नेताओं की अधिक सहभागिता से महिलाओं के लिए प्राथमिकता वाली नीतियों में अधिक निवेश होना सम्भव है।साथ ही, महिलाओं की सामाजिक धारणाओं में सुधार और लैंगिक भूमिकाओं के प्रति महिलाओं की आकांक्षाओं और दृष्टिकोण में बदलाव हो पाएगा।

21 February 2024
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राजनीतिक आरक्षण के वितरणात्मक परिणाम

सन 2011 से 25 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले सभी मतदातों को मतदान के महत्त्व के बारे में जागरूक बनाया जाए। मतदान में हमेशा अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों का महत्त्व रहा है। इसी पृष्ठभूमि में प्रस्तुत आज के इस शोध आलेख में पंचायतों में अनुसूचितजाति (एससी) के लिए आरक्षण के प्रभावों को समझने में कमियों की पहचान की गई है और उन्हें भरने का प्रयास किया गया है। राज्य-व्यापी जनगणना के डेटा, कई अन्य प्रशासनिक डेटासेट और बिहार के प्राथमिक सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए, यह पाया गया कि आरक्षणअनुसूचित जाति और अन्य के बीच की संपत्ति असमानता को कम करता है। यह शोध सार्वजनिक सुविधाओं का अधिक लक्ष्यीकरण, कल्याण कार्यक्रमों तक पहुँच और बेहतर राजनीतिक भागीदारी जैसे उन कारणों की जाँच करता है, जिनके माध्यम से ऐसा होता है। इस सन्दर्भ में, यह शोध यह भी दर्शाता है कि आरक्षण तब सबसे कारगर तब होता है, जब एससी श्रेणी के भीतर उपजातियाँ कम होती हैं और पंचायत में उनकी आबादी न तो बहुत छोटी होती है और न ही बहुत बड़ी।

25 January 2024
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घरेलू हिंसा का हृदय सम्बन्धी जोखिम पर प्रभाव

हर वर्ष 25 नवम्बर का, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में पालन किया जाता है। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुर इस लेख में, सीता मेनन घरेलू हिंसा और महिलाओं में हृदय रोग के बढ़ते जोखिम के बीच के कारण-सम्बन्ध की जांच करती हैं। एनएफएचएस-4 के आँकड़ों का उपयोग करते हुए और घरेलू हिंसा में भिन्नता के स्रोत के रूप में शादी के समय सोने की कीमत का आकलन करते हुए, वे महिलाओं में उच्च रक्तचाप पर घरेलू हिंसा का सकारात्मक प्रभाव पाती हैं। लेकिन उनके जीवनसाथी पुरुषों पर इसका कोई प्रभाव नहीं मिलता।

23 November 2023
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वर्ग और जाति किस प्रकार से स्कूल के चुनाव को प्रभावित करते हैं

माता-पिता द्वारा अपने बच्चों की शिक्षा के सम्बन्ध में लिए जाने वाले निर्णयों पर परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति प्रभाव डालती है। जाति और वर्ग की परस्पर-क्रिया को ध्यान में रखते हुए, यह लेख दर्शाता है कि परिवार जब बहुत अमीर या बहुत गरीब होते हैं, तब उनकी जाति की पहचान स्कूल के चुनाव के उनके निर्णयों को प्रभावित नहीं करती है। लेकिन, संपत्ति-वितरण के बीच में आने वाले वर्गों के लिए, जाति की पहचान बहुत मायने रखती है- वंचित जातियों के छात्र, जिनके माता-पिता श्रम बाज़ार में अच्छी तरह से जुड़े नहीं होते, उन्हें शिक्षा के रिटर्न कम मिलते हैं।

06 October 2023
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भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के प्रजनन दर में अंतर: एक अपडेट

पिछले शोध के आधार पर सास्वत घोष और पल्लबी दास एनएफएचएस के नवीनतम दौर के आंकड़ों का उपयोग करते हुए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के राज्य और जिला स्तर की प्रजनन क्षमता में अंतर का अनुमान लगाते हैं। वे दर्शाते हैं कि भले पिछले दशक के दौरान अधिकांश राज्यों में प्रजनन परिवर्तन में प्रगति हुई है और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की प्रजनन दर में भी अभिसरण हुआ है, फिर भी कुछ क्षेत्रीय भिन्नताएं अभी भी बनी हुई हैं।

19 May 2023
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पुरुषों के प्रवासन का महिलाओं के राजनीतिक जुड़ाव पर प्रभाव

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के उपलक्ष्य में I4I पर चल रहे अभियान के अंतर्गत आईएचडीएस तथा बिहार के ग्रामीण क्षेत्र में किए गए एक सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग कर रितिका कुमार ने पाया है कि प्रवासन के कारण पुरुषों की अनुपस्थिति से भारत के ग्रामीण क्षेत्र की दैनिक राजनीतिक में महिलाओं जुड़ाव बढ़ता जा रहा है। यह एक वैकल्पिक मार्ग के माध्यम से हुआ है: आर्थिक रूप से परिवार पर निर्भर रहने के बावजूद महिलाएं सशक्त हैं। परंतु वे पाती हैं कि इस सकारात्मक प्रभाव को प्रवासी पुरुषों की समय-समय पर अपने घर वापसी और संयुक्त परिवार पद्धतियों का प्रभुत्व बाधित करता है और पारिवारिक गतिशीलता को मौलिक रूप से नहीं बदलता है।

14 April 2023
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धार्मिक हिंसा और सामाजिक संघर्ष का महिलाओं की शादी की उम्र पर प्रभाव

इस लेख में देबनाथ एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के उपलक्ष्य में I4I पर इस महीने चल रहे अभियान के अंतर्गत महिलाओं की शादी से जुड़े फैसलों पर हिंदू-मुस्लिम दंगों के प्रभावों का पता लगाते हैं। वे पाते हैं कि धार्मिक हिंसा की घटनाओं के कारण महिलाओं के प्रति यौन हिंसा की संभावनाओं को कम कराने के उद्देश्य से कम आयु में ही उनके विवाह करा दिए जाने हेतु प्रेरणा मिलती है। वे यह भी पाते हैं कि उनकी शादी कम उम्र में होने से उनकी शिक्षा प्राप्ति और उनके बच्चे पैदा करने की उम्र पर असर पड़ता है।

24 March 2023
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भारत में महिलाओं का ससुराल वालों के साथ रहने का रोजगार पर प्रभाव

आइडियास फॉर इंडिया के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के महीने भर चलने वाले अभियान के इस आलेख में राजश्री जयरामन का यह मानना है कि भारत में महिलाओं के ससुराल वालों के साथ रहने की उच्च दरों और उनके बीच श्रम बल भागीदारी की कम दरों के बीच नकारात्मक संबंध हैं। वे इन दोनों के बीच एक अनौपचारिक संबंध स्थापित करती हैं और तीन संभावित चैनलों की पड़ताल करती हैं जिसके माध्यम से सह-निवास महिलाओं की रोजगार को प्रभावित कर सकता है, जैसे साझा घरेलू संसाधनों का उपयोग करने के आय पर नकरात्मन प्रभाव, घरेलू जिम्मेदारियों में वृद्धि; और रूढ़िवादी लिंग मानदंड, जो महिलाओं की गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।

17 March 2023
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निर्वाचित नेता या नियुक्त नौकरशाह, किसके द्वारा शासित होना बेहतर है?

भारत में हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। 1993 में इसी दिन संविधान का 73वां संशोधन अधिनियम लागू हुआ था जो स्थानीय शासन को मज़बूत करता है और ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने में मदद करता है। इसी परिपेक्ष में प्रस्तुत है आज का यह लेख। राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच शासन संबंधी कार्यों और ज़िम्मेदारियों का आवंटन विभिन्न राजनीतिक सत्ताओं में अलग-अलग होता है। कर्नाटक में किए गए एक प्रयोग के आधार पर, इस लेख में एक निर्वाचित नेता बनाम एक नियुक्त नौकरशाह द्वारा शासित होने के प्रभाव की जांच की गई है। यह लेख दर्शाता है कि जहाँ एक ओर राजनेता व्यय को नागरिकों की प्राथमिकताओं के साथ बेहतर ढंग से जोड़ते हैं, और सामाजिक सहायता तेजी से प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर नौकरशाह अभिजात वर्ग के प्रभाव में कम आते हैं और विशेष कार्यों में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं।

24 April 2025
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Governance
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सिंचाई जल के विकेन्द्रीकरण का गलत स्थानिक आवंटन पर प्रभाव

भारत में सिंचाई का एक महत्वपूर्ण स्रोत नहरों का पानी है, जिसका वितरण किसी भौगोलिक क्षेत्र के भीतर किसानों के बीच अक्सर असमान रूप से होता है। इस लेख में, ओडिशा राज्य में नहर सिंचाई प्रणालियों के प्रबंधन के विकेन्द्रीकरण के बाद किए गए एक सर्वेक्षण के आधार पर पाया गया कि नीतिगत सुधार के सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, लेकिन सुधार का संस्थागत डिज़ाइन भी मायने रखता है।

27 March 2025
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आप्रवासन नीति सम्बन्धी अनिश्चितता श्रम बाज़ारों को प्रभावित करती है

राष्ट्रपति ट्रम्प के फिर से चुने जाने से एच-1बी वीज़ा सम्बन्धी नीतियों पर बहस फिर से शुरू हो गई है, यह एक अस्थाई उच्च कौशल कार्य वीज़ा है जिसमें 70% वीज़ा भारतीयों के पास हैं। इस लेख में, वर्ष 2016 में ट्रम्प की पहली बार हुई जीत के दौरान भारत से प्राप्त नौकरियों के आँकड़ों का विश्लेषण करते हुए पाया गया है कि अमेरिकी आप्रवासन नीतियों के बारे में अनिश्चितता बढ़ने के कारण तथा वीज़ा कोटा एवं प्रक्रियाओं में कोई बदलाव नहीं होने के कारण, कई फर्मों ने नौकरियाँ अमेरिका से भारत स्थानांतरित कर दीं।

21 January 2025
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संख्याओं से प्रभाव तक : राजस्थान के प्रभावी डेटा प्रबंधन से सीख

नीति निर्धारण में साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिए अच्छे डेटा का होना महत्वपूर्ण होता है। इस लेख में, संतोष और कपूर ने विकासात्मक चुनौतियों से सम्बंधित डेटा एकत्रित करने, उसे साझा करने और उसका उपयोग करने के साथ-साथ, राजस्थान के अनुभव पर आधारित एक अंतर्दृष्टि पर चर्चा की है। वे राजस्थान व अन्य राज्यों में डेटासेटों की अंतर-संचालनीयता (इंटरऑपरेबिलिटी) में सुधार लाने, तथा डेटा के लिए संस्थागत और कानूनी ढाँचे के लिए सिफारिशें करते हैं ताकि इसका उपयोग सरकार के भीतर व बाहर के हितधारकों द्वारा प्रभावी ढंग से किया जा सके।

27 June 2024
Notes from the Field
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भारत के बाल श्रम प्रतिबंध के अनपेक्षित परिणाम

हर जून में दो महत्वपूर्ण दिन आते हैं, एक पर्यावरण से संबंधित और दूसरा बाल श्रम से संबंधित। "आइए अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करें, बाल श्रम को समाप्त करें!" 12 जून को मनाए जाने वाले बाल श्रम विरोधी दिवस की थीम के परिपेक्ष्य में यह चिंतन करने का समय है कि बाल श्रम की समस्या से निपटने के लिए क्या आवश्यक है। विकासशील दुनिया में बाल श्रम के विरुद्ध प्रतिबंध और विनियमन, इस समस्या को हल करने के सबसे लोकप्रिय नीतिगत उपायों में से हैं। लेकिन ये व्यवहार में कितने कारगर हैं? कई वर्ष पूर्व का यह शोध आलेख आज भी प्रासंगिक है। आलेख में बाल श्रम के विरुद्ध भारत के प्रमुख कानून,1986 के बाल श्रम अधिनियम की प्रभावशीलता का विश्लेषण किया गया और यह पाया गया कि इस प्रतिबंध के कुछ वर्षों बाद, 14 वर्ष की कानूनी रोज़गार आयु की तुलना में कानूनी आयु से कम आयु के बच्चों के रोज़गार स्तर में वृद्धि हुई।

13 June 2024
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भारत में समाचार पत्र बाज़ार के राजनीतिक निर्धारक

समाचार पत्र भारतीय मतदाताओं के लिए राजनीतिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राजनीतिक कारक समाचार पत्र बाज़ार को किस तरह से प्रभावित करते हैं। 2000 के दशक के मध्य में की गई परिसीमन की घोषणा को एक बाहरी झटके के रूप में मानते हुए, यह पाया गया कि उन जिलों में समाचार पत्रों के प्रसार में वृद्धि हुई थी, जिनका चुनावी महत्त्व घोषणा के बाद बढ़ गया था। देखा गया कि, अल्पावधि में यह परिवर्तन आपूर्ति में बदलाव से प्रेरित था, क्योंकि मतदाता अभी भी राजनीतिक झटके से अनजान थे।

28 February 2024
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आम भूमि रजिस्ट्री की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता

भारत की आम भूमि के बारे में विस्तृत आँकड़ों की व्यापक कमी भूमि संरक्षण, संसाधन उपयोग और भूमि अधिकार को प्रभावित करती है। चंद्रन और सिंह ने सूचना विषमता को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए इस लेख में एक राष्ट्रीय आम भूमि रजिस्ट्री की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। वे कुछ राज्य सरकारों द्वारा डिजिटल मैपिंग और स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ाव के माध्यम से किए हाल के प्रगति कार्यों को दर्शाते हैं। उनका दावा है कि भूमि रजिस्ट्री की सफलता केन्द्र सरकार के मार्गदर्शन के साथ-साथ, राज्य-स्तरीय नियमों के विभाजन पर काबू पाने में छिपी हुई है।

27 November 2023
Notes from the Field
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वन अधिकार अधिनियम : विरोधाभासी संरक्षण कानूनों का लेखा-जोखा

वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के बारे में अपने दूसरे लेख में, भारती नंदवानी ने इस बात की जांच के लिए कि एफआरए की शुरूआत के बाद भूमि सम्बन्धी विवाद क्यों बढ़े, भूमि संघर्षों पर डेटा का उपयोग किया है। वे विरोधाभासी कानून की व्यापकता की ओर इशारा करते हुए, प्रतिपूरक वनीकरण निधि या ‘कम्पेन्सेटरी अफॉरेस्टेशन फण्ड’ के मामले को उजागर करती हैं, जिसका वितरण इस तरह से होता है कि वनवासियों की खेती की भूमि पर अतिक्रमण हो जाता है। वे उन समुदायों के बेहतर ज्ञान को पहचानने और उन्हें वनों के प्रबंधन और संरक्षण की ज़िम्मेदारी देने की आवश्यकता पर ज़ोर देती हैं।

21 November 2023
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प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण कार्यक्रमों का विकेन्द्रीकृत लक्ष्यीकरण : एक पुनर्मूल्यांकन

'डिसेंट्रलाइज्ड गवर्नेंस : क्राफ्टिंग इफेक्टिव डेमोक्रेसीज़ अराउंड द वर्ल्ड' में दिलीप मुखर्जी कल्याण कार्यक्रमों के विकेन्द्रीकरण के खिलाफ राजनीतिक ग्राहकवाद और अभिजात वर्ग के कब्ज़े की घटनाओं सहित कुछ तर्क प्रस्तुत करते हैं और हाइब्रिड ‘पुनर्केन्द्रीकरण’ पहल के लिए विकासशील देशों द्वारा किए गए प्रयासों का सारांश प्रस्तुत करते हैं। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना गलत आवंटन और भ्रष्टाचार की गुंजाइश को सीमित कर सकते हैं, इसे स्वीकारते हुए वे स्थानीय झटकों और राजकोषीय संघवाद के लिए केन्द्रीकरण के प्रति प्रतिक्रिया की डीबीटी की क्षमता की जांच करते हैं।

03 November 2023
Perspectives
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वन अधिकार अधिनियम- स्थानीय समुदायों की राजनीति में सहभागिता

वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के कार्यान्वयन के बारे में अपने दो लेखों में से पहले लेख में, भारती नंदवानी ने ओडिशा के अनुसूचित जनजातियों की राजनीति में सहभागिता के संदर्भ में भूमि स्वामित्व मान्यता की बढ़ती मांग के निहितार्थ पर प्रकाश डाला है। वे आय में वृद्धि या शिकायत निवारण तक पहुँच जैसे संभावित चैनलों की, जिनके माध्यम से एफआरए लाभार्थियों को सशक्त बना सकता है, जांच करती हैं और दर्शाती हैं कि स्थानीय समुदायों को उनके अधिकार दिलाने और कल्याण कार्यक्रमों तक उनकी पहुँच को बढ़ाने से वनों के संरक्षण में मदद मिल सकती है और संघर्ष को कम किया जा सकता है।

26 October 2023
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बिहार में स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से जोखिम साझा करने की सुविधा

यह देखते हुए कि बिहार में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) कार्यक्रम से महिलाओं की कम ब्याज़-दर वाले ऋण तक पहुँच में सुधार हुआ है, इस लेख में उपभोग वृद्धि के गाँव-स्तरीय भिन्नता में अंतर की जांच करके इस बात का मूल्याँकन किया गया है कि क्या इससे जोखिम-साझाकरण में सुधार हुआ है। यह पाया गया कि जोखिम-साझाकरण में सुधार केवल उन ब्लॉकों में हुआ है, जहाँ एसएचजी पहले से ही बड़ी संख्या में मौजूद थे। इससे 'समुदाय कैडर' के रूप में इस कार्यक्रम की प्रशासनिक क्षमता का महत्व सामने आता है, जिसमें मौजूदा एसएचजी के सदस्यों की सक्रिय भूमिका है और वे नए समूहों के गठन के लिए ज़िम्मेदार भी हैं।

21 September 2023
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क्या वर्ष 2023-24 का बजट लैंगिक प्राथमिकताओं को संतुलित करने में सफल रहा है?

तान्या राणा और नेहा सुज़ैन जैकब केंद्रीय बजट के लैंगिक बजट वक्तव्य या जेंडर बजट स्टेटमेंट (जीबीएस) के माध्यम से, उसके दो हिस्सों के तहत विभिन्न मंत्रालय और विभाग किन योजनाओं को प्राथमिकता देते हैं, इस पर ध्यान देते हुए योजना आवंटन को वर्गीकृत कर के उसका विश्लेषण करते हैं। वे मनमाने वर्गीकरण, यानी जो योजनाएं पूरी तरह से महिला-केन्द्रित नहीं उनको शामिल करने और योजना के उद्देश्यों को पूरा करने में अपर्याप्त आवंटन संबंधी मुद्दों पर चर्चा करते हैं। वे महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु वित्तीय प्राथमिकताओं के लिए निगरानी और स्पष्ट योजना वर्गीकरण की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।

24 August 2023
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बिहार में शराबबंदी का जीवन साथी द्वारा हिंसा पर प्रभाव

इस लेख में वर्ष 2016 में बिहार में शराब की बिक्री और खपत पर लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध के कारण महिलाओं के प्रति उनके जीवन साथी द्वारा होने वाली हिंसा की घटनाओं पर पड़े प्रभाव की जांच की गई है। एनएफएचएस आंकड़ों का उपयोग करते हुए पाया गया कि इस प्रतिबंध के बाद बिहार में महिलाओं का कहना था कि उनके पतियों के शराब पीने की संभावना पहले से कम थी और महिलाओं के घरेलू हिंसा का सामना किए जाने की संभावना भी कम थी। इस लेख में महिला सशक्तिकरण को बढ़ाने और उन्हें दुर्व्यवहार से बचाने में स्वयं-सहायता समूहों की पूरक भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया है।

10 August 2023
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सरकारी नौकरियों के संदर्भ में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा की लागत

भारतीय राज्यों में सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती हेतु अत्यधिक प्रतिस्पर्धी परीक्षाएं होती हैं जहाँ इन सरकारी रिक्तियों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हुए कई युवा लंबे समय तक बेरोजगार रहते हैं। कुणाल मंगल तमिलनाडु में सरकारी भर्तियों पर रोक का उम्मीदवारों के आवेदन व्यवहार तथा चयनित नहीं होने वाले उम्मीदवारों के दीर्घकालिक श्रम-बाजार परिणामों पर पडने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालते हैं। वे भर्ती प्रक्रिया हेतु दो नीतियों का सुझाव देते हैं जिनसे परीक्षा की तैयारी की सामाजिक लागत कम हो सकती है।

26 May 2023
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सकारात्मक कार्रवाई को लागू करने हेतु डिजाइन विकल्प

आशुतोष ठाकुर इस व्याख्यात्मक लेख में विभिन्न तरीकों की व्याख्या करते हैं जिनके जरिये सकारात्मक कार्रवाई नीतियों को लागू किया जा सकता है। साथ हीं, वे इसमें अंतर्निहित व्यापार और मुद्दों पर भी चर्चा करते हैं। वे काल्पनिक परिदृश्यों में खराब और अच्छा प्रदर्शन करने वाले उम्मीदवारों के संदर्भ में तीन कार्यान्वयन डिजाइनों – हार्ड कैप, ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) और क्षैतिज (हॉरिजॉन्टल) आरक्षण को चित्रित करते हैं। तथापि, व्यवहार में, विस्तृत मार्गदर्शन की कमी के कारण सकारात्मक कार्रवाई नीतियों का तदर्थ कार्यान्वयन हुआ है जिनके राजनीतिक माहौल और कानूनी प्रवचन के सन्दर्भ में लंबे समय तक चलने वाले परिणाम होते हैं।

06 April 2023
Perspectives
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महिलाओं के सशक्तिकरण संबंधी हस्तक्षेपों की जटिलता

इस लेख में सीवन एंडरसन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के उपलक्ष्य में I4I पर इस महीने चल रहे अभियान के अंतर्गत महिला सशक्तिकरण के उपायों के बीच के जटिल आयामों और अंतर्क्रियाओं को सामने रखती हैं। वे महिलाओं के आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने या लैंगिक मानदंडों को बदलने के उद्देश्य से किये जाने वाले नीतिगत हस्तक्षेपों के गंभीर और अनपेक्षित खतरों पर प्रकाश डालती हैं। वे महिलाओं की विस्तारित आर्थिक संभावनाओं, विकसित देशों से लैंगिक मानदंडों के बेंचमार्किंग और अनुसरण एवं राजनीतिक कोटा को प्रभावी बनाने के लिए क्षमता निर्माण के उपायों के बारे में परिवारों के प्रतिक्षेप के प्रति सचेत रहने के लिए नीति निर्माण का आग्रह करती हैं।

31 March 2023
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आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग हेतु आरक्षण को कुशलतापूर्वक क्रियान्वित करने की चुनौतियाँ

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार आरक्षित श्रेणियों के सदस्यों को ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के दायरे से बाहर कर दिया गया है। आयगुन, तुरहान और येनमेज़ इस निर्णय के निहितार्थों को देखते हैं, जिसमें आरक्षित श्रेणी के सदस्यों द्वारा अपनी जाति अथवा आय के आधार पर पदों के लिए आवेदन करने हेतु चयन किया जाना और ईडब्ल्यूएस आरक्षण को परिभाषित करने की अस्पष्टता शामिल हैं। वे हाल के अदालती मामलों के उदाहरणों के साथ अपने निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं, और इसके कार्यान्वयन, विशेष रूप से अनारक्षण के साथ उत्पन्न होने वाले मुद्दों को उजागर करते हैं।

31 January 2023
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गवर्नेंस मैट्रिक्स: बदलाव हेतु सिस्टम की तैयारी को समझना

आदर्श परिणामों की अपेक्षा और किसी अपूर्ण प्रणाली की वास्तविकता के बीच के अंतर को स्पष्ट करने हेतु गौरव गोयल ने ‘गवर्नेंस मैट्रिक्स’ नामक एक ऐसा साधन प्रस्तुत किया है जिसका उपयोग सरकारी पहलों को सफलतापूर्वक लागू करने की दिशा में सरकारी तत्परता का आकलन करने के लिए किया जा सकता है। वे राजनीतिक प्रमुखता और प्रणाली की क्षमता नामक दो पहलुओं को स्पष्ट करते हैं - जिनके साथ राजनीतिक प्रणालियाँ आगे बढ़ सकती हैं। इसके आधार पर वे उन चार अवस्थाओं को स्थापित करते हैं जिसमें सरकारें मौजूद हो सकती हैं और वे प्रत्येक खंड में स्थायी परिवर्तन की संभावना की जांच करते हैं।

25 January 2023
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राजनीतिक पद का समय और बेईमानी में लैंगिक अंतर: स्थानीय राजनीति से प्राप्त साक्ष्य

राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी अधिक होना वर्तमान साहित्य में कम भ्रष्टाचार का संकेत माना गया है | ईमानदारी को एक अंतर्निहित या स्थिर चरित्र विशेषता के रूप में देखा जाता है। हालाँकि, पश्चिम बंगाल में निर्वाचित 400 ग्राम पंचायत सदस्यों से एकत्रित की गई जानकारी का उपयोग करते हुए किये गए इस अध्ययन से पता चलता है कि किसी राजनीतिक पद धारण करने की स्थिति में यह बदल जाता है – राजनीति में अनुभवहीन महिला राजनेताओं के पुरुषों की तुलना में बेईमान होने की संभावना कम होती है, लेकिन अनुभवी राजनेताओं के संदर्भ में यह 'लैंगिक अंतर' समाप्त हो जाता है। इस अध्ययन में इसका कारण अनुभव के साथ मजबूत राजनीतिक नेटवर्क तथा कम जोखिम की संभावना माना गया है।

20 December 2022
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विद्युत अधिनियम में संशोधन: सजग दृष्टिकोण की आवश्यकता

विद्युत अधिनियम, 2003 में हाल ही में प्रस्तावित संशोधन कुछ विधायी परिवर्तनों के साथ लगभग दो दशकों के बाद आया है। इस लेख में, दीक्षित और जोसे बिजली क्षेत्र के विकास- विशेष रूप से उस समय के दौरान प्रौद्योगिकी संचालित परिवर्तनों की समीक्षा करते हैं,और अधिनियम में प्रस्तावित कुछ संशोधनों के इस क्षेत्र के कामकाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों के बारे में चर्चा करते हैं। साथ ही,वे इन संशोधनों के पहलुओं के चलते आगे उपस्थित होने वाले उन प्रश्नों को भी सामने लाते हैं जिनको सजग दृष्टिकोण से हल किया जाना चाहिए।

08 December 2022
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भारत में पार्टी प्राथमिकताएं और रणनीतिक मतदान

अपने निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव परिणामों का सटीक अंदाजा लगाने हेतु ठोस जानकारी उपलब्ध न होने के कारण कई मतदाता मानते हैं कि उनका पसंदीदा उम्मीदवार जीत जाएगा। वर्ष 2017 में उत्तर-प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान की मतदाता वरीयताओं को देखते हुए, इस लेख में पता चलता है कि बहुत कम भारतीय 'रणनीतिक मतदाता' हैं। बजाय इसके, परिणाम दर्शाते हैं कि बहुत कम मतदाताओं का मानना था कि उन्हें अपनी पसंदीदा पार्टी के जीतने की उम्मीद थी, इसलिए वे रणनीतिक रूप से मतदान करने की स्थिति में थे।

03 November 2022
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प्रशासनिक प्रसार के जनसांख्यिकीय और विकास परिणाम

भारत में अक्सर मौजूदा जिलों को विभाजित करके नए प्रशासनिक जिलों का निर्माण होता रहा है, जहां पिछले चार दशकों में जिलों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। इस लेख में, वर्ष 1991 से 2011 तक के आंकड़ों के मद्देनजर इस विभाजन के आर्थिक परिणामों पर हुए प्रभाव का आकलन किया गया है। यह लेख दर्शाता है कि विभाजन-प्रभावित जिले पहले की तुलना में अधिक समरूप हो गए हैं; यह विभाजन नव-निर्मित जिलों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जो विभाजन के पुनर्वितरण लाभों को प्राप्त करते हैं।

06 September 2022
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नौकरशाही नियुक्तियों को मिलने वाले निजी लाभ: भारत में वित्तीय खुलासे से साक्ष्य

हम अक्सर देखते हैं कि नौकरशाहों की तनख्वाह का ढांचा बहुत बंधा हुआ होता है | साथ ही, उन्हें मिलने वाली अन्य आर्थिक सुविधाएं और भत्ते न सिर्फ बेहद कम होते हैं, बल्कि उनमें प्रदर्शन के आधार पर कोई खास फर्क नहीं होता | इस लेख के लिए हमने भारत की 2010-2020 की अचल संपत्ति रिटर्न (आईपीआर) रिपोर्ट को आधार बनाया है, जिसमें नौकरशाहों ने खुद अपनी संपत्ति की जानकारी दी है| यह रिपोर्ट बताती है कि जब अफ़सरों को किसी ‘अहम’ मंत्रालय में पुनर्नियुक्ति कर भेजा जाता है, तो उन्हें निजी फ़ायदों के रूप में अच्छी सुविधाएं मिलती हैं | इन अफ़सरों की अचल संपत्तियों की संख्या और मूल्य दोनों बढ़ते हैं जिसका सीधा मतलब है कि उन्हें अपने काम के चलते निजी तौर पर कहीं ज़्यादा फ़ायदे और आर्थिक सुविधाएं मिलती हैं |

10 August 2022
Articles
Governance
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डिजिटल सपना: भारत को भविष्य के लिए कौशल-निपुण बनाना

कोविड-19 महामारी ने हमारे जीवन में आम होती जा रही प्रौद्योगिकी की गति को तेज कर दिया है, इसने एक बड़े डिजिटल विभाजन को भी उजागर किया है, जिससे भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस प्रतिमान बदलाव से बाहर हो गया है। वर्ष 2017-18 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए, मुमताज और मोथकूर देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में डिजिटल साक्षरता में भिन्नता को उजागर करते हैं,और इस संदर्भ में किये गए सरकारी प्रयासों पर चर्चा करते हैं।

16 June 2022
Perspectives
Governance
Governance

बिजली की कटौती को कम करने हेतु बिजली संयंत्रों की प्रोत्साहन राशि निश्चित करना

भारत में अपेक्षाकृत उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे और बिजली संयंत्रों की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद, उपभोक्ताओं को लगातार बिजली की कटौती का सामना करना पड़ता है। यह लेख भारत में ब्लैकआउट के सन्दर्भ में एक नए स्पष्टीकरण को सामने लाता है: जब बिजली की खरीद लागत बढ़ जाती है, तो उपयोगिताएं बिजली संयंत्रों से कम बिजली खरीदना पसंद करती हैं, जिससे अंतिम उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने वाली बिजली की मात्रा सीमित हो जाती है। थोक मूल्य लागत में कमी लाने वाले ‘थोक आपूर्ति सुधार’ ब्लैकआउट को प्रभावी तरीके से कम करने में सहायक हो सकते हैं।

26 April 2022
Articles
Governance
Governance

वस्तु-रूपी हस्तांतरण : डेडवेट हानि या लाभ?

क्या सामाजिक सहायता के लिए वस्तु-रूप में दिया जाने वाला हस्तांतरण उपभोक्ता की पसंद को सीमित करके ‘डेडवेट लॉस’ की ओर ले जाता है? इस लेख में महाराष्ट्र में हुए एक प्रयोग से प्राप्त निष्कर्षों को प्रस्तुत किया गया है जिसमें कम आय वाले उत्तरदाताओं को चावल की मुफ्त मात्रा और नकदी की अलग-अलग मात्रा के बीच विकल्प की पेशकश की गई, ताकि चावल के लिए उनकी भुगतान करने की इच्छा का पता लगाया जा सके। इसमें पाया गया कि परिवार में अधिक मोल-भाव करने की क्षमता वाली महिलाएं चावल की अपेक्षा नकदी को ज़्यादा तरजीह देती हैं।

05 November 2024
Articles
Poverty & Inequality
Poverty & Inequality

वर्ष 2024 पर एक नज़र

नव वर्ष 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं! हिंदी भारत की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है और एक प्रकार से यह सम्पर्क सूत्र का काम भी करती रही है। इस महत्व को समझते हुए आई4आई के पोर्टल पर काफी संख्या में विभिन्न विषयों पर शोध-आधारित लेख हिंदी में प्रकाशित होते आये हैं। वर्ष 2024 में आई4आई पर कुल 196 लेख, राय-आधारित परिप्रेक्ष्य और फील्ड नोट प्रकाशित हुए जिनमें से 57 हिंदी में थे। इसी दौरान हमने तीन सम्मेलनों से जुड़ी सामग्री को भी होस्ट किया। 2024 की कुछ प्रमुख बातों को आज हम यहाँ साझा कर रहे हैं। आई4आई (I4I) से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद! साक्ष्य-आधारित नीति को बढ़ावा देने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं और इस वर्ष तथा आगामी वर्षों में विकास व वृद्धि सम्बन्धी और अधिक सामग्री आपके समक्ष प्रस्तुत करते रहेंगे।

10 January 2025
Editorial
Trade
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भारत के तेल निर्यात में बदलते रुझान और पैटर्न के निहितार्थ

शर्मिला कांता इस बात की चर्चा करती हैं कि भारत के तेल और गैस उत्पादन में गिरावट की प्रवृत्ति और वैश्विक माँग में उतार-चढ़ाव को देखते हुए, विशेष रूप से भारत के निर्यात में पेट्रोलियम उत्पादों की उच्च हिस्सेदारी चिंता का विषय क्यों है। वह भारत के तेल निर्यात और आयात की मात्रा और मूल्य के कुछ रुझान साझा करती हैं, साथ ही उन प्रमुख देशों के आँकड़े भी दर्शाती हैं जिनके साथ भारत व्यापार करता है। वह उत्पादन बढ़ाने और भारत के तेल निर्यात की स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु कुछ नीतिगत सुझावों के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत करती हैं।

11 July 2024
Perspectives
Trade
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पिछले तीन दशकों में भारत में मोटे अनाज की खपत और व्यापार

गत वर्ष, 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष’ के रूप में मनाया गया। जलवायु परिवर्तन के झटकों को देखते हुए बढ़ती जनसँख्या को भविष्य के खाद्य संकट से बचाने में मोटे अनाजों की एक बड़ी भूमिका हो सकती है। कदन्न के विषय में अपने इस लेख के माध्यम से, मनन भान ने ‘सन्निहित क्षेत्र’ की एक अवधारणा प्रस्तुत की है जिसमें उपभोग के बिन्दु पर भूमि के उपयोग को ध्यान में रखते हुए नकारात्मक प्रभावों का बोझ उत्पादकों के बजाय उपभोक्ताओं पर डाला जाता है। वे मोटे अनाजों के उत्पादन की भूमि क्षेत्र में गिरावट और उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं, दोनों को लाभ पहुँचाने हेतु स्थाई तरीके से कदन्न की खेती, उन के व्यापार और खपत का विस्तार करने की क्षमता को प्रस्तुत करते हैं।

30 May 2024
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क्या परिवहन में ढाँचागत विकास से ग्रामीण भूमि असमानता बढ़ती है?

परिवहन से जुड़े आधारभूत संरचना में निवेश से व्यापार लागत कम होती है और गांव शहरी बाज़ारों के साथ जुड़ जाते हैं। यह लेख दर्शाता है कि इस स्थानिक एकीकरण के कारण ग्रामीण भारत में भूमि असमानता बढ़ने का अनपेक्षित परिणाम भी निकल सकता है। यह लेख, औपनिवेशिक रेलमार्ग स्थानों और स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग नेटवर्क से गांव की दूरी के आधार पर बाज़ार तक पहुँच के प्रभावों को पृथक करके देखता है। अध्ययन से पता चलता है कि एकीकरण से भूमिहीन परिवारों की संख्या में और उत्पादक कृषि प्रौद्योगिकी को अपनाने में वृद्धि होती है, जिससे बड़े खेत और भी बड़े हो जाएंगे और भूमि असमानता बढ़ जाएगी।

14 September 2023
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क्या भारत में निर्यात-उन्मुख विनिर्माण मॉडल के दिन लद गए हैं?

भारत अपनी तेजी से बढ़ती कामकाजी उम्र की आबादी हेतु अच्छी तनख्वाह वाली लाखों नौकरियां सृजित करने की चुनौती का सामना कर रहा है, अतः देवाशीष मित्र विश्लेषण करते हैं कि कौन-से क्षेत्र और किस प्रकार की रणनीतियां अच्छी नौकरियां उपलब्ध करा सकती हैं। उनका मानना है कि निर्यात-उन्मुख विनिर्माण मॉडल को सफल बनाने में चार कारक सहायक हो सकते हैं- श्रम में सुधार; मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर तथा उनका कार्यान्वयन और विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना; और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भागीदारी। इससे भारत को उत्पादक नौकरियां सृजित करने हेतु देश में उन्नत-प्रौद्योगिकी के साथ-साथ अपने श्रम का लाभ उठाने में सहायता मिलेगी।

10 October 2022
Perspectives
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बदलती दुनिया में ‘भविष्य की नौकरियों’ के लिए योजना

जलवायु परिवर्तन, बढ़ता हुआ स्वचालन तंत्र और वैश्विक आर्थिक नीतियों जैसे बाहरी कारक आने वाले वर्षों में भारत के रोज़गार के परिदृश्य को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। गत माह अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के अवसर पर, आई4आई की उप-प्रबंध संपादक निकिता मजूमदार ने श्रमिकों की भलाई और उत्पादकता सुनिश्चित करने तथा भविष्य में सुरक्षित नौकरियों तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिए इन चुनौतियों के समाधान पर कुछ शोध सारांश प्रस्तुत किया था, जिसे आज यहाँ दिया जा रहा है।

26 June 2025
Perspectives
Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

भारत के औद्योगिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि

पहली मई को दुनिया भर में श्रमिकों के हितों के लिए समर्पित दिवस के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसी परिपेक्ष में प्रस्तुत है यह लेख। हाल के वर्षों में, भारत में विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में औसत वार्षिक वृद्धि दर कुल रोज़गार से अधिक हो गई है। इस लेख में गोलदार और अग्रवाल दर्शाते हैं कि इस प्रवृत्ति के साथ-साथ औद्योगिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है, जो कुल मिलाकर महिलाओं के स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों के अनुपात में हुई वृद्धि के कारण है। वे अपने निष्कर्षों में महिलाओं के स्वामित्व वाली इकाइयों की उत्पादकता बढ़ाने के उपायों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालते हैं।

01 May 2025
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Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

महिलाओं के कार्यबल की क्षमता को बढ़ाना

शैक्षिक उपलब्धि और स्वास्थ्य परिणामों में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को बढाने में भारत पीछे है, जिसके चलते तेज़ और समावेशी आर्थिक विकास का लक्ष्य बाधित हो रहा है। इस लेख में दर्शाया गया है कि अंशकालिक रोज़गार को औपचारिक बनाने तथा पुरुषों और महिलाओं के बीच अवैतनिक देखभाल कार्य को पुनर्वितरित करने से श्रम-बल में महिलाओं की भागीदारी छह प्रतिशत अंकों से बढ़कर, 37% से 43% हो सकती है।

06 March 2025
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Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

प्रौद्योगिकी में प्रगति तथा रोज़गार में बदलाव : भारत में हालिया रुझान

भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज़ी से हो रही प्रौद्योगिकी प्रगति का क्या असर रोज़गार पर हो रहा है? इस सवाल का पता लगाने के लिए, कथूरिया और देव ने इस लेख में ‘उपभोक्ता पिरामिड पारिवारिक सर्वेक्षण’ के डेटा का विश्लेषण किया है। उन्होंने विशेष रूप से कोविड-19 के बाद के दौर में विभिन्न क्षेत्रों में कम कुशल श्रमिकों की हिस्सेदारी में लगातार गिरावट और रोज़गार की संभावनाओं में कमी को रेखांकित किया है। वे इन श्रमिकों, ख़ासकर महिलाओं को प्रशिक्षित करने पर बल देते हैं ताकि वे उच्च-कौशल, उच्च-भुगतान वाली नौकरियों तक पहुँच सकें।

20 February 2025
Perspectives
Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

क्या डिजिटलीकरण भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सेवारत कर्मियों के लिए दोधारी तलवार है?

प्रौद्योगिकी को अक्सर स्वास्थ्य सेवा की अक्षमताओं के समाधान के रूप में सराहा जाता है, जबकि भारत के मान्यता-प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) पर इसके प्रभाव की स्थिति जटिल है। चार राज्यों में किए गए एक गुणात्मक शोध अध्ययन के आधार पर, इस लेख में आशा कार्यकर्ताओं में डिजिटलीकरण के ऐसे अनुभवों की जाँच की गई है, जिसमें डिजिटल उपकरण कार्य-प्रक्रियाओं में सुधार करते हैं और नए बोझ व असमानताएं पैदा करते हैं।

18 February 2025
Notes from the Field
Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

एक उज्जवल भविष्य : झारखंड के एक गाँव में सौर ऊर्जा माइक्रो-ग्रिड

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस, जो हर साल 14 दिसंबर को मनाया जाता है, भारत में ऊर्जा संरक्षण और संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के महत्व को रेखांकित करता है। 2024 की थीम सामूहिक ऊर्जा-बचत प्रयासों के प्रभाव पर जोर देती है- 'सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देना : हर वाट महत्वपूर्ण है'। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत इस आलेख में एक सौर माइक्रो ग्रिड की चर्चा की गई है। छोटी-छोटी बस्तियों वाला, झारखंड का सिमडेगा जिला, नीति आयोग के 'आकांक्षी जिलों' में शामिल हैं जो अभी तक ग्रिड-आधारित बिजली से नहीं जुड़ा है। लेखकों ने इस लेख में चर्चा की है कि कैसे चेंझेरिया गाँव में सौर माइक्रो-ग्रिड की स्थापना से आजीविका के अवसर पैदा हुए हैं, साथ ही पारिवारिक जीवन को आसान और अधिक उत्पादक बनाया है। उन्होंने इस पहल के वित्तीय पहलुओं को रेखांकित किया है और टिकाऊ व्यवसाय मॉडल विकसित करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला है।

17 December 2024
Notes from the Field
Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

भारत के कुल रोज़गार में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा : प्रदर्शन खराब नहीं है

भारत में नौकरियों के बारे में उपलब्ध आँकड़े पिछले 50 वर्षों में भारत के कुल रोज़गार में विनिर्माण के हिस्से में मामूली वृद्धि ही दर्शाते हैं। इस लेख में बिश्वनाथ गोलदार ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि विनिर्माण से सेवाओं के अलग हो जाने के कारण, विनिर्माण द्वारा उपयोग की जाने वाली सेवाओं की आउटसोर्सिंग समय के साथ तेज़ी से बढ़ी है। यदि इसे ध्यान में रखा जाए, तो रोज़गार सृजन में विनिर्माण का प्रदर्शन उतना निराशाजनक नहीं है जितना कि आकँड़े बताते हैं।

26 November 2024
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Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

भारत में पेटेंट का संरक्षण : नवाचार, मूल्य निर्धारण और प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव

भारत में जब पेटेंट सम्बन्धी मज़बूत कानून पेश किए गए, तब यह आशंका जताई गई थी कि इससे नवाचार में पर्याप्त लाभ के बगैर कीमतें बढ़ जाएंगी। यह लेख इस बात का सबूत देता है कि पेटेंट संरक्षण सम्बन्धी मज़बूत कानून ने पेटेंट की संख्या और गुणवत्ता में वृद्धि की और विनिर्माण फर्मों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान और विकास खर्च में वृद्धि हुई है। प्रक्रिया से जुड़े नवाचारों और आउटपुट वृद्धि ने उत्पादन लागत को कम किया, जबकि यह लागत बचत कम उपभोक्ता कीमतों के बजाय उच्च मूल्य-लागत मार्जिन में तब्दील हो गई।

22 October 2024
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Poverty & Inequality
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कॉर्पोरेट भारत में महिलाओं का नेतृत्व- फर्मों का प्रदर्शन और संस्कृति

कम्पनी अधिनियम 2013 के तहत, भारत में सभी सूचीबद्ध फर्मों को अपने बोर्ड में कम से कम एक महिला को रखना आवश्यक है। इस लेख में पाया गया है कि बोर्ड में कम से कम एक के महिला होने से बड़ी और मध्यम आकार की फर्मों के लिए बेहतर आर्थिक प्रदर्शन और कम वित्तीय जोखिम होता है। इसके अलावा, बोर्ड पदों पर महिलाओं की अधिक हिस्सेदारी कर्मचारी रेटिंग और भावना स्कोर के साथ सकारात्मक रूप से जुड़ी हुई है। यह आइडियाज़@आईपीएफ2024 शृंखला का पहला आलेख है।

18 July 2024
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Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

भारत के विनिर्माण क्षेत्र के श्रमिकों में निवेश और उत्पादकता

पहली मई को दुनिया भर में श्रम दिवस मनाया जाता है और आधुनिक विश्व की अर्थ व्यवस्था और प्रगति में श्रम, श्रम बाज़ार व श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी सन्दर्भ में आज के इस लेख में, अध्वर्यु एवं अन्य भारत में घटती विनिर्माण उत्पादकता तथा राज्यों और उद्योगों में व्याप्त भिन्नता से सम्बंधित कुछ तथ्यों का संकलन प्रस्तुत करते हैं। वे श्रमिक उत्पादकता बढ़ाने की क्षमता वाले चार प्रमुख क्षेत्रों- सॉफ्ट स्किल्स, आवाज़ यानी उनका मत, भौतिक वातावरण और प्रबन्धकीय गुणवत्ता में निवेश के बारे में मौजूदा साहित्य की जाँच करते हैं, जिसमें भारतीय और वैश्विक दोनों सन्दर्भों में किए गए अध्ययनों पर प्रकाश डाला गया है। वे सम्भावित कारणों के साथ यह निष्कर्ष निकालते हैं कि क्यों कम्पनियाँ श्रमिकों में पर्याप्त निवेश नहीं कर रही हैं।

02 May 2024
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पीढ़ी-दर-पीढ़ी बुनाई : ग्रामीण भारत में पारिवारिक व्यवसायों में उत्पादकता लाभ

हर साल 12 फरवरी को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में उत्पादकता, नवाचार और निपुणता के महत्त्व पर ज़ोर देना है। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत इस लेख में पारिवारिक स्वामित्व वाले बुनाई उद्यम की चर्चा की गई है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बुनाई का कार्य अक्सर एक पारिवारिक उद्यम है। 1,800 से अधिक परिवारों के डेटा का उपयोग करते हुए, हैममेकर एवं अन्य द्वारा किया गया मिश्रित-विधियों का मूल्याँकन यह दर्शाता है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी बुनाई व्यवसाय में जुटे परिवार बुनाई कार्य में अधिक कमाते हैं और केवल एक पीढ़ी के बुनकरों वाले परिवारों की तुलना में उनकी पारिवारिक आय अधिक होती है। हालाँकि, पाया गया कि उत्पादकता के ये लाभ पूरे परिवार में समान रूप से वितरित नहीं होते हैं, क्योंकि वे उन महिला बुनकरों के लिए विस्तृत एजेंसी के रूप में तब्दील नहीं होते जो इन व्यवसायों का हिस्सा होती हैं।

13 February 2024
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Poverty & Inequality
Productivity & Innovation

'प्लेटफ़ॉर्म’ अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने के लिए श्रम बाज़ार के आँकड़े एकत्रित करना

हालाँकि भारत डिजिटल श्रम बाज़ार प्लेटफार्मों के मामले में एक अग्रणी देश के रूप में उभरा है, लेकिन गिग (अस्थाई और अल्पावधि के काम व सेवाएं) अर्थव्यवस्था के बारे में कम डेटा उपलब्ध है। नेहा आर्य सीपीएचएस में प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के बारे में डेटा एकत्र करने के लिए सीएमआईई द्वारा किए गए प्रयासों की व्याख्या करती हैं और इस डेटासेट का उपयोग भारत के गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों की जनसांख्यिकीय संरचना को स्पष्ट करने के लिए करती हैं। उनका मानना है कि इस गतिशील श्रम बाज़ार में श्रमिकों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने और काम की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले डेटा को बनाए रखना आवश्यक है।

31 October 2023
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Poverty & Inequality
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सेवा-आधारित विकास : भारतीय नौकरी विज्ञापनों से साक्ष्य

भारत में नौकरियों की सबसे बड़ी वेबसाइट से रिक्तियों की ऑनलाइन सूचनाओं के एक नए डेटासेट का उपयोग करते हुए, कोपेस्टेक एवं अन्य, वर्ष 2016 के बाद से सेवा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संबंधित कौशल की मांग में विकसित देशों में हुई प्रगति से मिलती-जुलती दसियों गुना वृद्धि को दर्शाते हैं । वे पाते हैं कि प्रतिष्ठानों द्वारा एआई कौशल की मांग का गैर-एआई पदों में श्रम की मांग और मजदूरी के शीर्ष प्रतिशतक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो उच्च-कौशल, प्रबंधकीय व्यवसायों और गैर-नियमित, बौद्धिक कार्यों के विस्थापन के कारण होता है।

16 June 2023
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Poverty & Inequality
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वास्तविकताओं का प्रतिबिंब: महिला सूक्ष्म उद्यमियों की नज़र से डिजिटल टेक्नॉलजी

महामारी के दौरान भौतिक बाजारों से लेकर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म तक हुए बाजारों के विस्तार के कारण भारत में पहले से मौजूद डिजिटल लैंगिक विभाजन और भी बढ़ गया है। ऑटो-फ़ोटोग्राफ़ी का तरीका अपनाते हुए, सेवा भारत की टीम ने महिला सूक्ष्म उद्यमियों से 'डिजिटल' शब्द की उनकी समझ को व्यक्त करने के लिए कहा। उन्होंने पाया कि जो टेक्नॉलजी महानगरीय क्षेत्रों में सामान्य हो सकती है, वह ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों की नजर में महत्वपूर्ण और आकांक्षी है। उनके निष्कर्ष, देश भर की महिलाओं के नजर में डिजिटल सशक्तिकरण क्या है — इसकी बारीक समझ को सामने लाते हैं।

03 January 2023
Notes from the Field
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संकट के दौरान फर्मों के राजनीतिक संबंधों की भूमिका

शोध कहता है कि आर्थिक संकट की स्थिति में किसी फर्म के लिए राजनीतिक संबंध मायने रखते हैं। इस लेख में, भारत में फर्मों के राजनीतिक कनेक्शन के बारे में एक अद्वितीय डेटा सेट के माध्यम से पाया गया कि दुर्लभ संसाधनों की प्राप्ति के लिए फर्में अपने इन कनेक्शनों का लाभ उठा सकती हैं। इस प्रकार से 'कनेक्टेड' फर्में, ‘गैर-कनेक्टेड’ फर्मों की तुलना में अल्पावधि ऋण प्राप्त करने और नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के समय में बकाया भुगतान में देरी करने में सक्षम थीं, और इनकी आय, बिक्री और व्यय में भी बढ़ोतरी परिलक्षित हुई है।

15 December 2022
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विकासशील देशों में उन्नति से जुड़ी बाधाएं

हाल के दशकों में, उन्नत विश्व प्रौद्योगिकियों को अपनाये जाने से मदद मिलने के कारण कुछ हद तक कई देशों में तेजी से विकास हुआ है। इस लेख में, एरिक वरहोजेन ने उन कारकों के बारे में चर्चा की है जो विकासशील देशों की फर्मों में उन्नति को प्रेरित करते हैं। उन्होंने हाल के उस शोध पर प्रकाश डाला है जिसमें उन्नति पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाले दो कारकों को दर्शाया गया है- विकसित देशों या बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे अमीर उपभोक्ताओं को बिक्री; और सलाहकारों या अन्य फर्मों से सीखकर जानकारी में वृद्धि करना।

20 September 2022
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श्रम प्रतिबंधों में ढील का प्रभाव: राजस्थान में रोजगार से संबंधित साक्ष्य

भारत में कड़े श्रम कानून फर्मों के विकास में बाधा डाल सकते हैं और अनौपचारिक एवं अनुबंध वाले रोजगार बढ़ा सकते हैं। यह लेख, औद्योगिक विवाद अधिनियम (आईडीए) में संशोधन के बाद राजस्थान में स्थित फर्मों से संबंधित साक्ष्यों को देखते हुए दर्शाता है कि श्रम कानूनों में ढील देने से कुल रोजगार और उत्पादन पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। इसके विपरीत, श्रम कानूनों में दी गई ढील के चलते अनुबंध वाले श्रमिकों में वृद्धि हुई है और स्थायी कार्य-बल में कमी आई है। हालांकि इस अध्ययन का अनुमान है कि संशोधन से प्रभावित फर्मों की निहित श्रम लागत में कमी आई है।

13 September 2022
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जन्म बनाम योग्यता: भारत में उद्यमशीलता पर जाति व्यवस्था का प्रभाव

भारत में जाति व्यवस्था के प्रचलन के कारण सामाजिक गतिशीलता प्रतिबंधित रही है। यह लेख इस बात को दर्शाता है कि जाति असमानताओं की वजह से फर्मों में संसाधनों का गलत तरीके से आवंटन हुआ है। इस लेख में निम्न और उच्च जाति के उद्यमियों के संदर्भ में उत्पादकता और वित्तीय स्थितियों में व्याप्त अंतर को समझा गया है और पाया गया कि इसका धन-संपत्ति एवं आय असमानता तथा कुल कारक उत्पादकता पर व्यापक आर्थिक प्रभाव पड़ता है।

25 August 2022
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भारतीय विनिर्माण उद्योग में हिंदू-मुस्लिम एकता और फर्म का उत्पादन- एक क्षेत्र प्रयोग से साक्ष्य

उपलब्ध प्रमाण दर्शाते हैं कि खराब सामाजिक संबंधों और श्रमिकों में पसंद-आधारित भेदभाव के चलते जातिगत विविधता फर्म के उत्पादन को कम कर सकती है। यह लेख, पश्चिम बंगाल के एक विनिर्माण संयंत्र में किये गए एक प्रयोग के आधार पर दर्शाता है कि लगातार अत्यधिक समन्वय की आवश्यकता वाले कार्यों को करने वाली टीमों में यदि अलग-अलग धर्म के श्रमिक शामिल हैं तो शुरू में टीम का उत्पादन कम हो जाता है। तथापि,उत्पादकता पर पड़ने वाला यह नकारात्मक प्रभाव लंबे समय में कम हो जाता है, साथ ही लगातार कम समन्वय वाली टीमों की तुलना में आउट-ग्रुप दृष्टिकोण में सुधार होता है।

31 May 2022
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व्यापार, आंतरिक प्रवास और मानवीय पूंजी: भारत में आईटी में तेजी का फायदा किसे हुआ

भारतीय अर्थव्यवस्था में 1993-2004 के दौरान व्यापार में विस्तार हुआ और आईटी में तेजी आई। कुछ चुनिंदा बड़े शहरों में केंद्रित उच्च कौशल-गहन क्षेत्र में हुए शानदार विकास ने देश भर में असमानता को कैसे प्रभावित किया? यह लेख दर्शाता है कि नौकरियों और शिक्षा तक अच्छी पहुंच वाले जिलों में पैदा हुए व्यक्तियों को आईटी निर्यात में प्रत्येक प्रतिशत की वृद्धि के लिए 0.51% का लाभ मिला, जबकि दूरस्थ जिलों में यही लाभ 0.05% रहा।

05 April 2022
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क्या औद्योगिक जल प्रदूषण कृषि उत्पादन को नुकसान पहुँचाता है?

वर्ष 1973 से प्रतिवर्ष जून की 5 तारीख का विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में पालन किया जाता है। पर्यावरण के सभी घटकों, पर्यावास और प्राणियों का आपसी सम्बन्ध अति सूक्ष्म और जटिल होता है, यह दिन इसी जागरूकता के प्रसार-प्रचार और कार्यवाही को समर्पित है। पर्यावरण दिवस पर प्रस्तुत इस लेख में औद्योगिक जल प्रदूषण पर चर्चा की गई है। हालांकि सभी प्रमुख भारतीय शहरों में झीलों, नदियों में नियमित रूप से ज़हरीला झाग दिखाई देता है, जल प्रदूषण पर वायु प्रदूषण जितना ध्यान नहीं दिया जाता है। औद्योगिक जल प्रदूषण के कृषि पर प्रभाव की जांच करते हुए इस लेख में दर्शाया गया है कि औद्योगिक स्थलों के नीचे की ओर की नदियों में प्रदूषक तत्वों की सांद्रता यानी सेचुरेशन में अचानक बड़ी वृद्धि हुई है। इसके बावजूद, फसल की पैदावार पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ा है।

05 June 2025
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क्या शिक्षा से जलवायु कार्रवाई की प्रेरणा मिल सकती है?

हर साल 22 अप्रैल को दुनिया भर में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है जो पर्यावरण की रक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक वैश्विक आंदोलन है। जलवायु संकट के और भी गंभीर होने के साथ ही, आज पृथ्वी के संरक्षण की हमारी साझा जिम्मेदारी पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। विकासशील देशों में युवा वर्ग जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंतित हैं और इसके लिए उचित कदम उठाने के लिए तैयार हैं लेकिन व्यवहारिक जानकारी और ज्ञान की कमी के कारण वे विवश हैं। पृथ्वी दिवस पर प्रस्तुत इस लेख में मसूद और सबरवाल विश्वबैंक की हालिया रिपोर्ट से प्राप्त अंतर्दृष्टि पर चर्चा करते हैं, जिसमें बताया गया है कि शिक्षा किस प्रकार जलवायु से जुड़ी कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए इस विसंगति को दूर कर सकती है। वे जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले जोखिम से शैक्षिक प्रणालियों की सुरक्षा की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालते हैं।

22 April 2025
Perspectives
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तृतीय अशोक कोतवाल स्मृति व्याख्यान- स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार : विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में चुनौतियाँ और अवसर

हमारे संस्थापक प्रधान संपादक अशोक कोतवाल की याद में वर्ष 2022 में ‘अशोक कोतवाल स्मृति व्याख्यान’ की शुरुआत विकास के प्रमुख मुद्दों पर एक वार्षिक व्याख्यान के रूप में की गई थी। 11 दिसंबर 2024 को संपन्न इस व्याख्यान के तीसरे संस्करण में, प्रोफेसर रोहिणी पांडे ने स्वैच्छिक कार्बन बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में संबंधित चुनौतियों और अवसरों के बारे में बात की। इस व्याख्यान की रिकॉर्डिंग अब विडियो प्रारूप में उपलब्ध है।

10 February 2025
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बदलती जलवायु के साथ अनुकूलन के लिए स्वैच्छिक गतिशीलता- सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह

हालांकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दुनिया की पूरी आबादी को प्रभावित करते हैं, कुछ लोग अपनी भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण, अन्य लोगों की तुलना में अधिक जोखिम में हैं। अन्य देशों के जलवायु परिवर्तन-प्रेरित गतिशीलता के उदाहरणों का हवाला देते हुए, सम्पूर्णा सरकार यह चर्चा करती हैं कि राष्ट्र जोखिम में रहने वाली आबादी की सुरक्षा व कल्याण कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं। वह भारतीय सरकार के समक्ष आगे के रास्ते का सुझाव रखती हैं ताकि स्थिर, अस्थाई रूप से गतिशील और विस्थापित आबादियों को स्वैच्छिक गतिशीलता में सक्षम बनाया जा सके। साथ ही, उनके मूल निवास का पारिस्थितिक पुनरुद्धार भी किया जा सके।

27 September 2024
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सुंदरबन में मानव-वन्यजीव संघर्ष का प्रबंधन

बाघों के लिए विशिष्ट रूप से अनुकूलित घर होने के साथ-साथ, सुंदरबन इस क्षेत्र में मानव आबादी के लिए आजीविका का एक स्रोत भी है। डांडा और मुखोपाध्याय इस लेख में मानव-वन्यजीव संघर्ष के स्वरूप और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव के बारे में चर्चा करते हैं। वे चुनौतियों से निपटने के लिए किए गए उपायों का विवरण देते हुए इन्हें सुंदरबन में बाघों के संरक्षण के व्यापक प्रयास के के दायरे में रखते हैं।

22 August 2024
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बदलती जलवायु में बाघों का संरक्षण

बाघ वन साम्राज्य के सबसे राजसी जीवों में से एक हैं। सफ़ेद बाघ और रॉयल बंगाल टाइगर से लेकर साइबेरियन बाघ तक, इन की कई प्रजातियाँ हैं और इनमें से प्रत्येक अपने निवास स्थान पर गर्व से राज करती है। जलवायु परिवर्तन, अवैध वन्यजीव व्यापार और पर्यावास को हानि के कारण बाघों की आबादी तेज़ी से घट रही है। बाघ, घास के मैदानों, उष्णकटिबंधीय वर्षावनों, बर्फीले जंगलों और यहाँ तक कि मैंग्रोव दलदलों सहित विभिन्न प्राकृतिक आवासों में जीवित रह सकते हैं। उनकी इस अनुकूलन क्षमता के बावजूद, 20वीं सदी की शुरुआत से इन शानदार जीवों की संख्या में 95% से अधिक की गिरावट आई है। इस लुप्तप्राय प्रजाति के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रति वर्ष 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस का उद्देश्य बाघों को बचाने के लिए व्यक्तियों, समूहों, समुदायों और सरकारों को एक साथ लाना है। इसी उपलक्ष्य में प्रस्तुत है यह लेख। भारत और बांग्लादेश का सुन्दरबन क्षेत्र एकमात्र मैंग्रोव बाघ निवास स्थान है जो वैश्विकस्तर पर बाघों के संरक्षण के सर्वोच्च प्राथमिकता वाले स्थान हैं। इ

13 August 2024
Perspectives
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लाल में रहते हुए हरित होने के प्रयास

स्वीडन के स्टॉकहोम में 5 से 16 जून, 1972 को आयोजित पहली पर्यावरण संगोष्ठी के परिणामस्वरूप 1973 की 5 जून को 'मात्र एक पृथ्वी' के थीम से मनाए जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस ने एक लम्बी अवधि का सफर तय कर लिया है। परन्तु क्या पृथ्वी के समस्त देशों और भारत ने भी पर्यावरण को मानव कल्याण योग्य बनाए रखने की दिशा में उतना ही लम्बा सफर तय किया है? इस महत्वपूर्ण अवसर पर I4I के प्रधान संपादक परीक्षित घोष भारत की पर्यावरण नीति, सामाजिक सुरक्षा जाल और व्यापक आर्थिक प्रबंधन में सामंजस्य स्थापित करने वाले एक समग्र दृष्टिकोण की चर्चा करते हैं। जलवायु सम्बन्धी ज़रूरतें कब और कहाँ से उत्पन्न होंगी, इसके पूर्वानुमान में आ रही कठिनाई को देखते हुए, वे देश के लिए एक समेकित हरित निधि का विचार प्रस्तुत करते हैं।

06 June 2024
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सतत विकास की दिशा में भारत के अवसर

गत सप्ताहांत लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पोलिटिकल साइंस में 'भारत सतत विकास सम्मेलन' का आयोजन किया गया जिसमें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रो. एस्थर दुफ्लो समेत कई प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों, विशेषज्ञों व शोधार्थियों ने भाग लिया। इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर (आईजीसी), एलएसई एसटीआईसीईआरडी के पर्यावरण और ऊर्जा कार्यक्रम, वारविक विश्वविद्यालय और भारतीय सांख्यिकी संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस सम्मेलन का उद्देश्य, पर्यावरण अर्थशास्त्र पर काम करने वाले दुनिया भर के शोधकर्ताओं और अग्रणी संकायों को भारत में नीति निर्माताओं के साथ लाना था। इसी सन्दर्भ में टिम डोबरमन और निकिता शर्मा अपने इस लेख के माध्यम से तर्क देते हैं कि भारत के लिए पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम रखते हुए जीवन-स्तर बढ़ाने को प्राथमिकता देने वाले विकास पथ को चुनना अति महत्वपूर्ण है।

09 May 2024
Perspectives
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क्या कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों को बन्द करना व्यवहार्य है? वैश्विक दृष्टिकोण सर्वेक्षण से प्राप्त साक्ष्य

हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला ‘पृथ्वी दिवस’ आधुनिक पर्यावरण जन-आन्दोलन के जन्म की सालगिरह को चिह्नित करता है और पर्यावरण के प्रति मनुष्य के दायित्व को रेखांकित करता है। इस अवसर पर प्रस्तुत शोध आलेख में कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों पर चर्चा की गई है और उन्हें खत्म करने की इच्छाशक्ति, लाभ व लागत पर साक्ष्य दिए गए हैं। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र अत्यधिक प्रदूषणकारी ऊर्जा-स्रोत हैं, लेकिन लोग इसके बारे में या तो अनजान हैं या खराब वायु गुणवत्ता के बारे में अपना असंतोष व्यक्त करने में असमर्थ हैं। इस लेख में 51 निम्न और मध्यम आय वाले देशों के सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए, कोयला बिजली को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए भुगतान की नागरिकों की इच्छा की गणना की गई है। इसमें बिजली संयंत्र के समीप रहने वाले निवासियों की भलाई को मापा गया है और गणना की गई है कि उन्हें होने वाला वायु गुणवत्ता लाभ सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन की लागत से अधिक होगा।

22 April 2024
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क्या भारत में वायु प्रदूषण का प्रभाव स्वास्थ्य के अलावा भी कहीं पड़ता है?

भारत में होने वाला वायु प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है, इस तथ्य को अब व्यापक रूप से माना जा रहा है। लेकिन बहुत कम ऐसे साक्ष्य प्रचलित हैं, जो यह दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने की क्षमता में कमी और निर्णय लेने की क्षमता में कमी जैसे तरीकों के माध्यम से उन लोगों के दैनिक कामकाज को हानि पहुँचाता है, जिनको चिकित्सा या निदान योग्य कोई बीमारी नहीं है। एग्विलर-गोमेज़ एवं अन्य विभिन्न उद्योगों में प्रदूषण के 'गैर-स्वास्थ्य प्रभावों’ और परिवेशीय प्रदूषण पर लोगों की प्रतिक्रिया के तरीकों पर यह शोध प्रस्तुत करते हैं।

08 December 2023
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भारत की फसलों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

हर साल, 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना हुई थी। इसे मनाने का उद्देश्य वैश्विक भुखमरी से निपटना और उसे पूरी दुनिया से खत्म करना है। खाद्य और इसलिए, भुखमरी का सीधा सम्बन्ध कृषि और कृषि उत्पादों से है। वर्तमान जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में कृषि उत्पादकता पहले से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है। इस लेख में, मौसम में बदलाव की अल्पकालिक घटनाओं तथा दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण धान, मक्का और गेहूं की पैदावार में आने वाले अन्तर पर प्रकाश डाला गया है और पाया गया कि तापमान का नकारात्मक प्रभाव लम्बे समय की तुलना में अल्पावधि में अधिक होता है। इस लेख में फसल की पैदावार पर होने वाले वर्षा के प्रभाव की भी चर्चा की गई है और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल स्वनिर्धारित कृषि प्रबंधन नीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

16 October 2023
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क्षेत्रीय असमानताओं पर जलवायु परिवर्तन के आघात का प्रभाव

पिछले तीन दशकों में, तापमान में वृद्धि के कारण कृषि और औद्योगिक क्षेत्र के श्रमिकों को खपत में कमी का सामना करना पड़ा है, जबकि सेवा क्षेत्र में खपत की वृद्धि दर्ज हुई है। इस लेख में विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की व्यापकता पर चर्चा की गई है और तापमान परिवर्तनशीलता में बदलाव के कारण घरेलू उपभोग की असमानता में तेज़ वृद्धि की ओर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया गया है। इसमें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के महत्त्व और नीतियों के अनुकूलन में सहायता के लिए, जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों के बारे में डेटा की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया है।

08 September 2023
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भारत में पराली जलना कम करने के लिए स्थानांतरण भुगतान डिज़ाइन करना

पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, ख़ासकर उत्तर भारत में। पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के लिए सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम की शुरुआत के बावजूद, किसानों में इस प्रक्रिया में तरलता और विश्वास की कमी है। यह लेख पंजाब में किए गए एक अध्ययन का वर्णन करता है और बताता है कि यद्यपि कार्यक्रम के अनुपालन में चुनौतियों का सामना हो सकता है, आंशिक अग्रिम भुगतान वाले अनुबन्ध पराली जलने को कम करने और पराली जैसे फसल अवशेषों के कुशल प्रबंधन में उपकरणों व तकनीक के उपयोग को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।

27 July 2023
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जलवायु परिवर्तन और नदी प्रदूषण : भारत में उच्च गुणवत्ता के पर्यावरण डेटा की आवश्यकता

भारत में जल प्रदूषण को नियंत्रित करने और जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए गहन डेटा संग्रह और निगरानी की आवश्यकता है। पोहित और मेहता इस लेख में, एनसीएईआर और टीसीडी की एक परियोजना का वर्णन करते हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के प्रमुख स्थानों पर पानी की गुणवत्ता मापदंडों से संबंधित आंकड़े एकत्र करने के लिए नावों से जुड़े स्वचालित सेंसरों का उपयोग किया गया। वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि कैसे इन निष्कर्षों से प्रदूषण के स्रोतों को समझने में मदद मिल सकती है ताकि प्रभावी नीतिगत हस्तक्षेप और प्रदूषकों द्वारा नियामक अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।

18 July 2023
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प्राकृतिक आपदाओं की आर्थिक गतिशीलता: केरल में आई बाढ़ से साक्ष्य

इस लेख में, प्राकृतिक आपदाओं के आर्थिक प्रभाव को समझने हेतु एक स्वाभाविक प्रयोग (नैचुराल एक्सपेरिमेंट) को डिजाइन करने के लिए, वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ का संदर्भ लिया गया है, जब वहां पड़ोसी राज्यों कर्नाटक और तमिलनाडु की तुलना में बहुत अधिक बारिश हुई थी। पारिवारिक और जिला-स्तरीय डेटा का उपयोग करते हुए, इस अध्ययन में पाया गया है कि भले बाढ़ के कारण आई आपदा के दौरान आर्थिक गतिविधियां कम हुई हों, श्रम बाजार की स्थितियों और सरकार के पुनर्निर्माण के प्रयासों के चलते सभी पड़ोसी राज्यों की तुलना में आपदा के बाद के उछाल के दौरान ऋण की मांग, पारिवारिक आय और मजदूरी में वृद्धि हुई है।

05 May 2023
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कोलकाता में ऑटो रिक्शा हेतु अवैध ईंधन के उपयोग के बारे में साक्ष्य

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने वर्ष 2008 में वायु की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास में आदेश दिया कि कोलकाता और ग्रेटर कोलकाता में सभी पेट्रोल ऑटो को बदल कर पेट्रोल के स्थान पर तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) ईंधन से चलाया जाए। तथापि, इस परिवर्तन की प्रभावशीलता की जांच करते हुए इस लेख में पाया गया है कि कई ऑटो ड्राइवर अधिक प्रदूषणकारी संस्करण का होने के बावजूद, खाना पकाने के एलपीजी का उपयोग करना पसंद कर रहे हैं क्योंकि यह ईंधन की लागत को कम करता है। आदेश के अनुपालन में यह कमी कमजोर कानून प्रवर्तन और फिलिंग स्टेशनों की कमी के कारण और बढ़ जाती है।

28 April 2023
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मानव और पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य किस प्रकार से आपस में जुड़े हुए हैं: भारत में गिद्धों की संख्या में गिरावट से साक्ष्य

भारत के किसान परंपरागत रूप से अपने मृत मवेशियों के शवों के निपटान हेतु गिद्धों पर भरोसा करते आये हैं। किन्तु आकस्मिक विषाक्तता के चलते भारत में गिद्धों की संख्या कम हो जाने के कारण मृत मवेशियों के शवों की सफाई रूक-सी गई है और स्वच्छता का माहौल बिगड़ गया है। फ्रैंक और सुदर्शन इस लेख में, गिद्धों की संख्या में गिरावट के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर हो रहे नुकसान के परिणामों का अनुमान लगाते हुए दर्शाते हैं कि गिद्धों की संख्या के सबसे निचले स्तर पर आ जाने की अवधि के दौरान मनुष्य की मृत्यु-दर में वृद्धि हुई है, और वे यह भी दर्शाते हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र में गिद्धों की भूमिका को आसानी से पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता है।

16 February 2023
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भारतीय कानून जलवायु-संबंधी नियमन किस प्रकार से कर सकता है?

बढ़ती हुई जलवायु परिवर्तन चिंता का समाधान केवल नीति के माध्यम से शायद पर्याप्त नहीं है। इस लेख में, दुबाश और श्रीधर कहते हैं कि जलवायु-संबंधित कानून से अर्थव्यवस्था के व्यापक परिणामों को सुनिश्चित किया जा सकता है, और जलवायु कानून को लागू करने की उम्मीद करने वाले देशों के समक्ष ऐसे नौ विचार प्रस्तुत करते हैं जिनको जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए अपनाया जाना चाहिए। वे व्यापक राजनीतिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए, यह सुनिश्चित करते हुए कि पर्यावरण और विकास दोनों उद्देश्यों को पूरा किया जा सके; इन कानूनों को डिजाइन करने के संभावित तरीकों पर चर्चा करते हैं।

25 November 2022
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सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए सूचना-संबंधी बाधाओं को कम करना: भारत से प्रायोगिक साक्ष्य

अभी भी बड़ी संख्या में लोगों को विश्वसनीय और उच्च गुणवत्ता वाली बिजली आपूर्ति नहीं हो रही है। इस अंतर को ऑफ-ग्रिड सौर प्रौद्योगिकियां कम कर सकती हैं,तथापि इन्हें कम अपनाया गया है। इस लेख में तीन भारतीय राज्यों में सौर गृह-प्रणालियों को अपनाये जाने संबंधी सूचना प्रावधान की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है, और यह पाया गया कि भले ही इन प्रौद्योगिकियों में वास्तविक रूप में टेक-अप आय और क्रेडिट बाधाओं के कारण कम रहा हो, संभावित ग्राहक जिन्हें इनकी बेहतर जानकारी दी गई थी,उन्होंने सौर उत्पादों में अधिक रुचि व्यक्त की है।

17 August 2022
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भारत में पर्यावरणीय क्षरण में सुधार लाने में नियामक नवाचार की भूमिका

येल पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक की 180 देशों की सूची में भारत अंतिम स्थान पर है। अनंत सुदर्शन भारत में पर्यावरणीय क्षरण के व्यापक आर्थिक और विकासात्मक प्रभावों की जांच करते हैं। इस विषय पर उपलब्ध साहित्य और अपने स्वयं के अनुभव-जन्य कार्यों के आधार पर,वे तर्क देते हैं कि नियामक गतिरोध के चलते इसका समाधान पाना कठिन हो गया है, साथ ही अपनी पर्यावरण नीति में आशाजनक नवाचारों को पर्याप्त रूप से लागू करने में भारत विफल रहा है। उनका सुझाव है कि इस बारे में अधिक अनुसंधान-नीति सहयोग और व्यापक अनुशासनात्मक विशेषज्ञता से भारत में पर्यावरण नियमन को लाभ होगा।

30 June 2022
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जलवायु संबंधी अपने लक्ष्यों को पूरा करने में भारत की प्रगति

जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के तहत भारत का लक्ष्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33-35% तक कम करना है। मनीषा जैन ने ‘आइडियाज फॉर इंडिया’ में प्रकाशित अपने पिछले लेख में दर्शाया था कि लक्ष्य की ओर अनुमानित प्रगति बाहरी और देश के डेटा स्रोतों में भिन्न होती है। इस लेख में,आगे के विश्लेषण के आधार पर वे तर्क देती हैं कि भारत के जलवायु लक्ष्यों को बढ़ाने के दायरे और इसकी शमन रणनीतियों की प्रभावशीलता से संबंधित सवालों का हल विभिन्न डेटासेट में अलग-अलग मिलता है।

05 June 2022
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जलवायु संकट में भारत की संघीय प्रणाली की पुनर्कल्पना

सभी देशों की तरह भारत के लिए भी, जलवायु परिवर्तन एक अत्यंत तेजी से बढती समस्या बन गई है। इस लेख के जरिये पिल्लई एवं अन्य तर्क देते हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए भारत की संघीय प्रणाली की पुनर्कल्पना करने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत के संविधान में जलवायु संबंधी कई क्षेत्रों में राज्यों के महत्वपूर्ण कर्त्तव्य निर्धारित किये गए हैं। वे जलवायु नीति में संस्थागत सुधार हेतु एक नए दृष्टिकोण का सुझाव देते हैं, जो राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिए अपने कार्यों का समन्वय करते हुए राज्यों को पर्याप्त लचीलापन देगा।

15 March 2022
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संपन्न शहरी परिवारों में जल संरक्षण को प्रेरित करना

पानी की मांग को कम करना - विशेष रूप से संपन्न, शहरी घरों में - सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने और इसे एक किफायती मूल्य पर बनाए रखने के लिए बढ़ती आपूर्ति के बोझ को कम कर सकता है। बेंगलुरू में किये गए एक क्षेत्र-प्रयोग के आधार पर यह लेख दर्शाता है कि 'आदत-परिवर्तन' के हस्तक्षेप से किसी भी आर्थिक प्रोत्साहन या प्रतिबंधों के बिना घरेलू पानी की खपत में 15-25% की कमी लाई जा सकती है और ये परिणाम हमारे अध्ययन की दो साल की अवलोकन अवधि के लिए बने रहे हैं।

14 September 2021
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कोविड-19, जनसंख्या और प्रदूषण: भविष्य के लिए एक कार्ययोजना

वर्तमान में चल रही कोविड-19 महामारी के बहुआयामी प्रभाव दिख रहे हैं और इसने हमारे समक्ष दो दीर्घकालिक मुद्दे भी रख दिये हैं। वे हैं - जनसंख्या और प्रदूषण। इस आलेख में ऋषभ महेंद्र एवं श्वेता गुप्ता ने कोविड-19 मामलों पर जनसंख्या घनत्व के प्रभाव का आकलन किया है और यह बताया है कि वायु प्रदूषण से कोविड-19 का क्या संबंध है? साथ हीं उन्होने वर्तमान संकट के संदर्भ में और भविष्य के लिए नीतिगत सुझाव दिए हैं।

21 July 2020
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बच्‍चों के स्वास्थ्य पर कोयले का प्रभाव: भारत के कोयला विस्तार से साक्ष्य

हाल के वर्षों में, भारत में कोयले से हो रहे बिजली उत्पादन में बड़ी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यह लेख भारत में कोयले से होने वाले बिजली उत्पादन से बच्‍चों के स्वास्थ्य और मानव संसाधन पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल करता है। यह ज्ञात होता है कि जो बच्चे मध्‍यम आकार के कोयला प्लांट के संपर्क वाले क्षेत्रों में जन्‍म लेते हैं उनकी लंबाई ऐसे बच्‍चों की तुलना में कम होती है जो कोयला प्लांट से संपर्क से दूर स्थित क्षेत्रों में पैदा होते हैं। वायु प्रदूषण का प्रभाव कोयला प्लांटों के करीब रहने वाले बच्चों में अधिक होते हैं।

24 March 2020
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भारत के तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण का महिलाओं के सशक्तिकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?

माना जाता है कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को उनके ग्रामीण समकक्षों की तुलना में अधिक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवसर और स्वतंत्रता प्राप्त होती है। साथ ही, शोध से यह पता चलता है कि शहरी वातावरण में महिला सशक्तिकरण में कई बाधाएँ भी हैं। इस लेख में भारत के तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और लैंगिक असमानता की निरंतरता को ध्यान में रखते हुए, महिलाओं के परिणामों पर शहरीकरण के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है और उसके मिलेजुले परिणाम प्राप्त हुए हैं।

05 July 2024
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भारत में ज़मीन की महँगाई और इसके उपाय

भारत में ज़मीन की कीमत उसके मौलिक मूल्य की तुलना में अधिक है, जिसके चलते देश में आर्थिक विकास प्रभावित हो रहा है। इस लेख में, गुरबचन सिंह दो व्यापक कारकों- शहरी भारत में लाइसेंस-परमिट-कोटा राज और ग्रामीण भारत में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के सन्दर्भ में यह स्पष्ट करते हैं कि ऐसा क्यों है। वे इस व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और अंततः अधिनियम के मूल्य-निर्धारण प्रावधानों को समाप्त करने की सिफारिश करते हैं।

17 May 2024
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क्या भारत के शहर उसके महत्वाकांक्षी शून्य उत्सर्जन (नेट ज़ीरो) लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा बन रहे हैं?

विश्व के शहरों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन राष्ट्रीय औसत से काफी कम है, जबकि दिल्ली और कोलकाता जैसे बड़े भारतीय शहरों में राष्ट्रीय औसत से दोगुना तक उत्सर्जन होता है। शाह और डाउन्स इस बात का पता लगाते हैं कि भारत में हो रहा शहरीकरण देश के राष्ट्रीय डीकार्बोनाइज़ेशन प्रयासों को कैसे नाकाम कर सकता है। वे सुझाव देते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्थापित करने और राज्यों और राष्ट्रीय सरकारों को मिलकर काम करने के लिए विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा।

31 August 2023
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अच्छी नौकरियां सुनिश्चित कराने में शहरों की भूमिका

भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण के मद्देनजर, राणा हसन उन विभिन्न कारकों पर प्रकाश डालते हैं जो बड़े शहरों को छोटे नगरों और ग्रामीण क्षेत्रों से अलग करते हैं: रोजगार के अधिक अवसर, अधिकतम मजदूरी, बड़े विनिर्माण और व्यावसायिक क्षेत्र, और अधिक नवाचार। हालांकि शहर श्रमिकों और फर्मों को पहले से ही आकर्षित करते आए हैं, उन्होंने इस बात की चर्चा की है कि शहरों को रोजगार सृजन के लिए और अधिक अनुकूल बनाने हेतु क्या किया जा सकता है। वे नीतिगत सुझाव देते हुए परिवहन और बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने और बेहतर समन्वित आर्थिक और शहरी नियोजन का सुझाव देते हैं।

28 September 2022
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Urbanisation
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प्रवासन-प्रेरित मांग के प्रति शहरी भारत की आवास आपूर्ति प्रतिक्रिया

क्या भारत में शहरी आवास आपूर्ति ने आवास की बढ़ती मांग के साथ तालमेल बिठाया है? यह लेख, वर्ष 2001 और 2011 के बीच के जनगणना संबंधी आंकड़ों का उपयोग करते हुए प्रवासन से प्रेरित आवास मांग की प्रतिक्रिया के रूप में आवास की बाजार आपूर्ति का अध्ययन करता है। यह दर्शाता है कि किसी राज्य में होने वाली राजमार्ग निवेश और सूखा जैसी बहिर्जात घटनाएं अंतर्राज्यीय प्रवासन में परिवर्तन के माध्यम से दूसरे राज्य में आवास की मांग को प्रभावित करती हैं। आवास आपूर्ति के बारे में इस लेख के निष्कर्ष 2000 के दशक के दौरान की भारत की शहरी सभ्यता और प्रत्याशित निर्माण के अस्तित्व के अनुरूप हैं।

28 July 2022
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Urbanisation
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किसान क्रेडिट कार्ड कार्यक्रम: ऋण की उपलब्ध्ता का विस्तार या ऋण का प्रसार?

किसान क्रेडिट कार्ड कार्यक्रम – भारत में कृषि उधार में एक महत्वपूर्ण सुधार – का आरम्भ हुए लगभग 20 वर्ष हो गए हैं। हालांकि, लक्षित लाभार्थियों पर इसके प्रभाव का थोड़ा अनुभवजन्य साक्ष्य है। इस लेख में पाया गया है कि इस कार्यक्रम का कृषि उत्पादन और प्रौद्योगिकी अपनाने पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसका संभावित कारण यह है कि कृषि ऋण की पहुँच के विस्तार के बजाय पहले से ही कृषि ऋण तक पहुँच वालों की उधार लेने की क्षमता बढ़ गई है।

21 December 2018
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Money & Finance
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आईडियाज़@आईपीएफ2024 श्रृंखला : एनसीएईआर के भारत नीति मंच से शोध

नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च हर साल भारत नीति मंच, इंडिया पॉलिसी फोरम (आईपीएफ) की मेज़बानी करता है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ अर्थशास्त्री और नीति-निर्माता सार्वजनिक नीति के लिए उनकी प्रासंगिकता हेतु शोध विचारों का विश्लेषण करते हैं। दिनांक 2-3 जुलाई को आयोजित आईपीएफ के 21वें संस्करण के बाद, आइडियाज़ फॉर इंडिया (आइ4आइ) हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनो में, आइडियाज़@आईपीएफ2024 श्रृंखला प्रस्तुत कर रहा है, जिसका परिचय एनसीएईआर के वरिष्ठ सलाहकार प्रदीप कुमार बागची द्वारा इस एंकर पोस्ट में प्रस्तुत है। दिनांक 18 जुलाई से 8 अगस्त के बीच आई4आई के हिन्दी अनुभाग में आईपीएफ में प्रस्तुत नीति-प्रासंगिक अर्थशास्त्र शोध के सारांश प्रकाशित होंगे, जिसमें कॉर्पोरेट भारत में महिला नेतृत्व, विदेशी मुद्रा भंडार रखने की लागत और लाभ से लेकर पंजाब राज्य में सामाजिक सुरक्षा जाल और आर्थिक विकास तक के विषय शामिल होंगे।

18 July 2024
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रॉबर्ट सोलोव और 'राष्ट्रों की संपन्नता'

अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट सोलोव की हाल ही, दिसम्बर 2023 में मृत्यु हुई। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, I4I के प्रधान सम्पादक परीक्षित घोष इस दिवंगत के कुछ योगदानों को रेखांकित करते हैं और अर्थव्यवस्था के लिए उदाहरणों व रूपकों के माध्यम से इस बात पर प्रकाश ड़ालते हैं कि किस प्रकार से सोलोव मॉडल में गणितीय ढाँचे में विकास को मद्धम करने (टेपर करने) का विचार प्रस्तुत किया गया है। इस मॉडल के सन्दर्भ में वे भारत में कैच-अप विकास की जाँच करते हैं और जन-साधारण की समृद्धि के लिए, जो कई देशों के लिए एक सपना बन के रह गया है, सामान्य समझ से परे देखने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।

08 February 2024
Perspectives
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फिल्में किस तरह से नकारात्मकता (स्टिग्मा) और पसंद को प्रभावित करती हैं- भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग से साक्ष्य

हाल ही में, शैक्षिक मनोरंजन सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच के रूप में उभरा है। इस लेख में, अग्रवाल, चक्रवर्ती और चैटर्जी जांच करते हैं कि क्या फिल्में स्वास्थ्य देखभाल के प्रति नकारात्मकता या स्टिग्मा को दूर कर सकती हैं और क्या भारतीय फार्मास्युटिकल बाज़ार में उपभोक्ता के लिए औषधियों के विकल्प और पसंद को बढ़ा सकती हैं? वे फर्म-स्तरीय बाज़ार की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करके भारत में मनोविकार नाशक दवाओं के बाज़ार पर बॉलीवुड फिल्म ‘माई नेम इज़ ख़ान’ की रिलीज़ के प्रभाव का पता लगाते हैं। शोधकर्ता फिल्म के कारण पैदा हुई सकारात्मकता के कारण बाज़ार में दवाओं की किस्मों की आपूर्ति में वृद्धि पाते हैं।

06 July 2023
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भारत के सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम के अनपेक्षित सकारात्मक परिणाम

भारत के प्रमुख मातृ स्वास्थ्य हस्तक्षेप, जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से संस्थानों में प्रसव करवाने का विकल्प चुनने वाली महिलाओं को सशर्त नकद हस्तांतरण उपलब्ध कराया गया है। इस अध्ययन में चटर्जी और पोद्दार ने बच्चों के शैक्षिक परिणामों पर इस कार्यक्रम के बड़े सकारात्मक स्पिलओवर (लाभ) को दर्शाया है। उन्होंने पाया कि ये स्पिलओवर मानव पूंजी में निवेश में वृद्धि और कार्यक्रम के महिला लाभार्थियों की प्रजनन वरीयताओं में बदलाव के माध्यम से घर में पहले से पैदा हुए बड़े बच्चों को मिलते हैं।

12 May 2023
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अंतर्निहित प्रयोगों में जोखिम

शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं द्वारा एक टीम के रूप में किये जा रहे 'अंतर्निहित प्रयोगों' में रुचि बढ़ रही है। क्षमता के पैमाने के अलावा,इन प्रयोगों का मुख्य आकर्षण किये गए शोध को शीघ्र ही नीति में परिवर्तित करने की सुविधा वाले प्रतीत होना है। बिहार में किये गए एक केस स्टडी पर चर्चा करते हुए, जीन ड्रेज़ तर्क देते हैं कि ऐसे दृष्टिकोण से नीति और अनुसंधान दोनों बिगड़ जाने का खतरा है।

19 May 2022
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सूचना का प्रावधान और खाद्य सुरक्षा: शहरी भारत में एक क्षेत्रीय अध्ययन

हालांकि लाखों लोगों के दैनिक भोजन की खपत का एक महत्वपूर्ण भाग स्ट्रीट फूड है, तथापि इन खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं की विश्वसनीयता और सुरक्षा लोगों के स्वास्थ्य के सन्दर्भ में एक प्रमुख सार्वजनिक चिंता बनी हुई है। यह लेख कोलकाता में किए गए एक क्षेत्र प्रयोग के आधार पर दर्शाता है कि स्ट्रीट फूड सम्बन्धी सुरक्षा खतरों को कम करने के लिए विक्रेताओं को सूचना का प्रावधान और प्रशिक्षण पर्याप्त नहीं है।

07 June 2021
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I4I के 2020 के हाइलाइट: प्रधान संपादक की टिप्पणी

अब जब हम वर्ष 2021 में प्रवेश कर रहे हैं, प्रधान संपादक अशोक कोटवाल पीछे मुड़ कर देखते हैं कि पिछला वर्ष कितना अभूतपूर्व और महत्त्वपूर्ण रहा है। साथ ही उन्होंने आइडियास फॉर इंडिया के 2020 के मुख्य हाइलाइट भी प्रस्तुत कर रहे हैं।

14 January 2021
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भारत में सामाजिक और आर्थिक अनुसंधान के लिए फोन सर्वेक्षण पद्धति

कोविड-19 के प्रसार को रोकने हेतु लगाई गई पाबंदियों और सामाजिक दूरी के दिशानिर्देशों के मद्देनजर फेस-टू-फेस सर्वेक्षणों के माध्यम से डेटा संग्रह करने में बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ा है। इस पोस्ट में कॉफ़ी एवं अन्य ने उनके द्वारा सामाजिक नज़रिया, भेदभाव, और सार्वजनिक राय पर वर्ष 2016 के बाद भारत के सात राज्यों एवं शहरों में किए गए मोबाइल फोन सर्वेक्षण करने के अपने अनुभव को साझा किया है।

14 December 2020
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लोक-स्वास्थ्य कैसे बने राजनीतिक प्राथमिकता

आज सारा विश्व कोरोना महामारी की समस्या से जूझ रहा है जिस पर अनेक कोणों से शोधकर्ताओं ने प्रामाणिक आलेख प्रस्तुत किए हैं। भावेश झा द्वारा इस आलेख में आम जनता के स्वास्थ्य को राजनीतिक प्राथमिकता कैसे प्राप्त हो विषय पर सम्यक प्रकाश डाला गया है। इसमें उन्होने यह मान्यता स्थापित करने की कोशिश की है कि जन-स्वाथ्य से जुड़े नवीन शोध व जानकारी शोधपत्रों से निकलकर सरल भाषा में आम जन तक पहुँचे।

11 August 2020
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सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों की राजनीति: सर्वोच्च न्याेयालय में भ्रष्टाचार?

भारतीय न्यायपालिका न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है। कार्यकारी हस्तक्षेप से सावधान रहते हुए न्यायाधीश अपने संस्थागत हितों को बचाते हैं। लेकिन क्या भारत की न्यायिक व्यवस्था न्यायिक स्वतंत्रता के उल्लंघन से पीड़ित है? 1999 और 2014 के बीच सर्वोच्च न्यासयालय के फैसलों के एक युनीक डेटासेट तथा सर्वोच्ची न्या्यालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के कैरियर-ग्राफ का उपयोग करते हुए इस आलेख में पाया गया कि सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की सरकारी पदों पर की गई नियुक्तियों में वृद्धि, उनके लिए मामलों को राज्य के पक्ष में तय करने के लिए एक शक्तिशाली प्रोत्साहन के रूप में कार्य करती है।

14 July 2020
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कोविड-19 लॉकडाउन और आपराधिक गतिविधियाँ: बिहार से साक्ष्य

कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए लागू किया गया लॉकडाउन समाज के लिए व्यापक रूप से परिणामकारी था। रुबेन का यह आलेख पुलिस से प्राप्‍त अद्यतन सूचना का उपयोग करते हुए बिहार में आपराधिक गतिविधियों पर लॉकडाउन के प्रभाव का विश्लेषण करता है। परिणाम बताते हैं कि लॉकडाउन ने कुल अपराध में 44% की कमी की। अन्‍य अपराधों के सा‍थ, हत्याओं (61%), चोरी (63%), और महिलाओं के खिलाफ अपराध (64%) जैसे विभिन्न प्रकार के अपराधों के संबंध में बड़े नकारात्मक प्रभाव देखे गए हैं।

10 July 2020
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लिंग आधारित हिंसा के लिए मौत की सजा: एक टूटी हुई व्यवस्था के लिए अस्थाई समाधान

2018 में, भारत सरकार ने लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (पोकसो) अधिनियम, 2012 और भारतीय दंड संहिता में संशोधन किया है, जिसमें 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के बलात्कार के दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान है। श्रीराधा मिश्रा का तर्क है कि मृत्युदंड न्याय का भ्रम प्रदान कर सकता है, दृष्टिकोण में यह पूरी तरह से प्रतिशोधी है और यौन हिंसा की समस्या से निपटने के लिए किसी भी निवारक समाधान की पेशकश नहीं करता है।

05 February 2020
Perspectives
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बच्चों के अभियान द्वारा एक गाँव को नशा-मुक्त बनाने की यात्रा

केवल दो वर्षों में, महाराष्ट्र के सांगली जिले में एक स्कूल के छात्रों और उनके शिक्षक के प्रयासों ने पूरे गांव के शराब की लत को समाप्त कर दिखाया। इस नोट में, शिरीष खरे ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि गाँव के लोगों की कहानियों के बारे में बात करने और उन्हें साझा करने से यह परिवर्तन कैसे लाया गया।

21 January 2020
Articles
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स्कूल में मूल्यवर्धन-प्रयोगशाला की बदौलत ग्रामीणों ने बनाया बगीचा

महाराष्ट्र के जिला कोल्हापुर के वालवे खुर्द में स्थित एक प्राथमिक स्कूल के छत्रों और शिक्षकों ने पर्यावरण के मुद्दे को पुस्तकों से बाहर निकाला और व्यवहारिक रुप से अपनाया। इस नोट में, शिरीष खरे ने स्कूल के शिक्षकों द्वारा छत्रों से पेड़ लगवाने, पेड़ बचाने और उन्हें पेड़ों के उपयोग के बारे में बताने जैसी अनुभवों को साझा किया है।

08 January 2020
Notes from the Field
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इस साल के अर्थशास्त्र नोबेल की दास्‍तान

इस पोस्‍ट में मैत्रीश घटक इस बात पर विचार-विमर्श कर रहे हैं कि कैसे रैन्डमाइज्ड कंट्रोल ट्राइयल्स (आरसीटी; यादृच्छिकीकृत नियंत्रित परीक्षणों) को — जिसके प्रयोग की अगुआई इस वर्ष के अर्थशास्‍त्र में नोबेल पुरस्‍कार विजेता बैनर्जी, डुफ्लो और क्रेमर ने की थी — गरीबों के जीवन को सीधे प्रभावित करने वाले कार्यक्रमों एवं व्यवधानों के साथ वास्‍तविक जीवन में सफलतापूर्वक लागू किया गया। घटक इस बात का दावा करते हैं कि ये परीक्षण केंद्रीकृत नीति निर्माण की शीर्ष-पाद पद्धति में अत्‍यावश्‍यक सुधार उपलब्‍ध करा सकते हैं।

20 November 2019
Perspectives
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रिसर्च और पॉलिसी के बीच फासला कम करने के लिए प्रमुख आर्थिक संस्थानों ने हाथ मिलाया

सुविज्ञ निर्णय लेने के लिहाज से प्रमाण-आधारित रिसर्च की बेहतर जानकारी देने के लिए लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स स्थित इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर (आइजीसी) और शिकागो विश्वविद्यालय स्थित टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट (टीसीडी) ने कॉलेबरेशन किया है।

19 July 2019
Perspectives
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